

Silver Screen: बड़े परदे पर इस बार रामकथा की भव्य वापसी, दो किस्तों में प्रस्तुत होगी!
– हेमंत पाल
एक बार फिर बड़े परदे पर राम अवतरित हो रहे हैं। सिनेमा में राम को लेकर कई बार प्रयोग हो चुके हैं। राम, सीता और रावण की यह कहानी बरसों से सुनी और सुनाई जाती रही है, फिर भी इसे लेकर दर्शकों उत्सुकता बनी हुई है। इसका सिर्फ एक ही कारण है, वह है उसका प्रस्तुतीकरण। पौराणिक कथाओं में ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ दो ऐसे प्रसंग हैं, जो फिल्म निर्माण की शुरुआत से अब तक फिल्मकारों के सबसे पसंदीदा विषय रहे। शुरुआती दौर में ही रामायण पर फिल्म बनी थी। बाद में भी राम कथा को कई बार अलग-अलग एंगल से परदे पर दिखाया जाता रहा। छोटे परदे पर भी राम-रावण की कथा फिल्माई गई। अब बड़े परदे पर राम कथा को लेकर सबसे भव्य और खर्चीला प्रयोग हो रहा है।
नितेश तिवारी की इस सबसे महंगी फिल्म को लेकर क्रेज़ होने का कारण इसके कलाकारों के साथ इसका प्रस्तुतीकरण है। इसमें राम का किरदार रणबीर कपूर और रावण का दक्षिण के सितारे यश निभा रहे हैं। सनी देओल जैसे कलाकार का हनुमान का किरदार निभाना भी कम आश्चर्यजनक बात नहीं है। इस ‘रामायणम’ फिल्म की पहली झलक को जिस तरह पसंद किया गया, वो इस बात का प्रमाण है कि इस फिल्म के निर्माण का स्तर क्या होगा। 3 जुलाई को रिलीज हुए टीजर में रणबीर कपूर और यश की पहली झलक देखने को मिली। दो हिस्सों में बनने वाली इस फिल्म का पहला हिस्सा अगले साल (2026) में परदे पर आएगा।
रामानंद सागर के कालजयी टीवी सीरियल ‘रामायण’ से लगाकर अभी तक के 35-36 साल के समय काल में परदे पर राम कथा की दुनिया बहुत कुछ बदल गई। टेक्नोलॉजी के मामले में भी दर्शकों के नजरिए को लेकर भी। अब वो सब फिल्माना संभव हो गया, जो रामायण पढ़ते समय कल्पना में उभरता रहा! जब ‘रामायण’ सीरियल छोटे परदे पर आया, उस दौर में ‘रामायण’ की लोकप्रियता चरम पर थी। उस दौर के दर्शकों ने तब जो देखा वो उनके लिए चमत्कृत करने वाले दृश्य थे। क्योंकि, राम-रावण युद्ध के समय आसमान में उड़ते तीर और हनुमान का हवा में उड़ना दर्शकों को आकर्षित करता था। लेकिन, तब से अब तक बहुत कुछ बदल गया। इसके बाद भी राम के प्रति श्रद्धाभाव में कमी नहीं आई।
1917 में आई दादा साहेब फाल्के की मूक फिल्म ‘लंका दहन’ को रामायण कथानक पर बनी पहली फिल्म माना जाता है। इस फिल्म में राम और सीता के किरदार एक ही अभिनेता अन्ना सालुंके ने निभाए थे। तब महिलाओं के फिल्मों में काम करने से एक तरह से सामाजिक बंदिश थीं, इसलिए एक ही कलाकार ने दो किरदार निभाए। कहा जा सकता है कि हिंदी फिल्मों में पहला डबल रोल भी इसी कलाकार ने निभाया था। इसकी कहानी राम वनवास से शुरू हुई और रावण वध पर समाप्त हुई थी। रामकथा का मुख्य पात्र राम हैं और उस किरदार के चेहरे की नैसर्गिक सौम्यता ही उनकी सारी अच्छाइयां दिखाती है।
फिल्म इतिहास के 112 साल के इतिहास में अभी तक ‘रामायण’ पर 48 फिल्में और 18 टीवी शो बनाए गए। इन सभी फिल्मों ने अपने समय पर अच्छी खासी लोकप्रियता भी हासिल की। भगवान राम पर पहली फिल्म 1917 में आई थी। इसके बाद 1943 में ‘राम-राज्य’ आई, जिसे महात्मा गांधी ने भी देखा था। ऐसी किसी फिल्म को लेकर कभी कोई आवाज नहीं उठी, क्योंकि उसमें धार्मिक भावनाओं का पूरा ध्यान रखा गया था। सिर्फ ‘आदिपुरुष’ ही ऐसी फिल्म आई जिसे लेकर काफी बवाल हुआ। इसका कारण था धार्मिक भावनाओं का उपहास बनाया गया। यहां तक कि फिल्म में राम को मूंछ वाला दिखाया गया। इससे पहले 2000 में रिलीज हुई तेलुगू फिल्म ‘देवुल्लू’ में ही राम का किरदार निभाने वाले श्रीकांत की मूंछ दिखाई गई थी। दरअसल, फिल्मों के किसी पात्र की मूंछ दिखाकर उसे अलग दिखाने में कोई बुराई नहीं है। लेकिन, लोगों की आंखों में जो राम बसे हैं, वो बिना मूंछ वाले हैं और दर्शक अपने उन मनोभावों में कोई बदलाव देखना नहीं चाहते!
