Shami’s Painful Story : वर्ल्ड कप सेमीफाइनल के हीरो शमी का शुरुआती संघर्ष बेहद दर्द भरा!  

कभी बस स्टैंड पर रात गुजारी कभी रेलवे स्टेशन पर, सपना पूरा करने के लिए जान लगा दी! 

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Shami’s Painful Story : वर्ल्ड कप सेमीफाइनल के हीरो शमी का शुरुआती संघर्ष बेहद दर्द भरा!  

Mumbai : न्यूजीलैंड के खिलाफ मोहम्मद शमी ने 9.5 ओवर में 57 रन देकर 7 विकेट चटकाकर जो चमत्कार किया उसका चारों तरफ डंका बज रहा है। इस मैच में टीम इंडिया के 398 रन के लक्ष्य का पीछा करते हुए न्यूजीलैंड टीम 48.1 ओवर में 327 पर ढेर हो गई। इस तरह भारत 70 रन से मैच जीत गया। मोहम्मद शमी 6 मैच में 23 विकेट लेने के साथ इस वर्ल्ड कप के सबसे सफल गेंदबाज बन गए।

आज भले मोहम्मद शमी देश के क्रिकेट प्रेमियों की आंख का तारा बने हों, पर उनका जीवन संघर्ष भी कम नहीं रहा। उन्हें क्रिकेट विरासत में मिला है। उत्तर प्रदेश के अमरोहा रहने वाले मोहम्मद शमी के पिता तौसीफ अली भी क्रिकेट खिलाड़ी थे, पर अभाव की वजह से आगे नहीं बढ़ सके। उनकी यॉर्कर बॉल बल्लेबाजों के डंडे बिखेर देती थी। तब उन्हें उत्तर प्रदेश के लोग कहा करते थे कि जाओ और किसी क्लब में प्रोफेशनल क्रिकेट की ट्रेनिंग लो। तुमसे बड़ा क्रिकेटर पूरे उत्तर प्रदेश में दूसरा कोई नहीं होगा। पर, तौसीफ अली के पास पैसे नहीं थे। सलाह तो हर कोई देता था, लेकिन मदद देने वाला कोई नहीं था। लेकिन, मोहम्मद शमी के पिता ने इसी को अपना मुकद्दर मान लिया।

तौसीफ अली के 5 बेटे हुए और पांचों में क्रिकेट शुरू से रचा बसा हुआ था। इन सभी में शमी सबसे छोटा पर तेज रहा। अब्बू की क्रिकेट की ट्रेनिंग में सबसे जल्दी मोहम्मद शमी नई चीजें सीखते रहे। तौसीफ अली को धीरे-धीरे यकीन हो गया कि मेरा क्रिकेटर बनने का अधूरा सपना मोहम्मद शमी ही पूरा करेगा। तौसीफ अली को एहसास था कि वह बड़े क्रिकेटर क्यों नहीं बन सके! इसलिए वे बेटे के सपने को पूरा करने के लिए सब कुछ करने को तैयार थे।

पिता अपने छोटे बेटे के लिए कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहते थे। जब मोहम्मद शमी की उम्र 15 साल थी, तब तक तौसीफ अली ही बेटे को गेंदबाजी की ट्रेनिंग देते थे। उन्होंने अपने खेत में ही विकेट तैयार किया था। जहां मोहम्मद शमी दिन-रात गेंदबाजी का अभ्यास करते थे। फिर तौसीफ अली को लगा कि अब बेटे को एक बढ़िया एकेडमी की जरूरत है। उन्होंने जमीन बेचकर मुरादाबाद की एक एकेडमी में बेटे का दाखिला कराने की सोची।

कोच ने भी बॉलिंग देखने की शर्त रखी 

क्रिकेट कोच बदरुद्दीन ने कहा कि मैं पहले इस लड़के को गेंदबाजी करते हुए देखेंगे, उसके बाद ही फैसला करूंगा। मोहम्मद शमी ने गेंदबाजी शुरू की और बदरुद्दीन के एकेडमी के दिग्गज बल्लेबाज घुटने टेकते चले गए। बदरुद्दीन ने तुरंत मोहम्मद शमी को अपना शिष्य बनाना स्वीकार कर लिया। मोहम्मद शमी ने पिता का ख्वाब पूरा करने के लिए जान लगा दी। वह एक दिन नागा नहीं करते थे। यहां तक कि ईद वाले दिन भी नमाज अदा करने के बाद मोहम्मद शमी गेंदबाजी करने पहुंच जाते। जब भी एकेडमी में कोई क्रिकेट मैच होता था, तो मैच खत्म होने के बाद मोहम्मद शमी कोच से पुरानी गेंद मांगते थे। एक दिन बदरुद्दीन ने पूछा कि तुम इनसे करते क्या हो? मोहम्मद शमी ने जवाब में कहा कि रिवर्स स्विंग की प्रैक्टिस करता हूं। उस दिन के बाद से बदरुद्दीन खुद मोहम्मद शमी को रिवर्स स्विंग का अभ्यास करवाने लगे।

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यूपी ने नहीं दिया साथ तो कोलकाता गए 

