मेरी ऊर्जा के दूत – चांद
ब्रह्मांड भरा गगन
अठखेलियां करते अकेले तुम
कभी ले आते हो ईद
कभी बन जाते हो करवाचौथ
कभी शरद मुस्कुराता है
तुम्हारे चेहरे पर
तो कभी खो जाते हो
अमावस्या की कालिख में
लुकते -छिपते
बन जाते हो
कभी तिथि ,कभी दिन
कभी छुप जाते हो
बादलों की ओट में
कभी बरसा देते हो
आँचल भर नीर ,
कभी बन जाते हो सीप का मोती
तो कभी बन जाते हो
चातक की प्यास ,
यह रोशनी की रात है,
क्योंकि आज है
शरद पूर्णिमा ,
रात ओर अंधेरे का
रिश्ता है शाश्वत ,
अंधेरा आता है
रात की बाहों से
फिसलकर ,
जमीं पर छा जाता है
इंतजार करती है जिंदगियां
अल – भोर तक
एक किरण का ,
पर यह क्या….?
आज तो बरसात हो रही है
रात में रश्मियों की
शीतल …चमकदार
जीवन को थपथपाता हुवा
स्पंदन देती
क्यों..?
क्योंकि यह
माँ के हाथों की तरह है
मुलायम ,कोमल , सुखद ,
ओ चांद
आज तो तुम
कर रहे हो प्रतिद्वंदिता
क्योंकि
भारी है तुम्हारी रोशनी
सूरज पर
उसकी आग उगलती किरणों पर
क्योंकि खिलखिलाती
मुस्काती चांदनी
आज बिछी है
आंगन आंगन
ओ चांद
तुम हो तो
आशाओं के मधुमास है
तुम हो तो
आंखों में नए स्वप्न है
ओ चांद
कभी अस्त मत होना
जीवन की किसी भी सांझ में
क्योंकि तुम
रोशनी देते हो
जलाते नहीं ……..
सीमा शाहजी
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स्वर्णिम चांदनी
शरद चंद्रमा की शीतल स्वर्णिम चांदनी
तन मन को सुखदायक है मन भावनी।
पवन का स्पर्श कपोंलों को गुदगुदाता
तन- मन आनंदित खुशी के गीत गाता
पक्षियों का कलरव खूब मन को भाता
गुनगुनी धूप का झोंका मन को सुहाता।
चाँद की रश्मियाँ प्रीतम की याद दिलाती
वो पुरानी स्मृतियाँ मन्द- मन्द मुस्काती
शरद चंद्र की चांदनी देती सुखद आभास
दिखाता नई.डगर, नए लक्ष्य का एहसास
चांद की कोमल रश्मियाँ देती नयी ऊर्जा
नई ताकत नव ऊष्मा प्रेरक कर्म ही पूजा
नवरात्रि मे करते हमसब मां की आराधना
शरद पूनम को पूर्ण ऊर्जा से करते वन्दना
चंद्रमा की शीतल किरण ऊर्जा युक्त खीर
मिटा देती सब जन के तन- मन की पीर।।
आशा जाकड़
शरद पूर्णिमा
चांद की चांदनी मैं जब से बनी,
धवल रश्मियों को फ़ैलाने लगी ,
धरा का गगन से मिलन जब हुआ
तब से मिलन के गीत गाने लगी।
नभमंडल में फैली दुधिया रोशनी
तुम्हारे पास होने का एहसास है,
मन की वीणा झंकृत होने लगी,
अपने क़दमों पर ही विश्वास है।
जैसे -जैसे आगे मैं बढ़ती गई,
दिलकी धड़कने शोर मचाने लगी
धरा का गगन से मिलन जब हुआ मैं भी मिलन के गीत गाने लगी।
रथ पर सवार तारों की फ़ौज थी
नभ से अमृत की वर्षा होने लगी
श्वेत रंगों से गगन पुलकित हुआ
गगन से पुष्पों की वर्षा होने लगी
प्रकृति ने जब -जब अंगड़ाई ली हर कली चटककर, मुस्कुराने लगीं
