Silver Screen: देश के टुकड़ों का दर्द परदे पर भी कई बार उभरा!

1000

Silver Screen: देश के टुकड़ों का दर्द परदे पर भी कई बार उभरा!

हम जिस दिन अपनी आजादी का जश्न मनाते हैं, उसके एक दिन पहले हमारे दिल बंटवारे के दर्द सालता है। एक देश के दो टुकड़े होने का मतलब सिर्फ जमीन के टुकड़े का बंटवारा नहीं होता, बल्कि लोगों के रिश्ते बदलते हैं, घर की छत छूटती है और बरसों की दोस्ती भी टूटती है। ये किस्से-कहानियों की बात नहीं, सच्चाई थी जिसे पीढ़ियों ने बरसों तक भोगा है। लेकिन, उस पीड़ा को जिन लोगों ने महसूस किया, अब उस पीढ़ी में चंद लोग ही बचे होंगे, जिनकी यादों में वो त्रासद सच दर्ज होगा। इसके अलावा बाकी लोगों ने बंटवारे की उस दुखद सच्चाई को सिनेमा के परदे पर जीवंत होते देखा है। क्योंकि, फिल्मों ने ही काफी हद तक विभाजन के उन दृश्यों को सच करके दिखाया, जो उस दौर को देखने वालों ने किताबों में दर्ज किए थे। कुछ फ़िल्में इन किताबों पर बनी और कुछ में काल्पनिक कहानियों को गढ़ा गया! लेकिन, सभी का मकसद उस दौर को सामने लाना था, जो उस समय के लोगों ने भोगा था। भारत-पाकिस्तान विभाजन पर जितने ज्यादा उपन्यास और कहानियां उर्दू और पंजाबी क‍थाकारों ने लिखी शायद उन पर फिल्में नहीं बनी। बंटवारे पर फिल्‍में बनना इसलिए जरूरी है, कि बाद में जन्मे लोग उस दौर की विभीषिका और सच को जान सकें। क्योंकि, आज देश विभाजन के गवाह रहे लोग उम्र के आखिरी पड़ाव पर हैं, जो उस समय का हाल जानते हैं।

IMG 20220812 WA0074

दो देशों के बंटवारे की विभीषिका को फिल्मकारों ने सबसे पहले 1949 में आई फिल्म ‘लाहौर’ में दिखाया गया था। इस फिल्म को एमएल आनंद के बनाया था। इसमें नरगिस और करन दीवान मुख्य भूमिका में थे। फिल्‍म की कहानी प्रेमी जोड़े के आसपास घूमती थी। देश के विभाजन के समय एक युवती का अपहरण कर उसे पाकिस्‍तान में रख लिया जाता है। जबकि, उसका प्रेमी भारत आ जाता है। लेकिन, बाद में वह अपनी प्रेमिका को खोजने पाकिस्तान चला जाता है। सनी देओल की फिल्म ‘ग़दर’ में भी कुछ इसी तरह की कहानी गढ़ी गई थी। इसके बाद 1961 में आई फिल्म ‘धर्मपुत्र’ बंटवारे और धर्म आधारित दंगों पर बनाई गई थी। फिल्म में बंटवारे के दौरान एक हिंदू परिवार अपने साथ एक मुस्लिम बच्चे को भारत ले आता है। इस फिल्म का गाना ‘तू हिंदू न बनेगा न मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा’ दोनों धर्मों की एकता को दर्शाता है।

IMG 20220812 WA0075
इसके बाद लम्बे अरसे तक 1973 में आई फिल्म ‘गरम हवा’ आई, जो बंटवारे पर बनी अब तक बेहतरीन फिल्मों में गिनी जाती है। यह फिल्म एक मुस्लिम परिवार की कहानी थी, जो इस सोच में उलझ जाते हैं कि बंटवारे के बाद भारत में रहा जाए या पाकिस्तान पलायन किया जाया। उस समय के सभी मुस्लिमों की यही चिंता थी। फिल्‍म में एक तरफ प्रेम कहानी भी थी, दूसरी तरफ नया पाकिस्तान बनने के बाद भारत में रह गए मुसलमानों के अंतरद्वंद्व को दिखाया गया था। पाकिस्तान बनने के बाद दो प्रेमी सरहद के आर-पार बंट गए थे। यह बहुत कम बजट में बनी एक ऐतिहासिक फिल्म है। इसमें घर, अपनेपन, व्यापार, इंसानियत और राजनीतिक मूल्यों की बातें थीं। यह फिल्म इस्मत चुगताई की अप्रकाशित उर्दू लघु कहानी पर आधारित थी।

IMG 20220812 WA0072

बंटवारे पर 1988 में भीष्म साहनी ने ‘तमस’ बनाई, जो उन्हीं के उपन्यास पर आधारित थी। यह फिल्म पाकिस्तान के रावलपिंडी में हुए दंगों की सच्ची घटना पर बनी थी। ‘तमस’ में विभाजन के दौर में होने वाले दंगों की सच्चाई बताई गई थी। इससे पहले 1986 में गोविंद निहलानी इसी नाम (तमस) से दूरदर्शन के लिए सीरियल भी बना चुके थे। इसके दस साल बाद 1998 में खुशवंत सिंह के उपन्यास पर ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ बनी थी। इस फिल्म में पाकिस्तानी शहर मनो माजरा के पास एक रेलवे लाइन के किनारे बसे गांव की कहानी थी। यह गांव पहले सिख बहुल था और मुस्लिमों की आबादी कम थी। फिर भी लोग वहां मिल जुलकर रहते थे। पर, बंटवारे के बाद उस शहर की स्थिति और जगहों की तरह ही बदल जाती है और दंगे होते हैं।

