Silver Screen: इस बार लगा कि हम भी ‘ऑस्कर’ के लायक!

585

Silver Screen: इस बार लगा कि हम भी ‘ऑस्कर’ के लायक!

देश के फिल्म इतिहास में पिछले दिनों जो हुआ, वो आज तक नहीं हुआ। हमारे यहां बनी एक शॉर्ट फिल्म और एक फिल्म के गाने को ओरिजनल सांग कैटेगरी में ऑस्कर अवॉर्ड से नवाजा गया। इस तरह भारत ने दो ऑस्कर अवॉर्ड्स अपने नाम किए। दक्षिण की फिल्म ‘आरआरआर’ के गाने ‘नाटू-नाटू’ ने बेस्ट ओरिजिनल सॉन्ग कैटेगरी का अवॉर्ड जीता। दूसरा अवॉर्ड शॉर्ट फिल्म ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ को मिला, जिसने बेस्ट शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री कैटेगरी में बाजी मारी। भारतीय फिल्मों को ये सम्मान पहली बार मिले। इससे पहले भी ‘गांधी’ और ‘स्लमडॉग मिलिनियर’ के कंधे पर चढ़कर कई ऑस्कर भारत आए, पर वो विदेशी फ़िल्में थी। भारत के नाम पहला ऑस्कर अवॉर्ड 1983 में मिला था। यह अवॉर्ड उस साल रिलीज हुई फिल्म ‘गांधी’ के लिए हासिल हुआ था इस फिल्म में भानु अथैया ने जॉन मोलो के साथ कॉस्ट्यूम डिजाइन किए थे, जिसके लिए उन्हें यह अवॉर्ड मिला। ऑस्कर पाने के बाद भानु अथैया ने कहा था कि ‘गांधी’ फिल्म का दायरा इतना बड़ा था, कि उससे कोई मुकाबला करने के बारे में सोच ही नहीं सकता था।

Silver Screen: इस बार लगा कि हम भी 'ऑस्कर' के लायक!

इस बार देसी फिल्मों को इस सम्मान के लिए चुना गया। देखा जाए तो ‘ऑस्कर 2023’ में भारत की और से तीन फिल्मों ने दावेदारी पेश की थी। इनमें पहली थी आरआरआर, दूसरी द एलिफेंट व्हिस्परर्स और तीसरी ऑल दैट ब्रीथ्स थी। ऑल दैट ब्रीथ्स को सफलता हासिल नहीं हुई, जबकि ‘आरआरआर’ के ओरिजनल सांग और ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ ने अपना जलवा दिखाते हुए भारतीयों को जश्न मनाने का मौका दिया। फिल्म ‘आरआरआर’ के गाने ‘नाटू-नाटू’ ने तो ऑस्कर 2023 में जैसे इतिहास रच दिया। एसएस राजामौली की इस फिल्म के इस गाने ने कड़े मुकाबले में अवॉर्ड अपने नाम किया। इसके साथ पूरे देश में जश्न का माहौल है।

Silver Screen: इस बार लगा कि हम भी 'ऑस्कर' के लायक!

इस लिस्ट में शामिल 15 गानों को हराकर ‘नाटू-नाटू’ ने बाजी जीती। ‘नाटू-नाटू’ का मुकाबला टेल इट लाइक ए वूमेन के अपलॉज, टॉप गन: मैवरिक के होल्ड माई हैंड, ब्लैक पैंथर: वकांडा फॉरएवर के लिफ्ट माई अप और एवरीथिंग एवरी वेयर ऑल एट वंस के दिस इज ए लाइफ से था। इस कैटेगरी में नाटू-नाटू अव्वल रहा। ऑस्कर के लिए शॉर्टलिस्ट होने वाला यह भारत का पहला गाना भी है। पिछले साल अमेरिका में फिल्म की रिलीज के बाद ‘आरआरआर’ सॉन्ग ‘नाटू-नाटू’ ग्लोबल सेंसेशन बन गया। इस सांग को एमएम किरवानी ने कम्पोज किया और चंद्र बोस ने इसे लिखा है। फिल्म में इस गाने को जूनियर एनटीआर और रामचरण पर फिल्माया है। ये गाना हिंदी में ‘नाचो नाचो, तमिल में ‘नट्टू कूथु’ और कन्नड़ में ‘हल्ली नातु’ के रूप में भी रिलीज किया गया। इससे पहले ‘नाटू-नाटू’ ने बेस्ट सांग के लिए क्रिटिक्स च्वाइस अवॉर्ड भी जीता था।

