Food Science: सेहत की थाली: चौलाई की भाजी वाली

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Food Science:सेहत की थाली: चौलाई की भाजी वाली

         इसमें मौजूद विटामिन्स व मिनरल्स इम्यून सिस्टम को मजबूत करते हैं!

यह हरे भरे साग उस समय काम आते हैं जब कुछ खाने का मन न करे या फिर घर मे कुछ सब्जी नजर न आये। कभी कभी तो महंगाई सब्जियों को हमारे किचन से दूर कर देती है, ठीक उसी समय घर की बाड़ी या खेत खलिहानों की मेडो पर लगे ये साग भाजी के पत्ते काम आते हैं।

Cholai Saag

चौलाई साग जितना स्वादिष्ट है, उससे कहीं अधिक आसान है इसे पकाना। ताजी कोमल पत्तियों को छाँटकर, पानी से धोकर काट लें, ध्यान रहे, कि काटकर नही धोना है। सबसे पहले प्याज, मिर्च, लहसन, जीरे और कढ़ी पत्ते के साथ छौक लगा दें। अब कटी हुई साग डाल दें। कुछ मिनटों तक कढ़ाई में ढक्कन ढक कर पकायें, इसके बाद टमाटर या अमचूर डालें। थोड़े समय उपरांत नमक, धनिया पावडर, मिर्च पाउडर, आदि डालें, और पुनः पकने दें। चौलाई भाजी तैयार है।
इसे आलू के साथ अधिक पसंद किया जाता है, ऐसे पकाते समय भाजी डालने से पहले ही आलू पका लें, शेष प्रक्रिया पूर्वानुसार रहेगी। आलू की मसालेदार ग्रेवी वाली सब्जी में भी इसे डाला जाता है, जिसका स्वाद और अधिक उभरकर आता है। लेकिन कोई मुझसे पूछे तो चौलाई के पराठे के सामने बाकी चीजें मुझे फीकी लगती हैं।
Chaulai Benefits in Hindi | चौलाई के फायदे | Amaranthus Ke Fayde
चौलाई का एक डंठल हलके लाल रंग का भी होता है, खाने में उसे भी खूब प्रयोग में लाया जाता है. प्राचीन समय में चौलाई के बीजों का भी बहुपयोग होता था. इसका आटा बनाया जाता था, पीसकर मूर्तियां आदि बनाई जाती थीं तो पुराने वक्त में शहद के साथ मिलाकर एलेग्रिया नामक एक पारंपरिक और बेहद स्वादिष्ट मिठाई भी बनाई जाती थी. इसे अब मैक्सिकन कैंडी कहा जाता है. भारतीय लोक-रिवाजों में यह मान्यता है कि चौलाई के प्रयोग से सांप व कीड़े-मकौड़ों के ताप को कम किया जा सकता है.
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अलग अलग व्यंजनो में चौलई के अनेक रूप हैं। कुछ ग्रामीण परिवारों में मैंने इसके कोमल तनों/ डंठलों की तीखी रस्सेदार सब्जी भी खाई है। कुछ लोग इसके पकोड़े भी बनाते हैं। आजकल तो बड़े चाव से इसे सांभर में भी डाला जा रहा है। और एक खास बात अगर आपने इसकी साग बनाने के लिए पत्ते चुन लिए हैं और अब कोमल शाखाओं में अपरिपक्व बीज ही बचे हैं तो इसे फेकिये मत। बीजों को और कोमल शाखाओं को बेसन के साथ गूंथ कर छोटी बॉल्स बना लें और भाप में पका लें। फिर इसे ऐसे ही या फ्राय करके या पुनः इन बॉल्स की कोफ्ते की तरह रसीली सब्जी बना लें। क्योंकि इसकी पत्तियों से कहीं ज्यादा पोषक खजाना इसके बीजों में हैं, जो राजगिरा समूह का सदस्य है।
चौलाई की पत्तियां, जड़ और फूल सभी में होते हैं औषधीय गुण, जानें इसके सेवन के फायदे और प्रयोग का तरीका<!-- --> | <!-- -->health benefits of chaulai or amaranth in hindi ...
राजगिरे के लड्डू तो सभी ने बचपन में जरूर खाये होंगे। क्या कहा नही खाये? … । तो फिर आपका बचपन अधूरा है। कल सारे काम छोड़कर राजगिरे के लड्डू ढूँढिये और अपना बचपन पूरा याने सार्थक कीजिये। वैसे समय भी उपयुक्त है, नवरात्रि से दीवाली- ग्यारस तक इनकी अच्छी खासी उपलब्धता रहती है।
चौलाई साग हमारे छिंदवाडा जिले में पाई जाने वाली एक बेहतरीन वनस्पति है। यह सामान्य खरपतवार की तरह बारिस में उगने वाला पौधा है, जो ग्रामीण क्षेत्र में भोजन का बहुत महत्वपूर्ण और स्वास्थ्यवर्धक स्त्रोत है। यह एकवर्षीय साग फसल है, जो खेत खलिहानों में अपने आप पिछले वर्ष झड़े बीजों से उग जाती है। यह एमरेन्थेसी परिवार का सदस्य है। वैसे तो एमरेन्थेसी परिवार के सभी सदस्य कही न कही साग के रूप में अवश्य खाये जाते हैं, किन्तु यह सबसे लोकप्रिय और सुलभ है। जगलो, खेत- खलिहानों और खाली पड़ी जमीन पर उगने के कारन किसी भी प्रकार के कीटनाशक, रासायनिक खाद आदि से भी मुक्त होती है। और इसमें इस कुछ खास है कि इसमें किसी भी प्रकार की बीमारियां लगते मैंने  बहुत कम ही देखा है।
