Silver Screen: फिल्म की शूटिंग यहां और नाम कहीं और का!

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Silver Screen: फिल्म की शूटिंग यहां और नाम कहीं और का!

फिल्मों की शूटिंग के लिए मध्यप्रदेश को बेहतरीन जगह माना जाता रहा है। ये प्रदेश हमेशा से फिल्म निर्माण के लिए सुरक्षित और पसंदीदा जगहों में शामिल रहा। भोपाल से लेकर इंदौर, ग्वालियर, ओरछा और जबलपुर के अलावा भेड़ाघाट, महेश्वर और मांडू तक को फिल्मी पर्दे पर जगह मिली है। बीते सालों में फ‍िल्‍मों के अलावा कई टीवी सीरियल्स और विज्ञापनों की शूटिंग भी यहां हुई। प्रदेश में कम से कम दस जगह ऐसी हैं, जिन्हें फिल्मकार अपनी नजर में बेहतरीन फिल्म लोकेशन मानते हैं। इनमें मांडू, भोपाल, महेश्वर और भेड़ाघाट फिल्मकारों की सबसे पसंदीदा जगह रही। लेकिन, मुद्दे की बात ये है कि किसी भी फिल्म में मध्यप्रदेश के इन शहरों को उनकी वास्तविक पहचान के साथ नहीं दर्शाया गया! कभी महेश्वर को बनारस बना दिया जाता है तो कभी मथुरा! भेड़ाघाट को ओडिसा बना दिया जाता रहा। इसलिए प्रदेश के अफसर और नेता कलाकारों के साथ फोटो खिंचवाकर खुश हो लेते हैं! वे भूल जाते हैं कि प्रदेश के इस सांस्कृतिक शोषण को रोकना भी उनकी ही जिम्मेदारी का हिस्सा है!

प्रदेश के पर्यटन स्थलों का फिल्मकारों ने सांस्कृतिक शोषण करने में कोई कसर नहीं छोड़ी! राजकुमार कोहली की फिल्म ‘जीने नहीं दूंगा’ मांडू में फिल्माई गई, पर मांडू का नाम और वैभव सब नदारद था! निर्देशक गुलजार ने जरूर ‘किनारा’ में मांडू को कहानी में पिरोकर उसी नाम की पहचान के साथ फिल्माया था! क्योंकि, फिल्म के कथानक में भी मांडू का नाम था। विद्या बालन की फिल्म ‘शेरनी’ को तो पूरी तरह यहीं फिल्माया गया, सरकारी सुविधाएं भी ली गई! लेकिन, कथानक में मध्यप्रदेश कहीं नहीं था। सभी फिल्मकारों ने भी प्रदेश की खूबसूरती का शोषण ही किया! सरकार भी इसी में खुश हो लेती है कि हमारे यहाँ शूटिंग हुई, पर सवाल है कि इससे मध्यप्रदेश को क्या मिला! सारी सरकारी सुविधाएं लेने के बाद भी न तो प्रदेश के उस शहर या कस्बे को कोई पहचान मिलती है और न पर्यटन की दृष्टि से सरकार को ही कोई लाभ!

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पिछले कुछ सालों में प्रदेश का महेश्वर कस्बा फिल्मों की शूटिंग के मामले में काफी पहचाना गया। लेकिन, किसी फिल्म की कहानी में महेश्वर का नाम सुनाई नहीं दिया। नामचीन एक्टर अक्षय कुमार की दो फिल्मों ‘पैडमैन’ और ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ की शूटिंग यहां हुई। फिल्म के कई महत्वपूर्ण शॉट्स यहीं फिल्माए गए। महेश्वर के घाट और महल परदे पर दिखे, लेकिन महेश्वर कहीं नहीं था! धर्मेंद्र के होम प्रोडक्शन की दो फिल्मों (यमला पगला दीवाना) के सीक्वल की शूटिंग यहीं हुई! पर, एक मैं भी ‘महेश्वर’ नाम नहीं आया! ‘तेवर’ में सोनाक्षी सिन्हा का चर्चित डांस यहीं घाट पर फिल्माया गया, पर फिल्म में वो मथुरा में नजर आया! महेश्वर में तेलुगु की मेगा बजट फिल्म ‘गौतमीपुत्र शतकरणी’ की भी शूटिंग हुई है। ये फिल्म दूसरी शताब्दी की पृष्ठभूमि पर बनी है। इसलिए महेश्वर के किले को उसी दौर के महलों की तरह तैयार किया गया था। तय था कि इस फिल्म में भी महेश्वर किसी और नाम से दिखेगा और न दिखाई दिया। देश की पहली रंगीन फिल्म ‘आन’ को नरसिंहगढ़ और इसके आसपास में फिल्माया गया था। इसे फ़िल्मी दुनिया के पहले शो-मेन मेहबूब खान ने बनाया था। फिल्म का ज्यादातर हिस्सा यहीं फिल्माया गया। फिल्म में नरसिंहगढ़ का किला, जल मंदिर, कोटरा के साथ देवगढ़, कंतोड़ा, रामगढ़ के जंगल, गऊघाट के कई हिस्से फिल्म की शूटिंग का हिस्सा बने थे।