देशभर में छाए इस मस्ती भरे गाने को ऑस्कर मिलने के पीछे जिस व्यक्ति की सबसे बड़ी भूमिका है, वो है संगीतकार एमएम किरवानी। उन्होंने इस गाने को सुरों से भरने में जान फूंक दी। उनका पूरा नाम कोडुरी मारकथमणि किरवानी है और वे रिश्ते में ‘आरआरआर’ के डायरेक्टर एसएस राजामौली के चचेरे भाई हैं। उनकी पत्नी एमएम श्रीवल्ली पेशे से प्रोड्यूसर हैं। एक रिश्ता यह भी है कि वे अलावा राजामौली की पत्नी रमा की बड़ी बहन हैं। राजामौली और किरवानी परिवार का फ़िल्मी दुनिया से गहरा ताल्लुक है। सिर्फ वे ही नहीं उनके बच्चे भी संगीत की दुनिया में रंग जमा रहे हैं। इस लोकप्रिय गाने को काल भैरव और राहुल सिप्लिगुंज ने आवाज दी है। इनमें काल भैरव संगीतकार एमएम किरवानी के बड़े बेटे ही हैं।

Silver Screen: इस बार लगा कि हम भी 'ऑस्कर' के लायक!

आरआरआर’ उन्हें सबसे ज्यादा लोकप्रियता देने वाली फिल्म रही। किरवानी अब अजय देवगन और तब्बू की फिल्म ‘औरों में कहाँ दम था’ के गानों को भी संगीत देंगे। 1987 में बतौर असिस्टेंट म्यूजिक डायरेक्टर एमएम किरवानी ने अपने करियर की शुरुआत की थी। वे मेहनत से संगीत साधना में डूबे रहे। 1990 में फिल्म ‘मौली’ में उन्हें पहला ब्रेक मिला। इसके बाद रामगोपाल वर्मा की सुपरहिट फिल्म ‘क्षण क्षणम’ ने किरवानी को लोकप्रियता दी। वे साउथ की फिल्म इंडस्ट्री में म्यूजिक डायरेक्टर छा गए। साउथ की फिल्मों में कई गानों को उन्होंने संगीत देकर हिट बनाया। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में फिल्म ‘क्रिमिनल’ से अपना करियर शुरु किया, फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे फिल्म इंडस्ट्री में बेहतरीन संगीतकार के रूप में जाने जाते हैं। इसका प्रमाण है कि उन्हें अभी तक 8 बार फिल्मफेयर पुरस्कार मिल चुका है। उन्हें 11 बार आंध्र प्रदेश सरकार के ‘राज्य नंदी पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया। उन्हें ‘बाहुबली: द बिगनिंग’ के लिए भी सैटर्न पुरस्कार के लिए भी नॉमिनेट किया गया था। इसके अलावा भी उन्हें कई पुरस्कार मिले।

Silver Screen: इस बार लगा कि हम भी 'ऑस्कर' के लायक!

