Silver replica of petrol pump offered to sawaliya seth : मन्नत पूरी होने पर भक्त ने चढ़ाया चांदी का पेट्रोल पंप

मप्र के श्रद्धालु ने अपना बंद पेट्रोल पंप फिर से चालू होने पर चांदी से बनी पंप की आकृति सांवरिया सेठ मंदिर में भेंट की।

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Silver replica of petrol pump offered to sawaliya seth : मन्नत पूरी होने पर भक्त ने चढ़ाया चांदी का पेट्रोल पंप

निम्बाहेड़ा से सचिन सोनी की रिपोर्ट

Nembaheda : राजस्थान के चित्तौड़गढ़ स्थित सांवलिया सेठ मंदिर में मध्य प्रदेश के नागदा निवासी युवा कारोबारी लखन जायसवाल ने चांदी से बना पेट्रोल पंप चढ़ाया। दरअसल लखन जायसवाल ने अपने बंद पड़े पेट्रोल पंप के दोबारा चालू होने की मन्नत मांगी थी और कुछ समय बाद उन्हें दोबारा लाइसेंस मिल गया। लिहाजा पेट्रोल पंप फिर से चालू होने पर उन्होंने 1 किलो 83 ग्राम चांदी से बना पेट्रोल पंप सांवलिया सेठ को चढ़ाया है।

बीते कल लखन जायसवाल अपने परिवार के साथ चित्तौड़गढ़ से उदयपुर की और राष्ट्रीय राजमार्ग पर 28 किमी दूरी पर भादसोड़ा ग्राम स्थित सांवलिया सेठ मंदिर आए और मंदिर में चांदी से बने दो पेट्रोल पंप भेंट किए जिसमें एक पेट्रोल पंप और एक डीजल पंप है। मंदिर प्रबंधन ने उनका स्वागत करते हुए उनकी भेंट को स्वीकार कर रसीद भी प्रदान की। बता दें कि लखन जायसवाल का नागदा में एक पेट्रोल पंप था जो डेढ़ साल से बंद पड़ा था।

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लखन की तमाम कोशिशों के बावजूद भी उन्हें दोबारा लाइसेंस नहीं मिल रहा था। अंत में लखन जायसवाल सांवलिया सेठ की शरण में गए। बीते दिनों वह सांवलिया सेठ मंदिर आए और पेट्रोल पंप फिर से चालू करने की मन्नत मांगी। मजे की बात यह कि इसके कुछ ही दिनों बाद उन्हें दोबारा लाइसेंस मिल गया और उनका पेट्रोल पंप फिर से चालू हो गया। इस पर लखन जायसवाल ने सांवलिया सेठ पर यह चांदी का पेट्रोल पंप चढ़ाया है।

सांवलिया सेठ मंदिर के बारे में मान्यता है कि जो भक्त खजाने में जितना देते हैं सांवलिया सेठ उससे कई गुना ज्यादा भक्तों को वापस लौटाते हैं। सांवलिया सेठ की व्यापार जगत में इतनी ख्याति है कि लोग अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए उन्हें अपना बिजनेस पार्टनर बनाते हैं।

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यदि आप सांवलिया सेठ मंदिर के बारे में नहीं जानते हैं तो आपको बता दें कि भगवान श्री सांवलिया सेठ का संबंध मीरा बाई से है।

किवदंतियों के अनुसार, सांवलिया सेठ ही मीरा बाई के गिरधर गोपाल हैं,जिनकी वह पूजा करती थी और संत महात्माओं के बीच इन मूर्तियों के साथ घूमती थी। यह भी बता दें कि यह मूर्तियां दयाराम नामक संत के पास रह गई थीं। जब औरंगजेब की सेना मंदिरों में तोड़-फोड़ कर रही थी, तब मेवाड़ में पहुंचने पर मुगल सैनिकों को इन मूर्तियों के बारे में पता लगा और वे इसकी तलाश करने लगे।

कहा जाता है कि मुगलों के हाथ लगने से पहले ही संत दयाराम ने इन मूर्तियों को बागुंड-भादसौड़ा की छापर में एक वट-वृक्ष के नीचे गड्ढा खोदकर छुपा दिया था। कालांतर में सन 1840 में मंडफिया ग्राम निवासी भोलाराम गुर्जर नाम के ग्वाले को सपना आया कि भादसोड़ा-बागूंड गांव की सीमा में भगवान की तीन मूर्तियाँ जमीन मे दबी हुई हैं। जब उस जगह पर खुदाई कराई गई तो सपना सही निकला और वहां से एक जैसी तीन मूर्तियाँ प्रकट हुईं। सभी मूर्तियां बहुत ही मनोहारी थी।यह खबर फैलने पर लोग यहां पहुंचने लगे और मंदिर का निर्माण हो गया। आज यहां देश भर सहित मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र से श्रद्धालु अपनी मन्नत लेने और पूर्ण हो जाने पर खुशी खुशी उतारने के लिए यहां पहुँचते  हैं।