Silver Screen: रियलिटी शो में कुछ भी ‘रियल’ नहीं होता!

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Silver Screen: रियलिटी शो में कुछ भी ‘रियल’ नहीं होता!

– हेमंत पाल

जब सत्तर के दशक में दर्शकों के सामने मनोरंजन का नया विकल्प टीवी सामने रखा गया तो ये किसी अजूबे से कम नहीं था। सीरियल, फ़िल्मी गाने और सप्ताह में एक बार फिल्म दिखया जाना शुरू किया गया। बरसों तक सिनेमा से अपना मनोरंजन करते आए दर्शकों के सामने ये नई खुराक थी। क्योंकि, उन्हें फिल्म का एक सार्थक विकल्प जो मिल गया था। सुकून की बात यह थी, कि दर्शकों के लिए यह सब उनके ड्राइंग रूम में उपलब्ध था। उस समय टीवी सीरियलों की कहानी लोगों की आपसी बातचीत का एक प्रमुख विषय हुआ करती थी! बुनियाद, हम लोग, रामायण और महाभारत जैसे सीरियलों ने दर्शकों पर जैसे जादू कर दिया। सिनेमाघर की भीड़ घरों में सिमटने लगी थी! लेकिन, यह सब मनोरंजन रात 10 बजे तक ही था। फिर भी दर्शक इससे संतुष्ट थे।
तब तो कृषि दर्शन जैसे कार्यक्रम भी घरों में चलते थे, इसलिए कि दर्शक उसमें भी मनोरंजन का मसाला ढूंढ लेते! जबकि, आज चौबीसों घंटे टीवी मनोरंजन परोसता है, पर दर्शक संतुष्ट नहीं हैं। चैनलों के साथ तरह-तरह के कार्यक्रमों की भरमार हो गई, पर दर्शक घट गए! कार्यक्रमों का स्तर इतना गिर गया कि पूरा परिवार साथ बैठकर नहीं देख सकता! ऐसे में दर्शकों के सामने रियलिटी शो भी परोसे जाने लगे! दरअसल, ये वास्तविकता को मनोरंजन की तरह दर्शाने वाले कार्यक्रम होते हैं। इस तरह के शो ने दर्शकों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया। दर्शकों को लगता है कि वे परदे पर वही देख रहे हैं, जो घट रहा है। सवाल पैदा होता है कि रियलिटी शो में क्या सब कुछ रियल होता है? इस तरह के शो किस संदर्भ में रियल हैं! क्या टीवी के ये रियलिटी शो वास्तविकता दिखाते हैं! सच तो यह है कि इस तरह के रियलिटी शो में कुछ भी रियल नहीं होता!

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‘बिग बॉस’ जैसे शो की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण है इसकी छद्म सच्चाई! इस शो के अब तक 15 सीजन हो चुके हैं। पर, क्या वास्तव में वो सब रियल है, जो दिखाया जा रहा है! प्रतियोगियों में नजर आती कुंठा, रोज के झगड़े, एक-दूसरे को मात देने की कोशिश और गुटबाजी ये सब क्या अपने आप हो रहा है! शायद नहीं, कहीं न कहीं इसके पीछे स्क्रिप्ट होती है। जो लिखित में भले न हो, पर दर्शकों को मनोरंजन परोसने के लिए उसे तैयार तो किया ही जाता है। ये सिर्फ एक रियलिटी शो का फार्मूला नहीं है। हर मनोरंजन चैनल पर ऐसे रियलिटी शो हमेशा दिखाई देते रहते हैं। ऐसे जितने भी शो हैं, उन्हें एक तय फॉर्मेट के जरिए ही बनाया और दिखाया जाता है! गाने और डांस के रियलिटी शो में तो आंसू बहाने वाले इमोशन से लगाकर एंकरिंग में कही गई बातें तक तय होती है। शो के जजों की टिप्पणियाँ तक उन्हें लिखकर दी जाती है। यदि सब कुछ लिखित में ही होता है, तो कैसे माना जाए कि रियलिटी शो रियल होते हैं!

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टीवी का इतिहास बताता है कि पहला अंतर्राष्ट्रीय रियलिटी शो 1973 में प्रसारित किया गया था, वह था ‘एन अमेरिकन फैमिली!’ यह अपनी तरह की पहली रियलिटी टीवी सीरीज थी। जबकि, भारतीय टीवी पर 1996 में सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन ने पहला डांस रियलिटी शो ‘बूगी वूगी’ प्रसारित किया गया जिसे जावेद जाफरी ने होस्ट किया और नावेद जाफरी ने बनाया था। यह प्रयोग काफी हिट रहा। लेकिन, रियलिटी शो का असल पागलपन एम-टीवी के ‘रोडीज’ से देखने में आया। देश के युवा इसके प्रशंसक बन गए और यह सबसे लोकप्रिय शो बन गया। क्योंकि, इसके ऑडिशन को भी परदे पर दिखाया जाता था। इस शो के बाद तो टीवी चैनलों पर रियलिटी शो की बाढ़ ही आ गई।
इसके बाद रोडीज, स्पिट्स विला और बिग बॉस जैसे शो ने वास्तविक अर्थों को बदल दिया। इन शो में भद्दी भाषा का खुलेआम उपयोग किया जाता था! दर्शक सोचते कि इन शो में जो दिखाया जा रहा, वो रियल है। जबकि, वास्तव में ऐसा नहीं होता। इसे परिवार और बच्चों के साथ नहीं देखा जा सकता। सभी रियलिटी शो स्क्रिप्‍टेड होते हैं! उसका प्रमाण यह है कि प्रतियोगी टास्क के समय ही लड़ते हैं, बाद में कुछ समय बाद वे दोस्त बन जाते हैं! इसी से शंका होती है कि क्या ये सब रियल है!