IMG 20220812 WA0071

दो देशों के बंटवारे को बेन किंग्सले अभिनीत 1982 में आई ‘गांधी’ में भी दिखाया गया था। इस फिल्म में एक लंबा दौर था। आजादी के आंदोलन से लगाकर, विभाजन और महात्मा गांधी की हत्या तक का दौर इसमें था। जबकि ‘गांधी’ के करीब 18 साल बाद 2000 में आई कमल हासन के निर्देशन में बनी फिल्म ‘हे राम’ भी विभाजन की त्रासदी पर आधारित थी। फिल्म में हेमा मालिनी, रानी मुखर्जी और शाहरुख खान थे। इसमें भी देश विभाजन के दर्द को महसूस कराया गया। साथ ही उस दौरान हुई हिंसा भी दर्शकों ने देखी थी। इसमें राम नाम के एक व्यक्ति की पत्नी का दंगों के दौरान बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी। फिल्म में गांधी जी की हत्या भी पर्दे पर दिखाई गई।

IMG 20220812 WA0073

सनी देओल और अमीषा पटेल स्टारर फिल्म ‘गदर : एक प्रेम कथा’ 1999 में आई थी। यह फिल्म ‘शहीद-ए-मोहब्बत बूटासिंह’ की कहानी जैसी थी। फिल्म में बंटवारे के समय की प्रेम कहानी थी। फिल्म में सरदार तारा सिंह बंटवारे के दंगों के दौरान एक मुस्लिम महिला सकीना की जान बचाता है। वे दोनों शादी कर लेते हैं। पर, सालों बाद सकीना को पता चलता है कि उसके माता-पिता जिंदा हैं और वो उनसे मिलने पाकिस्तान जाती है। लेकिन, सकीना के माता-पिता उसे जबरन रोक लेते हैं। इसके बाद तारा सिंह अपनी पत्नी को लेने के लिए पाकिस्तान जाता है। 1999 में आई दीपा मेहता की फिल्म ‘1947 अर्थ’ का कथानक भी कुछ इसी तरह का था। इसमें एक मुस्लिम युवक और हिंदू आया की प्रेम कहानी थी। इसमें आजादी के समय में देश के विभाजन से पहले और उस दौर में लाहौर की स्थिति को परदे पर दिखाया था। यह कहानी विभाजन की परिस्थितियों पर केंद्रित होती है।
गुरिंदर चड्ढा की फिल्म ‘पार्टीशन’ (2017) भी आजादी और विभाजन की दास्तां पर आधारित है। इस फिल्म में विभाजन से पहले 1945 की सच्ची घटनाओं का जिक्र है, जब अंग्रेजी हुकूमत ने भारत को आजाद करने का फैसला किया था। इसमें हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच के उत्साह और निराशा का नजारा था। फिल्म में आलिया और जीत सिंह की प्रेम कहानी भी थी, जिस पर बंटवारे का गहरा असर पड़ा था। हिंदी और अंग्रेजी में बनी यह फिल्म ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ किताब पर बनी थी। फिल्‍म को अंग्रेजी में ‘द वायसराय हाउस’ नाम से बनाया गया था।
डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी के निर्देशन में 2003 में बनी फिल्म ‘पिंजर’ दरअसल महिलाओं के कसक की कहानी थी। यह पंजाबी की मशहूर लेखिका अमृता प्रीतम के उपन्यास पर बनाई गई थी। उर्मिला मातोंडकर, मनोज बाजपेयी और संजय सूरी की इस फिल्म भी विभाजन की त्रासदी थी। ये कहानी पंजाब की पृष्ठभूमि पर थी। इस कथानक में दिखाया गया था कि देश के बंटवारे के वक्त एक युवती किसी तरह से अपने परिवार से बिछड़ जाती है। उसे किसी धर्म का युवक अपने पास रखता है और उससे शादी करता है। इस पूरी फिल्म में बंटवारे की विभीषिका झेल रही महिलाओं के अंतरद्वंद्व की कहानी है। आज भी पंजाब में बहुत महिलाएं मिल जाएंगी जिनके पारिवारिक सदस्य बंटवारे के वक्त पाकिस्तान चले गए थे और उन्‍हें सिख या हिंदू परिवारों में रहना पड़ा।
2003 में भारत-पाकिस्तान संबंधों पर आधारित फिल्म ‘खामोश पानी’ भारत-पाकिस्तान में एक साथ रिलीज हुई थी। इसका निर्देशन साहिब सुमर ने किया था। हाल ही में ‘नेटफ्लिक्स’ पर आई फिल्म ‘सरदार का ग्रैंडसन’ भी विभाजन की त्रासदी पर आधारित फिल्म है। अर्जुन कपूर और नीना गुप्ता अभिनीत यह एक ऐसे व्यक्ति की मर्मस्पर्शी कहानी है, जो अपनी दादी को पाकिस्तान से अपने देश में लाकर खुश करना चाहता है। दरअसल, भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हमारे इतिहास का संवेदनशील विषय है। यही कारण है कि जिस भी फिल्मकार ने इस विषय पर फिल्म बनाई, घटनाक्रम को गंभीरता और सही तरीके से पेश करके इसके सार को बनाए रखा। लेकिन, अब इस मुद्दे पर गंभीर फ़िल्में बनना लगभग बंद हो गया! बनती भी हैं, तो ‘ग़दर’ जैसी फार्मूला फ़िल्में जिनमें नायक पाकिस्तान जाकर हेंडपम्प उखड़ता है!