Sharmila’s Party Merged With Congress : आंध्र में शर्मिला की पार्टी के कांग्रेस विलय से क्या बदलेगा!

अप्रैल में लोकसभा और जून में विधानसभा चुनाव में इस विलय की अग्नि परीक्षा!

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Sharmila’s Party Merged With Congress : आंध्र में शर्मिला की पार्टी के कांग्रेस विलय से क्या बदलेगा!

Hyderabad : कांग्रेस ने पहले कर्नाटक और उसके बाद तेलंगाना के चुनाव में सफलता पाकर अपने इरादे साफ़ कर दिए। अब कांग्रेस ने दक्षिण भारत के एक और राज्य आंध्र प्रदेश में बड़ी बाजी हाथ लगी। वहां वाईएसआर तेलंगाना पार्टी की संस्थापक वाईएस शर्मिला ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया। वे आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी की बेटी और वर्तमान मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की बहन हैं।

गुरुवार को दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी आदि की उपस्थिति में कांग्रेस में प्रवेश करने वाली शर्मिला ने ही 2012 में जगन मोहन की अनुपस्थिति में अपनी मां के साथ अपनी पार्टी की कमान सम्हाली थी। बाद में भाई को प्रदेश की सत्ता में बैठाने की सूत्रधार भी वे ही थीं। शर्मिला के कांग्रेस में शामिल होने से उसे एक नेता और वाईएसआर तेलंगाना पार्टी का कैडर भी मुहैया होगा। इससे कांग्रेस का जनाधार बढ़ेगा, जो इस वर्ष जून में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के पूरे परिदृश्य को बदलकर रख सकता है।

वाईएसआर तेलंगाना पार्टी के विलय का अर्थ है कांग्रेस की दक्षिण भारत में किलेबंदी और मजबूत होना। कांग्रेस के लिए इस बार के लोकसभा चुनाव में वैसे भी दक्षिण भारतीय राज्य बड़ी भूमिका निभाने जा रहे हैं। माना जाता है कि उत्तर भारत की बजाए 2024 में दिल्ली की सत्ता का रास्ता दक्षिण से होकर गुजरेगा। भारतीय जनता पार्टी के लिए वैसे भी आंध्र प्रदेश में खोने को कुछ भी नहीं है परन्तु इस समय कांग्रेस यहां क्या हासिल करती है, यह महत्वपूर्ण है।

लोकसभा चुनाव के लिहाज से एक और कोण है जिस पर विचार करना होगा। वह यह कि तेलंगाना व कर्नाटक में पहले से कांग्रेस की सरकारें तो हैं ही, केरल में वामदल एवं तमिलनाडु में डीएमके के साथ वह लोकसभा चुनाव लड़ेगी। अब आंध्रप्रदेश में भी संगठन का बड़ा विस्तार सम्भावित है जिसका फायदा कांग्रेस को ज़रूर मिलेगा।

2019 के विधानसभा चुनाव में जगन मोहन की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी को 175 सीटों वाली विधानसभा में 151 निर्वाचन क्षेत्रों में सफलता मिली थी। 2021 में शर्मिला ने वाईएसआर तेलंगाना पार्टी बना ली। आंध्र प्रदेश के साथ अलग हुए तेलंगाना में भी उनकी पार्टी की उपस्थिति तो है, परन्तु पिछले साल नवम्बर में हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने हिस्सा नहीं लिया जिससे कांग्रेस की विजय आसान हो सकी।

शर्मिला का कांग्रेस में शामिल होना केवल इसलिये महत्वपूर्ण नहीं है कि उन्होंने भाई से अलग राह पकड़ी। उसकी महत्ता इस लिहाज़ से आंकी जानी चाहिये कि उन्होंने तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की तत्कालीन सरकार को भ्रष्ट बताया था। राव सरकार को भ्रष्टाचार के मामले में कोसने के बाद यदि शर्मिला कांग्रेस में शामिल होती हैं तो वे कांग्रेस को अप्रत्यक्ष रूप से साफ छवि का बतला रही हैं। शर्मिला ने राव सरकार के कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ राज्यव्यापी प्रदर्शन किए और उनकी गिरफ्तारी हुई थी।

उनके कार्यकर्ताओं ने पिछले तेलंगाना चुनावों में कांग्रेस को परोक्ष रूप से मदद भी की थी। इससे दोनों दलों के बीच नज़दीकियां बढ़ीं। कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री एवं पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने भी शर्मिला की पार्टी के कांग्रेस में विलय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस राज्य में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी को टक्कर देने में तेलुगू देशम पार्टी एवं जन सेना को कामयाबी नहीं मिल पाई है।

भाई-बहन मुख्यमंत्री पद के दावेदार

अभी यह समझना जल्दबाजी होगी कि क्या जून में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाई-बहन मुख्यमंत्री पद के परस्पर दावेदार होंगे। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि कांग्रेस की और से उन्हें किस तरह की जिम्मेदारियां मिलती हैं और उन्हें पार्टी किस रूप में प्रोजेक्ट करती है। उससे पहले अप्रैल में होने जा रहे लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन कैसा रहता है। वहां लोकसभा की 25 सीटें हैं। इनमें से 22 वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के पास और 3 पर टीडीपी का कब्जा है। कांग्रेस को यहां कितनी सफलता मिलती है।

कांग्रेस का प्रमुख चेहरा बनकर उभरेंगी

इतना तो तय है कि शर्मिला न केवल आगामी दोनों ही चुनावों में बड़ी भूमिका निभाएंगी बल्कि वे ही कांग्रेस का प्रमुख चेहरा बनकर उभरेंगी। अभी वैसे भी कांग्रेस के पास जगन मोहन से मुकाबले के लिए बड़ा चेहरा नहीं है। क्योंकि, वे देश के सर्वाधिक अमीर मुख्यमंत्रियों में से एक हैं जो चुनावों में पैसा पानी जैसा बहाने के लिए जाने जाते हैं। अगर उनके खिलाफ कांग्रेस को उन्हीं के घर से कोई प्रत्याशी मिलता है तो उसके लिए इससे बेहतर भला और क्या हो सकता है? इस दृष्टिकोण से भी अगर कांग्रेस पहले ही उन्हें सीएम का चेहरा बनाकर उतारे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिये।