Silver Screen: सिनेमा में कई बार बांची गई चिट्ठियां!
अब न तो चिट्ठी लिखने वाले बचे और न चिट्ठियों का इंतजार करने वालों का समय रहा! संचार तकनीक ने दुनिया को बहुत छोटा कर दिया। आज पलक झपकते ही वो संदेशे दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंच जाते हैं, जिसके लिए कभी दिनों और हफ़्तों इंतजार करना पड़ता था। लेकिन, वो भी अनोखा समय था, जब भावनाएं हर्फों की शक्ल में कागज़ पर उतरकर कई हाथों में पहुंचते हुए ठिकाने तक पहुंचती थी। चिट्ठी-पतरी का भी अपना अलग ही इतिहास रहा। ख़ुशी, गम, सूचना, संदेश, रिश्तेदारी और हर बात के लिए सिर्फ चिट्ठी ही विकल्प था! सरकार का एक पूरा विभाग इस काम में लगा था, जिसका सबसे अहम किरदार होता था ‘डाकिया’ जो चिट्ठी को घर के दरवाजे पर देकर आता था। इसी चिट्ठी की अहमियत को फिल्मों ने भी समझा और कई फिल्मों में इसे अलग-अलग रूपों में उपयोग किया गया। फिल्मों के नाम और कथानक का हिस्सा बनाने के अलावा कई फिल्मों के गीतों में भी चिट्ठी को शामिल किया गया। कई ऐसी भी फ़िल्में हैं, जिनमें चिट्ठी की वजह से कहानी में मोड़ आया।
जहां तक हिन्दी फिल्मों में चिट्ठी या खत पर आधारित शीर्षकों का सवाल है, तो राजेश खन्ना का करियर ही ‘आखिरी खत’ फिल्म से शुरू हुआ था। 1962 में शशि कपूर और साधना की फिल्म ‘प्रेमपत्र’ ने भले ही दर्शक ज्यादा नहीं बटोरे हों, लेकिन इसके शीर्षक ने काफी सुर्खियां बटोरी थी। 1985 में आई फिल्म ‘एक चिट्ठी प्यार भरी’ में राज बब्बर और रीना राय के बीच प्यार का सिलसिला चिट्ठियों से ही शुरू होता है। 1991 में आई विवेक मुशरान और मनीषा कोइराला की फिल्म ‘फर्स्ट लव लेटर’ ऐसी थी, जिसे पढ़ने कोई दर्शक नहीं पहुंचा। अनिल कपूर की फिल्म ‘चमेली की शादी’ में बच्चों के मार्फ़त चिट्ठी का आदान-प्रदान होता है। संजय कपूर और प्रिया गिल अभिनीत रोमांटिक ड्रामा फिल्म ‘सिर्फ तुम’ (1999) में दीपक और आरती की लव स्टोरी भी इसी चिट्ठी से ही होती है। दोनों एक-दूसरे से अंजान होते हुए भी बेहद करीब आ जाते हैं। 1991 में आई ऋषि कपूर, अश्विनी भावे और जेबा बख्तियार की फिल्म ‘हिना’ में चिट्ठियों का विशेष महत्व दिखाया गया। इस फिल्म का गाना ‘चिट्टियां दर्द फिराक वालिए’ के जरिए एक प्रेमिका अपने जेल में बंद प्रेमी से बातचीत करती थीं। फिल्म ‘लंच बॉक्स’ दो अजनबियों की एक ऐसी अनोखी प्रेम कहानी है, जिसमें एक शादीशुदा महिला और रिटायरमेंट की दहलीज पर खड़ा एक शख्स ‘लंच बॉक्स’ में छिपाकर भेजे जाने वाले ‘चिट्ठियों’ के जरिए एक दूसरे को जानते हैं और प्यार कर बैठते हैं।
