Mystery and Thriller Story Telling Series-5
‘Shadows of Hiroshima’ is a shadow of the past:बीते कल की एक परछाई हैं हिरोशिमा !
साए या तो जम गए हैं या तो भटक रहें हैं .
डॉ स्वाति तिवारी
ये दुनिया जादू का खिलौना हैं ,नहीं ये दुनिया एक अजूबा है और यहाँ जाने कितने तरह के किस्से और कहानियां हैं .शायद इस संसार को देखने समझने के लिए मनुष्य को सात जन्म भी कम ही पड़ेंगे तो फिर एक जन्म में जिनके बारे में हम नहीं जान पाते वो हमें या तो अजूबा लगता है या फिर रहस्य .मतलब यह कि वह जो भी है सामान्य से हट कर है.जिन्हें ना कला के रूप में ना विज्ञान के माध्यम से हल किया गया हो वे रहस्य और अकाल्पनिक बातें मानी जाती है .आज मैं आपको जो कहानी बता रही हूँ वो इस बात का प्रमाण हो सकता है कि समय उस एक पल को थम गया होगा जब एक अस्थायी प्रति छाया धरती पर स्थायी और अमिट निशान में बदल गयी होगी, और जिसकी वो परछाई थी वो धुआं बन कपूर की मानिंद उड़ गया था .रह गयी थी उसकी परछाई . विश्वास नहीं कर रहें हैं ना इस बात पर ?मैंने भी नहीं किया था जब तक मैंने उसे देखा नहीं था .दरअसल मेरा एक मित्र उन दिनों अपने बिजनेस टूर पर विदेश गया था ,और उसने वहीँ से मुझसे फोन पर बात की तो कहा किवहां एक ऐसा रहस्य हैं जिसे 77 वर्ष हो गए हैं लेकिन वह कैसे बनी और किसकी बनी यह आज तक एक अनसुलझा सवाल है ,या कह सकता हूँ की जैसे एक पहेली है वह ?
क्या बात कर रहे हो तुम ?जानते नहीं क्या ,परछाई तब उत्पन्न होती है जब प्रकाश एक अपारदर्शी वस्तु से टकराता है जो प्रकाश पुंजों को गुजरने से रोकता है। एक धूपघड़ी सबसे प्रारंभिक प्रकार का समयनिर्धारक उपकरण है, जो सूर्य की किरणों के संपर्क में आने वाली किसी वस्तु की छाया की स्थिति से दिन के समय को इंगित करता है।मेरा कहने का अर्थ है कि परछाई ऐसी चीजों से बनती है जो सूर्य की रोशनी को रोक लेते हैं चुकी सूर्य की रोशनी का जितना पार्ट कोई चीज रोक लेता है उस स्थल पर परछाई बन जाती है.
“हाँ !इसीलिए तो जानता हूँ मैं,हम सभी जानते हैं कि प्रकाश सीधी रेखा में गमन करता है पारभासी वस्तुएं भी हल्की छाया बनाती है लेकिन पारदर्शी वस्तुएं छाया नहीं बना पाती है ।यह भी जानता हूँ कि इस तरह सूर्य की रोशनी से पैदा हुई परछाई सूर्य के पूर्व से पश्चिम तक चलने पर पश्चिम से पूर्व की ओर खिसकती है. लेकिन मैं एक एसी परछाई देख कर आ रहा हूँ जो जमीं पर स्थाई हो गई है ?’
“मजाक छोडो ,यह कल्पना भी बेमानी है ,क्यों भ्रामक स्थिति में जा रहे हो ! मैंने सोचा वो या तो कुछ अस्वस्थ है या विदेश में है कोई असर हो गया हो ?ज़िंदा आदमी ,जीव जंतु की या वस्तुओं की ही परछाई होती है ,तुमने किसकी देख ली !”