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संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ के एक बड़े हिस्से की शूटिंग भी महेश्वर में हुई! सेना के साथ विश्राम के बाद घोड़े पर सवार होकर युद्ध के लिए निकल रहे बाजीराव पेशवा का भव्य सीन महेश्वर के घाट पर शूट किया गया था। समझा जा सकता है कि कहानी में ये सभी दृश्य महेश्वर के संदर्भ में तो होंगे नहीं! इसी तरह का सांस्कृतिक शोषण बरसों से ‘भेड़ाघाट’ के साथ भी होता आया है। रितिक रोशन की फिल्म ‘मोहन जोदाड़ो’ की कुछ शूटिंग यहीं हुई, पर फिल्म पर कहीं भेड़ाघाट नहीं था। प्रकाश झा ने भी भोपाल में का फिल्मों की शूटिंग की, पर नाम बदलकर! अब तक तो यही होता रहा है। यदि आगे भी यही होता, रहा तो मध्यप्रदेश के पर्यटन विभाग का ये स्लोगन चरितार्थ हो जाएगा ‘एमपी अजब है, सबसे गज़ब है।’

साठ के दशक में मांडू में ‘दिल दिया दर्द लिया’ की शूटिंग हुई थी! तब से अब तक मध्यप्रदेश के वैभव को कई फिल्मों को फिल्माया गया, पर कभी शूटिंग स्थल वाले कस्बे या गांव के नाम का उल्लेख तक नहीं किया गया! महेश्श्वर के घाटों को कभी बनारस के घाट बनाकर दिखाया जाता है, कभी मथुरा तो कभी यहाँ के महल को सम्राट अशोक का उड़िया साम्राज्य बनाकर! प्रकाश झा ने अपनी कई फिल्मों की शूटिंग भोपाल और आसपास की, लेकिन न तो कहीं मध्यप्रदेश नजर आया न भोपाल! इससे प्रदेश को सबसे बड़ा नुकसान ब्रांडिंग का होता है! फिल्मों में प्रदेश के पर्यटन स्थल दिखाए जाने से पर्यटक आकर्षित होते हैं! लेकिन, दुर्भाग्य है कि फिल्मकार प्रदेश सरकार को भरमाकर सुविधाएं तो बटोर लेते हैं, पर परदे पर यहां की प्राकृतिक संपदा और पुरावैभव किसी और नाम से नजर आता है।

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शाहरुख खान और करीना कपूर की फिल्म ‘अशोका’ की शूटिंग पचमढ़ी में हुई थी। करीना और शाहरुख के कई सीन यहां के जंगलों में फिल्माए गए थे। फिल्म की शूटिंग भी महेश्वर में हुई थी, पर उड़ीसा के किसी शहर के नाम पर! अभिनेता इरफान खान की फिल्म ‘पानसिंह तोमर’ को चंबल क्षेत्र में फिल्माया गया था। इससे पहले ‘पुतलीबाई’ की शूटिंग भी यहीं हुई थी। सलमान खान की चर्चित फ‍िल्‍म ‘दबंग-3’ की भी बहुत सी शूटिंग महेश्वर और मांडव में शूट किया गया था। यहां शूटिंग के दौरान ही उनकी फिल्‍म पर विवाद भी हुआ था। गुजरे जमाने की बात करें तो नया दौर, मुझे जीने दो, यमला-पगला-दीवाना, तीसरी कसम, किनारा, सूरमा भोपाली, पीपली लाइव, चक्रव्यूह, गंगाजल-2 जैसी अनगिनत फिल्मों की शूटिंग मध्य प्रदेश में की गई थी।

इसके अलावा कंगना रनौत की फिल्म ‘रिवॉल्वर रानी’ प्रदेश में ही शूट की गई। इसका अहम हिस्सा ग्‍वालियर किले में और बाकी हिस्सा ग्वालियर के आसपास शूट किया था। प्रकाश झा की फिल्म ‘राजनीति’ की शूटिंग भी भोपाल शहर में हुई। इस फिल्‍म में जिस भव्य इमारत को दिखाया गया, वह भोपाल का मिंटो हॉल है। 1998 में आई सलमान खान और काजोल की फिल्म ‘प्यार किया तो डरना क्या’ की शूटिंग में इंदौर के डेली कॉलेज को दिखाया गया। अर्जुन कपूर और सोनाक्षी सिन्हा की ‘तेवर’ की काफी शूटिंग महेश्वर घाट पर हुई। फिल्‍म का सबसे चर्चित गाना भी घाट पर शूट किया गया था। इंदौर के डेली कॉलेज, लालबाग और घंटाघर में भी कई फिल्मों की शूटिंग की गई!

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अनिल शर्मा की फिल्म ‘सिंह साहब द ग्रेट’ की इंदौर में हुई शूटिंग के समय सरकार ने कहा था कि मध्यप्रदेश में जिन फिल्मों की शूटिंग होगी, उन्हें सुविधा देने के लिए नीति बनाई जाएगी। लेकिन, इस विषय पर कोई बात नहीं हुई! सुविधा तो फिल्मकारों को आज भी मिल ही रही है, पर प्रदेश को इस सबसे क्या मिलता है! इस मामले में उत्तर प्रदेश की नीति काफी स्पष्ट है! वहाँ फिल्म की आधी से ज्यादा शूटिंग करने वाले फिल्मकारों को आर्थिक मदद दी जाती है और मनोरंजन कर में भी रियायत मिलती है! जबकि, मध्यप्रदेश के सामने सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि शूटिंग में जिस शहर, कस्बे या स्थान को फिल्माया जाए, फिल्म में उसे उसी रूप में दिखाया जाना जरुरी किया जाए! इसके लिए बकायदा करार किया जा सकता है या इसे पर्यटन नीति में शामिल किया जाए! यदि सरकार ये कर सकी तो फिल्म के परदे पर महेश्वर के घाट न तो बनारस बनेंगे और न यहाँ का किले को मथुरा का किला बनाकर दिखाया जाएगा।