फिल्म ‘कुछ कुछ होता है’ में टीना (रानी मुखर्जी) की मौत के बाद उसकी बेटी अंजलि (सना सईद) को उसके हर जन्मदिन पर उसका एक खत मिलता है, जिसमें मां-बेटी के बीच की बहुत सारी बातें लिखी होती हैं। टीना ने वो खत नहीं लिखे होते तो क्या होता! क्या राहुल (शाहरुख खान) और अंजलि (काजोल) फिर कभी मिल पाते! राजश्री प्रोडक्शन के बैनर तले बनी फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ में सलमान और भाग्यश्री के बीच कबूतर के जरिए बातचीत होती थी। कबूतर उनके बीच संदेशवाहक का काम करता है और प्रेम पत्र एक-दूसरे तक पहुंचाता है। इस फिल्म के जरिए संदेश के महत्व को बहुत ही अनोखे तरीके से समझाया गया था। आरके नारायण के टीवी शो ‘मालगुडी डेज’ में वैसे तो कई कहानियां थीं। लेकिन, शो के 29वें एपिसोड में चिट्ठियों के खास महत्व को दिखाया गया।
फिल्मों में चिट्ठियों पर आधारित सीक्वेंस जितने ज्यादा मशहूर हुए, इस पर आधारित गाने भी बहुत पसंद किए गए! कभी प्यार बरसाने तो कभी विरह के गीत रचने के लिए फिल्मकारों ने हमेशा चिट्ठियों का सहारा लिया। गीतकार शैलेंद्र का फिल्म ‘तीसरी कसम’ के लिए लिखा गीत ‘सजनवा बैरी हो गई हमार’ बेहद चर्चित हुआ था। ‘संगम’ का गीत जिसमें राजेंद्र कुमार वैजयंती माला के नाम खत लिखते है ‘यह मेरा प्रेम पत्र पढकर’ भी पसंद किया गया। बाद में यही पत्र आगे चलकर राज कपूर और वैजयंती माला के वैवाहिक जीवन में तूफान ले आता है। खत के साथ सुगंध का सिलसिला काफी पुराना है। इसीलिए ‘सरस्वतीचंद्र’ में नूतन गाती है ‘फूल तुम्हें भेजा है खत में’ तो ‘कन्यादान’ में नायिका की याद में लिखा गया खत सितारों में तब्दील हो जाता है। इस पर तो नायक कह उठता है ‘लिखे जो खत तुझे वो तेरी याद में!’ आशा पारेख ‘आए दिन बहार के’ में ‘खत लिख दे सांवरिया के नाम बाबू’ की गुहार करती नजर आती है। 1974 में हेमा मालिनी और जितेंद्र की आई फिल्म ‘दुल्हन’ में भी चिट्ठियों के महत्व को रेखांकित किया गया। फिल्म में हेमा मालिनी पर एक गीत फिल्माया गया था ‘आएगी जरूर चिट्ठी मेरे नाम की सब देखना!’ 1977 में आई फिल्म ‘पलकों की छांव’ में जब राजेश खन्ना डाक विभाग की खाकी वर्दी पहने साइकिल पर सवार होकर ‘डाकिया डाक लाया खुशी का प्याम कहीं, कहीं दर्द नाक लाया’ गीत गाते हुए गांव में दाखिल होते हैं, तो बच्चे उनकी तरफ दौड़ पड़ते हैं। जगजीत सिंह की लोकप्रिय गजलों में से एक ‘चिट्ठी न कोई संदेश जाने है वो कौन सा देश जहां तुम चले गए’ में भी चिट्ठी की ही बात है!