“आज तक भी इस परछाई की वास्तविकता की पहचान नहीं हो पाई कि वो व्यक्ति कौन था. कहते हैं कि परमाणु बम ने उस व्यक्ति को तो पूरी तरह से मिटा दिया पर उसकी परछाई को नहीं मिटा सका.”
“क्या तुम नहीं जानते कि, मरने के बाद परछाई गायब क्यों हो जाती है?बिम्ब के न रहने पर प्रतिबिम्ब अपने आप गायब हो जाता है!”
“अरे ! मैं फिजिक्स का विद्यार्थी रहा हूँ ,तुम भूल रही हो ?इसीलिए तो मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा यह कैसे संभव है ?”उसने मुझे एक तस्वीर भेजी .
मैं तस्वीर देख कर अचम्भित थी.क्या भाव रहा होगा मन का कुछ कह नहीं सकती शायद भय का साया हो ?या दया और दर्द का कोई अहसास हुआ हो ,इस जापान की स्थाई परछाई को देख कर ? जो भी था वह भाव बड़ा अजीब और रहस्यमय ही लगा . आखिर कोई परछाई 77-78 सालो से एक ही स्थिति में स्थाई कैसे बन सकती है लेकिन यह रहस्य होकर भी एक विचित्र सत्य है जो आज तक एक रहस्य ही बनी हुई है. वहां उस वक्त कोई एसा व्यक्ति था जो धरती छोड़ कर जाना नहीं चाहता था और उसकी यह इच्छा इतनी प्रबल रही होगी कि उसे देह से तो जाना पड़ा होगा लेकिन वह आत्मा से नहीं जा पाया और धरती से चिपक गया ?
ओह! अब तो यह पिछले 80 से भी ज्यादा सालों से है.तब भीकिसी को यह नहीं पता है कि आखिर ये परछाई है किसकी? हम सब जानते है कि जापान में स्थित हिरोशिमा दुनिया का वो शहर है, जहां सबसे पहले परमाणु बम गिराया गया था. यह ऐतिहासिक घटना छह अगस्त, 1945 को घटित हुई थी. यह बम अमेरिका ने गिराया था.जिसके परिणाम बेहद दर्दनाक मौत और त्रासदी बन गए थे जापान में .जहाँ एक जगह, इंसान जैसी दिखने वाली रहस्यमय परछाई है. इस बात कोअब तो समझो 80 साल से भी ज्होयादा ही हो चुके हैं , लेकिन आज तक इस बात का पता नहीं चल पाया कि ये परछाई आखिर थी किसकी.मेरा मित्र मुझे बता रहा था ,और मैं सहस्य को विज्ञान से हल करने में लगी हुई थी ,उसकी बातें सुन रही थी .
जब भी तुम जापान आओ तो इसे देखिएगा मित्र ने कहा.इस परछाई को ‘द हिरोशिमा स्टेप्स शैडो’ या ‘शैडोज ऑफ हिरोशिमा’ के नाम से जानते हैं. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हिरोशिमा पर हुए परमाणु हमले में लाखों लोग पलक झपकते ही मौत के मुंह में समा गए थे. परछाई की यह तस्वीर धमाके वाली जगह से 850 फीट की दूरी पर खींची गई थी, जहां पर शायद कोई इंसान बैठा हुआ था. कहते हैं कि परमाणु बम ने उस व्यक्ति को तो पूरी तरह से मिटा दिया पर उसकी परछाई को नहीं मिटा सका. आज तक भी इस परछाई की वास्तविकता की पहचान नहीं हो पाई कि वो व्यक्ति कौन था, जो वहां पर बैठा था.
मैंने अपने सारे तर्क रखते हुए मित्र से कहा यह परमाणु बम के विकिरण से बनी कोई रेखाएं होंगी .लोग परछाई समझ रहे होंगे , यह भी तो हो सकता हैं कि यह किसी कलाकार ने बनाई हो ?
