Silver Screen: नए गानों की नई रफ्तार, पीछे छूटी बग्घी और कार!

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Silver Screen: नए गानों की नई रफ्तार, पीछे छूटी बग्घी और कार!

करीब ढाई दशक पहले एक फिल्म आई थी ‘अंदाज अपना अपना’ इस फिल्म का एक गाना था ‘ये लो जी सनम हम आ गए’ इस गाने के बैकग्राउंड में घोड़े की टॉप की आवाज गूंजती है। ये आवाज इस गाने को जिस तरह सपोर्ट करती है, वो सुनकर अच्छा लगता है। फ़िल्मी गीतों में ऐसे प्रयोग बरसों से होते आए हैं। ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के ज़माने से आज के दौर तक में वाहनों पर सवार होकर अलग-अलग मूड के गाने फिल्माए गए! ऐसी स्थिति में सबसे ज्यादा मूड रोमांटिक गानों का ही रहा। हीरो अपनी हीरोइन को मनाने के लिए उसका कार या बाइक से पीछा करता है। फिर दोनों मस्ती के मूड में वाहन पर सवारी करके झूम कर गाना गाते हैं। कई बार हीरो अपनी जांबाजी दिखाने के लिए गाना गाते हुए बाइक चलाता है या रिझाने के लिए उसके पीछे-पीछे आता है।

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फिल्म ‘अंदाज’ में राजेश खन्ना ने अपनी छोटी सी भूमिका में बाइक पर ‘जिंदगी इक सफर है सुहाना’ गाते हुए दिखाई दिए थे। ‘मुकद्दर का सिकंदर’ में अमिताभ बच्चन ‘रोते हुए आते हैं सब’ गाना गाते हैं, जो आज भी पसंद किया जाता है। ‘शोले’ में साइडकार वाली बाइक पर जय-वीरू की जोड़ी ‘ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे’ गाकर अपनी दोस्ती का इजहार करते हैं। कई फिल्मों में मोटर साइकिल पर गीत फिल्माए गए। यश चोपड़ा ने ‘काला पत्थर’ में शशि कपूर पर ‘इक रास्ता है जिंदगी’ फिल्माया था। वहीं, 1977 में आई ‘परवरिश’ में अमिताभ बच्चन और विनोद खन्ना ने ‘जाते हो जाने जाना प्यार का सलाम लेते जाना’ गीत के जरिए अपनी हीरोइनों के साथ रोमांस किया। 1981 में आई संजय दत्त की फिल्म ‘रॉकी’ में वे बाइक पर गाना गाते दिखाई दिए थे ‘जरा सा सिर्फ जरा सा बदनाम!’

नब्बे के दशक के बाद से बॉलीवुड में गीतों के फिल्मांकन के तौर-तरीके में जो बदलाव आया, उसके बाद से ऐसे गीतों की गुंजाइश कम हो गई। शायद इसका एक कारण यह भी रहा कि उस जमाने में कार और बाइक गिनती के घरों में होती थी। ऐसे में पर्दे पर किसी को कार या बाइक चलाते हुए गाना गाते दिखाना सिनेमाई फंतासी गढने में योगदान देता था। आज जब छोटे शहरों और कस्बों में मध्यमवर्गीय घरों के बाहर भी दोपहिया और चार पहिया वाहन खड़े होना आम बात हो गई, तब परदे पर ऐसे गीत आकर्षण का केंद्र नहीं रह गए। सड़कों पर भागते वाहनों पर फिल्माए गए गीत अक्सर जिंदगी को लेकर फलसफे सुनाया करते थे, जो अब बचा नहीं!

