लघुकथा : जैसा हम करेंगे

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लघुकथा: जैसा हम करेंगे

किशन- ‘शांति! मेरी इच्छा है।मरने के पहले कम से कम एक बार प्रयागराज के महाकुंभ में पवित्र त्रिवेणी संगम में स्नान कर, जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाऊं।’

शांति-‘मेरी भी यही इच्छा है। अगले 12 साल बाद हो सकता है कि मैं इस दुनिया में न रहूँ या हम दोनों ही न रहें।’ कहते-कहते शांति का गला रुंध गया।
पर दोनों को बेटे-बहू को कहने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी।आखिर कहें भी तो कैसे…? कमाने वाला बेटा अकेला, उसकी पत्नी और दो बच्चे कुल मिलाकर खाने वाले प्राणी छह..!और फिर इसी महीने ही तो बड़े बेटे की कॉलेज की फीस भी भरनी पड़ी थी।

शांति के आजकल ऊंचा सुनने से किशन को जरा तेज आवाज में बोलना पड़ रहा था। रात्रि में उनके बीच हो रही बातचीत बहू के कानों में पड़ गई। दूसरे दिन उन्होंने देखा कि बहू कुछ हिसाब लगाने में लगी है। उसने अपने पति से सास-ससुर के लिए प्रयागराज का टिकट और धर्मशाला बुक करने का कहा। खुद उनके लिए बैग में कपड़े, दवाइयाँ, पहचान-पत्र, सूखा नाश्ता रखा। उन्हें संगम घाट और रामघाट के बारे में जानकारी दी और पति से बोली- ‘आखिर जैसा हम करेंगे, वैसा ही, तो हमारा बेटा भी सीखेगा…!’

श्रद्धा जलज घाटे,रतलाम