Silver Screen: ‘पठान’ की सफलता से मिले खनखनाते सबक!

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Silver Screen: ‘पठान’ की सफलता से मिले खनखनाते सबक!

शाहरुख़ खान की फिल्म ‘पठान’ इन दिनों बड़ा मुद्दा है। जबकि, सामान्यतः किसी फिल्म के साथ ऐसा नहीं होता! पर, इस फिल्म के साथ बहुत कुछ ऐसा हुआ, जिसने इसे केंद्र में ला दिया। दरअसल, ये फिल्म एक सबक है और लक्ष्य तक पहुंचने की जिद का नतीजा भी! सबक उनके लिए जो इस फिल्म का विरोध करके अपनी राजनीतिक रोटी सेंकना चाह रहे थे। उनका विरोध उल्टा पड़ गया और फिल्म ने सफलता के झंडे गाड़ दिए। क्योंकि, उस विरोध में हर व्यक्ति शामिल नहीं था। दूसरा सबक यह कि फिल्म के साथ धर्म को जोड़ना खतरनाक प्रयोग है। जहां तक शाहरुख की बात है, तो उसने भांप लिया था कि फिल्म को लेकर हुआ विरोध नकारात्मक नतीजा नहीं देगा, वही हुआ भी। इस पूरे मामले में सूचना और प्रसारण मंत्रालय की गलती ये रही कि उसने फिल्म के विरोध के बीच सेंसर बोर्ड की भूमिका को स्पष्ट नहीं की, जो की जाना थी।

Silver Screen: 'पठान' की सफलता से मिले खनखनाते सबक!

कोई फिल्म अपनी रिलीज से पहले कितनी चर्चा में रह सकती है, ‘पठान’ ने उस ऊंचाई पर जाकर निशान लगा दिया। अपने एक गाने के कारण ही ये फिल्म चर्चा में नहीं आई, इसके पीछे भी कई दबे-छुपे कारण हैं। सबसे बड़ा कारण यह कि इस फिल्म का हीरो शाहरुख़ खान है! उसे निशाना बनाने के लिए हिंदूवादियों ने फिल्म के एक गाने की आड़ ली। ऐसे दृश्यों पर उंगली उठाई गई, जो हर दूसरी फिल्म में देखने को मिल जाते हैं। जिस भगवा रंग के गलत इस्तेमाल को हथियार बनाया गया, वो भी अतार्किक ही कहा जाएगा। क्योंकि, किसी भी रंग पर किसी पार्टी या विचारधारा वालों का कब्ज़ा होता नहीं! फिर भी इस बात को तूल दिया गया। दरअसल, सारा विरोध शाहरुख़ और फिल्म की हीरोइन दीपिका पादुकोण को लेकर था। हिंदू विचारधारा को थोपने वालों को शाहरुख़ से विरोध क्यों है, ये जगजाहिर है! दीपिका को वे अलग विचारधारा से जोड़कर देखते हैं। पर, अंततः जो नतीजा सामने आया, वो झटका देने वाला था। फिल्म ने सफलता का वो आंकड़ा छू लिया, जिसकी कल्पना इस फिल्म को बनाने वालों को भी नहीं की होगी। कहा जा सकता है कि फिल्म के प्रति उत्सुकता जगाने में इसकी निगेटिव पब्लिसिटी का बहुत बड़ा हाथ रहा। यदि ये सब नहीं होता, तो शायद ‘पठान’ आसमान नहीं छूती!

इतने विरोध, हंगामे और बहिष्कार के बाद भी ‘पठान’ की सफलता इस बात का सुबूत है, कि लोग अब धार्मिक बहस से ऊब चुके। वे अब शांति और सद्भाव चाहते हैं। मानवीय स्वभाव भी है, कि लोग लंबे समय तक एक जैसा माहौल पसंद नहीं करते। ‘पठान’ की सफलता के बहाने ऐसे कई सवालों का जवाब मिल गया। अब इस बात पर बहस हो सकती है कि आखिर ‘पठान’ को दर्शकों ने क्यों पसंद किया! शाहरुख़ खान की अदाकारी कारण, उसकी चुस्त पटकथा से या उसके साथ जुड़े विवादों ने! क्योंकि, फिल्म का टीजर (ट्रेलर का भी छोटा रूप) रिलीज होते ही जिस तरफ बवाल मचा, उससे फिल्म को लेकर एक हवा बन गई थी। लोगों ने यह भी सोचा कि आखिर विरोध करने वालों ने टीजर में ऐसा क्या देख लिया कि सड़क पर उतर आए! फिल्म के बॉयकॉट की मांग उठने लगी थी, पर जो हुआ वो अद्भुत ही कहा जाएगा।

Silver Screen: 'पठान' की सफलता से मिले खनखनाते सबक!