समय कितना भी बदल जाए और लोग कितने भी आधुनिक हो, पर वे अपनी आस्था के साथ कोई खिलवाड़ देखना नहीं चाहते। यही कारण है कि आज भी दर्शक ‘रामायण’ सीरियल को अपनी कल्पना के बहुत नजदीक पाते हैं। सीरियल का एक-एक पात्र उन्हें उस ‘रामायण’ में लिखे किरदार जैसा लगता है जो पुराने घरों में बरसों से पढ़ी जा रही है। इस सीरियल की लोकप्रियता का सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि जब कोरोना काल में नए टीवी सीरियल आना बंद हो गए थे, तब ‘रामायण’ के प्रदर्शन ने फिर वही माहौल बना दिया था। नई पीढ़ी ने भी उस ‘रामायण’ को देखा जिसके बारे में उन्होंने काफी कुछ सुन रखा था। शायद यही कारण रहा कि दर्शकों ने जब रामानंद सागर की ‘रामायण’ और ‘आदिपुरुष’ में फर्क देखा तो उन्हें अच्छा नहीं लगा।
जब रामानंद सागर ने ‘रामायण’ सीरियल बनाया, तब राम के किरदार पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया गया था। बताते हैं कि राम के चेहरे की मुस्कराहट पर भी बड़ी मेहनत की गई थी। अरुण गोविल ने भी अपने किरदार का ध्यान रखा और शुरू से अंत तक उस मुस्कराहट को बनाए रखा। यही ध्यान प्रेम अदीब ने ही रखा और 8 फिल्मों में उन्होंने राम की भूमिका निभाई। 1940 के बाद इस कलाकार ने परदे पर राम बनकर जमकर लोकप्रियता पाई थी। प्रेम अदीब ने करीब 60 फिल्मों में काम किया, जिनमें राम चरित्र की आठ फ़िल्में भरत मिलाप, राम राज्य, राम बाण, राम विवाह, राम नवमी, राम हनुमान युद्ध, राम लक्ष्मण और राम भक्त विभीषण में वे राम बने।
इस किरदार में उनकी जो फिल्म सबसे ज्यादा पसंद की गई वो थी 1943 में आई ‘राम राज्य’ जिसमें शोभना समर्थ सीता बनी थी। रामकथा की प्रसिद्धी सिर्फ भारत में नहीं, विदेशों में भी रही। जापान में तो इस कथा पर ‘रामायण द लीजेंड ऑफ प्रिंस रामा’ नाम से 1983 में एनिमेटेड फिल्म भी बन चुकी है। जापानी फिल्ममेकर यूगो साको मर्यादा पुरुषोत्तम राम के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुए कि उन पर एनिमेटेड फिल्म बनाने की योजना बना ली। लेकिन, इससे पहले उन्होंने इसके धार्मिक महत्व को समझा और जापानी में उपलब्ध रामायण के दस वर्जन पढ़े और उसके बाद फिल्म बनाने का विचार किया। उनकी इस कोशिश का शुरू में विरोध हुआ। क्योंकि, राम भक्त नहीं चाहते थे कि उनके भगवान कार्टून कैरेक्टर में दिखाए जाएं। लेकिन, जब उन्होंने सब कुछ समझा तो पीछे हट गए।
फ़िल्मकारों ने सिर्फ ‘रामायण’ पर राम के किरदार को केंद्रीय पात्र बनाकर ही फ़िल्में नहीं बनाई, कई फ़िल्में ऐसी भी बनी जो रामकथा से प्रभावित थी। फिल्म ‘बाहुबली’ के दूसरे पार्ट ‘बाहुबली : द कन्क्लूजन’ में फिल्म के हीरो को भी राम की तरह ही घर छोड़कर जंगलों में रहना दिखाया गया। इस फिल्म की कहानी कुछ हद तक ‘रामायण’ से प्रभावित थी। राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म ‘दिल्ली-6’ में रामलीला का चित्रण बेहतरीन ढंग से किया गया था। फिल्म ‘आरआरआर’ में आलिया भट्ट ने सीता का किरदार निभाया था। ये भूमिका भी सीता से प्रभावित थी। रामचरण तेजा ने राम का किरदार निभाया था।
सामाजिक फिल्म बनाने वाले सूरज बड़जात्या की 1999 में आई फिल्म ‘हम साथ साथ हैं’ भले ही पारिवारिक फिल्म है, किंतु इसकी कहानी भी रामायण जैसी थी। इसमें कैकयी जैसे भी कुछ किरदारों को बखूबी से फिल्माया गया था। बीआर चोपड़ा की फिल्म ‘गुमराह’ की शुरुआत ही रामायण के सीता हरण प्रसंग से होती है। लक्ष्मण जब कुटिया के चारों तरफ रेखा खींचते है, तब सीता पूछती है कि ये क्या है! तब लक्ष्मण जवाब देते हैं नारी का सुहाग, इज्जत और सारा साम्राज्य इसी रेखा के अंदर है। अभिषेक बच्चन की एक फिल्म का तो नाम ही ‘रावण’ और शाहरुख़ की फिल्म का नाम ‘रा-वन’ था। आशय यह कि ‘रामायण’ की कथा हिंदू जनमानस के जीवन के हर पहलू का हिस्सा है।