Silver Screen:जब फिल्मों में पुरुष बनते थे हीरोइन, तब यहूदी महिलाओं ने उनकी जगह ली!

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Silver Screen:जब फिल्मों में पुरुष बनते थे हीरोइन, तब यहूदी महिलाओं ने उनकी जगह ली!

– हेमंत पाल

हिंदी फिल्मों में एक दौर ऐसा भी था, जब महिलाओं का फिल्मों में काम करना समाज को स्वीकार नहीं था। लेकिन, हीरोइन के बगैर फिल्म की कहानी पूरी नहीं होती, तो कमसिन से दिखने वाले पुरुषों को हीरोइन बना दिया जाता। ये दौर लंबे अरसे तक चला। फिर इस कमी को पूरा किया उन महिलाओं ने जिन पर भारतीय समाज का रौब नहीं चलता था। ये महिलाएं यहूदी परिवेश से थी, जिनका चेहरा-मोहरा भारतीय महिलाओं की तरह ही था। धीरे-धीरे समय बदला और उनकी जगह भारतीय हीरोइनों ने ली। वास्तव में हिंदी फ़िल्में कहने को हिंदी भाषा की फ़िल्में होती हैं, पर इसमें समाज के हर वर्ग की भाषा और बोली का योगदान रहा। यहूदी भी उनमें से एक हैं। इन लोगों की मूल भाषा कुछ भी हो, पर फिल्म में वे हिंदी ही बोलते दिखाई दिए। यहूदियों ने भी फिल्मों में कई तरीकों से अपना योगदान दिया। इतिहास को पलटा जाए, तो हमारे देश में यहूदी 1930 और 1940 के दशक में हिंदी फिल्मों में सक्रिय थे। ये वो दौर था जब दुनिया के कई देशों में यहूदियों के खिलाफ विरोध चल रहा था। पर, भारत में ऐसा कुछ नहीं था। हमारे देश में भौगोलिक के साथ सांस्कृतिक और भाषाई विविधता की कमी नहीं है। ऐसे में यहां यहूदियों को सामंजस्य बनाने में कोई समस्या नहीं आई।

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सुज़ैन सोलोमन अपने स्टेज नाम फिरोजा बेगम, सुलोचना (नी रूबी मेयर्स), पहली मिस इंडिया, प्रमिला (नी एस्थर अब्राहम) यहां तक कि नादिरा (फ्लोरेंस ईजेकील) के नाम से प्रसिद्ध हुई। लेकिन, हिंदी फिल्मों के उत्थान में यहूदियों का योगदान अभिनेत्रियों तक ही सीमित नहीं था। पहली भारतीय बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ (1931) की पटकथा और गाने एक यहूदी, जोसेफ पेनकर डेविड ने लिखे थे। फिल्मों के महान कोरियोग्राफरों में से एक डेविड हरमन भी यहूदी थे। सिनेमा के पुरुष कलाकारों में डेविड अब्राहम चेउलकर थे, जिन्होंने 100 से अधिक फिल्मों में अभिनेता रहे। मशहूर नाटककार आगा हश्र कश्मीरी ने ही रोमिला का सिनेमा से परिचय कराया। रिमझिम, दो बातें, साइकिल वाली और ‘चाबुक वाली’ उनकी चर्चित फिल्में रहीं।

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रोमिला और प्रमिला की चचेरी बहन रोज मुसलीह ने भी मूक सिनेमा के दौर में एक चर्चित नर्तकी के रूप में नाम कमाया। रोज ने ‘कसौटी’ जैसी चर्चित फिल्म में काम किया। उनकी शोहरत ऐसी अभिनेत्री के रूप में बनी, जिनके नृत्य पर सिनेमा के शौकीन फिदा रहे। 1948 में आई फिल्म ‘हम भी इंसान हैं’ में देव आनंद के साथ काम करने वाली रमाला देवी भी यहूदी मूल की अभिनेत्री थी। उनका असली नाम था रैशेल कोहेन था। ‘खजांची’ फिल्म में उन पर फिल्माया साइकिल वाला गाना अपने समय का चर्चित गीत रहा। रमाला देवी ने हिंदी सिनेमा में फैशन को खूब बढ़ावा दिया। ‘लक्स’ साबुन की शुरुआती ब्रांड अंबेसडर में उनका नाम भी शामिल था।

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यहूदी मूल की चर्चित अभिनेत्रियों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुई नादिरा। उनका असल नाम फ्लोरेंस एजेकील था। एक बगदादी यहूदी परिवार में जन्मी नादिरा का हिंदी सिनेमा से परिचय महबूब की पत्नी सरदार बेगम ने कराया था। वे दिलीप कुमार के साथ ‘आन’ में अपने बोल्ड किरदार से चर्चा में आईं। लेकिन, उन्हें शोहरत मिली फिल्म ‘श्री 420’ के माया के किरदार से। राज कपूर की फिल्मों की शौकीन नादिया उस जमाने में हिंदी सिनेमा की असल वैम्प थीं, जिन्होंने राजकपूर की कई फिल्मों में खलनायिका की भूमिका निभाई। 1952 में आयी फिल्म ‘आन’ ने उन्हें पहचान दी। उसके बाद श्री 420, दिल अपना और प्रीत पराई, छोटी-छोटी बातें, पाकीजा, अनोखा दान आदि 66 फिल्मों में यादगार रोल निभाए व तीन टीवी सीरियल में भी काम किया। दिल अपना और प्रीत पराई, हंसते जख्म, अमर अकबर एंथनी और ‘पाकीजा’ जैसी फिल्मों में भी नादिरा का किरदार चर्चा में रहा। ‘जूली’ में उनके किरदार की खूब चर्चा हुई और उनकी आखिरी फिल्म रही 2000 में ‘जोश।’