वो हंसा फिर बोला “मुझे पता था तुम ,इस रहस्य को स्वीकार नहीं करोगी ,तर्क तो जरुर दोगी लेकिन जापान विज्ञान और टेक्नोलोजी में दुनिया से आगे है ,जरा कल्पना करो हिरोशिमा और नागा साकी की घटना पर क्या घटा होगा ,कितने लोग कपूर की तरह उड़ गए होंगे दुनिया से पिघल कर ?जानती हो कितने मरे थे ?”
“नहीं पता ,हाँ एक फिल्म देखी थी राजेंद्र कुमार माला सिन्हा की इसी विषय पर थी कुछ .लेकिन संख्या मुझे नहीं पता.”
“तुम सोच भी नहीं सकती मेडम ,जो परमाणु बम गिराया गया था, उसका नाम ‘लिटल ब्वॉय’ था. इसका वजन तकरीबन 4400 किलोग्राम था. इसके फटने से जमीनी स्तर पर करीब 4,000 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी पैदा हुई थी. जहां इंसान का शरीर सिर्फ 50 से 55 डिग्री सेल्सियस तक की ही गर्मी सहन कर सकता है! तो इस गर्मी में क्या हुआ होगा ! लोग धातु की तरह गल गए होंगे, पिघल गए होंगे, उनके अंग भंग हो गए होंगे .कपूर की तरह उड़ गए होंगे.
लेकिन विचित्र यह है कि दुनिया आज तक इस परछाई के व्यक्ति को नहीं पहचान सकी और वह जो भी था वह सदियों तक इस त्रासदी की याद दिलाने के लिए अपनी छाया का स्थाई स्मारक छोड़ गया है . दुनिया भले ही नाम ना जाने लेकिन केवल इतना जानती हैं कि जापान के हिरोशिमा शहर में ऐसी परछाई है, जो कई सालों से रहस्य ही बनी हुई है. यह इंसान जैसी दिखने वाली परछाई है, जिसके पीछे का रहस्य जानने की बहुत कोशिशें हुईं, लेकिन यह अब भी एक अबूझ पहेली ही बनी हुई!और सदा बनी रहेगी .
सोचती हूँ हम पृथ्वी पे जिस जगह रहते है, वो जगह भी पृथ्वी के घूमने की वजह से सवेरे सूरज की रौशनी में आती है – जिसे हम सूर्योदय कहते है।अब किसी भी परछाईं को ध्यान से देखिए।सूर्योदय के वक़्त वह परछाईं लंबी होगी।परछाईं की दिशा बदलती जाएगी। आप देखेंगे की मध्याह्न/दोपहर को वह परछाईं सबसे छोटी होगी। घूमते-घूमते शाम को सूर्यास्त के पहले फिर से परछाईं लंबी हो जाएगी और सूर्यास्त होने पर हम अंधेरे में चले जाएँगे| और परछाईं ग़ायब! मतलब रोशनी और बिम्ब दोनों जरुरी है .लेकिन यह बिम्ब और रोशनी ना होने पर भी दिखाई देती है ,कैसा अजीब रोमांचक आज तक एक अनसुलझा सवाल है यह? इस रहस्य पर मुझे किसी अनजान कवि की पंक्तियाँ याद आ रही थी –
लोग कहते है कि बीते कल में जिया नहीं करते,
हाथों से रेत फिसल जाने के बाद मुट्ठी मला नहीं करते।
पर बीते कल की परछाईयाँ आपका पीछा कहाँ छोड़ती है?
कितना भी भूलने की कोशिश करो, कहीं न कहीं जहन में जिंदा रहती है।
मित्र ने कहा “इस राज को राज ही रहे दो -और तुम सुनो एक शेर किसीने तो कहा होगा ‘-
धूप बोली कि मैं आबाई वतन हूँ तेरा
मैंने फिर साया-ए-दीवार को ज़हमत नहीं दी.
