

Silver Screen: गुदगुदाना, हंसाना और फिर डराना, ये है मनोरंजन का नया फार्मूला!
– हेमंत पाल
हमारे देश की विचित्रता में कई तरह के किस्से और कहानियां हैं। जिस तरह ईश्वर के प्रति आस्था है, उसी तरह समाज में जन्म, मृत्यु, पुनर्जन्म, आत्मा और भूत को लेकर भी लोगों में भरोसा काफी गहरा है। इसे लेकर कई तरह के किस्से-कहानियां प्रचलित हैं। जो लोग इन पर भरोसा नहीं करते, वे भी इन्हें एकदम नहीं नकारते। क्योंकि, हर परिवार में भूत, प्रेत, चुड़ैल और आत्माओं की मौजूदगी बताने वाला कोई न कोई सदस्य जरूर होता है। आज भी यह विषय विवाद में है कि क्या भूत-प्रेत होते हैं या फिर सिर्फ भ्रम है। इन्हीं भूतों और प्रेत आत्माओं का प्रभाव फिल्मों में भी आया। ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के ज़माने से भूत, प्रेत और चुड़ैल के नए-नए किस्से दिखाए जाते रहे हैं। आज जब फिल्म निर्माण की तकनीकी आधुनिक हो गई, पर हमारी फ़िल्में उससे मुक्त नहीं हुई। फर्क इतना आया कि इसमें मनोरंजन का तड़का नए अंदाज में लगने लगा। भूतों की कहानी को कभी कॉमेडी की तरह फिल्माया जाता, कभी बदले की भावना से जोड़ा जाता! कुछ कहानियों में इसमें एक जन्म से दूसरे जन्म तक प्रेम कहानी को गूंथा गया। ऐसी कहानियां कभी पुरानी नहीं पड़ी।
फिल्मों में सबसे पहले इस तरह का कथानक 1949 में कमाल अमरोही ‘महल’ से लाए थे। अशोक कुमार और मधुबाला की इस फिल्म में नायिका भटकती आत्मा थी। लेकिन, क्लाइमेक्स में पता चलता है कि वो कोई आत्मा नहीं, वास्तव में महिला ही थी। इसके बाद 1962 में आई ‘बीस साल बाद’ 1964 में आई ‘वो कौन थी’ और 1965 की ‘भूत बंगला’ में भी ऐसी ही डरावनी कहानियां थीं। खास बात यह कि ऐसी अधिकांश फिल्मों में भूत या भटकती आत्मा को असफल प्यार या बदले की भावना से जोड़ा जाता रहा। फिल्मों में भूतों की भूमिका दो तरह से दिखाई जाती रही है। एक बदला लेने वाला और दूसरा मदद करने वाले भूत! 80 और 90 के दशक में ‘रामसे ब्रदर्स’ ने जो फ़िल्में बनाई, वो डरावनी शक्ल और खून में सने चेहरों वाले खूनी भूतों पर केंद्रित रही। बाद में इन भूतों का अंत त्रिशूल या क्रॉस से दिखाया गया। इस बीच मल्टीस्टारर फिल्म ‘जॉनी दुश्मन’ आई, जिसमें संजीव कुमार ऐसे भूत बने थे, जो दुल्हन का लाल जोड़ा देखकर खतरनाक भूत में बदल जाते हैं। 2007 में प्रियदर्शन ने भी ‘भूल भुलैया’ में आत्मा को दिखाया। यह विषय इतना पसंद किया गया कि इसके दो सीक्वल बन गए।
फिल्मों के भूत सबका नुकसान ही करें, यह जरूरी नहीं। फ़िल्मी कथानकों में ऐसे भी भूत आए, जो सबकी मदद करते हैं। भूतनाथ, भूतनाथ रिटर्न और ‘अरमान’ में अमिताभ बच्चन ने ऐसे ही अच्छे भूत का किरदार निभाया, जो मददगार होते हैं। ‘हैल्लो ब्रदर’ में भूत बने सलमान खान अरबाज़ खान के शरीर में आकर मदद करते थे। ‘चमत्कार’ में नसीरुद्दीन शाह बदला लेने के लिए शाहरुख़ खान की मदद करता है। ‘भूत अंकल’ में जैकी श्रॉफ और ‘वाह लाइफ हो तो ऐसी’ में शाहिद कपूर को यमराज बने संजय दत्त की मदद से भला करते दिखाया गया। ‘टार्ज़न द वंडर कार’ में भी कुछ ऐसी ही कहानी थी। इंग्लिश फिल्म ‘घोस्ट’ से प्रेरित होकर ‘प्यार का साया’ और ‘माँ’ बनाई गई थी। दोनों फ़िल्में ऐसे भूतों की थी, जो बुरे नहीं थे।
