Silver Screen:ओ परदेस को जाने वाले, लौट के फिर न आने वाले!

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Silver Screen:ओ परदेस को जाने वाले, लौट के फिर न आने वाले!

फ़िल्मी दुनिया से आजकल दिल दुखाने वाली ख़बरें कुछ ज्यादा ही आ रही है। ऐसी ही एक खबर ने लोगों को चौंका दिया। ये थी ‘चिट्ठी आई है’ जैसी लोकप्रिय ग़ज़ल के गायक पंकज उधास का निधन। जिन चंद गायकों ने फ़िल्मी गजलों को जन प्रसिद्धि दिलाई, उनमें जगजीत सिंह के अलावा पंकज उधास ही थे। जब ये खबर सामने आई तो लोगों के सामने उनका वो भरा हुआ सा चेहरा घूम गया, जो उन्होंने ‘नाम’ फिल्म में परदे पर देखा था। क्योंकि, ‘चिट्ठी आई है’ उन पर ही फिल्माया गया था, जिसने रातों-रात उन्हें चर्चित कर दिया। कहा जाता है कि जब ये गजल रिकॉर्ड की जा रही थी, उस समय भी सबकी आंखों में आंसू थे। क्योंकि, गजल के लिए जिस मखमली आवाज की जरूरत होती है वो पंकज उधास के पास थी। शुरू में पंकज का मकसद गायन में करियर बनाना नहीं था। लेकिन, होनी को शायद यही मंजूर था। ये 1962 की बात है, जब भारत-चीन युद्ध चल रहा था। उस समय पंकज उधास ने अपना पहला स्टेज परफॉर्मेंस दिया। उन्होंने गाया ‘ऐ मेरे वतन के लोगों।’ उनके गीत से लोगों की आंखें नम हो गईं। दर्शकों में से एक आदमी ने इनाम में उन्हें 51 रुपए दिए।

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पंकज को संगीत विरासत में मिला था। गुजरात के जैतपुर में जन्में पंकज का परिवार राजकोट के पास चरखाड़ी कस्बे का रहने वाला था। दादा जमींदार और भावनगर के दीवान थे। पिता केशुभाई सरकारी कर्मचारी थे। पिता को इसराज नाम का एक वाद्य यंत्र बजाने में महारत थी और मां जीतूबेन को गाने का शौक था। इसके चलते पंकज उधास और उनके दोनों भाइयों में संगीत का बीज पल्लवित हुआ। उनके दोनों भाई मनहर उधास और निर्जल उधास संगीत की दुनिया में जाना-पहचाना नाम थे। स्कूल में पंकज के अच्छे गायन के बाद उनके परिवार को लगा कि पंकज भी अपने भाइयों की तरह संगीत में कुछ बेहतर कर सकते हैं। इसके बाद उनका एडमिशन राजकोट की संगीत एकेडमी में करा दिया गया था। उन्हें भी मंच पर गाने के मौके मिलने लगे। लेकिन, पंकज का सपना तो फ़िल्मी दुनिया में अपनी जगह बनाना था। इसके लिए उन्होंने चार साल तक संघर्ष किया। पर, कोई ऐसा काम नहीं मिला जिससे उनकी पहचान बन सके। एक फिल्म ‘कामना’ जरूर मिली, जिसके एक गाना गाया भी, पर न तो फिल्म चली, न उनका गाया गाना। पहले ही मौके ने उन्हें इतना निराश किया कि उन्होंने देश छोड़कर विदेश में बसने का फैसला कर लिया, पर उनको प्रसिद्धि मिली पर थोड़ी देर से। उन्होंने 1980 में अपना पहला एल्बम ‘आहट’ नाम से निकाला। पहला एल्बम लॉन्च होते ही उन्हें बॉलीवुड से सिंगिंग के ऑफर मिलने लगे। उन्होंने 1981 में एल्बम ‘तरन्नुम’ और 1982 में ‘महफिल’ लॉन्च किया

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उनका यूँ दुनिया से चले जाना, हर किसी के लिए किसी सदमे से कम नहीं है। गीतकार मनोज मुंतशिर ने अपना शोक व्यक्त करते हुए कहा कि आपके तीन कैसेट्स ने मुझे पहली बार ये बताया था गजल क्या होती है। मेरे जैसे हजारों को कविता और शायरी की तमीज सिखाने वाले पंकज उधास जी, इतनी जल्दी आपका जाना बनता नहीं था! अभी तो बहुत कुछ सीखना था आपसे! जाने-माने गायक अदनान सामी ने दुख जताते हुए लिखा ‘आज मेरे पास शब्द नहीं हैं। मैं बस इतना कह सकता हूं कि अलविदा प्रिय पंकज जी …मेरी बचपन की यादों का हिस्सा बनने के लिए आपने जो संगीत दिया उसके लिए धन्यवाद। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे। उनके परिवार के प्रति मेरी गहरी संवेदनाएं, उनका म्यूजिक हमेशा जिंदा रहेगा। ये किस्सा भी मशहूर है, कि राजेंद्र कुमार ने एक दिन उन्होंने राज कपूर को डिनर पर बुलाया। डिनर के बाद उन्होंने पंकज उधास की गाई ‘चिट्ठी आई है’ गजल राज कपूर को सुनाई, तो वे रो पड़े। उन्होंने कहा कि इस गजल को पंकज से बेहतर कोई दूसरा नहीं गा सकता।

