Silver Screen:यादों में अभी तक बसे हैं जीवन से जुड़े ‘दूरदर्शन’ के वे सीरियल!

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Silver Screen:यादों में अभी तक बसे हैं जीवन से जुड़े ‘दूरदर्शन’ के वे सीरियल!

समय के साथ बहुत कुछ बदला और उसके साथ मनोरंजन के तरीके भी बदले। फिल्मों का लम्बा दौर चला, कई बार उसमें भी बदलाव आया। यह दौर आज भी चल रहा है। फर्क इतना आया कि पीढ़ियों बदलने के साथ दर्शकों की पसंद बदलती गई। 80 के दशक में फिल्मों के साथ मनोरंजन का नया माध्यम टेलीविजन भी इसमें जुड़ गया। इससे दर्शकों को घर में बैठकर मन बहलाने का विकल्प मिल गया। सबसे पहले आया ‘दूरदर्शन’ जिसने दर्शकों का बरसों तक मनोरंजन किया। आज भले ही ‘दूरदर्शन’ मनोरंजन की दौर में पिछड़ गया हो, पर उस पीढ़ी के दर्शकों की यादों में आज भी दूरदर्शन के सीरियल चस्पा है। शुरू में दूरदर्शन के प्रसारण का समय भी सीमित था। पर, जब भी कोई कार्यक्रम शुरू होता, पूरा परिवार टीवी के सामने बैठ जाता था। जिन घरों में टीवी नहीं था, वे भी पड़ौसी या परिचितों के यहां बिन बुलाए पहुंच जाते थे। ये दर्शक सिर्फ मनोरंजन के कार्यक्रम देखने के लिए ही नहीं जुटते थे, बल्कि वे कृषि दर्शन जैसे कार्यक्रमों को देखने का भी मौका नहीं छोड़ते!

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भारतीय टेलीविजन इतिहास में ‘हम लोग’ पहला सीरियल था, जो 7 जुलाई 1984 को दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ। दर्शकों को यह शो इतना पसंद आया था कि इसके चरित्र विख्यात हो गए! इस सीरियल की कहानी लोगों की रोजमर्रा की बातचीत का हिस्सा बन गई थी। इस सीरियल ने देश के मध्यम वर्ग की ज़िंदगी को बहुत नजदीक से दर्शाया था। इसकी लोकप्रियता का पैमाना कुछ वैसा ही था, जैसा बाद में ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ का रहा! ‘रामायण’ को भारतीय टेलीविजन के सबसे सफल सीरियलों में से एक माना जाता है। रामानंद सागर के इस सीरियल का असर ऐसा था, जिससे दर्शकों की धार्मिक भावनाएं उभरकर सामने आईं! जबकि, निर्माता रामानंद सागर पर इसका इतना असर हुआ कि उन्होंने इसके बाद फ़िल्में बनाना ही छोड़ दी। दूरदर्शन पर ये सीरियल जब पहली बार प्रसारित किया, तो गाँव व शहरों में कर्फ्यू जैसा माहौल हो गया था। आज की पीढ़ी को ये बात अचरज लग सकती है, पर सच यही था। सीरियल के समय सड़कें खाली हो जाती थी। जो जहां वहीं किसी तरह ‘रामायण’ देखने लगता।

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इसके बाद में बीआर चोपड़ा ने भी ‘महाभारत’ बनाकर छोटे परदे पर कुछ ऐसा ही जादू किया था। ये सीरियल 2 अक्टूबर 1988 को पहली बार प्रसारित हुआ। इस सीरियल की शुरुआत सबसे खास हिस्सा होता तब होता था, जब हरीश भिमानी की आवाज गूंजती थी ‘मैं समय हूं!’ ब्रिटेन में इस धारावाहिक का प्रसारण बीबीसी ने किया, तब इसकी दर्शक संख्या 50 लाख पार कर गई थी। ‘दूरदर्शन’ के सफल सीरियलों में ‘चंद्रकांता’ भी रहा, जिसका प्रसारण 4 मार्च 1994 को शुरू हुआ था। देवकीनंदन खत्री के फंतासी उपन्यास पर बने इस सीरियल को दर्शकों ने बेहद पसंद किया।

