

यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में मध्य प्रदेश नर्मदापुरम का सेठानी घाट
Sethani Ghat: नर्मदा की आस्था में डुबकी लगाने वाले हर व्यक्ति के मन में बसा सेठानी घाट
जब भी किसी धरोहर की बात आती है तो मेरी स्मृति में सबसे पहले होशन्गाबाद जो कि वर्तमान में नर्मदपुरम के नाम से जाना जाने लगा है। के मनोरम सेठानी घाट का स्मरण हो जाता है।
नर्मदा नदी होशंगाबाद की अनूठी पहचान है। विश्व प्रसिद्ध सेठानी घाट 130 साल पुराना है। नर्मदा किनारे बसे होशंगाबाद में 100 से ज्यादा मंदिर, 7 मुख्य घाट हैं। जगदीश मंदिर से पयर्टन घाट तक का 2 हजार मीटर घाट क्षेत्र में सुबह शाम मंदिरों में अारती और घंटियां मन को प्रफुल्लित करती हैं।वैसे तो वहाँ पर राजघाट , मंगलवाराघाट , गोलघाट ,कोरीघाट, विवेकानन्द घाट जैसे कई घाट हैं ।मुख्य रूप से सबसे सुंदर व व्यवस्थित घाट सेठानी घाट हैयह भारत के सबसे बड़े घाटों में से एक है । नर्मदा जयंती समारोह के दौरान घाट जीवंत हो उठता है जब हज़ारों लोग घाट पर एकत्र होते हैं और नदी में दीये प्रवाहित किए जाते हैं।
मेरी प्रारम्भिक शिक्षा से लेकर स्नातक तक की शिक्षा नर्मदपुरम में ही हुई है इसलिए मैं वहाँ की हर खट्टी मीठी यादों को अपने दिल में रखी हूँ।नर्मदा नदी पर यह घाट उन्नीसवीं सदी में बना है। नदी के किनारे लगभग सात घाट और सौ से भी अधिक मन्दिर है। वहाँ पर किनारे पर बना हनुमान जी का मन्दिर, पंच मुखी महादेव एवम् काले महादेव के दर्शन करने हम लोग अक्सर जाया करते थे।
सेठानी घाट के बारे में बताया जाता है कि नर्मदपुरम के एक शर्मा परिवार की सेठानी जानकी बाई सेठानी ने इसका निर्माण कराया था। बाद में उन्होंने नर्मदाजी की पूजा अर्चना की थी और एक जीवित मछली को सोने की नथ पहना कर जल में छोड़ दिया था। तब से आज भी लोग अपनी मन्नत लेकर जाते हैं और पूरी हो जाने पर सोने की नथ मछली को पहनाकर जल में छोड़ देते हैं। अब तो तुरन्त ही नाव वाले उस मछली को पकड़ लेते हैं।

लाल पत्थरों से बने इस सुंदर घाट की सीढियाँ और गुरजे आज भी अपनी मजबूती और सुंदरता को बनाये हुए हैं।
नर्मदा के किनारे पर होने वाली हलचल और वहाँ के मनोरम दृश्य को मैं कभी नहीं भूल पाती हूँ। नर्मदा की आस्था में डुबकी लगाने वाले हर व्यक्ति के मन में सेठानी घाट बस जाता है। नर्मदा में जो प्रवाह है वह मध्य प्रदेश की जीवन रेखा है। सुबह सुबह जब स्नान करने जाओ तो ऐसा लगता है कि- रात्रि विश्राम करने के बाद नर्मदा नदी भी अपने भक्तों के दुःख हरने के लिए बड़े वेग से बह रही है।उठती लहरों की आवाजें आस पास के पेडों पर विश्राम करते पक्षियों को जगा देती है। वे भी कलरव करके ऊँची उड़ान भरने का संकल्प करने लगते हैं।
किनारों पर बैठे बगुले नर्मदा की लहरों के साथ सूर्य के आगमन और स्वागत की तैयारी में लग जाते हैं। मंदिरों से आने वाली घंटियों की मधुर धुन, आरतियों का सुंदर कर्णप्रिय स्वर मन को प्रफ्फुलित करने लगता है। भोर के स्नान के बाद लाल लाल सूर्य के साथ ऐसा लगता है मानो अपन भी नर्मदाजी और प्रकृति के साथ मिलकर प्रभाती गा रहे हों। नर्मदाजी के सेठानी घाट पर सुबह शाम लगभग एक जैसी ही हलचल होती है। कहीं कोई पूजा अर्चना की तैयारी कर रहा है, कोई गीले बदन को टॉवेल से सुखा रहा है ,कोई तिलक लगवा रहा है, कोई कपूर से आरती कर रहा है, कोई लोभान जलाकर खुशबू बिखेर रहा है। तो कहीं बाहर से आई टोली “नर्मदे हर ” के नाद से वातावरण को सुखद बना रही है। इस घाट के बारे में जितनालिखूँ उतना कम है।
संध्या पांडेय, हरदा
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