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रियलिटी शो उन लोगों के लिए एक सार्थक मंच है, जिनके पास प्रतिभा है। जब उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का कोई मंच नहीं मिलता, तो रियलिटी शो उन्हें मंच देते हैं, जहां से वे अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकते हैं। आज के युवा दर्शक सीरियल देखना नहीं चाहते, वे कुछ अलग मनोरंजन चाहते हैं और रियलिटी शो उनकी इसी चाह की पूर्ति करते हैं। दरअसल, रियलिटी शो टीवी चैनलों का आधार हैं। यह हमारे युवाओं के दिमाग को प्रभावित करते हैं। ‘खतरों के खिलाड़ी’ जैसे शो देखने के बाद अधिकांश युवा स्टंट करने लगते हैं। वे ये नहीं सोचते कि इन रियलिटी शो के पीछे की वास्तविकता क्या है! एक और सच्चाई ये है कि आजकल के नाच-गाने और डांस वाले रियलिटी शो में ऐसे प्रतियोगियों को ज्यादा चुना जाता है जिनके पीछे कोई दुख भरी कहानी होती है। इन्हें चुनने का कारण भी टीआरपी बढ़ाना है। दर्शकों को ऐसी कहानियां सुनाकर भावनात्मक रूप से जोड़ने की कोशिश होती है। सामने बैठे जज भी स्क्रिप्ट के मुताबिक उनकी निजी कहानियों को तूल देते हैं और नकली आंसू बहाते हैं, ताकि दर्शक जुड़े रहें।

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जो रियलिटी शो दिखाए जाते हैं, उनमें भद्दी गालियां, राजनीति, दूसरे को गिराने के हथकंडे दिखाकर नाटकीय उत्सुकता परोसकर दर्शक बटोरे जाते हैं। इस तरह चैनल की टीआरपी बढ़ाई जाती है।

इन शो के पीछे एक पूरा बाजार काम करता रहता है। हुनरमंदों को अपना हुनर दिखाने का मंच मुहैया कराते ये रियलिटी शो तैयारियों के प्रशिक्षण का बाज़ार मेट्रो सिटी से गाँव तक फ़ैला रहे हैं। यहाँ रियलिटी शो के लिए संभावित प्रतियोगी तैयार किए जाते हैं। हमारे यहाँ रियलिटी शो का इतिहास भी करीब दो दशक से ज्यादा पुराना है। 3 दिसंबर 1993 को ‘जी-टीवी’ पर पहली बार अन्नू कपूर ने ‘अंताक्षरी’ शो शुरू किया, उसके 600 एपिसोड प्रसारित हुए।

इसी चैनल पर 1995 में ‘सारेगामा’ आया। इस शो ने बॉलीवुड को कई मधुर गायक दिए। लेकिन, 2000 में आए अमिताभ बच्चन के शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ ने सब कुछ बदल दिया। इसके बाद शो भी बदले, फॉर्मूले भी और कमाई के तरीके भी, पर रियलिटी नदारद हो गई!
इन रियलिटी शो असलियत का खुलासा संगीत के एक शो के एंकर आदित्य नारायण ने भी किया। उन्होंने बताया था कि शो के दो प्रतियोगी पवनदीप और अरुणिता की जो लव स्टोरी दिखाई गई, वो झूठी थी। उसी तरह जैसे नेहा कक्कड़ से उनका झूठा प्यार दिखाया गया। कई दर्शकों को उनसे लगाव होता है इसलिए वे इसे सच्चाई मानकर देखते रहते हैं। ये पहली बार नहीं हुआ, हर शो में कोई न कोई लव स्टोरी दिखाकर दर्शकों को भरमाया जाता है, जबकि मुख्य शो से ऐसी घटनाओं का कोई वास्ता नहीं होता।

टीवी पर ‘राखी का स्वयंवर’ नाम से टीवी शो प्रसारित हुआ था। इस शो के बारे में कहा गया था कि राखी अपने लिए दूल्हा चुनेंगी! राखी ने इलेश नाम के एक प्रतियोगी को चुना और सगाई भी कर ली। लेकिन, बाद में पता चला कि यह सब नाटक था। शो खत्म होने के साथ दोनों की नजदीकियां भी खत्म हो गईं। कुछ और एक्टर और एक्ट्रेस भी ऐसे शो कर चुके हैं, जो रत्ती भर भी रियल नहीं होते!
रियलिटी शो कोई भी हो, उसमें दर्शकों को वही दिखाया जाता है, जो वे दिखाना या उससे कमाई करना चाहते हैं। सीधी सी बात है कि शो के मेकर्स रियलिटी के नाम पर बेहद चतुराई से अधूरा सच सामने रखते हैं, जिसे दर्शक रियल मानकर उसी भ्रम में उसमें मनोरंजन तलाशता रहता है।

शो के मेकर्स के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है एक घंटे में शो को इतना रोचक बनाना कि वो दर्शकों को बांधकर रख सके। इसमें टीआरपी का खासा ध्यान रखा जाता है! यदि टीआरपी नहीं रही, तो इसका सीधा असर शो की लोकप्रियता पर पड़ता है। रियलिटी शो रियल लगें, इसके लिए स्क्रिप्टिंग तो होती ही है!

उसमे इमोशन्स का तड़का भी लगाया जाता है। क्योंकि, दर्शकों को यह भी चाहिए होता है। शॉट को परफेक्ट बनाने के लिए रीटेक भी देने पड़ते हैं, जैसा फिल्मों में होता है। टीवी का बिजनेस ऐसे ही चलता है और ये भी एक तरह से रियलिटी ही तो है।