Silver Screen: दुश्मन देश के खिलाफ दो दशक बाद जारी है ‘ग़दर!’

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Silver Screen: दुश्मन देश के खिलाफ दो दशक बाद जारी है ‘ग़दर!’

कुछ फ़िल्में अप्रत्याशित रूप से सफल हो जाती है। उनसे जितनी उम्मीद नहीं होती वे उससे ज्यादा छलांग मार देती है। ऐसी फिल्म में शाहरुख़ खान की ‘पठान’ के बाद अब ‘ग़दर-2’ को रखा जा सकता है, जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर अपनी सफलता के झंडे गाड़ दिए। जबकि, कई बार बड़ी सफलता दावा करने वाली फ़िल्में कब फ्लॉप होकर गायब हो जाती है, पता भी नहीं चलता। सनी देओल अपनी नई फिल्म ‘ग़दर-2’ से एक बार फिर दर्शकों के दिलों पर छा गए। सनी के लिए ये दौर 22 साल बाद आया। इस फिल्म के पहले भाग ने पड़ौसी देश के प्रति दर्शकों में जो आक्रोश दिखाया था, वह फिर लौट आया। जबकि, दो दशक में एक नई पीढ़ी वयस्क होकर सिनेमाघरों तक पहुंच गई। इन सालों में दुनिया में भी बहुत कुछ बदला। सोच के साथ जीने का ढंग और राष्ट्र प्रेम की परिभाषा भी बदली। पर, जो नहीं बदला वो है पाकिस्तान लोगों की प्रति नफरत।

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जब ‘ग़दर : एक प्रेमकथा’ 2001 में परदे पर आई थी, तब फ़िल्म के कुछ सीन पर कुछ शहरों में हिंसा हुई थी। ये भी कहा गया था कि ये फ़िल्म राष्ट्रवाद, मजहब और पहचान के मुद्दों को लेकर भ्रम फैलाती है। लेकिन, बंटवारे के दर्द को सही ढंग से नहीं दिखाती। ये भी कहा गया कि ये इसे उकसाने वाली फिल्म कहा गया, जो मुसलमानों को परायों की तरह पेश करती है। वास्तव में ये सोच आज की है, जबकि बंटवारे के दौर को भोगने वाले आज भारत में भी हैं और पाकिस्तान में भी। उस समय नफरत की वजह लंबी चली हिंसा थी। ये हिंसा कहां से, क्यों और कैसे भड़की इसका खुलासा कभी नहीं हुआ। लेकिन, बंटवारे के दौर में जिन्होंने उस दर्द भोगा है, वो आज भी हैं और उनकी आंखों में वो सब तैरता है।

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फ़िल्म को लेकर आज भी लोगों की राय बंटी हुई है। लेकिन, दो दशक पहले इस फिल्म ने कमाई के रिकॉर्ड तोड़े थे। अब, जब सीक्वल बना तो फिर इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस झंडे गाड़ दिए। जब पहली वाली ‘ग़दर’ रिलीज हुई थी, तब लोगों के दिमाग में कारगिल युद्ध की यादें ताजा थी। लेकिन, अभी ऐसा कोई माहौल नहीं है, फिर भी पड़ौसी देश के प्रति नफरत का गुबार नहीं थमा। दोनों देशों की सीमा पर भले शांति हो, पर लोगों के दिलों में नफरत की जो आग 75 साल से भड़क रही है, वो अभी ठंडी नहीं हुई और ऐसी फिल्मों से बुझे अंगारे फिर भड़क जाते हैं। 22 साल पहले ‘ग़दर’ के साथ आमिर खान की ‘लगान’ भी रिलीज हुई थी। दोनों की कहानी राष्ट्रप्रेम से लबरेज जरूर थी, पर दोनों का ट्रीटमेंट बिल्कुल अलग था। ‘लगान’ की राष्ट्रभक्ति में एकता और इमोशन का तड़का लगा था। उसमें क्रिकेट को देशप्रेम का हथियार बनाया गया। जबकि,इससे अलग ‘ग़दर’ की राष्ट्रभक्ति में आक्रामकता और प्रेम की तड़फती हुई कहानी भी पनप रही थी।

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इस सीक्वल फिल्म की सफलता से ये भी लगता है कि इतने सालों बाद भी दोनों देशों में नफ़रत रत्तीभर भी कम नहीं हुई। पहले वाली ‘ग़दर’ में जब सनी देओल चीखते हुए डायलॉग बोलते हैं कि ‘हिंदुस्तान जिंदाबाद था, हिंदुस्तान जिंदाबाद है और हिंदुस्तान जिंदाबाद रहेगा’ तो सिनेमा हॉल में बैठे दर्शकों की भुजाएं भी फड़कने लगती है और देशप्रेम कुंचाले भरने लगता है। लेकिन, जब सनी दुश्मनों से घिरने पर हेंडपम्प उखाड़ते हैं, तो जैसे दर्शकों का खून खौल जाता है। ‘ग़दर-2’ में भी दर्शक यही सब देखने गए थे और उन्हें देखने को भी मिला। यही कारण है कि दर्शकों ने फिल्म को सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एक गौर करने वाली बात ये कि दोनों ही फ़िल्में सनी देओल के कंधे पर चढ़कर ही सफलता की पायदान चढ़ी। दर्शकों ने दोनों ही फिल्मों में हीरोइन अमीषा पटेल को तो थोड़ा बहुत नोटिस किया, पर ‘ग़दर-2’ की नई जोड़ी दर्शकों की नजर में नहीं चढ़ सकी। सनी देओल ने अपने बेटे करण देओल को लांच करने के लिए जरूर कोशिश की, पर उसे पहचाना भी नहीं गया। पहले वाली ‘ग़दर’ की तरह इस बार की दूसरी ‘ग़दर’ में भी जलवा सनी का ही चला।