बात ख़त्म हो गयी थी, फोन बंद हो गया था .लेकिन तस्वीर और साया मेरे पीछे लग गए थे.मेरे लिए मुश्किल था इस काले साए से अब पीछा छुड़ाना, आखिर ये क्या रहस्य है और यह कैसे बना होगा ?साए पिछा नहीं छोड़ते, इस साए ने भी मेरा पीछा किया, तब तक किया जब तक मैं एक निश्कर्ष पर नहीं पंहुची। रात दिन वह दर्द बन कर, मेरे दिलो दिमाग में उथल-पुथल मचा रहा था साया साया साया क्या है ,कौन है ,कैसे बना ? फिर एक दिन साए ने ही नींद में सारे हल समझा दिए .
जब 6 अगस्त, 1945 की सुबह हिरोशिमा पर युद्ध में इस्तेमाल किया गया दुनिया का पहला परमाणु बम विस्फोट हुआ, तो एक निवासी सुमितोमो बैंक के बाहर पत्थर की सीढ़ियों पर बैठा था। अपने दाहिने हाथ में उन्होंने एक छड़ी पकड़ रखी थी, उनका बायां हाथ शायद उनकी छाती के पास था। लेकिन कुछ ही सेकंड बाद, वे परमाणु बम की उबलती रोशनी में भस्म हो गए। उनकी जगह एक छाया थी जो उनके अंतिम क्षणों के भयावह अवशेष के रूप में काम कर रही थी।
वास्तव में, हिरोशिमा के पूरे केंद्र में खिड़की के शीशों, वाल्वों और यहां तक कि अपने अंतिम क्षणों में लोगों की असंख्य डरावनी आकृतियाँ थीं। इमारतों और फुटपाथों पर अब नष्ट होने वाले शहर की परमाणु छायाएँ उकेरी गई हैं। यह वही कोई एक है ,किसी बुजुर्ग की ,कहीं खेलते बच्चों की ,नल की ,पाइप की जाने किस किस की अब केवल छायाएं ही हैं वहां जिन्हें देख तो सकते हैं पर पहचान नहीं सकते .
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वे युद्ध के इस अभूतपूर्व कार्य में खोए हुए सैकड़ों हजारों लोगों की भयानक याद दिलाते हैं।जब परमाणु बम “लिटिल बॉय” ने शहर से 1,900 फीट ऊपर विस्फोट किया, तो तेज, उबलती रोशनी की एक चमक ने वह सब कुछ झुलसा दिया, जिसे उसने छुआ था। बम की सतह 10,000 डिग्री फ़ारेनहाइट पर जल गई और इसके विस्फोट क्षेत्र के 1,600 फीट के भीतर कुछ भी एक पल में भस्म हो गया। इसके प्रभाव स्थल के एक मील के दायरे में कुछ भी मलबे में तब्दील हो गया था। वही है इसके बनने का कारण .रहस्यमय परछाई जिसे ‘शैडोज ऑफ हिरोशिमा’ या ‘द हिरोशिमा स्टेप्स शैडो’ के नाम से जाना जाता है.
वास्तव में, विस्फोट से निकलने वाली गर्मी इतनी तीव्र रही होगी कि इसने अपने विस्फोट क्षेत्र में सब कुछ ब्लीच कर दिया, जिससे मानव अवशेषों की भयानक परमाणु छायाएँ निकल गईं जहाँ नागरिक एक बार थे।
सुमितोमो बैंक उस स्थान से केवल 850 फीट की दूरी पर स्थित था जहां लिटिल बॉय हिरोशिमा शहर से टकराया था। जो भी वहां बैठा था उसका नामोनिशान मिट चुका था। और साए या तो जम गए या तो भटक रहें हैं .अकाल मृत्यु को प्राप्त मासूम लोग जो जीना चाहते थे जिन्हें धोके से मारा गया था .
डॉ स्वाति तिवारी
Journeys full of Mystery and Adventure 4:आधी रात ,मेहंदी लगे हाथ और सुनसान सड़क
Mystery and Thriller Story Telling Series-3:”वो सुन्दर झिरन्या और चहरे के निशान”