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जिस समय को सिनेमा का स्वर्णकाल कहा जाता है, उस दौर के ऐसे कई गाने हैं, जो आज भी याद आते हैं। पर, अब तो ऐसे गाने न तो सुनाई देते हैं और न फिल्मों में दिखाई देते हैं। फिल्म ‘मुनीम जी’ में नलिनी जयवंत के साथ कार में सवार देव आनंद ‘जीवन के सफर में राही …’ गाते हैं तो अलग ही समां बांधता है। बरसों बाद यही देव आनंद ‘गैंबलर’ में कार चलाते हुए जाहिदा को चूड़ियां भेंट करते हुए गाते हैं ‘चूड़ी नहीं ये मेरा दिल है!’ इसी तरह ‘मेरे जीवन साथी’ में राजेश खन्ना अपनी भावी जीवन संगिनी के ख्यालों में डूबकर ‘चला जाता हूँ किसी की धुन में’ गाते हैं।

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‘कश्मीर की कली’ में शम्मी कपूर ‘किसी न किसी से कभी न कभी न कभी तो’ गाते हुए अपनी नियति को स्वीकार करते हैं कि दिल तो उनको लगाना ही पड़ेगा। शम्मी कपूर की ही फिल्म ‘एन इवनिंग इन पेरिस’ में वे हेलीकॉप्टर पर सवार होते हैं और हीरोइन शर्मिला टैगोर को रिझाते हैं, जो समुद्र में पानी पर स्केटिंग करती दिखाई देती है। गीत के बोल थे ‘आसमान से आया फरिश्ता प्यार का सबक सिखलाने!’ इससे आगे का सीन प्रमोद चक्रवर्ती ने धर्मेन्द्र पर ‘जुगनू’ में फिल्माया था। धर्मेंद्र ग्लाइडर में हेमा मालिनी के लिए गाते हैं ‘भेज दे चाहे जेल में प्यार के इस खेल में, तेरा पीछा ना मैं छोडूंगा सोणिये!’ ऐसे ही चेतन आनंद ने बारिश में भीगी मुंबई की सड़कों पर दौड़ती गाड़ी में ‘हंसते जख्म’ में नवीन निश्चल से गवाया था ‘तुम जो मिल गए हो’ जिसने रोमांस का नया आकाश रचा था। ‘चलती का नाम गाड़ी में’ किशोर कुमार अपने दोनों भाइयों के साथ विंटेज कार में गाते हैं गाते हुए दिखाई दिए थे। ‘दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे में भी शाहरुख़ डबल देकर बस में ऊपर झूमकर गाना गाते बताया था।

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शम्मी कपूर फिल्म ‘ब्रह्मचारी’ में बच्चों के साथ ‘चक्के में चक्का चक्के में गाड़ी’ गाते हैं, तो फिल्म ‘फूल खिले हैं गुलशन गुलशन’ में ऋषि कपूर अपनी मंडली के साथ ‘मन्नू भाई मोटर चली पम पम पम’ गाते हुए निकलते हैं। जीप में भले ही कार जैसा ग्लैमर नहीं, लेकिन फिल्मी गानों में उसने भी स्थान पाया। कश्मीर की मनोरम सड़क पर खुली जीप में सवार विश्वजीत ने फिल्म मेरे सनम’ में ‘पुकारता चला हूँ मैं’ गाकर रोमांटिक माहौल रचा था। जीप की ही सवारी करते हुए शशि कपूर ने फिल्म ‘दीवार’ में नीतू सिंह से पूछा था ‘कह दूँ तुम्हें या चुप रहूं।’ खुली जीप पर सवार होकर दार्जिलिंग जाते हुए राजेश खन्ना ने ‘आराधना’ में ‘मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू’ गाकर शर्मिला टैगोर का दिल जीता था। फिल्म ‘झुक गया आसमान’ में राजेंद्र कुमार ने खुली जीप में ‘कौन है जो सपनों में आया, कौन है जो दिल में समाया’ गाया था जो आज भी गुनगुनाया जाता है।