गीतकार नीरज ने भी खत की महिमा को बेहद खूबसूरती के साथ पेश किया था। उन्होंने ‘प्रेम पुजारी’ में ‘फूलों के रंग से दिल की कलम से तुझको लिखी रोज पाती’ के रूप में प्रेम पत्र को नया अंदाज दिया था। फिल्म ‘खेल’ का एक गीत है ‘खत लिखना है पर सोचती हूं।’ ‘खुद्दार’ में भी इसी से मिलता जुलता गीत है ‘खत लिखना बाबू हमें खत लिखना’ गोविंदा पर फिल्माया गया था। फिल्म ‘हकीकत’ का गीत ‘होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा, ‘नाम’ का गीत ‘चिट्ठी आई है आई है आई है चिट्ठी आई है’ आज भी सुना जाता है। जेपी दत्ता की 1977 में आई फिल्म ‘बॉर्डर’ 1997 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म का गीत ‘संदेशे आते हैं हमें तड़पाते हैं, तो चिट्ठी आती है वो पूछे जाती है, के घर कब आओगे’ काफी चर्चित हुआ था। फिल्म ‘जिगर’ (1992) में नायक अजय देवगन ‘प्यार के कागज पर दिल की कलम से’ गाकर प्रेमिका के नाम खत लिखते हैं। ‘वेलकम टू सज्जनपुर’ फिल्म में महादेव का पूरे गांव के लोगों के लिए चिट्ठी लिखने का काम है। मेरे प्राणनाथ! चार दिवाली बीत गई है तुम न आए साजन, मुुंबई में क्या जोड़ लिया है और किसी से बंधन। यहां चिट्ठी की मदद से कई बेपरवाह पतियों को रास्ते पर लाया गया तो मां-बाप को भूलकर दूर देश में बैठे बेटों को अपनी जिम्मेदारी का एहसास भी कराया गया। 1969 में आई फिल्म ‘बालक’ में कवि प्रदीप ने एक बच्चे की चिट्ठी के माध्यम से देश की दुर्दशा का जिक्र करते हुए लिखा था ‘सुन ले बापू ये पैगाम मेरी चिट्ठी तेरे नाम।’
सिनेमा में चिट्ठी का महत्व केवल शीर्षकों या गीतों तक ही नहीं रहा! फिल्म के उतार-चढाव में भी चिट्ठियों का उतना ही महत्व होता है। फिल्मों में अक्सर एक दृश्य ऐसा होता है, जब नायक या नायिका रूठकर घर छोड़कर चले जाते हैं, तो टेबल पर एक चिट्ठी जरूर मिलती है। कभी कोई नायक या नायिका अपनी बेबसी की कहानी चिट्ठी के रूप में लिखकर भेजते हैं जो पाने वाले को समय पर नहीं मिलती या किसी खल पात्र द्वारा उसे छिपा दिया जाता है। फिल्म के अंत में न केवल यह चिट्ठी मिलती है, बल्कि वो नायक और नायिका को भी मिला देती है। ‘दुल्हन एक रात की’ फिल्म में भी नायिका अपने अपराधी होने की जानकारी नायक को देती है। लेकिन, यह चिट्ठी उसे नहीं मिलती! लेकिन, शादी के बाद जब नायक को नायिका के अपराधी होने की जानकारी मिलती है तो वह उसे छोड़कर चला जाता है। देवर में तो चिट्ठी पूरी कहानी ही बदल देती है। नायक अपने भाई के हाथों नायिका को चिट्ठी पहुंचाता है, तो उसका भाई ही नायिका को पसंद कर लेता है। सलमान और संजय दत्त की फिल्म ‘साजन’ मे भी कुछ ऐसा ही होता है, जब माधुरी दीक्षित संजय दत्त की चिट्ठियां को सलमान की चिट्ठी मानकर उसे दिल दे बैठती है।
विजय आनंद ने अपनी फिल्मों में चिट्ठी का सुंदर सहारा लिया। फिल्म ‘ब्लैकमेल’ का गीत ‘पल पल दिल के पास’ इन्हीं चिट्ठियों के साथ फिल्माया गया था। ‘तीसरी मंजिल’ के गीत ‘तुमने मुझे देखा’ के पहले भी आशा पारेख के हाथ में नायक की एक चिट्ठी होती है, जो उसने नायिका की बहन को लिखी थी। दोनों फिल्मों में जो चिट्ठी दिखाई गई, उसकी लिखावट खुद विजय आनंद की थी। फिल्म ‘ज्वेल थीफ’ में भी विजय आनंद ने चिट्ठी के सहारे पुलिस तक संदेशा देने का चतुराई भरा दृश्य रचा था। कई फिल्मों में अपराधी या डाकू किस्म के लोग पत्थर में चिट्ठी रखकर खिडकी का शीशा तोड़कर गंतव्य पर पहुंचाते हैं। कोई सिरफिरा नायक अपने प्यार को प्रदर्शित करने के लिए अपनी हथेली काटकर खून से चिट्ठी लिखता है। कई फिल्मों में विलेन नायिका को इन्हीं चिट्ठियो के सहारे ब्लैकमेल करते है। तो कोई चिट्ठी खोए बेटे या बेटी को मिला देती है। गोया कि चिट्ठी कोई चिट्ठी न हुई, भानुमती का पिटारा हो गया जिस पर पूरे सोलह रील की फिल्म खींचती चली जाती है और दर्शक इन चिट्ठियों की लेखनी के साथ बहते हुए मजे लेकर फिल्में देखता रहता है।
हेमंत पाल
चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।
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