Silver Screen:परदे पर भक्ति से भरे गीतों का माहौल थम क्यों गया!

439

Silver Screen:परदे पर भक्ति से भरे गीतों का माहौल थम क्यों गया!

लोगों की देवी-देवताओं पर अगाध श्रद्धा होती हैं। उन्हें विश्वास होता है कि भगवान हर उस व्यक्ति की सुनते हैं, जो उन्हें दिल से याद करता है। मंदिर में प्रसाद चढ़ाने के अलावा भक्ति का सबसे आसान उपाय है भगवान की भक्ति में गीत या भजन गाना। फिल्मों में भी हमेशा यही दिखाया जाता है कि किस तरह एक भजन सारे हालात बदल देता है। ख़ास बात यह भी कि धार्मिक फिल्मों में ही भक्ति हों, ये जरुरी नहीं! मल्टीस्टार फिल्मों में भी ऐसे कई भक्ति गीत फिल्माए गए, जो लोकप्रिय हुए और आज भी इन्हें सुना जाता है। 1979 में अमिताभ बच्चन और शशि कपूर की फिल्म ‘सुहाग’ आई थी जिसमें मां दुर्गा की भक्ति पर गया गया भजन ‘नाम रे सबसे बड़ा तेरा नाम रे, ओ शेरोवाली’ काफी लोकप्रिय है। आज भी नवरात्रि के दिनों में यह आज सुनाई देता है। अमिताभ और रेखा पर मंदिर में फिल्माए इस भजन पर दोनों ने गरबा भी किया था। आशा भोंसले और मोहम्मद रफी की आवाज का यह गीत यादगार बन गया। जब भी कोई व्यक्ति या फिल्मों के नायक (या नायिका) परेशानी में होते हैं, उन्हें सबसे पहले भगवान ही याद आता है। ऐसे में या तो वो मंदिर जाता है, वहां भगवान से मुसीबत से मुक्ति की गुहार लगाता है। यदि कथानक के मुताबिक यह स्थिति फिल्मों में आती है, तो जो व्यक्ति मुश्किल में होता है, वो धार्मिक गीत या भजन गाता है। ऐसी कई फ़िल्में आई जिनमें भक्ति गीत या भजन गाते ही भगवान ने उसकी बात सुन ली! लेकिन, वास्तविक जीवन में यह सब होता भी है, तो उसमें समय लगता है।

IMG 20240628 WA0121

फिल्म इतिहास के पन्ने पलटे जाएं तो ब्लैक एंड व्हाइट के ज़माने यही होता आ रहा है और आज भी इसमें कुछ नहीं बदला। कुछ फिल्मों के भक्ति गीत और भजन आज भी इतने लोकप्रिय हैं कि तीज-त्यौहार पर ये बजते सुनाई देते हैं। लेकिन, ये गीत परेशान लोगों को भी मानसिक शांति देते हैं। फिल्मों ने ऐसे कई भजन और भक्ति गीत दिए हैं, जिन्हें सुनकर और गाकर कुछ पलों के लिए हम अपने दुःख भूल जाते हैं। ऐसी स्थिति में मन में विश्वास की एक ज्योति जल उठती है। भक्ति को शक्ति देने वाले कई भक्ति गीत और भजन है। लेकिन, मंदिरों में भक्ति गीत सुनाने वाली इन फिल्मों में मंदिर का एक दृश्य ऐसा भी था, जो आज भी दर्शक भूले नहीं होंगे! फिल्म ‘दीवार’ में अमिताभ बच्चन का मां की बीमारी पर बोला गया संवाद भक्ति से इतर था। सफल धार्मिक फिल्मों के लोकप्रिय गीतों की बात की जाए तो 1975 में आई फिल्म ‘जय संतोषी माँ’ कम बजट की फिल्म थी। पर, कमाई के मामले ये आज तक की शीर्ष ब्लॉकबस्टर फिल्मों में गिनी जाती है। इस फिल्म के सभी गीत खूब चले। उषा मंगेशकर, महेंद्र कपूर और मन्ना डे ने कवि प्रदीप के लिखे भक्ति गीत गाए थे। करती हूँ तुम्हारा व्रत मैं स्वीकार करो माँ, यहां वहां मत पूछो कहां कहां, मैं तो आरती उतारू रे, मदद करो संतोषी माता, जय संतोषी माँ, मत रो मत रो आज राधिके और यहां वहां जहां तहां मत पूछो कहां कहां ऐसे भक्ति गीत हैं जिन्हें देवी आराधना वाले मंदिरों में अकसर सुना जाता है। फिल्म इतिहास में ऐसे कई गायक हैं जिन्होंने कालजयी धार्मिक गाने, भजन और आरतियां गाई। नई और पुरानी फिल्मों में भगवान की भक्ति को लेकर कई अच्छे गीत और भजन लिखे गए।

