Silver Screen:आसमान की तरफ बढ़ता कंगना रनौत का करियर घिसटने क्यों लगा!   

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Silver Screen:आसमान की तरफ बढ़ता कंगना रनौत का करियर घिसटने क्यों लगा!   

 

कंगना रनौत की अभिनय की दुनिया में अलग ही पहचान रही। वे जब पहली बार परदे पर आई, तो दर्शकों ने उनके चेहरे और अभिनय दोनों में बहुत ताजगी महसूस की। क्योंकि, वे कभी किसी अभिनेत्री के पदचिन्हों पर चलती दिखाई नहीं दी। दर्शकों ने उनमें गंभीरता भी देखी और चंचलता भी, उत्साह भी देखा और आत्मविश्वास भी। लेकिन, अब वे इन दिनों इस वजह से चर्चा में हैं, क्योंकि उनका नाम लोकसभा चुनाव में हिमाचल प्रदेश की एक सीट से बतौर उम्मीदवार लिया जा रहा है। अभी तय नहीं कि वे चुनाव लड़ेंगी तो जीतेंगी भी या नहीं! क्योंकि, ये अभिनेत्री हमेशा ही विवादों के चक्रव्यूह में रही। जबकि, कंगना की शुरुआती फिल्मों क्वीन, तनु वेड्स मनु और इसके सीक्वल ने अपार सफलता पायी। लेकिन, कुछ फिल्मों ने असफलता का स्वाद भी चखा। जल्द ही वो समय भी आ गया, जब वे नए-नए विवादों में फंसती चली गई।

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ये विवाद फ़िल्मी भी थे और गैर फ़िल्मी भी। कुछ मसले तो इतने गैरजरूरी थे, जिनमें कंगना रनौत का दखल उन दर्शकों को नहीं भाया जिनके दिमाग में इस अभिनेत्री की अलग छवि बनी थी। बात यहीं तक नहीं रुकी। कंगना ने ऐसे कई मामलों में टिप्पणी करना शुरू कर दिया, जो बतौर अभिनेत्री बिल्कुल भी जरुरी नहीं था। राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने के बाद हुए विवादों के जवाब, रितिक रोशन के साथ लंबा विवाद, उनके पासपोर्ट में गलत उम्र, नेपोटिज्म पर फिजूल का बवाल, जेएनयू मामले पर टिप्पणी और इसके बाद चीन से विवाद पर भी टिप्पणी जैसे कई मामले हैं, जिन पर कंगना का टांग अड़ाना ठीक नहीं लगा। इसका नतीजा ये हुआ कि सोशल मीडिया पर ‘कंगना’ ब्रांड ने निगेटिव रंग ले लिया। खुद अपने प्रोडक्शन हाउस की फिल्म ‘मणिकर्णिका’ के समय भी उनके अपने डायरेक्टर से कई विवाद हुए! सोशल मीडिया पर कंगना के पक्ष-विपक्ष में अक्सर खेमेबाजी होती है। कंगना के खिलाफ सोशल मीडिया पर नकारात्मक हैशटैग भी ट्रेंड करते रहते हैं। कंगना ने अपनी आदतों से राम मंदिर मामले में अमिताभ बच्चन पर भी उंगली उठाने का मौका निकाल लिया।

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कंगना रनौत को अब ऐसी अभिनेत्री माना जाने लगा जिनकी तुनक मिजाजी के किस्से आम रहते हैं। इसका असर ये हुआ कि नामी प्रोडक्शन हाउस, जोरदार कहानी और कंगना के अभिनय के बावजूद उनकी फ़िल्में फ्लॉप होने लगी। उनकी फिल्म ‘तेजस’ की यही गत हुई। इससे पहले आई ‘धाकड़’ का भी यही हाल हुआ था। कंगना कि इन दोनों फिल्मों ने बेहद ठंडा प्रदर्शन किया। ‘तेजस’ के बारे में तो कहा गया कि वीक-एंड के दिन जब कमजोर फ़िल्में भी देख ली जाती है, उन दिनों में भी कई सिनेमाघर में ‘तेजस’ देखने एक भी दर्शक नहीं पहुंचा। आधे से ज्यादा थियटरों में दर्शकों के अभाव में शो तक कैंसिल करने पड़े। जबकि, रिलीज से पहले ‘तेजस’ का काफी डंका बज रहा था। इस फिल्म का कंगना ने भी प्रमोशन किया। लेकिन, रिलीज होते ही फिल्म का हाल बुरा हो गया। पहले ही दिन दर्शकों के लिए तरसती दिखाई दी। फिल्म कैसी थी, फ़िलहाल इस पर चर्चा नहीं, पर दर्शकों ने कंगना की फिल्मों से कन्नी काट ली है। इसलिए यह कयास गलत नहीं है, कि कंगना की फिल्मों के फ्लॉप होने का कारण इस अभिनेत्री की छवि है, जो धीरे-धीरे बिगड़ती जा रही है।