ये नहीं कहा जा सकता कि रिलीज के बाद सबकुछ थम गया। आग भले बुझ गई हो, पर सुलगन जारी रही। ‘पठान’ के रिलीज होने वाले दिन कई जगह फिल्म के पोस्टर फाड़े गए। कुछ जगह शो भी कैंसिल हुए। कुछ शहरों में सांप्रदायिक सद्भाव भी प्रभावित हुआ। पर, जब फिल्म की सफलता आंकड़ों में आसमान छूने लगी, तो सब शांत हो गया। विरोध के बाद फिल्म के हिट होने का उदाहरण पहले भी हुआ, पर ऐसा शायद नहीं! आमिर खान की फिल्म ‘पीके’ को लेकर भी आक्रोश उपजा था। 2014 में आई इस फिल्म का भी हिंदूवादी संगठनों ने विरोध किया। काफी विरोध के बाद ‘पीके’ रिलीज़ हुई और उसने बॉक्स ऑफिस पर धमाल कर दिया। ‘पीके’ ने कुल 854 करोड़ का कारोबार किया। जबकि, इसका विरोध भी ज़बरदस्त हुआ था। विरोध झेलने वाली फिल्मों में ‘पद्मावत’ भी थी। मलिक मुहम्मद जायसी की कहानी पद्मावती’ पर बनी इस फिल्म के खिलाफ भी आवाज उठी। शूटिंग के दौरान तोड़फोड़ की गई। बड़ी मुश्किल से नाम में थोड़ा हेरफेर करके फिल्म रिलीज हुई। लेकिन, जब फिल्म दर्शकों के सामने आई, तो सफलता का भूचाल आ गया। ‘पद्मावत’ ने 571 करोड़ की कमाई की। इस लिस्ट में ‘पठान’ तीसरी फिल्म है, जिसने विरोध की आग में झुलसकर सफलता का स्वाद चखा है।

Silver Screen: 'पठान' की सफलता से मिले खनखनाते सबक!

इन आंकड़ों से साबित होता है, कि विरोध हमेशा सार्थक नतीजा नहीं देता। कई बार इस तरह का विरोध फिल्म को मुफ्त की पब्लिसिटी भी देता है। देखा जाए तो ‘पठान’ को लेकर ज्यादा पब्लिसिटी नहीं हुई। न तो किसी टीवी शो में शाहरुख़ ने फिल्म का प्रचार किया और न इसे लेकर कोई प्रायोजित इंटरव्यू ही दिया। इसके बाद भी फिल्म को लेकर जो उत्सुकता जागी, उसका कारण सिर्फ उसका निरर्थक विरोध था। जबकि, यदि किसी फिल्म के समर्थन में भी लोग खड़े हों, तब भी ऐसी सफलता किसी फिल्म को नहीं मिलती! अक्षय कुमार की फिल्म ‘सम्राट पृथ्वीराज’ को हर स्तर पर प्रचारित किया गया। कई राज्यों में उसे टैक्स फ्री किया। अक्षय कुमार ने भी ज़बरदस्त प्रचार किया, मगर फिर भी फिल्म औंधे मुंह गिरी। सब जोड़कर फिल्म की बॉक्स ऑफिस पर कमाई 60 करोड़ के आसपास रही। यही कहानी ‘राम सेतु’ की भी थी। फिल्म को हर स्तर पर प्रचारित किया गया। पर, जो हुआ वो किसी से छुपा नहीं रहा! यह फिल्म कुल मिलाकर 90 करोड़ ही कमा पाई, जिससे उसकी लागत भी नहीं निकली। आशय यह कि जिस फिल्म का किसी सोच की वजह से विरोध हुआ, वह फिल्म उतनी ही सफल हुई। ‘पठान’ के एक गाने में दीपिका पादुकोण के कपड़ों के रंग को लेकर सवाल उठाए। ‘बेशर्म रंग’ गाने में दीपिका पादुकोण के भगवा रंग के कपड़ों के इस्तेमाल पर कुछ राजनीतिक लोग भड़क गए। उन्होंने ‘पठान’ को रिलीज न होने देने की भी धमकी भी दी।

Silver Screen: 'पठान' की सफलता से मिले खनखनाते सबक!

शाहरुख़ खान को फिल्म इंडस्ट्री का संकट मोचक कहा जाता है। 80 के दशक में जब वीडियो कैसेट के आने के बाद फिल्म इंडस्ट्री बर्बाद होने वाली थी, तब शाहरुख़ ही ऐसे कलाकार थे जिन्होंने इंडस्ट्री को उबारा। उसी शाहरुख़ ने एक बार फिर इंडस्ट्री को संकट से निकाला। कोविड काल के बाद मनोरंजन के इस माध्यम की जो हालत हुई, वो किसी से छुपी नहीं है। कई थिएटर बंद हो गए, कलाकारों के पास काम नहीं बचा, फिल्मों का स्तर गिर गया। साउथ की रीमेक का सहारा लेकर फिल्में बनने लगी। ऐसे में लोगों ने ‘बायकॉट बॉलीवुड’ ट्रेंड शुरू कर दिया। ऐसे माहौल में एक बार फिर शाहरुख खान ने बॉलीवुड की नैया पार लगाई। ‘पठान’ जैसी सुपरहिट फिल्म देकर दर्शकों को जता दिया कि हिंदी सिनेमा अभी मरा नहीं है। देश के 25 सिंगल स्क्रीन थिएटर जो कोरोना के बाद बंद हो गए थे, उनमें फिर रौनक लौट आई।

यह कहना गलत नहीं होगा कि ‘पठान’ को बॉलीवुड की नहीं, बल्कि बॉलीवुड को ‘पठान’ की जरूरत ज्यादा थी। जिस तरह 90 के दशक में वे रोमांस के बादशाह बनकर उबरे थे। अब उन्होंने 57 साल की उम्र में एक्शन करके साबित कर दिया कि वे अभी चुके नहीं है। शाहरुख़ ऐसे कलाकार हैं, जो हर रोल में फिट बैठते हैं। शाहरुख करीब चार साल बाद परदे पर दिखाई दिए। ‘जीरो’ के फ्लॉप होने के बाद शाहरुख खान के करियर पर सवाल उठाना शुरू हो गए थे। यह भी कहा जाने लगा था कि अब उन्हें रिटायरमेंट लेना चाहिए। ऐसे माहौल में ‘पठान’ से उनकी वापसी ने इतिहास बनाने के साथ उन लोगों के मुंह पर ताले लगा दिए, जो उन पर उंगली उठा रहे थे।

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हेमंत पाल

चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।

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