IMG 20240628 WA0118

ये गीत इसलिए लोकप्रिय हुए, क्योंकि इन्हें गायकों ने पूरी तन्मयता के साथ गाकर दर्शकों को भाव विभोर किया। इनमें सबसे ज्यादा लोकप्रियता मिली अनुराधा पौडवाल, नरेंद्र चंचल और अनूप जलोटा को जो धार्मिक गीतों के गायक हैं। फिल्मों में धार्मिक गीत और भजन गाने वालों की भी अपनी अलग पहचान होती है। ऐसे गीत और भजन गाने वाले गायक भी लंबे समय तक तय रहे। चंचल, अनूप जलोटा का इसमें काफी योगदान रहा। ऐसी फिल्मों में काम करने वाले कलाकारों का भी सकारात्मक पक्ष यह रहा कि दर्शकों में इनके प्रति भक्ति भाव कुछ ज्यादा ही होता है। ‘जय संतोषी मां’ में माता संतोषी का किरदार निभाने वाली अनीता गुहा को लोग पूजने लगे थे। ‘रामायण’ सीरियल में राम और सीता बने अरुण गोविल और दीपिका चिखलिया को आज भी लोग भक्ति भाव से देखते हैं। इसी का प्रताप था कि ‘रामायण’ के प्रसारण के इतने साल बाद अरुण गोविल लोकसभा की मेरठ सीट से चुनाव जीत गए। हिंदी फिल्मों में सबसे ज्यादा भगवान के रोल करने वाले कलाकार महिपाल को तो लोग भगवान ही मानने लगे थे। उन्होंने 35 से ज्यादा फिल्मों में भगवान या ऐसे किरदार निभाए। वे तुलसीदास भी बने और अभिमन्यु भी। महिपाल ने अपने जीवन काल में संपूर्ण रामायण, वीर भीमसेन, वीर हनुमान, हनुमान पाताल विजय, जय संतोषी माँ जैसी सफल धार्मिक फिल्मों में काम किया। उन्होंने अपने करियर में भगवान राम, कृष्ण, गणेश और विष्णु का किरदार इतने बार निभाया कि असल जिंदगी में भी लोग इन्हें पूजने लगे थे। वे जहां जाते लोग इनके पैर छूते और आशीर्वाद की कामना करते थे।

IMG 20240628 WA0119

याद किया जाए तो ऐसे कालजयी भक्ति गीतों में 1965 में आई फिल्म ‘खानदान’ के गीत ‘बड़ी देर भई नंदलाला तेरी राह तके बृजबाला’ को रखा जा सकता है। इस भजन को सुनील दत्त पर फिल्माया गया था। राजेंद्र कृष्ण के लिखे इस भजन को मोहम्मद रफी ने गाया था। जन्माष्टमी के अवसर पर अभी भी ये गीत गूंजता है। यह गीत फिल्म की कहानी को देखते हुए भी सटीक था। उससे पहले 1952 में आई फिल्म ‘बैजू बावरा’ का गीत मोहम्मद रफी की हिंदू भजनों के प्रति लगाव का सबसे बेहतर प्रमाण कहा जा सकता है। ‘ओ दुनिया के रखवाले, सुन दर्द भरे मेरे नाले’ के बोल आज भी किसी दुखी व्यक्ति का चेहरा सामने ले आते हैं। शकील बदायूंनी के लिखे इस गीत में नौशाद ने संगीत दिया था। ख़ास बात ये कि इस भक्ति गीत के गायक, गीतकार और संगीतकार तीनों ही मुस्लिम थे। 1954 में आई फिल्म ‘तुलसीदास’ के गीत ‘मुझे अपनी शरण में ले लो राम’ को भी मोहम्मद रफी ने अपनी आवाज दी है और बीते जमाने के विख्यात संगीतकार चित्रगुप्त ने इसे संगीत से सजाया था। गीत में राम को आराध्य मानकर अपना सब कुछ अर्पण करने की बात कही गई है।