धरा का गगन से मिलन जब हुआ
मैं भी मिलन के गीत गाने लगी।
मंत्रमुग्ध होकर चांद निहारता रहा
चांदनी -चांदनी कह पूकारता रहा
जल में देखी जब से परछाई,को
मन ही मन में वह हर्षाता रहा ,
मन का मयूर नृत्य करने लगा
मैं भी सपनो को सजाने लगी,
धरा का गगन से मिलन जब हुआ
मैं भी मिलन के गीत गाने लगी।
शोभा रानी तिवारी
शरद पूर्णिमा का वैभव
शरद पूर्णिमा की रात्रि सुहावनी शीतल होती
जो तन -मन को प्रफुल्लित व उमंगित करती
इस समय चंद्रमा पूरे यौवन पर होता
मिल जाते सुख-शांति के दरिया के धारे ।
शरद पूर्णिमा की रात्रि महारात्रि है कहलाती
चंद्रमा पृथ्वी के निकट होता वर्ष में
प्रकति का वैभव साकार रूप में होता
सौंदर्य के झरने बहने लगते हैं सारे ।
श्रीकृष्ण ने महारास किया था गोपियों संग
जिसमें आत्मा का परमात्मा से मिलन हुआ
गोपियों ने मोह -माया व का त्याग किया
जीना था गोपियों को श्रीकृष्ण के सहारे ।
शरद पूर्णिमा महालक्ष्मी को मनाने का दिन
जो यश,उन्नति व वैभव प्रदान करतीं
जिनसे जगत के सारे कार्य संचालित होते
खिल उठता सारा चमन व झूमती बहारें ।
चांदनी की शीतलता जीवन में ठंडक देती
जब खीर आसमान के नीचे रख खाते
अमृत रस बरस जाता चंद्रमा का तब
आरोग्यता का वरदान पा जाते मनुष्य सारे।
नीति अग्निहोत्री ,इंदौर
शरद पूनम की चांदनी
ऐ रुपहली चाँदनी
ऐ शीतल चाँदनी
ऐ शर्मीली चाँदनी
ऐ सजीली चाँदनी
ऐ निर्मल चांदनी
ऐ शरद पूनम की चांदनी
शरद पूनम को तुम
चांद के आगोश में
क्यों समा जाती हो
अपनी छटा सजाती हो
मंद मंद मुस्काती हो
चांद को अपने आंचल में टांक सुंदरता बिखराती हो
चांदनी के पुष्पों को
सुवासित कर जाती हो
ऐ चाँदनी
कभी तुम चांदी की रुपहली चुनर ओढ
चांद की टिकुली लगाती हो
सितारों को चुनर मे टांक
किरणों की किनार दमकाती हो हसीन चांदनी
शरद पूनम की रात
चांदनी चौक सजाती हो ताजमहल में नगीनों को रोशन कर
चमकी चमकी कहलाती हो सजनी के दिल को सिंगारित कर चंद्रकौस राग सुनाती हो
फिर रागिनी में अलमस्त हो जाती हो
शरद पूनम की रात
चांदी के वर्क में लिपटे
नाजुक से बीड़े को
चांदी की तस्तरी में धर
प्रिय मुख सुवासित कराती हो मीठी खीर की चाशनी में समा रसना को तृप्त कर जाती हो
ऐ सजनी चांदनी
कभी प्रिया की नथनी के
हीरे की कनी में
लश्कारा सजाती हो
कभी चांद को
चांद बालियों में पिरो कर
प्रिय को रिझाती हो
ऐ चांदनी
शरद के चांद के संग
अठखेलियां कर
चांदनी चौक सजाती हो ताजमहल दमकाती हो
नथनी का लश्कारा सजाती हो कंगन में झिलमिलाती हो
कभी भोपाल ताल में
चांद का अक्स देख
लहर लहर लहराती हो
ऐ चांदनी
शरद पूनम की रात तुम
कुछ अधिक निखर आती हो
ऋतुप्रिया खरे