यूपी अंडर-19 टीम के ट्रायल के लिए बदरुद्दीन मोहम्मद शमी को खुद अपने साथ लेकर गए। सिलेक्टर्स ने मोहम्मद शमी के साथ भी वही किया, जो भदोही के यशस्वी जायसवाल के साथ कभी किया था। दोनों खिलाड़ियों से एक ही बात कही गई, अगले साल आना तब देखेंगे। बदरुद्दीन को लगा कि एक साल में मोहम्मद शमी बहुत आगे निकल सकते हैं। ऐसे में उन्हें यूपी क्रिकेट बोर्ड के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। कोच बदरुद्दीन ने पिता से कहा कि आप मोहम्मद शमी को कोलकाता भेज दीजिए। वहां क्लब क्रिकेट में अच्छा करेगा तो स्टेट की टीम में आराम से जगह बना लेगा। तौसीफ अली के पास कोई और चारा भी नहीं था। वह किसी भी सूरत में बेटे मोहम्मद शमी को भारत के लिए खेलते हुए देखना चाहते थे। मोहम्मद शमी कोलकाता पहुंच तो गए, लेकिन न ही उनके पास रहने की कोई जगह थी और खाने का इंतजाम। मोहम्मद शमी पिता पर और खर्च का दबाव नहीं डालना चाहते थे। इसलिए उन्होंने ठान लिया कि अब जो करना है अपने दम पर करना है।

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साथ दिया बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन ने 

बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन के असिस्टेंट सेक्रेट्री देवव्रत दास ने एक मैच में मोहम्मद शमी को गेंदबाजी करते हुए देखा। देवव्रत दास को समझ आ गया कि एक दिन यह लड़का क्रिकेट की दुनिया में छा जाएगा। देवव्रत ने मोहम्मद शमी से पूछा कि तुम रहते कहां हो? मोहम्मद शमी कुछ बोल नहीं पाए। उस वक़्त उन्हें भूख भी लगी थी। गुजारा बड़ी मुश्किल से चल रहा था। कभी रेलवे स्टेशन तो कभी बस स्टैंड। देवव्रत दास ने उसी वक्त मोहम्मद शमी को अपने घर पर रहने के लिए बुला लिया।

उन्होंने बंगाल के एक चयनकर्ता बनर्जी से कहा कि आप एक बार मोहम्मद शमी की गेंदबाजी देखिए। बनर्जी के सामने मोहम्मद शमी ने गेंदबाजी शुरू की। बड़े-बड़े बल्लेबाज हिल नहीं पा रहे थे। मोहम्मद शमी अपनी गेंदबाजी से सिर्फ विकेट उखाड़ रहे थे। शुरू से ही शमी को बल्लेबाजों को बोल्ड करने के बाद जो आवाज आती है, वह सुनना काफी पसंद है। बनर्जी ने मोहम्मद शमी से कहा कि मैंने अपनी जिंदगी में बहुत से खिलाड़ी देखे। अधिकतर खिलाड़ी रूपए-पैसे चाहते हैं। नाम, इज्जत और शोहरत चाहते हैं। लेकिन तुम सच्चे खिलाड़ी हो। तुम्हें सिर्फ बल्लेबाजों को पवेलियन का रास्ता दिखाना है, इसके सिवा तुम्हारी कोई मंजिल नहीं है।

इसके बाद बनर्जी के कहने पर मोहम्मद शमी ने मोहन बागान क्रिकेट क्लब जॉइन किया। वहां मोहम्मद शमी ने सौरव गांगुली के सामने गेंदबाजी की। दादा खुश हो गए। सौरभ गांगुली वही हैं, जिन्होंने वीरेंद्र सहवाग, हरभजन सिंह, युवराज सिंह और महेंद्र सिंह धोनी जैसे खिलाड़ियों का करियर बनाया। सौरव गांगुली के कहने पर मोहम्मद शमी को 2010-11 के बंगाल की रणजी टीम में शामिल किया गया। 2 साल में 6 जनवरी 2013 को मोहम्मद शमी ने इंडियन टीम की जर्सी पहन ली। इसके बाद मोहम्मद शमी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

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शमी की जिंदगी का दर्दनाक पहलू    

6 जून, 2014 को निकाह के बाद 2015 में मोहम्मद शमी को एक प्यारी सी बेटी हुई। उनकी जिंदगी में सब सही चल रहा था, तभी साल 2018 में बीवी हसीन जहां ने मोहम्मद शमी पर बहुत से घिनौने आरोप लगाए। दहेज उत्पीड़न, मारपीट, दूसरी औरतों के साथ नाजायज संबंध और पाकिस्तानी नागरिक से पैसे लेने तक के आरोप लगाए। मोहम्मद शमी को भारतीय टीम के कॉन्ट्रैक्ट लिस्ट से बाहर कर दिया गया। इस वक्त भी सौरव गांगुली मोहम्मद शमी के साथ चट्टान की तरह खड़े रहे। दादा ने कहा जब तक आरोप साबित नहीं होंगे, मैं बंगाल की रणजी टीम से मोहम्मद शमी को नहीं निकालूंगा।

 

सौरभ गांगुली की मदद ने जिंदगी बदल दी 

पूरी मीडिया मोहम्मद शमी के खिलाफ थी, लेकिन सौरव गांगुली मोहम्मद शमी के साथ थे। आखिरकार बीसीसीआई की एंटी करप्शन यूनिट ने मोहम्मद शमी को निर्दोष पाया और फिर उनका सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट दोबारा बहाल कर दिया गया। लेकिन, मोहम्मद शमी अपनी बेटी से मिलने के लिए तरसते हैं, पर हसीन जहां की वजह से उन्हें काफी मुश्किल झेलनी पड़ती है। फिर भी मोहम्मद शमी देश के लिए जान लगा रहे हैं। आज मोहम्मद शमी जहां हैं वो तौसीफ अली, बदरुद्दीन, देवव्रत दास और सौरव गांगुली के सहयोग से ही संभव हुआ।