IMG 20240628 WA0117

1958 की फिल्म ‘दो आंखें बारह हाथ’ का गीत ‘ऐ मालिक तेरे बंदे हम, ऐसे हो हमारे करम’ बुराई पर अच्छाई की जीत का सबसे बेहतरीन प्रमाण कहा जा सकता है। इस गीत में नुकसान पहुंचाने वाले डाकुओं को इंसानियत के नाम पर मदद पहुंचाई जाती है। भरत व्यास ने इस गीत को लिखा और वसंत देसाई ने इसे संगीत दिया था। लता मंगेशकर ने अपनी मधुर आवाज ने मानो इस गीत को अमर कर दिया। 1965 की फिल्म ‘सीमा’ में बलराज साहनी पर फिल्माया भजन ‘तू प्यार का सागर है, तेरी एक बूंद के प्यासे हम’ में आतुर मन की व्यथा सुनाई देती है। शैलेंद्र के लिए इस गीत को मन्ना डे ने अपनी आवाज दी और संगीत शंकर जयकिशन ने दिया था। दिलीप कुमार की 1970 में आई फिल्म ‘गोपी’ का महेंद्र कपूर की आवाज में गाया गीत ‘रामचंद्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा’ ऐसा भजन है जिसमें भविष्य का संकेत था। आशय यह कि सच्चा आदमी भटकेगा और झूठे के पास सबकुछ होगा। राजेंद्र कृष्‍ण के गीत को कल्याणजी-आनंदजी ने संगीत दिया था। भक्ति गीतों में सांई बाबा पर रचे गए गीत भी बड़ी संख्या में हैं। 1977 की फिल्म ‘अमर अकबर एंथोनी’ का गीत ‘तारीफ तेरी निकली है दिल से, आई है लब पे बनके कव्वाली’ साईं के भक्तों के लिए एक तरह से संजीवनी है। मोहम्मद रफी की आवाज का इस गीत में रफी की लंबी तान सुनने वाले को झंकृत कर देती है।

IMG 20240628 WA0116

‘सरगम’ (1979) संगीत पर केंद्रित फिल्म थी। पर, इसका एक गीत ‘रामजी की निकली सवारी, रामजी की लीला है न्यारी’ में भगवान राम की महिमा का बखूबी वर्णन है। दशहरे में जब रामजी की सवारी निकलती है, तो इस गीत के बिना माहौल नहीं बनता। इस गीत को सुनकर मनोभावों में राम का नाम समा जाता है। आनंद बक्षी के लिखे इस गीत को मोहम्मद रफी ने गाया था और इसका संगीत लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने दिया था। ‘अंकुश’ (1986) एक अलग तरह की फिल्म थी, लेकिन, इसका एक भक्ति गीत ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना’ टूटे मन को दिलासा देता हुआ सा लगता है। गीतकार अभिलाष ने इसे लिखा और पुष्पा पागधरे और सुषमा श्रेष्ठ ने इसे गाया है। कुलदीप सिंह ने इसमें संगीत दिया। ‘भर दो झोली मेरी या मुहम्मद, लौटकर मैं ना जाऊंगा खाली’ वास्तव में तो एक गैर फ़िल्मी गीत था, पर इसे 2015 में आई फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ में शामिल किया गया था। फिल्म का हीरो सलमान खान एक भटकी हुई बच्ची को उसके देश पाकिस्तान छोड़ने जाता है। इस दौरान उसे होने वाली परेशानियों को दूर करने के लिए इस अदनान सामी के गाए इस गीत को प्रार्थना के रूप में फ़िल्माया गया। कौसर मुनीर के लिखे इस गीत की धुन संगीतकार प्रीतम ने बनाई थी। लेकिन, लगता है फ़िल्मी कथानक में किरदारों को अब भगवान की कृपा की जरुरत नहीं है। शायद इसीलिए अब भगवान को फिल्मों से किनारे किया जा रहा है। लंबे समय से ऐसी कोई फिल्म नहीं आई, जिसमें धार्मिक गीत, भजन या आरती सुनाई दी हो।

Author profile
images 2024 06 21T213502.6122
हेमंत पाल

चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।

संपर्क : 9755499919
[email protected]