Sensitivity of Collector : कलेक्टर की संवेदनशीलता को पूरे शहर ने सराहा!

दो दिन में शहर ने उनकी सजगता को देखा, उन्होंने शहर के दर्द को समझा!

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Sensitivity of Collector : कलेक्टर की संवेदनशीलता को पूरे शहर ने सराहा!

Indore : शहर में हुई हृदय विदारक घटना के बाद लोगों का गुस्सा व्यवस्था, नगर निगम और जनप्रतिनिधियों पर कई बार फूटता दिखाई दिया। नगर निगम की लापरवाही पर लोगों की नाराजगी कई बार सामने आई! लेकिन, जिस एक व्यक्ति की संवेदनशीलता, सजगता और तुरंत फैसले लेने की क्षमता पर लोगों की, वे हैं कलेक्टर डॉ इलैयाराजा टी। जिस समय ये घटना घटी, वे सबसे पहले पहुंचने वाले अफसरों में थे। इसके बाद से वे लगातार वहीं डटे रहे।

कलेक्टर ने पूरे बचाव कार्य को हर स्थिति में देखा और उस पर नजर रखी। यहां तक कि कई बार लोगों ने उन्हें बचाव दल के साथ सामान उठाते हुए भी देखा। यह उनकी जिम्मेदारी से ज्यादा उनकी संवेदनशीलता दिखाता है। कहने वाले भले कहें कि बतौर कलेक्टर यह उनका दायित्व भी है, लेकिन उससे कहीं ज्यादा उनकी संवेदनशीलता की तारीफ हो रही है। वे शायद घटना वाले दिन पूरी रात लगातार घटनास्थल पर लगे रहे।

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यहां तक कि उन्होंने बचाव कार्य में लगी सेना की टीम के साथ कई बार सामान भी उठाया। जबकि, इसके पीछे उनका मकसद नेताओं की तरह फोटो खिंचवाना तो कतई नहीं रहा होगा! वे सेना और एनडीआरएफ के बचाव दल के सक्रिय होने के बाद उनसे फीडबैक लेते भी देखे गए। बावड़ी के उस मुहाने पर भी वे खड़े देखे गए जहां से गिरकर 36 लोग कालकलवित हो गए थे।

मीडिया से भी उन्होंने घटना को लेकर कुछ नहीं छुपाया और न गोलमाल जवाब ही दिए। कितने लोगों को बचाया गया, कितनों की मौत हुई और अभी कितने लापता है, उन्होंने हर सच्चाई की जानकारी बेझिझक दी। दूसरे दिन जब शवयात्रा निकली तो वे उसमे भी शामिल हुए और मुक्तिधाम में भी एक कोने में बैठे दिखाई दिए। उनके चेहरे को पढ़कर कोई भी उनका दर्द समझ सकता था।

जनसुनवाई में दिखती संवेदनशीलता

उनकी संवेदनशीलता उसी समय से नजर आ रही है, जब वे इंदौर में पदस्थ हुए थे। मंगलवार को होने वाली जनसुनवाई में वे 5 से 6 घंटे और कई बार रात को 8 बजे तक बैठे देखे जाते हैं। यहां आने वाले हर व्यक्ति की पीड़ा वे सुनते हैं और तत्काल उसी के सामने उसका निराकरण करने की कोशिश भी करते हैं।

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संबंधित अधिकारी को उसी समय फोन लगाते हैं और निर्देश देते हैं। किसी बीमार के लिए अस्पताल फोन लगाना हो या किसी को आर्थिक सहायता दिलाना हो, वे खानापूर्ति करते दिखाई नहीं देते! जब शाम को वे जनसुनवाई से उठते हैं, तो अधिकांश शिकायतों का निराकरण हो चुका होता है। जबकि, इससे पहले जनसुनवाई का माहौल ऐसा नहीं था। लेकिन, जब से डॉ इलैया राजा इंदौर आए, जनसुनवाई में आने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ गई! क्योंकि, लोगों को विश्वास होने लगा कि उनकी बातों को सुना जाएगा।

इलैया राजा को लोगों ने जनता से सीधा जुड़ा होने वाला कलेक्टर बताया। वे अपने कलेक्ट्रेट के चेंबर में से भी कई बार में उठकर बाहर निकलते हैं कि कोई बाहर उनका इंतजार तो नहीं कर रहा! वे अकसर बाहर खड़े होकर भी लोगों से बात करते, उनकी समस्याएं सुनते देखे जाते हैं। अगर कोई तत्काल हल करने वाला मामला होता है, तो वे उसी समय करते हैं या संबंधित अधिकारी को उसके बारे में निर्देश देते हैं। अभी तक उनकी कार्यप्रणाली को उन्हीं लोगों ने देखा और समझा था, जो उनके संपर्क में आए थे! लेकिन, बावड़ी वाली इस घटना ने कलेक्टर डॉ इलैया राजा के काम करने की शैली, उनकी तत्परता और संवेदनशीलता को भी शहर के सामने ला दिया।