विक्रम भट्ट जैसे बड़े फिल्मकार भी ऐसी फिल्म बनाने के मोह से बच नहीं सके! उन्होंने ‘राज़’ की सफलता के बाद तो इसके कई सीक्वल बना डाले। भट्ट ने 1920, 1920-ईविल रिटर्न, शापित और हॉन्टेड में आत्माओं के दीदार करवाए! 2003 में अनुराग बासु जैसे निर्देशक ने भी ‘साया’ जैसी फिल्म बनाई। रामगोपाल वर्मा जैसे प्रयोगधर्मी निर्देशक ने तो ‘भूत’ टाइटल से ही फिल्म बना दी। इसके बाद फूँक, फूँक-2, डरना मना है, डरना ज़रूरी है, वास्तुशास्त्र, भूत रिटर्न में भी हाथ आजमाए! अनुष्का शर्मा जैसी नए जमाने की एक्ट्रेस ने ‘फिल्लौरी’ में न सिर्फ काम किया। बल्कि, फिल्म की निर्माता भी वे खुद थी। अनुष्का ने खुद ही भूत का किरदार निभाया! फिल्म की कहानी एक मांगलिक लड़के की थी, जिसकी शादी होने वाली रहती है। उसकी होने वाली पत्नी को मंगल दोष से बचाने के लिए पहले उसकी शादी उस पेड़ से कर दी जाती है, जिस पर अनुष्का भूत बनकर रहती है। पेड़ पर रहने वाली भूतनी लड़के के पीछे लग जाती है और हास्यास्पद रोमांटिक हालात पैदा हो जाते हैं। भूतनी बनी अनुष्का ‘फिल्लौरी’ में दर्शकों को लुभाती भी है और डराती भी! क्योंकि, अनुष्का का भूत किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता।
1991 में आई माधुरी दीक्षित और जैकी श्रॉफ की फिल्म ‘100 डेज़’.आई थी। फिल्म का सस्पेंस लोगों को पसंद आया। पूरी फिल्म में सस्पेंस बने होने से फिल्म ने क्लाइमैक्स तक दर्शकों को बांधकर रखा। यही वजह थी कि फिल्म हिट रही थी। 2008 में आई फ़िल्म ‘फूंक’ डरावनी थी। इस फिल्म के बारे में निर्देशक रामगोपाल वर्मा ने कहा था कि अगर कोई बिना डरे अकेले इस फ़िल्म को थियेटर में देख लेगा, तो वे उसे 5 लाख का इनाम देंगे। रामगोपाल वर्मा ने फिल्म इंडस्ट्री को कई चर्चित हॉरर फिल्म दी। इनमें एक फिल्म ‘रात’ भी है। इस फिल्म में मुख्य किरदार रेवती थी। 1992 में आई इस फिल्म में डर ही डर अंत तक था। इसकी गिनती रामगोपाल वर्मा की बेस्ट फिल्मों में होती है। ‘डरना मना है’ भी रामगोपाल वर्मा की ही फिल्म थी। इसमें 6 कहानियों को एक फिल्म में पिरोया गया था। सभी कहानियों ने दर्शकों को डराया।
सुष्मिता सेन और जेडी चक्रवर्ती अभिनीत फिल्म वास्तु शास्त्र (2004) आई। रामगोपाल वर्मा की इस फिल्म में एक पेड़ पर रहने वाली बुरी आत्माएं जो पास के घर के लोगों को परेशान करती हैं। किरदार उनसे कैसे सामना करते हैं, ये दिखाया गया। विक्रम भट्ट और अरुण रंगाचारी ने 2011 में एक फिल्म ‘हॉन्टेड 3डी’ बनाई। ये बहुत ही भयानक और डरावनी फिल्म थी। इसमें 3डी टेक्निक का भी उपयोग किया था। यही वजह थी कि दर्शकों ने इसे बहुत पसंद किया। भूत-प्रेत का भयानक रूप और वे इंसान को कैसे टॉर्चर करते है जिसमें वे प्रवेश करते हैं। फिल्म ‘1920’ में यह बखूबी दिखाया। 2008 में आई विक्रम भट्ट की ये फिल्म बहुत डरावनी थी, जिसे दर्शकों ने पसंद किया। इसकी सीक्वल ‘1920 रिटर्न’ भी आई थी।