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माना जा रहा है कि पहले ‘धाकड़’ और अब ‘तेजस’ 2023 की सुपर फ्लॉप फिल्म की लिस्ट में शामिल हो चुकी। दर्शकों की कसौटी पर ये फिल्म खरी नहीं उतर पायी। 45 करोड़ में बनी इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर लागत निकालने के लिए कड़ा संघर्ष किया। कंगना रनौत की ये फिल्म उनके फिल्म करियर की सबसे बड़ी फ्लॉप फिल्म बन गई। इस साल ‘धाकड़’ की हालत भी यही हुई थी। उस फिल्म के तो कई सिनेमाघरों में एक शो भी नहीं चल सके थे। जानकारों का मानना है कि कंगना की फ़िल्में उनके ख़राब अभिनय की वजह से फ्लॉप नहीं होती, बल्कि तुनक मिजाजी की उनकी आदत, निजी बातों को उजागर करने की सनक और बड़े कलाकारों के साथ काम करने से इंकार करने से उनकी नकारात्मक छवि बन गई। इस कारण ज्यादातर फिल्मकार और कलाकार कंगना से दूर रहने लगे। लोग उनकी बातों का जवाब तक देना जरूरी नहीं समझते। क्योंकि, वे कब, किस बात पर किसे कटघरे में खड़ा कर दें, कहा नहीं सकता। ऐसी आदतों के कारण मीडिया भी कंगना का साथ नहीं देती। मीडिया में ज्यादातर जगह कंगना की खिल्ली ही उड़ाई जाती है। अपने बगावती तेवरों के कारण यह अभिनेत्री सोशल मीडिया में भी खलनायिका बन गई! अपनी आदतों के कारण कंगना बॉलीवुड में हमेशा अकेली पड़ जाती है! देखा नहीं गया कि कोई कंगना के समर्थन में ज्यादा देर खड़ा रहा हो!

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दरअसल, कंगना की नजर में पूरा बॉलीवुड ख़ामियों से भरा है और सभी उनकी उपलब्धियों से जलते हैं। वास्तव में यह सब इस अभिनेत्री की खुद को सर्वश्रेष्ठ समझने की ग़लतफ़हमी है, और कुछ नहीं! उन्हें हर फ़िल्मकार से शिकायत है कि वे बड़े कलाकारों के बच्चों को लेकर ही फिल्म क्यों बनाते हैं! इससे कई प्रतिभाशाली कलाकार दबकर रह जाते हैं! सुशांत की आत्महत्या वाले मामले में कंगना ने किसी को भी कटघरे में खड़ा करने में देर नहीं की! नेपोटिजम (भाई-भतीजावाद) के नाम पर उन्होंने करण जौहर से लगाकर यशराज फिल्म्स, महेश भट्ट और संजय लीला भंसाली तक को नहीं छोड़ा! इन फिल्मकारों के अलावा टाइगर श्रॉफ और सोनाक्षी सिन्हा तक पर उंगली उठाई! कुछ लोगों ने कंगना को उसी अंदाज में जवाब भी दिया। जबकि, बॉलीवुड में नेपोटिज्म नई बात नहीं है! लेकिन, ये सिर्फ बॉलीवुड में ही नहीं, राजनीति और बिज़नेस वर्ल्ड में भी ये सब होता है। ये आज की बात भी नहीं है।

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राज कपूर परिवार और भट्ट कैंप आज नहीं पनपे! लेकिन, परदे पर वही लम्बी रेस का घोड़ा बन पाता है, जिसमें क़ाबलियत होती है। राज कपूर का एक ही बेटा ऋषि कपूर चला, देव आनंद का बेटा अभिनय में नहीं चला, राकेश रोशन दूसरे दर्जे के नायक थे, पर उनका बेटा रितिक आज सफल हीरो है। जैकी श्रॉफ का बेटा टाइगर अलग जॉनर का कलाकार है। शशि कपूर का बेटा भी नहीं चला, अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा और जीतेंद्र के बेटे भी आउट हो गए। क्योंकि, उनमें क़ाबलियत नहीं थी। बड़े अभिनेताओं के बच्चों की असफलताओं की लिस्ट बहुत लम्बी है। लेकिन, औसत हीरो जैकी श्रॉफ का बेटा टाइगर आज स्टार है। शत्रुघ्न सिन्हा की बेटी सोनाक्षी भी औसत दर्जे की हीरोइन है, पर महेश भट्ट की बेटी आलिया का जलवा है। इसलिए नेपोटिज्म जैसी बहस फिल्म इंडस्ट्री के लिए बेमतलब है। लेकिन, कंगना ने लंबे समय तक इस विवाद को घसीटा। काफी साल पहले एक फिल्म आई थी ‘अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है!’ इस फिल्म में अल्बर्ट पिंटो का गुस्सा महज अभिनय था! लेकिन, अभिनेत्री कंगना रनौत का गुस्सा फ़िल्मी नहीं है। उनके गुस्से का कारण कुछ भी हो सकता है। कंगना रनौत को कब, किस बात पर गुस्सा आ जाए कहा नहीं जा सकता। जरूरी नहीं कि उनके गुस्से का कोई आधार हो! कंगना कब किस बात पर अपना आपा खो दें, कोई नहीं जानता! वास्तव में तो कंगना असहमति का दूसरा नाम है। हर मामले में अपनी सलाह और नज़रिया व्यक्त करना कंगना की आदत रही है!

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हेमंत पाल

चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।

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