शिवाजी ने कहा था “जब हौसले बुलन्द हों, तो पहाड़ भी एक मिट्टी का ढ़ेर लगता है”…

टीम शिवराज ने साबित किया कि हौसले बुलंद हों तो कूड़े का पहाड़ भी वरदान में बदल सकता है...

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छत्रपति शिवाजी महाराज ने कहा था कि “जब हौसले बुलन्द हो, तो पहाड़ भी एक मिट्टी का ढेर लगता है।” और उन्होंने इसे चरितार्थ भी किया था। 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी के दुर्ग में शिवाजी का जन्म हुआ था। उनके हौंसलों की बुलंदी ही थी कि मुगल साम्राज्य के बर्बर शासक औरंगजेब के शासनकाल में शिवाजी ने पश्चिमी महाराष्ट्र में न केवल मुगलों की सत्ता को खुली चुनौती दी थी, बल्कि स्वतंत्र हिंदू राज्य की नींव भी डाली थी।
और यही मराठा राज्य बाद में पेशवाओं के जरिए न केवल राज्य करता रहा बल्कि होलकर, सिंधिया, गायकवाड़ मराठा सरदारों ने भी इसके विस्तार में योगदान किया। शिवाजी के हौंसलों का जिक्र जितना किया जाए, उतना कम है। बीजापुर साम्राज्य को मात दी और अफजल खां को बड़ी सूझबूझ और चतुराई से मार डाला। बीजापुर साम्राज्य ने शिवाजी को स्वतंत्र शासक का दर्जा दिया। मुगल साम्राज्य को खुली चुनौती दी।
पुरंदर की संधि करने पर मजबूर हुए लेकिन बाद में फिर अपने किलों पर अधिकार कर लिया। औरंगजेब ने अपने राज्य में उन्हें और उनके पुत्र संभाजी को नजरबंद कर दिया तो 5000 सैनिकों की कैद से भी वह भाग निकले। जब औरंगजेब ने शिवाजी से निपटने के लिए अपने मामा शाइस्ता खां को डेढ़ लाख की सेना के साथ दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया। तब शिवाजी ने एक रात 350 सैनिकों के साथ शाइस्ता खां पर हमला किया तो वह जान बचाकर भाग गया, उसका पुत्र, चालीस अंगरक्षक और सैकड़ों लोग मारे गए।
शिवाजी ने मुगल साम्राज्य के सूरत में लूटमार कर खुद को हुई आर्थिक क्षति की भरपाई सूद सहित की। दूसरी बार भी सूरत को लूटा। छापामार युद्ध में शिवाजी का कोई सानी नहीं था। कोंकण पर अधिकार किया। अंततः गौरवशाली मराठा साम्राज्य में छत्रपति की उपाधि के साथ शिवाजी का 1674 में रायगढ़ के किले में दो बार राज्याभिषेक हुआ और हिन्दवी साम्राज्य की स्थापना हुई। 1680 में शिवाजी का निधन हुआ। उसके बाद ही औरंगजेब की दक्षिण में प्रवेश की हिम्मत पड़ी। पर शिवाजी का हौसला मराठा साम्राज्य में जीवित रहा। पेशवा और मराठा राज्य इसकी मिसाल रहे। अंततः मराठा साम्राज्य को जीतने की अधूरी इच्छा के साथ ही दक्षिण औरंगजेब की कब्र बन गया था।
तो 19 फरवरी ने मध्यप्रदेश सरकार के हौसलों की भी दुहाई दी, जब इंदौर में गोबर-धन बायो सीएनजी प्लांट के लोकार्पण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिवराज और टीम की खुलकर तारीफ की। मोदी खुश थे, क्योंकि एशिया के सबसे बडे़ प्लांट का इतनी जल्दी निर्माण हौंसलों से ही संभव हो सका है। मोदी ने कहा कि इंदौर मॉडल शहरों को कूड़े के पहाड़ों से मुक्त करने अन्य शहरों के लिए प्रेरणा बनेगा।
इंदौर के देवगुराड़िया क्षेत्र में कभी कूड़े के पहाड़ थे, अब वहाँ 100 एकड़ की डंप साइट ग्रीन जोन में परिवर्तित हो गई है। इंदौर में गोबर-धन बायो सीएनजी प्लांट बनने से वेस्ट-टू-वेल्थ तथा सर्कुलर इकोनामी की परिकल्पना साकार हुई है। इससे भारत के स्वच्छता अभियान भाग-2 को नई ताकत मिलेगी, जिसके अंतर्गत आने वाले 2 वर्षों में देश के सभी शहरों को कूड़े के पहाड़ों से मुक्त कर ग्रीन जोन बना दिया जाएगा। तो मोदी ने होलकर साम्राज्य और देवी अहिल्या की भी भूरि-भूरि प्रशंसा की।
सुमित्रा ताई और उनके इंदौर संसदीय क्षेत्र की सराहना की, तो अपने वाराणसी संसदीय क्षेत्र का गुणगान करते हुए बताया कि काशी विश्वनाथ धाम में देवी अहिल्या की मूर्ति लगाई है। जो भी श्रद्धालु बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने जाएगा, वह देवी अहिल्या को भी नमन करेगा। और देवी अहिल्या ने इंदौर और महेश्वर का जो गौरव स्थापित किया था, इंदौर उसको बनाए हुए हैं। यह इंदौर और प्रदेशवासियों के लिए भी बड़े गौरव और सम्मान की बात है।
इंदौर देश-दुनिया में स्वच्छता का पर्याय बन गया है। गोबर-धन बायो सीएनजी प्लांट इस कड़ी में मील का पत्थर साबित होगा। कचड़े और आसपास के क्षेत्र से खरीदे गए गोबर से सीएनजी बनेगी। सीएनजी से शहर की बसें दौड़ेंगीं। पर्यावरण संतुलन-प्रदूषण नियंत्रण में मदद मिलेगी और डीजल पर निर्भरता खत्म होगी।
तो छत्रपति शिवाजी महाराज ने ठीक ही कहा था कि जब हौसले बुलन्द हों, तो पहाड़ भी एक मिट्टी का ढ़ेर लगता है। बात जब हौंसलों की होगी तो देवी अहिल्या का नाम अग्रणी रहेगा, जिन्होंने जीवन में विषमतम परिस्थितियां होने के बावजूद हौंसलों के दम पर प्रजा की सेवा और धर्म-कर्म में पूरा जीवन खपाकर आदर्श स्थापित किया।
और बात जब इंदौर की होगी तो देवी अहिल्या के मापदंडों पर खरा उतरने के लिए हमेशा सम्मान के साथ याद रखा जाएगा। क्योंकि मध्यप्रदेश और इंदौर के साथ टीम शिवराज ने यह साबित भी कर दिया है कि यदि हौंसला बुलंद हो तो कूड़े के पहाड़ भी ग्रीन जोन में बदलकर वरदान में बदले जा सकते हैं और स्वच्छता के नए मानक स्थापित किए जा सकते हैं।