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पंकज उधास ने बहुत सी गजलों को अपनी आवाज दी, लेकिन उनकी कुछ गजलें ऐसी है जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। फिल्म ‘नाम’ की ‘चिट्ठी आई है’ वो गजल है, जिसने हर उस दिल को झनझना दिया था। जो अपने घर से दूर थे और जिन्हें हर पल चिट्ठी का इंतजार करना पड़ता है, ये गजल उनका दर्द बयां करती है। अपने घर से दूर होने का दर्द इस गजल में जिस तरह छलकता है, उसका कोई सानी नहीं। ‘चांदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल’ भी उनकी सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली गजलों में शामिल है। ये गजल अपनी प्रेयसी की तारीफ का चरम है। इसके खूबसूरत अल्फाज अपनी जगह, पर पंकज उधास ने जिस तरह डूबकर ‘चांदी जैसा रंग’ गाय है वो कभी भूला नहीं। ‘जिएं तो जिएं कैसे बिन आपके’ एक सवाल है जिसका जवाब भी इसी गजल में मिलता है। क्योंकि, दिल इतना बेमुरव्वत होता है, जो किसी और का हो तो अपना नहीं रहता। उनकी एक और गजल है ‘ए गमे जिंदगी कुछ तो दे मशवरा एक तरफ उसका घर एक तरफ मयकदा’ ऐसा सवाल है जिसके घर के एक तरफ घर है और दूसरी तरफ मयकदा। ‘… और आहिस्ता कीजिए बातें’ गजल में मोहब्बत टपकती सी लगती है। इसमें कहा है दो दिल मिले और गुफ्तगू का सिलसिला छिड़ा हो, तो बातें आहिस्ता करना जरूरी है। ऐसा क्यों इसका जवाब पंकज उधास की आवाज से सजी गजल देती है।

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पंकज उधास का लोकप्रिय गीत ‘चिट्ठी आई है’ से कई रोचक तथ्य जुड़े हैं। डायरेक्टर महेश भट्ट के निर्देशन में बनी फिल्म ‘नाम’ को हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर माना जाता है। फिल्म के निर्माता राजेंद्र कुमार थे और वे फिल्म को लेकर बहुत सीरियस थे। वे इसे बेस्ट मूवी के नजरिए से तैयार करना चाहते थे। लेखक सलीम खान की लिखी यह फिल्म दो भाइयों के प्रेम की एक अद्भुत कहानी थी। फिल्म के गानों ने भी लोगों को बेहद प्रभावित किया, जिनमें दिग्गज गायक मोहम्मद अजीज की आवाज में ‘तू कल चला जाएगा’ पंकज उधास का ‘चिट्ठी आई है’ शामिल हैं। बताते हैं कि निर्माता राजेंद्र कुमार और सलीम खान इस गाने के लिए एक नए गायक को तलाश रहे थे, जिस पर गाने को फीचर किया जा सके। उनका मानना था कि लाइव म्यूजिक कॉन्सर्ट सीन की डिमांड के अनुसार ‘चिट्ठी आई है’ को संजय दत्त की बजाए एक गायक पर फिल्माना कारगर साबित होगा। इसके लिए राजेंद्र कुमार ने पंकज उधास से कहा कि हम आपको फिल्म में फीचर करना चाहते हैं। पंकज को लगा कि कुमार गौरव और संजय दत्त की तरह वे मुझे भी एक्टर के तौर पर फिल्म में ले रहे हैं, इसलिए उन्होंने मना कर दिया। क्योंकि, पंकज को एक्टिंग में कोई दिलचस्पी नहीं थी। हालांकि, बाद में चीजें साफ हुईं और फिर उन्होंने ‘नाम’ का ये गाना गाया। ‘चिट्ठी आई है’ को पंकज उधास के सबसे बेहतरीन गानों में माना जाता है।

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पंकज उधास ने समाज की धारा से अलग बहकर फरीदा से शादी की थी। फरीदा एयर होस्टेस थीं। एक शादी में दोनों की मुलाकात हुई थी। पंकज को पहली नजर में ही फरीदा पसंद आ गई। पहले दोस्ती हुई, फिर प्यार। लेकिन, पंकज का परिवार इस रिश्ते के लिए तैयार था। फरीदा के परिवार को भी रिश्ता मंजूर नहीं था। वे दूसरे धर्म में लड़की की शादी नहीं कराना चाहते थे। फरीदा के कहने पर पंकज उनके घर गए और खुद ही पिता से अपने रिश्ते की बात की। उन्होंने अपनी बातों से उनका दिल जीत लिया। फरीदा के पिता दोनों की शादी के लिए मान गए। उनकी आवाज में हर दिल को जीतने का अंदाज था। इसीलिए उनकी आवाज ने संगीत की हर शमा को रोशन किया। कहा जाता है कि जो आवाज हर टूटे दिल और तन्हा दिल को सुकून दे, वही गजल है। लेकिन, दिल को छू लेने वाली वह रूहानी आवाज अब हमेशा के लिए रुखसत हो गई। पंकज उधास अब इस नश्वर दुनिया को छोड़कर चले गए। किंतु, जब भी शायरी और गजलों की महफिल सजेगी उनकी आवाज की कमी को हमेशा महसूस किया जाएगा।

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हेमंत पाल

चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।

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