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दूरदर्शन पर 1994 में प्रसारित हुए ‘अलीफ लैला’ के दो सीजन में 260 एपिसोड प्रसारित हुए! जादू, जिन्न, बोलते पत्थर, एक मिनट में गायब हो जाना, राजा व राजकुमारी की कहानी को मिलाकर बने इस सीरियल को लोग आज भी याद करते हैं। ‘1001 नाइट्स’ पर आधारित इस धारावाहिक में मिस्र, यूनान, फ़ारस, ईरान और अरब देशों की बहुत सी रोमांचक कहानियां थीं जिनके हीरो सिंधबाद, अलीबाबा और चालीस चोर, अलादीन हुआ करते थे। रामानंद सागर ने ‘रामायण’ से पहले ‘विक्रम और बेताल’ बनाया था। इस धारावाहिक के सिर्फ 26 एपिसोड ही प्रसारित हुए थे। ये 1985 में दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ था। ये महाकवि सोमदेव की लिखी ‘बेताल पच्चीसी’ पर आधारित था।

‘जंगल, जंगल बात चली है पता चला है ऐसे …’ ये वो लाइन है, जिन्हें गुलजार ने ‘जंगल बुक’ सीरियल के लिए लिखा था। ये लाइनें और ये सीरियल आज भी उस दौर के दर्शकों के दिलों में बसा है! बच्चों से लेकर बड़ों तक को बेसब्री से इंतज़ार रहता था। दूरदर्शन पर ये जापानी एनिमेटेड इंग्लिश सीरीज़ आती थी जिसे हिंदी में रूपांतरित किया था। कई गांव में तब बिजली नहीं होती थी, तो लोग बैटरी से टीवी को जोड़कर ये शो देखते थे। यही क्यों 80 और 90 के दशक में दूरदर्शन पर प्रसारित ऐसे कई सीरियल है, जो बहुत ज्यादा पसंद किए गए। ‘हम लोग’ और ‘बुनियाद’ तो लोकप्रियता में मील का पत्थर थे। इसके अलावा भी ऐसे कई सीरियल हैं, जो निर्माण के मामले में भले ही आज से हल्के दिखाई देते हों, पर अपने कथानक के कारण दर्शकों की पहली पसंद थे। आरके नारायण की कहानियों पर आधारित ‘मालगुडी डेज़’ भी बच्चों का पसंदीदा सीरियल था, जिसका प्रसारण 1987 में हुआ था। इसमें स्वामी एंड फ्रेंड्स तथा वेंडर ऑफ स्वीट्स जैसी लघु कथाएं व उपन्यास शामिल थे। इसे हिन्दी और अंग्रेजी में बनाया गया था। इसके 39 एपिसोड प्रसारित हुए, फिर इसे ‘मालगुडी डेज़ रिटर्न’ नाम से पुनर्प्रसारित भी किया गया। हमारे देश के बच्चों को अपना पहला सुपर हीरो ‘शक्तिमान’ 27 सितम्बर 1997 को मिला था। इसका अपना अलग ही क्रेज़ था। 400 एपिसोड वाला यह शो करीब 10 साल तक चला!

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‘भारत एक खोज’ भी दूरदर्शन का 53 एपिसोड तक चला एक कालजयी कार्यक्रम था। यह 1988 से 1989 के बीच हर रविवार प्रसारित होता रहा। जवाहरलाल नेहरु की किताब ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ (भारत की खोज) पर आधारित यह टीवी सीरीज़ शायद टेलीविज़न के इतिहास में अब तक का सबसे बेहतरीन रूपांतरण है। इसके निर्माता और निर्देशक हिन्दी फिल्मों के मशहूर निर्देशक श्याम बेनेगल थे। अंकुर, निशांत, मंथन और भूमिका जैसी फिल्मों के लिए चर्चित बेनेगल समानांतर सिनेमा के बड़े निर्देशकों में हैं। बेनेगल ने जो सीरियल बनाया, वह न सिर्फ दूरदर्शन बल्कि देश के टीवी सीरियलों के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ। 80 के दशक में जब ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ जैसे सीरियलों ने हर घर में अपनी जगह बनाई थी। उस समय सरकार को लगा कि भारत के इतिहास पर भी एक टीवी सीरियल बनाया जाना चाहिए। बेनेगल ने देश के दर्शकों तक भारत की ऐसी अनसुनी कहानी को पहुंचाने का मुश्किल काम किया। वास्तव में श्याम बेनेगल की दिलचस्पी ‘महाभारत’ बनाने में ज्यादा थी। लेकिन, वह पहले ही बीआर चोपड़ा को दिया जा चुका था। जब उनके पास भारतीय इतिहास पर ‘भारत एक खोज’ बनाने का ऑफर आया तो वे मना नहीं कर सके।