देखा गया है कि ऐसी ज्यादातर फिल्मों के कथानक में किसी पौराणिक कहानी का जिक्र करके भूत या प्रेत को जोड़ा जाता है। राजकुमार राव और श्रद्धा कपूर की फिल्म ‘स्त्री’ और उसके बाद आई ‘स्त्री-2’ भी पौराणिक कथाओं पर आधारित है। एक गांव में चुडैल रातों में घूमती हैं और किसी भी मर्द को अकेला पाकर उठा ले जाती है। लोग अपने घर के बाहर ‘नाले बा’ लिख देते थे, जिसका मतलब होता है ‘कल आना।’ इस फिल्म का सीक्वल स्त्री-2 नाम से बना और 2024 में आई इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर कमाई का रिकॉर्ड ही बना दिया। इसी तरह अनुष्का शर्मा की फिल्म ‘परी’ भी काफी डरावनी फिल्म है। इसमें उन्होंने खुद एक ‘इरफ़ित’ का किरदार निभाया, जिसका नाम रुख़साना होता है। ये फिल्म भी पौराणिक कथाओं के आधार पर बनाई थी। इरफित एक काफी ताकतवर शैतान होता है, जो खंडहरों और मंदिरों के आसपास घूमता दिखाई देता है, वो इंसानों के आसपास रहते हैं और उनसे शादी भी कर लेते हैं, लेकिन इनकी फितरत घातक और निर्दयी किस्म की होती है।
बिपाशा बसु और डीनो मोरिया की फिल्म ‘राज’ भी अपने दौर की डरावनी फिल्मों में से एक है। आज के समय भी इसकी गिनती बेस्ट हॉरर फिल्मों में की जाती है। फ़िल्म में एक लड़की की भूतिया कहानी है, जो मरने के बाद प्रेत-आत्मा बन जाती है। ‘प्रेत-आत्मा’ का मतलब एक मृत आदमी की आत्मा होती है, जो तब एक भूत या शैतान का रूप लेती है। जब उसकी कोई इच्छा अधूरी रह जाती है या उसको किसी से बदला लेना होता है। ये प्रेत आत्मा इसलिए बनती है, क्योंकि उनकी डेड बॉडी का अंतिम संस्कार नहीं किया गया हो। अनुष्का शर्मा के प्रोडक्शन हाउस में बनी ये फ़िल्म ‘बुलबुल’ को दर्शकों ने खूब पसंद किया। ये बंगाल के एक गांव की कहानी है, जो 19वीं सदी में बंगाल प्रेज़िडेंसी के बैकग्राउंड पर बनी है। ये फिल्म चुड़ैलों पर एक नई कहानी कहती है। इस फिल्म को भी पौराणिक कथाओं के आधार पर बनाया गया। चुड़ैल एक एक पौराणिक अलौकिक औरत होती है। इसे जीवित वस्तु का भूत भी कहा जाता है। फ़िल्म में तृप्ति डिमरी, अविनाश तिवारी और राहुल बोस हैं। इमरान हाशमी की फिल्म ‘एक थी डायन’ ने भी दर्शकों को खूब डराया। इस फिल्म की कहानी एक जादूगर पर आधारित है, जो एक डायन से प्रेत बाधित होता है। इस फिल्म की कहानी भी पौराणिक कथाओं के आधार पर थी। डायन को चुड़ैल के तौर पर भी जाना जाता है, जिसको संस्कृत में ‘दाकिनी’ कहा जाता है। मध्यकालीन हिंदू ग्रंथों जैसे ‘भगवत गीता’ में भी दाकिनी का उल्लेख मिलता है, जो एक दुष्ट महिला होती है।