
‘परिक्रमा’ तट पर हिलोरें मारता ‘मायनों का सागर’…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
पथिक प्रहलाद की ‘नर्मदा परिक्रमा’ और ‘नर्मदा परिक्रमा’ के अनुभवों पर लिखी पुस्तक ‘परिक्रमा कृपा सागर’ दोनों ही जन-जन को प्रेरित करने वाली हैं। किसी भी व्यक्ति का अपने जीवन में ‘नर्मदा परिक्रमा’ कर पाना अपने आप में बहुत जटिल है और मां नर्मदा, गुरुदेव, संतों या ईश्वर की कृपा से ही संभव हो पाती है। पर जब नर्मदा परिक्रमा हो जाती है तो व्यक्ति के अनुभवों की जटिलता भी सब नहीं समझ पाते। ‘पथिक प्रहलाद पटेल’ की पुस्तक ‘परिक्रमा कृपा सागर’ पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी बड़ी गूढ़ टिप्पणी की है कि पुस्तक जटिल है और उन्हें सरसरी नजर डालने पर ही पुस्तक की जटिलता का अहसास हो गया है। और अब पुस्तक के विमोचन के अवसर पर मंच पर संत और संघ प्रमुख की केवल दो कुर्सियां और संघ प्रमुख का भाषण भी सभी को बड़ा जटिलता भरा महसूस हो रहा है। संघ प्रमुख का यह कहना कि मैं नागपुर से पुस्तक विमोचन के लिए आया हूं और विमोचन के बाद अब सीधा नागपुर ही लौटूंगा, भी बड़े मायनों भरा लग रहा है। पुस्तक विमोचन का स्थान चयन भी सामान्य से अलग हटकर देखा जा रहा है। ‘पथिक प्रहलाद पटेल’ मां नर्मदा की कृपा से मध्य प्रदेश शासन के मंत्री हैं और कई बार सांसद और केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं, इस नाते वह मध्य प्रदेश में कहीं भी और देश में कहीं भी अपनी पुस्तक का विमोचन इसी भव्यता के साथ कर सकते थे। पर चर्चा इस बात की हो रही है कि विमोचन के लिए इंदौर का चयन ही क्यों किया गया? और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 75 साल पूरे होने पर 17 सितंबर 2025 को होने वाली मध्य प्रदेश की यात्रा के तीन दिन पहले की पुस्तक विमोचन की तारीख भी क्या कुछ मायनों भरी है?
कौतूहल का विषय यह भी है कि संघ प्रमुख ने अपने पूरे भाषण में सत्ता और राजधर्म की चर्चा बहुत ही गंभीरता से की। और अपनी सहज अभिव्यक्ति में भी राजधर्म को लेकर दृष्टांत भी सुनाया और यहां तक कहा कि बाज और चिड़िया को न्याय देते हुए राजा ने किस तरह से सबको अपना मानते हुए राजधर्म निभाया। सभी को बराबरी से देखा जाना चाहिए। किसी का मन नहीं दुखाना चाहिए। ऐसे बहुत सारे भाव संघ प्रमुख के भाषण में समाए हुए थे। परिक्रमा पुस्तक के अवसर पर संघ प्रमुख की ऐसी नसीहत शायद परिक्रमा से इतर गूढ़ मायनों भरी नजर आ रही है। हालांकि संघ प्रमुख मोहन भागवत का भाषण हमेशा की तरह ही ज्ञान की पूर्णता, संपूर्णता और परिपूर्णता का सागर ही था। और मंच पर बैठे संत ईश्वरानंद और मंच से नीचे बैठे सत्ता, संगठन और सभी गणमान्य सुधिजनों ने पूरे ध्यान से ही सुना और उस पर आत्ममंथन भी किया और कर भी रहे होंगे। संघ का मुखिया जहां मौजूद हो वहां अनुशासन का सागर भी लबालब भरा रहता है। परिक्रमा पुस्तक के विमोचन के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में भी संघ के अनुशासन का ही शासन नजर आया। सत्ता और राजधर्म के बाद संघ प्रमुख भारत और विश्व पर भी सबका ध्यान केंद्रित कराने में सफल रहे। और अंत में सहज तौर पर सरल भाषा में दो मिनट में उन्होंने पुस्तक परिक्रमा पर भी अपनी बात खुलकर सबके सामने रख दी। और यह जता दिया कि संघ के मुखिया की कुर्सी पर बैठाकर सभी ने यह दायित्व दे दिया है कि परिक्रमा जैसी पुस्तकों का विमोचन करने का काम वह करते रहें।
मंच की दो कुर्सियों में से एक पर विराजे संत ईश्वरानंद ने सहज अभिव्यक्ति में कहा कि कैलाश परिक्रमा का समय एक दिन आगे बढ़ाकर वह कैलाश विजयवर्गीय और प्रहलाद पटेल के आग्रह पर पुस्तक विमोचन में उपस्थित हुए हैं। तो संत ने यह चुटकी लेने में भी कोई हिचक नहीं की, कि राजनीति में पद पाना हो तब लोग राजनीति में बड़े लोगों की परिक्रमा करते हैं। और अध्यात्म और दिव्यता के दर्शन करने हों तो लोग नर्मदा परिक्रमा कर अनुभव पाते हैं। तो मायने यह भी निकाले जा रहे हैं कि आखिर वर्तमान में कौन किसकी परिक्रमा कर रहा है और परिक्रमा के सही मायने क्या हैं?
वैसे पुस्तक परिक्रमा में भी उल्लेख है और पथिक प्रहलाद पटेल ने भी अपनी अभिव्यक्ति में ‘पूर्णता’, ‘संपूर्णता’ और ‘परिपूर्णता’ जैसे शब्दों का उल्लेख किया है। क्या ‘पूर्णता’, ‘संपूर्णता’ और ‘परिपूर्णता’ जैसे शब्द मध्य प्रदेश की राजनीति में भी अपने मायनों की तलाश में गोता लगा रहे हैं, यह भी चर्चा का विषय बना हुआ है। फिलहाल 14 सितंबर 2025 की तारीख परिक्रमा पुस्तक के विमोचन के रूप में पथिक प्रहलाद पटेल के जीवन की अनमोल उपलब्धि के रूप में दर्ज हो गई है, तो मध्य प्रदेश के सत्ता और संगठन के मन मस्तिष्क पर भी अमिट छाप छोड़ गई है। संघ प्रमुख मोहन भागवत का आना पथिक प्रहलाद को भाव और बोध से भर गया। तो मध्य प्रदेश में सत्ता और संगठन भी भाव और बोध के सागर में डूबकर संघ प्रमुख के मोहनी उद्बोधन को आत्मसात कर मायनों पर मंथन किए बिना नहीं रहेगा… वास्तव में देखा जाए तो ‘परिक्रमा’ तट पर ‘मायनों का सागर’ हिलोरें मारता रहेगा…।
लेखक के बारे में –
कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।





