“कर नाटक” में आज खामोशी…

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“कर नाटक” में आज खामोशी…

कौशल किशोर चतुर्वेदी
कर्नाटक में आज लंबे समय बाद खामोशी का दिन है। एक दिन बाद ही यानि 10 मई 2023 को मतदाता अपना मतदान करेंगे और तीन दिन बाद 13 मई को यह सामने आ जाएगा कि कौन हैरान-परेशान होगा और कौन सरकार बनाने की तैयारी करेगा। बयानबाजी हो चुकी, मैदान में घमासान का वक्त निकल गया और अब बारी है फैसले की। 224 सदस्यीय विधानसभा के लिए चुनाव एक ही चरण में होगा।
कर्नाटक की सत्ता पाने के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों ने खूब जद्दोजहद कर लिया है। अब बाहरी नेता बाहर का रुख कर चुके हैं। अब स्थानीय नेता मतदाताओं के सामने हाथ जोड़कर अपनी मुस्कान कायम रखने का वरदान मांग सकते हैं। पर मतदाता को क्या करना है, यह अब उसी को तय करना है। चुनाव आयोग के मुताबिक, इस साल पहली बार मतदान करने वाले मतदाताओं की संख्या 9.85 लाख है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि पहली बार के यह मतदाता किस पर भरोसा जताते हैं। वैसे कर्नाटक में कुल मतदाताओं की संख्या 5.24 करोड़ है। इनमें से 12.15 लाख मतदाता 80 वर्ष से अधिक आयु के हैं और 16,976 सौ वर्ष व उससे ऊपर के हैं। चुनाव आयोग में 5.55 लाख दिव्यांग पंजीकृत हैं। कर्नाटक में कुल 58,282 मतदान केंद्रों पर मतदान होना है। हर मतदान केंद्र पर चुनाव आयोग की कड़ी नजर रहेगी और सुरक्षा बलों का कड़ा पहरा भी रहेगा।
कर्नाटक में सरकार बनाने के लिए एक पार्टी या गठबंधन को कम से कम 113 सीटें जीतने की जरूरत है। कुल 224 सीटों में से 36 सीटें अनुसूचित जाति और 15 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। वर्तमान में यहां पर भाजपा के पास 119 विधायक हैं। कांग्रेस के पास 75 विधायक हैं। जेडीएस के पास 28 सीटें हैं। और यही तीन दल हैं, जो कर्नाटक में अपना महत्वपूर्ण किरदार अदा करते हैं। इस बार भी क्या स्थिति बनती है, उसके मुताबिक तीनों दलों की भूमिका तय होगी। अगर संख्या बल में ऊपर-नीचे रहा, तो जेडीएस को बल्लेबाजी करने का पूरा मौका मिलेगा।
वैसे कर्नाटक में इस बार लोकसभा की सदस्यता खो चुके राहुल-प्रियंका एक तरफ और सत्ता के शिखर पर विराजमान मोदी-शाह दूसरी तरफ हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने भी कर्नाटक के मतदाताओं से कमल खिलाने की अपील की है। फिलहाल लोकतंत्र के इस उत्सव पर खुशी तो किसी एक ही दल को मिलेगी और दूसरा दल खेल भावना से यह स्वीकार करने को मजबूर होगा। जिस तरह नाटक का अंत सुखांत या दुखांत कुछ एक होता है, पर यहां परिणाम किसी के लिए सुख की सत्ता लाएंगे तो किसी को दुखी करेंगे। पर जहां आज खामोशी है। तीन दिन बाद वह “कर नाटक” जीतेगा, यह तय है…।