Silver Screen : हर जगह मनोरंजन यानी ‘वेब सीरीज’

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Silver Screen

कई सालों तक हमारे मनोरंजन का माध्यम सिर्फ सिनेमा रहा! जब भी किसी को लगता कि वो शारीरिक और मानसिक रूप से थक गया है और उसे मूड बदलने की जरुरत है, उसके कदम सिनेमा की तरफ मुड़ जाते थे।
फिर आया टेलीविजन का दौर। 80 के दशक के मध्य से टीवी ने अपने पंख फैलाए और घर के सदस्यों को एक कोने तक समेट दिया। तब से अभी तक टीवी की दुनिया में बहुत कुछ बदला। फिर मोबाइल में फोन करने और सुनने के अलावा नए विकल्प खुले।
दुनिया डिजिटल हुई तो घर के कोने में रखा बड़ा टीवी साढ़े पांच 5 के मोबाइल में समा गया! टीवी के दर्शक मोबाइल तक पहुँच गए। लेकिन, डिजिटल का अपना अलग आनंद है।
Silver Screen
यहीं से उपजा मनोरंजन का नया माध्यम ‘वेब सीरीज!’ अब आप कभी भी, कहीं भी मोबाइल फोन या लैपटॉप जरिए वेब सीरीज तक जा सकते हैं।
टीवी पर जब तक सैटेलाइट चैनल नहीं आए थे, दर्शक दूरदर्शन के कार्यक्रम देखने को मजबूर थे। सैटेलाइट चैनलों ने दूरदर्शन को रेस से बाहर कर दिया।
सैटेलाइट चैनल जब गांव पहुंचे, तो पूरा परिदृश्य ही बदल गया। लेकिन, वेब मनोरंजन ने सबको पीछे छोड़ दिया।  अब तो मोबाइल स्क्रीन में सिनेमा भी दिखने लगा है। जिसके हाथ में मोबाइल होगा, वहीं उसका मनोरंजन भी होगा।
देखा जाए तो अब सिनेमा का आकार भी बड़ा होने लगा। भव्यता वाला सिनेमा ही दर्शकों को सिनेमाघरों में दर्शकों को खींच पाएगा। क्योंकि, आज के सिनेमा को वेब सीरीज से सीधी चुनौती मिलने लगी।
अब वे फ़िल्में नहीं चलेंगी, जिनका कंटेंट घटिया और प्रोडक्शन वैल्यू कम होगी। फिल्मकारों पर भव्य सिनेमा दिखाने का दबाव बढ़ा है।
लेकिन, ऐसी कहानियां नहीं हैं, जिनपर भव्य सिनेमा बनाया जा सके। यही कारण है कि इन दिनों इतिहास में से कहानियां खोजी जा रही है। वेब सीरीज के दर्शक बढ़ने से फिल्म बनाने वालों पर नई और बांधे रखने वाली कहानियों का खासा दबाव बढ़ा है।
अब वही मनोरंजन बिकेगा, जो नया होने के साथ मोबाइल पर भी दिखेगा! वेब सीरीज की बढ़ती लोकप्रियता से टेलीविजन पूरी तरह अप्रासंगिक हो जाएगा, ये तय है। नई पीढ़ी को आप अपनी पसंद का मनोरंजन चाहिए!
अब वो पूरे परिवार के साथ एक कमरे में बैठकर टीवी देखना पसंद नहीं करता। पूरा परिवार अब एक सीरियल देखने के लिए भी मजबूर नहीं है। क्योंकि, अब मनोरंजन पर्सनलाइज जो हो गया है।
    बड़े और छोटे परदे के बीच मनोरंजन का ये नया माध्यम मोबाइल की स्क्रीन पर उभरा है। ये गाने, गेम्स या फिल्में नहीं, बल्कि कथानकों की चुस्त सीरीज हैं। यानी सीरियल नुमा छोटे-छोटे एपिसोड्स, जो सिर्फ ऑनलाइन ही उपलब्ध होते हैं।
उन्हें मोबाइल, टैब या कंप्यूटर पर ही देखा जा सकता है। ये सीरीज आज का यूथ बेहद पसंद करता है। इसका ट्रेंड इतनी तेजी से बढ़ा कि टीवी और फिल्मों के कई बड़े प्रोडक्शन हाउस भी वेब सीरीज बनाने में जुट गए।
अमेरिका में वेब सीरीज का चलन 2003 से है। लेकिन, हमारे देश में ये शुरुआती दौर हैं और इनके सब्जेक्ट यूथ तक सीमित हैं। लेकिन, उम्मीद की जा रही है कि भविष्य में वेब सीरीज में हर किसी के लिए कुछ न कुछ होगा।
इसमें दर्शकों के लिए मनोरंजन है, तो प्रोडक्शन हाउस के लिए पैसा भी! इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि यशराज, इरोज-नाऊ और बालाजी जैसे कई बड़े प्रोडक्शन हाउस वेब सीरीज बनाने लगे।