अब बात करते हैं उस छोटे हाथी की छोटी फिल्म की, जिसने दुनिया का सबसे बड़ा अवॉर्ड जीत लिया। शॉर्ट फिल्म ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ ने बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट फिल्म का पुरस्कार अपने काम किया। इस डॉक्यूमेंट्री का निर्देशन कार्तिकी गोंजाल्विस ने किया है। जबकि, गुनीत मोंगा इसकी निर्माता हैं। 39 मिनट की इस शॉर्ट फिल्म में इंसान और जानवरों के बीच की बॉन्डिंग को दिखाया गया। इस छोटी फिल्म की कहानी दक्षिण भारतीय कपल बोमन और बेली की है, जो रघु नाम के एक छोटे अनाथ हाथी की देखभाल करते हैं। इसे तमिल भाषा में बनाया गया। ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ के साथ हॉल आउट, द मार्था मिशेल इफेक्ट, स्ट्रेंजर एट द गेट, और ‘हाउ डू यू मेज़र ए ईयर’ भी नॉमिनेट थीं। लेकिन, ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ ने जीत हासिल की। खास बात यह कि इस श्रेणी में ऑस्कर जीतने वाली यह पहली भारतीय फिल्म है। ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ मुदुमलाई नेशनल पार्क के रघु नाम के एक अनाथ हाथी के बच्चे की कहानी है। इस डॉक्यूमेंट्री न केवल मनुष्य और जानवर के बीच बनने वाली बॉन्डिंग को दिखाया, बल्कि प्राकृतिक सुंदरता को भी बेहतरीन ढंग से फिल्माया है।

Silver Screen: इस बार लगा कि हम भी 'ऑस्कर' के लायक!

खास बात यह कि इस श्रेणी में ऑस्कर जीतने वाली यह पहली भारतीय फिल्म है। ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ मुदुमलाई नेशनल पार्क में स्थापित हाथी फुसफुसाते हुए, बोम्मन और बेलि, एक स्वदेशी जोड़े की देखभाल में रघु नाम के एक अनाथ हाथी के बछड़े की कहानी है। डॉक्यूमेंट्री न केवल उनके बीच बनने वाली बॉन्डिंग के साथ प्राकृतिक सुंदरता को भी बेहतरीन ढंग से दिखाया गया है। ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ को नेटफ्लिक्स पर दिसंबर 2022 में रिलीज किया गया था।

Silver Screen: इस बार लगा कि हम भी 'ऑस्कर' के लायक!

फिल्म की डायरेक्टर कार्तिकी ने पांच साल तक बोमन और बेली की जिंदगी को करीब से देखा। कार्तिकी ने बेबी हाथी रघु के साथ जो पल बिताए, वे सब फिल्माए गए। रघु के शॉट के लिए उसे कोकोनट मिक्सचर खिलाया जाता था। इसे खाकर वह खुशी से झूम उठता और फिर ये मोमेंट्स फिल्माए। इस तरह साढ़े चार सौ घंटे के फुटेज इकट्ठा हुए। ये शॉर्ट फिल्म तमिलनाडु के मुदुमलाई रिजर्व में फिल्माई गई है। इसमें लोकेशन की प्राकृतिक सुंदरता दिखाई गई। साथ ही प्रकृति के लिए आदिवासियों का समर्पण भी दिखाया गया। बताया गया है कि कैसे आदिवासी प्रकृति को सहेजे हुए हैं। ये फिल्म पर्यावरण संरक्षण की भारतीय संस्कृति और परंपरा को भी दिखाती है। फिल्म के शुरू में बेहतरीन प्राकृतिक दृश्य दिखाए गए हैं।

बमन और हाथी रघु के बीच अलग तरह का लगाव बताया गया। बमन बताता है कि रघु उसे जंगल में घायल मिला था। जंगली कुत्तों ने उसकी पूंछ काट ली थी। वह बेहोशी की हालत में पड़ा था। रघु की मां की मौत बिजली के झटके लगने से हो गई थी। रघु को उसके झुंड से मिलाने की काफी कोशिश की गई। लेकिन, सभी कोशिशें नाकाम रही। बेली को हाथियों के बच्चों की देखभाल के लिए चुना गया था। वह एकमात्र महिला है, जो ऐसा कर रही थी। बेली और बमन रघु की देखभाल करते हैं। इस शॉर्ट फिल्म में मानव और हाथियों के बीच प्यार और लगाव को दिखाया गया है। बताया गया कि किस प्रकार अपने झुंड से बिछुड़े हाथियों की देखभाल की जाती है। इस शॉर्ट फिल्म और ‘नाटू नाटू’ गाने ने जो किया वो भारतीय फिल्म इतिहास में मील का पत्थर बन गया, अब यदि कोई फिल्म ऑस्कर जीतती भी है तो वो पहली तो नहीं होगी!