एक स्वाभाविक बात यह भी है कि जब पहले वाली फिल्म ने आसमान फाड़ सफलता पाई, तो फिर इसके सीक्वल के लिए इतना लंबा इंतजार क्यों किया गया। इस सवाल का जवाब खुद सनी देओल ने ही दिया। उनका जवाब हैरान करने वाला तो है, पर यही सच भी है। फिल्म के प्रमोशन के लिए इंदौर आए सनी देओल ने कहा कि ‘गदर-2’ को बनने में 22 साल इसलिए लग गए कि ‘गदर’ फिल्म बहुत प्यारी है। मैं इसे छेड़ना नहीं चाहता था। लेकिन, जनता चाहती थी कि ‘गदर’ का पार्ट-टू बने। कोरोनाकाल के दौरान समय मिला तो उसे सही दिशा में उपयोग किया और ‘गदर-2’ तैयार हो गई। सनी का कहना था कि कुछ लोगों ने भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ाने का काम किया है। पर, इससे जनता को फर्क नहीं पड़ता। मुझे लगता है कि दुनिया भी अब इस लड़ाई से थक गई होगी। कोई नहीं चाहता कि एक भी जवान शहीद हो। जब देश की बात आ जाती है, तो आदमी के अंदर जोश आ जाता है। तब, आदमी वही करेगा जो होना चाहिए, लेकिन हर आदमी चाहता है कि प्यार से जिएं। क्योंकि, जिंदगी जीने के लिए है लड़ने के लिए नहीं। सनी ने आगे कहा कि 22 साल पहले जब ‘गदर’ आई थी, तब मुझे लगता था कि यह जीरो जाएगी। लेकिन, लोगों का प्यार मिला और फिल्म दर्शकों के दिलों में बैठ गई। जनता ने ही उसे हिट किया और वही प्यार 22 साल बाद ‘गदर-2’ के लिए भी देखने को मिला।

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भारत-पाकिस्तान को लेकर बरसों से फ़िल्में बन रही है। जाने-माने फिल्मकार यश चोपड़ा ने भी दोनों पड़ौसी देशों को केंद्र में रखकर कई संवेदनशील फ़िल्में बनाई। ‘धूल का फूल’ और ‘धर्मपुत्र’ काफी पहले बनाई थी। ‘धर्मपुत्र’ ऐसे हिंदू युवक की कहानी थी, जो बंटवारे से पहले उन लोगों के साथ मिलकर काम करता है, जो चाहते हैं कि मुसलमान भारत छोड़कर चले जाएं। बाद में पता चलता है कि हिंदू परिवार में पले-बढ़े इस युवक के असली मां-बाप तो मुसलमान ही हैं। इसके बाद उन्होंने ‘धर्मपुत्र’ बनाई, जिसे लेकर सेंसर बोर्ड संशय में था कि इसे पास किया जाना चाहिए या सुधार की जरुरत है। तब, यश चोपड़ा अपने भाई बीआर चोपड़ा को लेकर पं जवाहरलाल नेहरू से मिले और उनसे फ़िल्म देखने का अनुरोध किया। उन्होंने फिल्म देखी और सुझाव दिया कि इसे हर कॉलेज में दिखाया जाना चाहिए। लेकिन, अब इस तरह का समरसता का दौर नहीं रहा, जब इतनी सहिष्णुता की उम्मीद की जाए। इसके बावजूद इस दौर में भी यश चोपड़ा ने भारत-पाकिस्तान के दो किरदारों को जोड़कर ‘वीर जारा’ जैसी प्रेम कहानी बनाई और उसे पसंद भी किया गया।

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‘ग़दर-2’ की सफलता का एक सकारात्मक पक्ष ये भी है कि इसने सीक्वल फ़िल्में बनाने की हिम्मत करने वालों में नया जोश भर दिया। अभी तक सीक्वल फिल्मों को सफलता को परफेक्ट फार्मूला नहीं माना जाता है। ऐसी कई फिल्मों के नाम गिनवाए जा सकते हैं जिनका सीक्वल पसंद नहीं किया और फ़िल्में औंधे मुंह गिरी। लेकिन, ‘ग़दर-2’ के हिट होने से ये दरवाजे पूरे खुल गए। इसके अलावा ‘ओएमजी-2’ ने भी बॉक्स ऑफिस पर कमाल दिखा दिया। सलमान खान की टाइगर, ऋतिक रोशन की कृष और धूम सीरीज भी आने वाली है। इसलिए कहा जा सकता है कि फिल्म कारोबार के लिए ये एक अच्छा संकेत है। इसके साथ ही सनी देओल भी उन एक्टर की कतार में खड़े हो गए, जिनका जादू अभी चुका नहीं। साठ साल से ज्यादा की उम्र में भी उनका हथौड़ा असर दिखा रहा है।

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हेमंत पाल

चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।

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