Signs of Election in MP: मध्यप्रदेश का राजनीतिक भविष्य ब्यूरोक्रेसी के बिहेवियर से समझे!

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Signs of Election in MP: मध्यप्रदेश का राजनीतिक भविष्य ब्यूरोक्रेसी के बिहेवियर से समझे!

Signs of Election in MP: मध्यप्रदेश का राजनीतिक भविष्य ब्यूरोक्रेसी के बिहेवियर से समझे!

वरिष्ठ पत्रकार जय नागड़ा का कॉलम!

देश के विख्यात भूभौतिक वैज्ञानिक डॉ जनार्दन नेगी ने भूकम्प की भविष्यवाणी को लेकर महत्वपूर्ण बात कही थी, कि दुनिया का उन्नत विज्ञान भी भूकम्प की भविष्यवाणी नहीं कर सकता। लेकिन, एनिमल बिहेवियर से इसका काफी हद तक सटीक अनुमान संभव है। चीन और जापान जैसे देशों ने इस विषय पर काफी स्टडी की और अनुमान सही आए। दरअसल, पशु-पक्षी अधिकांश जानवर प्रकृति की आहट को जल्द महसूस कर लेते है। भूकंप के आने के पूर्व चूहों, गाय, कुत्ते आदि के व्यवहार में अनपेक्षित परिवर्तन दिखने लगता है इससे आप आपदाओं का अंदाज कर सकते है।
अब सवाल यह कि इस फार्मूले से कुछ और भविष्यवाणियां भी संभव है? हां, मैं चुनावी भविष्यवाणी की बात कर रहा हूं। चुनावी सर्वेक्षण, एग्जिट पोल एक अलग तकनीक चुनावी पूर्वानुमान लगाने की हो गई! लेकिन, उससे ज्यादा सटीक आकलन आप ब्यूरोक्रेसी के व्यवहार में परिवर्तन से महसूस कर सकते है। देश के बड़े राजनीतिक विशेषज्ञ भी इस आधार पर आकलन को ज्यादा प्रमाणिक मानते है। जैसे भूकंप का पूर्वानुमान एनिमल बिहेवियर से संभव है ठीक उसी तरह ब्यूरोक्रेसी के बिहेवियर से चुनावी आकलन संभव है।

मध्य प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव के पहले यहां ब्यूरोक्रेसी के व्यवहार में बड़ा बदलाव नजर आ रहा है। इसकी ताज़ा मिसाल है कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के साथ जमीन पर बैठकर सागर कलेक्टर और एसपी का उनके हर आदेश को शिरोधार्य करना! वे यह भलीभांति जानते है कि इस समय कांग्रेस के नेताओं को इतनी तवज्जो देने से मौजूदा शासन की नाराज़गी मोल लेनी पड़ सकती है, लेकिन उन्हे शायद अपना भविष्य की चिन्ता ज्यादा सता रही है जिसके चलते वे ये बड़ा जोखिम भी लेने को तत्पर है।

Signs of Election in MP: मध्यप्रदेश का राजनीतिक भविष्य ब्यूरोक्रेसी के बिहेवियर से समझे!

क्या अभी कुछ समय पहले तक इस तरह के व्यवहार की अधिकारियों से कल्पना भी की जा सकती थी। कर्नाटक की बड़ी जीत और मध्यप्रदेश के चुनावी सर्वेक्षण ने अफसरशाही का नजरिया बदला है। हाल ही में जब दिग्विजय सिंह खंडवा आए थे, तब मैंने बातों ही बातों में उनसे पूछ लिया था कि क्या ब्यूरोक्रेसी के व्यवहार में वे बदलाव महसूस कर रहे है? उनका जवाब था ‘हां!’

यही नहीं उन्होंने मध्यप्रदेश के ही एक कलेक्टर का किस्सा भी सुनाया जिनसे उन्होंने कई बार संपर्क करने की कोशिश की, मोबाइल पर बात करना चाही लेकिन वे बात करने को तैयार नहीं थे। हर बार उनका पीए कुछ न कुछ बहाना बना देता और बाद में बात कराने की बात कहता। लम्बे समय तक उन कलेक्टर ने उनसे बात नही की न संपर्क ही किया हाल ही में जब कर्नाटक के नतीजे आए और मध्य प्रदेश के कुछ सर्वे सामने आए तो वो ही कलेक्टर उनसे माफी मांगने लगे सॉरी, सर आपको कॉल नहीं कर सका …’ जाहिर है कलेक्टर को भविष्य का भय सताने लगा, उनकी प्रतिबद्धता पूरी तरह बदल गई!

जिस ब्यूरोक्रेसी पर आंख मूंदकर भरोसा कर सत्ता में बैठे लोग महत्वपूर्ण फैसले लेते है, अपनी ही पार्टी के निर्वाचित प्रतिनिधियों से ज्यादा विश्वास इन अधिकारियों पर करते है उनकी प्रतिबद्धता कब बदल जाये इसका उन्हे कोई अंदाज ही नहीं रहता। यह अवसरवादियों की वह फ़ौज है जो शासकों को जमीनी हकीकत से दूर रखती है और जब जनाक्रोश की लहरों से टकराकर जहाज डूबने लगता है तब चूहों की तरह सबसे पहले वे ही कूदते है!

Signs of Election in MP: मध्यप्रदेश का राजनीतिक भविष्य ब्यूरोक्रेसी के बिहेवियर से समझे!

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ब्यूरोक्रेसी पर कितना ज्यादा निर्भर है इसे इस बात से ही समझा जा सकता है कि अपने चीफ सेक्रेटरी को सेवानिवृति के बाद भी वो दो बार एक्सटेंशन दिला लाए … क्या यही ब्यूरोक्रेसी उन्हे फिर एक्सटेंशन दिला सकेगी? भाजपा को नियंत्रित करने वाले संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी भी मानते है कि ब्यूरोक्रेसी पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता इस सरकार को डूबो देगी! ब्यूरोक्रेसी तो कभी नहीं डूबेगी वह तुरंत दूसरे जहाज पर सवार हो जायेगी!