संसद में शिवराज, सूबे में कैलाश और प्रह्लाद की धमक…

संसद में शिवराज, सूबे में कैलाश और प्रह्लाद की धमक…

Protein Capital State

मोदी सरकार से लेकर मध्यप्रदेश की मोहन सरकार में एक समय भाजपा के युवा मोर्चा में साथ काम करने वाले नेताओं की कार्यशैली खासी चर्चा में है।ये नेतागण कुशाभाऊ ठाकरे और प्यारेलाल खंडेलवाल और सुंदरलाल पटवा काल में पुष्पित और पल्लवित हुए। इनमें केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर मोहन सरकार में वरिष्ठ मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, प्रह्लाद पटेल प्रमुख हैं। केंद्र में बजट सत्र के चलते कृषि मंत्री चौहान के सधे अंदाज़ में दिए गए तार्किक भाषण को बड़े ध्यान से सुना गया। इसमें उन्होंने खेती किसानी के मुद्दे पर मोदी सरकार की नीतियों के साथ कांग्रेस पर तीखे कटाक्ष किए। अपने भाषण में कांग्रेस को खलनायक बताया और कहा कि शुरू से ही किसान विरोध तो कांग्रेस के डीएनए में है। उन्होंने कहा कि स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशें कांग्रेस ने ही लागू नही की। मोदी सरकार तो किसान हित में बनी कमेटी की रिपोर्ट आने की प्रतीक्षा कर रही है। लेकिन रिपोर्ट के इंतजार में हम हाथ पर हाथ धरे नही बैठे है। फसलों के बेहतर मूल्य मिले इसके प्रति सरकार गम्भीर है। किसान हित में बजट में करीब पौने दो लाख करोड़ की धनराशि के प्रावधान का जिक्र किया। यह डॉ मनमोहन सिंह की सरकार से करीब चार गुना ज्यादा है। इतना बड़ा बजट पहली बार किसानों को मिला है।
चौहान ने नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के महाभारत के शकुनी और चक्रव्यूह की चर्चा करने पर कहा कि ये धूर्तता की बातें उन्हीं को याद आती हैं जो उनके जैसे होते हैं। हमें भगवान कृष्ण याद आते हैं जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए जन्म लिया था। यही फर्क है भाजपा और कांग्रेस में।

images 2024 07 19T213341.506

इसी तरह मध्यप्रदेश में वरिष्ठ मंत्री कैलाश विजयवर्गीय जनता से जुड़ने वाली शैली भी उन्हें दूसरे नेताओं से अलग करती है। अपने गृह नगर इंदौर में ‘एक पेड़ मां के नाम’ की योजना पर 51 लाख पौधे लगाने के अभियान शुरू कर पूरे देश में चर्चा का केंद्र बन गए। उन्होंने यह काम पीएम नरेंद्र मोदी के आव्हान पर किया। जिसकी मोदी ने भी प्रशंसा की। इसके अलावा श्री विजयवर्गीय अपनी साफगोई के लिए भी जाने जाते हैं। अफसरों पर सख्ती और कार्यकर्ताओं में उनकी लोकप्रियता उन्हें सबसे अलग बनाती है। वे दोस्त के लिए कुछ भी कर गुजरने वाले दोस्त और दुश्मन के लिए पक्के दुश्मन हैं। इस बात से उनके अपने पराए सब वाकिफ भी हैं। सीएम डॉ मोहन यादव से उनके मधुर रिश्ते हैं और वे अफसरों को कसने मे पीछे नही रहते।

Prahlad Patel

मोहन सरकार के दूसरे असरदार और कड़क मंत्री में प्रह्लाद पटेल का नाम भी खूब खबरों में बना हुआ है। काम पर पकड़ के साथ अफसरों की अकड़ कम करने में वे सबसे आगे हैं। असल में श्री पटेल 2003 में केंद्रीय मंत्री बन गए थे।तब से लेकर आज तक कामकाज का अनुभव उन्हें सबसे अधिक है। वे नोटशीट की शब्दावली से लेकर अफसरों की चालबाजी को समझ कर उसे दो टूक शब्दों में बयां भी कर देते हैं।ऐसे में विभाग से लेकर मंत्रालय के अधिकारियों में उनकी अलग इमेज बनी है। पिछले दिनों अफसरों के कामकाज और तर्कों को लेकर उनकी टिप्प्णी – ” मेरे सामने ज्यादा ज्ञान बांटने जरूरत नही है ….” असल में जो मंत्री मोदी की सरकार में मंत्री रह चुका हो उसे अपने हिसाब से चलाने की कोशिश नही की जाए। लेकिन आने वाले दिनों में उनके महकमें में पीएस और सेकेट्री मनपसन्द के हुए तो काम की गति और परिणाम बेहतर होने की उम्मीद है।

Alok Sharma former Bhopal Mayor and Vice President of Madhya Pradesh BJP

*संसद में आलोक…*
भोपाल संसदीय सीट से इतिहास में दूसरी बार ‘आलोक’ चुनाव जीते हैं एक बार चुनाव जीते थे आलोक संजर। इस बार चुनाव जीते हैं आलोक शर्मा। अट्ठारह वीं लोकसभा के बजट सत्र में भोपाल से जीते आलोक शर्मा ने अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराई है। मसला था अंतराष्ट्रीय रासायनिक त्रासदी भोपाल गैस कांड का। इसमे यूका के रासायनिक कचरे के निपटारे के लिए समाधान खोजने की बात कही गई थी।
सदन में आलोक शर्मा ने कहा कि भोपाल की यूका फैक्टरी में अभी भी जहरीली गैस का कचरा जमीन में दफन है। इससे यहां की मिट्टी और जल स्तर विषाक्त हो रहा है।इस कचरे के निपटारे के लिए इंदौर के पास पीलू खेड़ी में रासायनिक रूप निष्क्रिय कर जमींदोज करना था। लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के बाद यह काम रुक गया है। जबकि केंद्र सरकार इस काम के लिए करीब 126 करोड़ रुपए मंजूर करने के साथ एजेंसी भी तय कर चुकी है। उम्मीद की जा रही है कि कोई नया स्थान खोज कर केंद्र सरकार जल्दी ही इसका समाधान निकालेगी।
दरअसल तकरीबन चालीस बरस पहले दो दिसंबर 1984 की आधी रात अमेरिकी कम्पनी हत्यारी यूनियन कार्बाइड (यूका) से मिक गैस के रिसने से हजारों भोपाल वासियों की जान ले ली थी। जो ज़िंदा बचे उनके लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी गई थी। गैस कांड की तुलना में मामूली मुआवजा और आधी अधूरी चिकित्सा सुविधाएं ही मिलीं हैं ।