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कई फिल्मों में गाने तांगों, इक्काओं और बग्घियों पर भी फिल्माए गए। मोटरसाइकिल, कार और जीप पर कई गीत फिल्माए गए, वहीं गांवों की सवारी तांगा, बैलगाड़ी, रिक्शा और साइकिल पर भी गीतों का फिल्मांकन हुआ है। ‘शोले’ में हेमा मालिनी तांगा चलाती है, तो धर्मेन्द्र साइकिल चलाते हुए गाते हैं ‘कोई हसीना जब रूठ जाती है, तो है तो और भी हसीन हो जाती है” के जरिए प्रेमिका को मनाने की कोशिश करते हैं। फिल्म ‘परिचय’ में जितेंद्र को भी ऐसे ही तांगे पर बताया गया था। फर्क इतना था कि गाना जितेंद्र गाते दिखाई नहीं देते, बैक ग्राउंड में सुनाई देता ‘मुसाफिर हूं यारों’ है। ‘इम्तिहान’ में विनोद खन्ना भी तांगे में ही ‘रुक जाना नहीं तू कहीं हार के’ गाने की आवाज के साथ परदे पर उतरे थे। फिल्म ‘जीत’ (1972) में रणधीर कपूर और बबीता का रोमांटिक गाना ‘चल प्रेम नगर जाएगा बतला ओ तांगे वाले’ आज भी लोगों का पसंदीदा गीत है। ‘विक्टोरिया नंबर 203’ (1972) में अशोक कुमार और प्राण की जोड़ी विक्टोरिया पर सवारी करती और गाना गाती दिखाई दी थी।

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साइकिल पर ही 1999 की फिल्म ‘भाभी’ में गोविंदा और जूही चावला प्रेम को दर्शाने वाला गाना ‘चांदी की साइकिल, सोने की सीट’ गाते अपने प्रेम का इजहार करते हैं। पुरानी फिल्मों में भी कई गाने साइकिल पर ही फिल्माए गए। ‘पेइंग गेस्ट’ में देव आनंद साइकिल पर सवार होकर राह चलती नूतन से कहते हैं ‘माना जनाब ने पुकारा नहीं’ और दूसरी तरफ वे साइकिल पर मुमताज को आगे बैठाकर ‘तेरे मेरे सपने’ में ‘हे मैंने कसम ली’ गाते हुए कभी जुदा न होने की कसम खाते हैं। देव आनंद ने ही फिल्म ‘बात एक रात की’ में अकेले साइकिल पर चलते हुए अपनी एकाकी जीवन को कुछ इस तरह से बयां किया ‘अकेला हूं मैं इस दुनिया के लिए कोई साथी है तो मेरा साया।’ इसी तरफ ‘खुद्दार’ में संजीव कुमार साइकिल की सवारी करते हुए ही अपने छोटे भाइयों को समझाते हैं ‘ऊँचे-नीचे रास्ते और मंजिल तेरी दूर।’ पचास-साठ के दशक में पिकनिक मनाने जा रही दोस्तों और सहेलियों की टोली तो अक्सर साइकिलों के कारवाँ पर ही गाते हुए चलती थी। ‘दिल धड़कने दो’ और ‘डियर जिंदगी’ में भी हीरो-हीरोइन को साइकिल पर सैर करते दिखाया गया था।

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ऐसी सिचुएशन में बैलगाड़ी पर गीतों को याद किया जाए, तो दो फ़िल्में याद आती है। दो कालजयी गीत बैलगाड़ी पर ही फिल्माए गए। फिल्म ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर और वहीदा रहमान की जोड़ी थी जिन पर शैलेन्द्र ने चार गीत फिल्माए। ये चारों गीत आज भी जेहन में चलचित्र की तरह चलते हैं। सजनवा बैरी हो गए हमार, दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई, सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना और ‘चलत मुसाफिर मोह लियो रे’ ऐसे गीत हैं, जिन्हें आज भी लोग सुनना और गुनगुनाना पसंद करते हैं। 1966 में बासु भट्टाचार्य के निर्देशन में बनी इस फिल्म के संगीत ने अपने समय में रिकॉर्ड सफलता प्राप्त की इसके बावजूद बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म असफल सिद्ध हो गई। एक फिल्म आई थी संजीव कुमार की ‘अनोखी रात।’ इस फिल्म में संजीव कुमार पर बैलगाडी पर मुकेश की आवाज में ‘ओहो रे ताल मिले नदी के जल में नदी मिले सागर में, सागर मिले कौन से जल में कोई जाने ना ऐसा गीत है जो भुलाए नहीं भूल पाते हैं। राजश्री की फिल्म ‘नदिया के पार’ में भी बैलगाड़ी पर एक गीत फिल्माया गया था। पर अब वाहनों पर फ़िल्मी गीतों का फिल्मांकन लगभग लोप ही हो गया! यदि देखना चाहें तो उस पुराने दौर में लौटना पड़ेगा, जब ऐसे गीत रचे जाते थे!