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दूरदर्शन पर धार्मिक सीरियलों में रामायण, महाभारत, जय हनुमान, श्री कृष्णा, ॐ नमः शिवाय, जय गंगा मैया। ऐतिहासिक सीरियलों में टीपू सुल्तान, अकबर द ग्रेट, द ग्रेट मराठा, भारत एक खोज, चाणक्य। पारिवारिक सीरियलों में स्वाभिमान, अंजुमन, संसार, बुनियाद, हम लोग, कशिश, फ़र्ज़, वक़्त की रफ़्तार, अपराजिता, इतिहास, शांति, औरत, फरमान, इंतज़ार और सही, हम पंछी एक डाल जैसे कालजयी सीरियल भला कौन भूला होगा। कॉमेडी और मनोरंजन वाले सीरियल ये जो है जिंदगी, मुंगेरीलाल के हसीन सपने, विक्रम और बेताल, सुराग, मालगुडी डेज, तेनालीराम, व्योमकेश बक्शी, कैप्टेन व्योम, चंद्रकांता, शक्तिमान, आप-बीती, फ्लॉप शो, अलिफ़ लैला, आँखें, देख भाई देख, एक से बढ़कर एक, ट्रक धिना धिन, तहकीकात जैसे कई नाम है।

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उस समय एनिमेशन इंडस्ट्री ज्यादा विकसित नहीं थी, इसलिए विदेशी सीरियलों को डब करके परोसे गए। डिज्नी के मोगली जंगल बुक, टेलस्पिन, डक टेल्स, अलादीन, ऐलिस इन वंडरलैंड, गायब आया जैसे सीरियल बहुत देखे गए। ‘सुरभि’ भी दूरदर्शन का सबसे लंबे समय तक चलने वाली सीरीज थी, जिसका नाम ‘लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ में भी दर्ज था। शो देखने वाले हर हफ्ते 10 लाख चिट्ठियां भेजते थे। इस सीरीज को रेणुका शहाणे और सिद्धार्थ काक होस्ट करते थे। ‘सुरभि’ 1990 से 2001 तक चला था। 1991 में इसे प्रसारित नहीं किया गया। करीब 10 साल तक चले इस शो के 415 एपिसोड प्रसारित हुए। ‘सुरभि’ दूरदर्शन का पहला ऐसा कार्यक्रम था, जिसमें नियमित इनामी प्रतियोगिता होती थी। भारत की संस्कृति और सामान्य ज्ञान से संबंधित सवाल पूछे जाते थे। इनाम में भारत के विभिन्न राज्यों के टूर-पैकेज दिए जाते थे। एक एपिसोड में मचान बांधकर लगाए गए पौधे दिखाए गए थे। उन मचानो से बेलें लटक रही थी। पूछा गया था कि ये किस चीज़ की खेती है। इसके जवाब में उस एपिसोड में लाखों पोस्टकार्ड मिले, जो रिकॉर्ड था। इसी से अंदाजा लगाया गया कि ‘सुरभि’ कितना लोकप्रिय सीरियल था। लेकिन, अब दूरदर्शन उस पीढ़ी की यादों में दर्ज होकर रह गया।

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‘कृषि दर्शन’ दूरदर्शन का क्लासिक शो रहा है। इसमें खेती-बाड़ी और किसानी से संबंधित जानकारी दी जाती थी। इसका 26 जनवरी 1967 को प्रीमियर किया था। ‘कृषि दर्शन’ के 16,780 एपिसोड प्रसारित हुए। इसके 62 सीजन आए थे। इसी तरह चित्रहार’ में बॉलीवुड के नए और पुराने सुपरहिट गानों को दिखाया जाता। 80 और 90 के दशक में इस शो का भी खूब क्रेज रहा था। यह भी दूरदर्शन के सबसे लंबे समय तक चलने वाले शो में शामिल रहा। इसने 12,000 एपिसोड पूरे किए थे। इसी तरह रंगोली’ जैसा फ़िल्मी गीतों का कार्यक्रम और ‘फूल खिले हैं गुलशन गुलशन’ टॉक शो भी उस दौर के दर्शकों को याद होगा। इसमें फिल्म और टीवी हस्तियां अपनी जिंदगी के बारे में खुलकर बात करती थी। इसे एक्ट्रेस तबस्सुम होस्ट किया करती थीं। ‘फूल खिले हैं गुलशन गुलशन’ साल 1972 से 1993 तक प्रसारित हुआ। यह भी दूरदर्शन के लंबे समय तक चलने वाले शो में से एक रहा। लेकिन, अब ये टीवी शो पिछली पीढ़ी की यादों में ही दर्ज होकर रह गए।

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हेमंत पाल

चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।

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