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हमारे लिए तो यह मुफ्त में मिलने वाला प्रकृति का अनमोल उपहार है, जिसे मैं कभी आने खेत से तो कभी अपने किचन गार्डन से बटोर लेता हूँ। लेकिन आपको एक बात बता दूँ, प्रकृति की पाठशाला में मुफ्त का मतलब बेकार नही होता, बल्कि सर्वोत्तम होता है। यहाँ जो दिखता है वो बिकता है की तर्ज पर नही बल्कि सगे और सौतेले का सिद्धांत काम करता है। मेरे गुरूदेव दीपक आचार्य जी हमेशा कहते थे कि जो प्रकृति की सगी संताने हैं उनका प्रकृति ज्यादा ख्याल रखती है जैसे कि आप सूखे निर्जन चट्टानों पर और बिल्डिंग्स पर उगे हुये बरगद या घास पूस को ही ले लीजिए, बड़ी शान से डटे रहते हैं, क्योंकि यही प्रकृति की सगी संताने हैं। और दूसरी तरफ किसान की बोई फसल ले लीजिये लाख पानी, खाद, देखरेख दे दो कहीं न कही बीमार पड़कर दम तोड़ ही देती हैं।
इसकी ताजी पत्तियों में 38 % प्रोटीन, कई सूक्ष्म पोषक तत्व, और हमारे शरीर के लिए आवश्यक अमीनो एसिड लाइसिन पाया जाता है, जो विभिन्न प्रकार की मेटाबोलिक क्रियाओ और नए प्रोटीन निर्माण में आवश्यक है।
इसके बीज भी #ड्राई_फ्रूट की तरह खाये जाते हैं जो राजगिरा के लड्डू, तिल की मूंगपट्टी आदि की तरह खाये जाते है। इसे एक महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक औषधि भी माना गया है, जिसके प्रयोग से सामान्य बुखार, जोड़ो के दर्द, लिवर तथा किडनी रोग, मूत्र संबंधी विकार आदि में फायदा मिलता है। विटामिन A और आयरन की पर्याप्त उवस्थिति के कारन आँखों और प्रतिरक्षा तंत्र के लिए बहुत ही लाभकर है। और सबसे महत्वपूर्ण बात इसका नियमित सेवन किया जा सकता है।
चलिये अब दो दो हाथ करते हैं रसोई की महंगाई से इन फ्री के जुगाड़ के साथ। आगे बढ़ते हैं हमारी पारंपरिक भाजियो के साथ। सेहद के मामले में सर्दियों का मौसम और साग भाजी का साथ बेहतरीन मेल माना जाता है, क्योंकि इसमें लोहा है।
बारिस का मौसम में पेड़ पौधों में नवीन कोपलें फूटने लगती हैं और पेड़ तेजी से विकास करते हैं। इस मौसम में कुछेक साग भाजी ही खाई जाती हैं सभी नही। लेकिन बारिस के बाद फिर साग भाजियो का सेवन उत्तम माना गया है। अतः पूर्व में ही इन पत्तेदार भाजियो की जानकारी दे रहा हूँ। कहा जाता है, की सर्दियों के मौसम में इंसान की सेहद अच्छी बन जाती है। इसका कारण यह है कि इस मौसम में हमारे देश मे भोजन के दृष्टिकोण से सबसे अधिक प्रकार के पौष्टिक व्यंजन उपलब्ध होते हैं। इसने सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती हैं, साग- भाजी या पत्तेदार सब्जियाँ, जी हमारे शरीर मे फाइबर और पोषक तत्वों का सर्वोत्तम विकल्प होती हैं।
साथ ही ये आज भी अपने प्रकृतिक परिवेश खेत खलिहान की मेड़ों, घास के मैदानों, बाड़ियों आदि में आशानी से उपलब्ध होती हैं अतः हानिकारक रसायन मुक्त और मुफ्त में उपलब्ध भी होती हैं। हालाकि ये बारिस में भी उपलब्ध होती हैं, किन्तु बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि बारिस में खासकर सावन में शाक- भाजी नही खाना चाहिये, इसी तरह गांव में बैगन सहित कई अन्य सब्जियाँ ग्यारस तक नही खायी जाती हैं। मतलब साफ है हमारे पूर्वज भी जानते थे कि शीत ऋतु का समय भाजियों के सेवन के लिये सर्वोत्तम है। तो इस बारिस में पहचान कीजिये अपने क्षेत्र की स्थानीय भाजियों की और सर्दियों का इंतजार करें अपनी सेहद बनाने के लिए। पहचान के लिये अपनी ही पुरानी पोस्ट से इन शाक- भाजियो की लिंक भी साथ मे दे रहा हूँ, ताकि आपको इन्हें पहचानने में आशानी हो…!
डॉ. विकास शर्मा
वनस्पति शास्त्र विभाग
शासकीय महाविद्यालय चौरई
जिला छिन्दवाड़ा (म.प्र.)