

पशुओं का खून बहाना कहीं से कहीं तक उचित नहीं है़…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
पशुओं का खून बहाना कहीं से कहीं तक उचित नहीं है़…वन्यजीव प्रेमी और शाकाहारी यह बात बड़ी आसानी से बोल सकते हैं, पर जब यह बात कोई मुस्लिम आईएएस अफसर बोले तब इस पर चर्चा होना स्वाभाविक है, भले ही वह शाकाहारी ही क्यों न हो। वैसे मध्य प्रदेश कैडर के आईएएस अफसर नियाज खान अपने विचारों और लेखन के विषयों को लेकर अक्सर चर्चा में रहे हैं। और बकरीद के पहले उनका यह ट्वीट करना की पशुओं का खून बहाना कहीं से कहीं तक उचित नहीं है, शायद पूरे मुस्लिम संप्रदाय को हैरानी में डालने वाला है। पर नियाज खान के विचारों को पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता। और नियाज खान की यह बात खाली मुसलमानों के लिए नहीं बल्कि पशुओं का खून बहाने वाले हर जाति, धर्म, संप्रदाय के लोगों के लिए है।
नियाज खान के ट्वीट पर कमेंट्स को भी नकारा नहीं जा सकता। वन्य जीव प्रेमियों ने उनके ट्वीट पर समर्थन में कमेंट किए हैं तो मांसाहारी लोगों के कमेंट नियाज खान को चुभने वाले हो सकते हैं। एक कमेंट यह है कि अपनी दकियानूसी विचारधारा से बाहर निकलो। दुनिया की 70% आबादी मांसाहार को अपना चुकी है और खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत कर रही है। तुम मुसलमान लोग सरकार को खुश कर अच्छी पोस्टिंग पाने के लिए 70% लोगों की चॉइस को बुरा बोलते हो जबकि रोज रात में घर के अंदर बिरयानी और चिकन फ्राय खाते हो। हालांकि इस कमेंट पर भी पूरी तरह से सहमत नहीं हुआ जा सकता है लेकिन सोशल प्लेटफॉर्म पर अपनी बात रखने का हक सबको है। और उन्हें पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता। ऐसा ही एक दूसरा कमेंट यह भी है कि 100% सहमत, ईश्वर हमेशा दयावान होते हैं उन्हें पशु क्रूरता और निर्दयता कभी पसंद नहीं आ सकती,ये तो नीचे मनुष्यों ने अपने हिसाब से प्रथाएं चला दी हैं। यह कमेंट भी सभी को पूरी तरह से सहमत नहीं कर सकता है। हालांकि यह कमेंट भी विचार योग्य है कि जीव हत्या से मनुष्य हत्या तक का सफर मजहब के नाम पर ही तय होता है। मजहब यदि जीव हत्या को सही बताता है तो उसको मानने वाला कभी सात्विक नहीं हो सकता है।
पर नियाज खान की यह बात बिल्कुल सही है कि यह धरती केवल मनुष्यों के ही लिए नहीं है। पेड़, पौधे, जीव जंतु इन सबका भी अधिकार है। इन सबकी भी रक्षा होनी चाहिए। और वैसे भी देखा जाए तो कभी नरबलि का भी एक दौर था लेकिन समाज और सरकार के सहयोग से आज ऐसी घृणित और वीभत्स परिपाटियों का खात्मा संभव हुआ। और नरबलि की जगह प्रतीकात्मक तौर पर नारियल फोड़ने या बलि के संकेतात्मक तरीकोऺ को अपनाया गया। और यह कहा जा सकता है की जितनी घृणित नरबलि की परंपरा थी उतनी ही बलि की दूसरी परंपराएं हैं जिसमें बेजुबानों को बेवजह ही मौत के घाट उतारा जाता है। आखिर नियाज खान की यह बात भी नकारी नहीं जा सकती कि दुनिया में सबसे ज्यादा शाकाहरी भारत में हैं। जिस तरह हमने योग को दुनिया के कोने-कोने पहुंचाया है उसी तरह शाकाहार को भी पूरे विश्व में पहुंचना चाहिए। कभी जीव जंतुओं को ध्यान से देखें उन्हें भी प्रेम करना आता है। अगर पशुओं के लिए दिल में मोहब्बत होगी तो आप खुद शाकाहारी हो जाएंगे।
तो नफरत की बात करने वालों को मोहब्बत के इस तरीके पर भी विचार करना चाहिए। मांसाहारियों को भी यह विचार करना चाहिए कि किसी त्योहार के दिन किसी जीव की बलि देकर आखिर क्या हासिल किया जा सकता है…नफरत या मोहब्बत…। जीवों को जीवनदान देकर त्यौहार की खुशी का अहसास भी एक बार अवश्य करना चाहिए…। यह बात सौ फीसदी सही है कि पशुओं का खून बहाना कहीं से कहीं तक उचित नहीं है़… और खासकर खुशी के त्योहारों पर ऐसी परंपराओं को पुनर्विचार के दायरे में लाया जाए…।