शिव और राम, एक ही हैं पर दो नाम …
राम के आराध्य शिव हैं और शिव के स्वामी राम या यह कहें कि कौन किसका स्वामी है और कितना प्रिय है, यह भेद जान पाना बहुत ही मुश्किल है। राम की महिमा और शिव का स्वरूप जान पाना सामान्य व्यक्ति के बूते की बात नहीं है। रामचरित मानस में बालकांड में एक तरफ सती का प्रसंग आता है और सीता बन राम की परीक्षा लेने पर शिव सती को त्याग देते हैं। सती पिता दक्ष के यहां जाकर यज्ञाग्नि में अपने प्राणों की आहुति दे देती हैं। और उनका दूसरा जन्म पार्वती के रूप में राजा हिमाचल के घर में होता है। यह मुमकिन नहीं था कि शिव उनसे विवाह करते। पर सती ने मरते समय भगवान हरि से यह वर माँगा था कि मेरा जन्म-जन्म में शिवजी के चरणों में अनुराग रहे। इसी कारण उन्होंने हिमाचल के घर जाकर पार्वती के शरीर से जन्म लिया। और तब राम ने शिव से अनुरोध किया कि वह पार्वती से विवाह करें। और शिव ने उनके अनुरोध को स्वामी की आज्ञा मानकर वैसा ही किया। यहां बालकांड में शिव के स्वामी राम बन गए। तो दूसरी तरफ लंका कांड का प्रसंग भी सामने है, जब समुद्र पार करने से पहले राम ने अपने आराध्य के रूप में रामेश्वर की स्थापना की। और यह साफ कर दिया कि राम और शिव एक दूसरे के पूरक हैं। यदि एक को नाराज किया तो दूसरा कतई खुश नहीं हो सकता। रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान राम के द्वारा की गई है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, जब भगवान श्रीराम लंका पर आक्रमण करने जा रहे थे, तब उन्होंने समुद्र के किनारे शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा अर्ना की थी। शिव को भगवान राम अपना अराध्य देवता मानते हैं, इसीलिए युद्ध से पहले भगवान राम ने शिव की पूजा की। इसी को रामेश्वरम् कहा गया। राम के मुताबिक इसका मतलब ‘राम के ईश्वर’ है।
बालकांड की बात करें तो यह दोहा है कि “अब बिनती मम सुनहु सिव जौं मो पर निज नेहु। जाइ बिबाहहु सैलजहि यह मोहि मागें देहु।” यानि फिर राम ने शिवजी से कहा- हे शिवजी, यदि मुझ पर आपका स्नेह है, तो अब आप मेरी विनती सुनिए। मुझे यह मांगें दीजिए कि आप जाकर पार्वती के साथ विवाह कर लें। तो “कह सिव जदपि उचित अस नाहीं। नाथ बचन पुनि मेटि न जाहीं। सिर धरि आयसु करिअ तुम्हारा। परम धरमु यह नाथ हमारा।” यानि शिवजी ने कहा- यद्यपि ऐसा उचित नहीं है, परन्तु स्वामी की बात भी मेटी नहीं जा सकती। हे नाथ! मेरा यही परम धर्म है कि मैं आपकी आज्ञा को सिर पर रखकर उसका पालन करूँ। और “मातु पिता गुर प्रभु कै बानी। बिनहिं बिचार करिअ सुभ जानी। तुम्ह सब भाँति परम हितकारी। अग्या सिर पर नाथ तुम्हारी।” यानि माता, पिता, गुरु और स्वामी की बात को बिना ही विचारे शुभ समझकर करना (मानना) चाहिए। फिर आप तो सब प्रकार से मेरे परम हितकारी हैं। हे नाथ! आपकी आज्ञा मेरे सिर पर है।राम ने फिर कहा कि “प्रभु तोषेउ सुनि संकर बचना। भक्ति बिबेक धर्म जुत रचना। कह प्रभु हर तुम्हार पन रहेऊ। अब उर राखेहु जो हम कहेऊ।” यानि शिवजी की भक्ति, ज्ञान और धर्म से युक्त वचन रचना सुनकर प्रभु रामचन्द्रजी संतुष्ट हो गए। प्रभु ने कहा- हे हर! आपकी प्रतिज्ञा पूरी हो गई। अब हमने जो कहा है, उसे हृदय में रखना। और फिर शिव ने राम की आज्ञा मानकर ही पार्वती से विवाह किया। यहां पर शिव ने राम को ईश्वर मानकर उनकी आज्ञा मानी। राम को स्वामी संबोधित कर सब कुछ स्वीकार किया।
वहीं दूसरी तरफ देखा जाए तो समुद्र पार करने से पहले तट पर बैठे राम कहते हैं “परम रम्य उत्तम यह धरनी। महिमा अमित जाइ नहिं बरनी। करिहउँ इहाँ संभु थापना। मोरे हृदयँ परम कलपना।” यानि यह (यहाँ की) भूमि परम रमणीय और उत्तम है। इसकी असीम महिमा वर्णन नहीं की जा सकती। मैं यहाँ शिवजी की स्थापना करूँगा। मेरे हृदय में यह महाकल्प है। और फिर श्री रामजी के वचन सुनकर वानरराज सुग्रीव ने बहुत से दूत भेजे, जो सब श्रेष्ठ मुनियों को बुलाकर ले आए। शिवलिंग की स्थापना करके विधिपूर्वक उसका पूजन किया (फिर भगवान बोले-) शिवजी के समान मुझको दूसरा कोई प्रिय नहीं है। और राम कहते हैं कि “सिव द्रोही मम भगत कहावा। सो नर सपनेहुँ मोहि न पावा। संकर बिमुख भगति चह मोरी। सो नारकी मूढ़ मति थोरी।” यानि जो शिव से द्रोह रखता है और मेरा भक्त कहलाता है, वह मनुष्य स्वप्न में भी मुझे नहीं पाता। शंकरजी से विमुख होकर (विरोध करके) जो मेरी भक्ति चाहता है, वह नरकगामी, मूर्ख और अल्पबुद्धि है। पूरी तरह से साफ करते हैं कि “संकरप्रिय मम द्रोही सिव द्रोही मम दास।ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महुँ बास।” यानि जिनको शंकरजी प्रिय हैं, परन्तु जो मेरे द्रोही हैं एवं जो शिवजी के द्रोही हैं और मेरे दास (बनना चाहते) हैं, वे मनुष्य कल्पभर घोर नरक में निवास करते हैं।
यानि मतलब साफ है कि हरि यानि राम और हर यानि शिव के बीच यह फर्क करना मुश्किल है कि कौन स्वामी है और कौन सेवक। या यूं कहें कि दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं और यहां सेवक और स्वामी जैसे शब्द बेमानी हैं। शिव और राम एक ही है, भले ही दो अलग-अलग नाम क्यों न हों…।