कई कंपनियां तो फिल्म और टीवी के कंटेंट को सीरीज बनाकर मोबाइल पर ले आई!

अमेरिकी घरों में फिल्म और सीरियल पहुंचाने वाली कंपनी ने अनुराग कश्यप की ‘गैंग्स आफ वासेपुर’ को भी वेब सीरीज में तब्दील कर अंतरराष्ट्रीय दर्शकों तक पहुँचा दिया। ‘यशराज’ भी अपनी फिल्मों को इसी तरह उतारने की तैयारी में है।
समझा जा रहा है कि वेब सीरीज की पहुँच बहुत तेजी बढ़ेगी, क्योंकि कई कंपनियां इनमें बिजनेस की संभावनाएं देख रही हैं। इसे वेब क्रांति का नाम भी दिया जा रहा। जैसे-जैसे वेब सीरीज के दर्शक बढ़ेंगे, उतनी ही तेजी से इसका बिजनेस बढ़ेगा।
फिलहाल डिजिटल विज्ञापन का बाजार करीब 6 हज़ार करोड़ रुपए से ज्यादा का है। वेब सीरीज को मिलने वाले विज्ञापनों से अब ये बाजार तेजी से बढ़ा है। युवा दर्शकों को हमेशा कुछ नया चाहिए और वेब सीरीज में उन्हें वो मिल रहा है।
स्वाभाविक है कि इसके दर्शक तो बढ़ेंगे ही। लेकिन, वेब सीरीज के कंटेंट को हमेशा ताजा बनाकर रखना भी जरुरी है।
क्योंकि, वेब या मोबाइल पर दर्शक का पूरा कंट्रोल होता है।
वह मर्जी से अपना मनोरंजन चुन सकता है। कंटेंट जरा भी पसंद से उतरा तो दर्शक पलट जाएगा।  फिल्म और टीवी के अलावा मनोरंजन के इस नए माध्यम के बढ़ने का सबसे बड़ा कारण इसकी आसान उपलब्धता है, जो समय की बाध्यता से भी मुक्त है।
अब वेब सीरीज भी युवाओं की पसंद को ध्यान में रखकर बनाई जा रही हैं। लेकिन, भविष्य में ये दौर बदलेगा और हर उम्र को ध्यान में रखकर काम होगा। वेब सीरीज का टारगेट फिलहाल युवा केंद्रित है, इसलिए इसकी भाषा में खुलापन ज्यादा है।
इसलिए इसे पारिवारिक मनोरंजन नहीं कहा जा सकता। लेकिन, मोबाइल पर होने से यह माध्यम निजी मनोरंजन से जुड़ा है और दर्शक अपनी समझ से कंटेंट का चुनाव कर सकते हैं।
इसे फिल्म या टीवी का विकल्प समझना भी गलती होगी। वास्तव में वेब सीरीज की असली टक्कर तो अपने आपसे है। यदि दर्शकों को बेहतर कंटेंट मिलता रहा तो वे इसमें बंध जाएंगे। यदि ऐसा नहीं हुआ तो वेब सीरीज के दर्शकों के दिमाग से उतरने में देर नहीं लगेगी।
Author profile
हेमंत पाल

चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।

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