SEIAA Dispute: वर्तमान और पूर्व IAS अधिकारियों के ईगो और वर्चस्व की जंग!

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SEIAA Dispute: वर्तमान और पूर्व IAS अधिकारियों के ईगो और वर्चस्व की जंग!

सुरेश तिवारी की खास रिपोर्ट

भोपाल: मध्यप्रदेश में स्टेट एनवायरनमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट अथॉरिटी (SEIAA) के चेयरमैन शिवनारायण सिंह चौहान और राज्य शासन में पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव नवनीत मोहन कोठारी के बीच चल रहा विवाद महज पर्यावरणीय मंजूरियों का मामला नहीं रह गया, बल्कि यह अब साफ तौर पर ‘ईगो’ और वर्चस्व की लड़ाई बन चुका है, जिसने राज्य के प्रशासनिक और राजनीतिक गलियारों में जबर्दस्त हलचल मचा दी है।

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शिवनारायण सिंह चौहान 2003 बैच के रिटायर्ड IAS अफसर हैं। मूलतः पाटन खुर्द राजगढ़ के निवासी शिवनारायण सिंह चौहान 1987 में राज्य प्रशासनिक सेवा में शामिल हुए और उन्हें साल 2013 में IAS अवॉर्ड हुआ और 2003 बैच के IAS अधिकारी बने। वे पन्ना के कलेक्टर भी रहे। वर्ष 2017 में रिटायर्ड होने के बाद उन्होंने भाजपा ज्वाइन कर ली। इसके बाद उन्हें मध्य प्रदेश भाजपा मेनिफेस्टो कमेटी का सदस्य भी बनाया गया। उनका नाम विधानसभा और लोकसभा सीट से प्रबल दावेदारों में चला था।

उधर, प्रमुख सचिव डॉ. नवनीत मोहन कोठारी 2001 बैच के वरिष्ठ IAS अधिकारी होकर अपनी प्रशासनिक पावर को कम नहीं आंकते। सूत्र बताते है कि वे सिया अध्यक्ष को सिर्फ ‘रिटायर्ड’ मानते हुए उनके अधिकार क्षेत्र को सीमित समझते रहे। बताया जाता है कि यही टकराव, दोनों के बीच ‘ईगो क्लैश’ की वजह बना और मामला सीधा 450 पर्यावरणीय अनुमतियों के मुद्दे से जुड़ गया।

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क्या है पूरा मामला

मई 2025 में विभाग के प्रमुख सचिव और उनके मातहत अफसरों ने बिना SEIAA की मूल बैठक के करीब 450 प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दे दी। चेयरमैन चौहान ने इसका दृढ़ विरोध किया और आरोप लगाया कि यह फैसला उनकी सहमति या औपचारिक प्रक्रिया के बिना हुआ, जो सीधा कानून और पारदर्शिता के खिलाफ है। इसी घटनाक्रम के कुछ दिन बाद 14 जुलाई 2025 को शिवनारायण सिंह चौहान का ऑफिस बंद (सील) कर दिया गया। उन्होंने सार्वजनिक रूप से दावा किया कि यह कार्रवाई उनकी ओर से उजागर किए गए भ्रष्टाचार के ‘बदले’ में की गई, जबकि प्रमुख सचिव में दावा किया कि कार्यालय सीलिंग की वजह महज “बिजली फॉल्ट” थी।

चेयरमैन चौहान ने इस पूरे प्रकरण की शिकायत मुख्य सचिव और केंद्र सरकार को पत्र के जरिये करते हुए प्रमुख सचिव के खिलाफ FIR की मांग ही नहीं की, बल्कि आरोप लगाए कि विभाग की पूरी पारदर्शिता संदिग्ध है और प्राधिकरण की निर्धारित प्रक्रिया को दरकिनार किया जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चौहान ने प्रमुख सचिव डॉ. कोठारी और सदस्य सचिव उमा माहेश्वरी (IAS: 2013) के खिलाफ चयनात्मक प्रोजेक्ट अप्रूवल (“पिक एंड चूज”) और नियमों के उल्लंघन का आरोप भी जताया। सूत्रों के अनुसार लंबित 450 से ज्यादा फाइलों में बिना बैठक बुलाए 237 प्रोजेक्ट्स को ही स्वीकृति दे दी गई।

विवाद और सीलिंग का मामला सामने आने के बाद मुख्यमंत्री मोहन यादव के हस्तक्षेप के बाद दफ्तर का ताला भी खुलवाया गया।

विशेषज्ञों की राय है कि- यह विवाद कानूनी-प्रशासनिक पेच से भी ज्यादा ईगो-ताकत तथा राजनीतिक समीकरणों से प्रेरित है। कई बार सरकारें सेवानिवृत्त अफसरों के प्रशासनिक अनुभव का लाभ लेने के लिए अहम पदों पर बैठाती हैं, लेकिन इससे विभागीय रस्साकशी और शक्ति-संतुलन का नया संकट भी जन्म ले लेता है, जैसा कि अब मध्य प्रदेश में इस मामले में देखने को मिल रहा है।

फिलहाल, यह पूरा मामला सिर्फ फाइलों में उलझी पर्यावरणीय मंजूरियों का नहीं, बल्कि ब्यूरोक्रेसी और सियासत के पावर गेम, आपसी अविश्वास, टकराव और निजी अहम का प्रतीक बन गया है।

मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव विदेश यात्रा से 19 जुलाई को वापस लौट रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि वे इस मामले को प्राथमिकता से देखेंगे और इसका कोई सम्मानजनक समाधान निकालेंगे।