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हिंदी फिल्मों के चर्चित कलाकार डेविड भी इस्राइली मूल के यहूदी अभिनेता थे। उनका पूरा नाम डेविड अब्राहम चेउलकर था। 1937 में ‘जम्बो’ फिल्म से अपना करियर शुरू करने वाले डेविड ने कई यादगार फिल्में दीं। लेकिन, उन्हें पहचान मिली 1941 में आई ‘नया संसार’ से। डेविड ने करीब 110 फिल्मों में काम किया। फिल्म ‘बूट पॉलिश’ में अपने किरदार जॉन चाचा से मशहूर हुए डेविड ने सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार भी जीता। डेविड पर फिल्माया गया गाना ‘नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है’ आज भी बाल दिवस पर सुनाई देता है। उनकी अन्य चर्चित फिल्मों में अनुपमा, उपकार, एक फूल दो माली, अभिमान, चुपके चुपके, बातों बातों में, शिवम सुंदरम, खट्टा मीठा और ‘हमारे तुम्हारे’ को आज भी याद किया जाता है। वे अवार्ड नाइट्स व म्यूजिक नाइट्स होस्ट किया करते थे। उनका बोलने का अंदाज निराला था। उनकी ऊंचाई कम थी, पर अभिनय में उनका कद बहुत ऊंचा था। और ‘गोलमाल’ शामिल हैं। 1969 में उन्हें भारत सरकार की तरफ से पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया।

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सुलोचना को हिंदी फिल्मों की पहली महिला सुपरस्टार माना जाता है। इसमें रोज का नाम भी लिया जा सकता है। अभिनेत्री सुलोचना और प्रमिला फिल्म प्रोड्यूसर भी थीं। उनकी ‘सिल्वर फिल्म्स’ प्रोडक्शन कंपनी थी। उस दौर में फिल्म उद्योग को आकार देने में इनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। सुलोचना का वास्तविक नाम रूबी मायर्स था, वे सिनेमा के शुरुआती मूक फिल्मों की पहली महिला सुपरस्टार थीं। अपनी अदाकारी और खूबसूरती की बदौलत वे सिल्वर स्क्रीन पर छाई रही। उन्होंने कई कामयाब फिल्मों में अपनी अदाकारी दिखाई। उन्होंने सिनेमा गर्ल (1926), टाइपिस्ट गर्ल (1926), बलिदान (1927), वाइल्ड कैट आफ बाम्बे (1927), माधुरी (1928), अनारकली (1928), इंदिरा बीए (1929), हीर रांझा (1929), सुलोचना (1933), बाज (1953), नीलकमल (1968), आम्रपाली (1969), जूली (1975), खट्टा मीठा (1978) जैसी कई फिल्मों में काम किया। 1973 में सुलोचना को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

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अभिनेत्री रोज भी लंबे अरसे तक दर्शकों के दिल की धड़कन बनी रही। प्रमिला भी प्रोड्यूसर रही, जिनका वास्तविक नाम इश्तर विक्टोरिया अब्राहम था। उन्होंने अगस्त 2006 में पहली मिस इंडिया (1947) का ख़िताब जीता था। उनकी शादी मशहूर अभिनेता कुमार (असल नाम सैयद हसन अली जैदी) से हुई। 1963 में कुमार पाकिस्तान चले गए, लेकिन प्रमिला ने भारत में ही रहना उचित समझा। उनकी ही बेटी नकी जहां ने 1967 में मिस इंडिया का खिताब हासिल किया। यह अनोखा संयोग कि मां और बेटी दोनों ने मिस इंडिया का खिताब जीता। उन्होंने 30 से ज्यादा फिल्मों में हंटर वाली टाइप के किरदार निभाए। इनमें उल्टी गंगा, बिजली, बसंत व जंगल किंग काफी हिट रही। उन्होंने अपने बैनर ‘सिल्वर प्रोडक्शन’ में 16 फिल्मों का निर्माण किया गया। वे काफी टैलेंटेड थीं और उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया था। एक और यहूदी अभिनेत्री ने भी आरती देवी के नाम से कुछ फिल्मों में काम किया। उनका असली नाम रासेल सोफायर था।

अभिनेता और अभिनेत्रियों के अलावा बाम्बे फिल्म लैब के संस्थापक डेविड जरसॉन उमरेडकर, म्यूजिक डायरेक्टर बिन्नी एन सातमकर, कैमरामैन पेनकर इसाक, टेक्नीशियन रुबेन मॉसेस व रेमंड मॉसेस काफी लोकप्रिय रहे! ऑस्ट्रेलिया के फिल्मकार डैनी बेन मोशे हिंदी फिल्मों में यहूदी कलाकारों के 11 साल के योगदान पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई हैं। ‘शैलोम बॉलीवुड द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ इंडियन सिनेमा।’ यह डॉक्यूमेंट्री मूक फिल्मों के दौर से 20वीं सदी के अंत तक भारतीय सिनेमा में यहूदियों के योगदान की कहानियां कहती है। भारत में यहूदी हजारों सालों से भले न रह रहे हों, लेकिन, यहां यहूदी विरोध नहीं रहा। शायद किसी और देश में सुलोचना, नादिरा और डेविड जैसे यहूदी कलाकारों को स्वीकारा नहीं जाता। न कोई देश पहली ब्यूटी क्वीन के तौर पर ही किसी यहूदी को स्वीकारता, जो भारत ने किया।