
SIR और शुद्धतम मतदाता सूची
डॉ रजनीश श्रीवास्तव
वर्तमान में भारत निर्वाचन आयोग द्वारा बिहार राज्य की मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण किया जा रहा है। जिसे एस आई आर (SIR/Special Intensive Revision) के नाम से जाना जाता है।
यह कार्य बिहार विधानसभा चुनाव के पूर्व किया जा रहा था। जिसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती भी दी गई थी।
सर्वोच्च न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण के लिए यह कह कर स्वतंत्रता दी है कि यह एक संवैधानिक प्रक्रिया है इस लिए इस पर रोक नहीं लगा सकते हैं।
इधर भारत भारत निर्वाचन आयोग ने बिहार के बाद पूरे देश की मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण के लिए कार्यक्रम निर्धारित किया है, और इसकी तैयारी के लिए अभी 10 सितंबर 2025 को भारतवर्ष के सभी प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी की दिल्ली में बैठक की जाकर शुद्ध मतदाता सूची तैयार किए जाने के संबंध में निर्देश दिए गए हैं।
प्रश्न यह है कि लगभग 100% शुद्धतम मतदाता सूची कैसे तैयार की जा सकती है।
शुद्ध मतदाता सूची की तैयारी में तीन बिंदु ऐसे हैं जो किसी भी मतदाता सूची को किसी समय भी शत प्रतिशत शुद्ध होने से रोक देते हैं-
1-मतदाता सूची में किसी भी मृत व्यक्ति का नाम ना हो।
2- मतदाता सूची में दर्ज व्यक्ति का उस पते पर निवासरत नहीं होना।
3- मतदाता सूची में दर्ज मकान नंबर पर अतिरिक्त व्यक्तियों /किसी अन्य का निवासरत होना।
अब इन तीन बिंदुओं पर अगर विचार करें तो किसी भी राज्य में निर्वाचन की घोषणा के पश्चात निर्वाचन की अधिसूचना जारी होते ही मतदाता सूची में नाम काटने पर रोक लगा दी जाती है। मतदाताओं के नाम सिर्फ जोड़े जा सकते हैं।
ऐसी स्थिति में निर्वाचन की घोषणा के बाद निर्वाचन की अधिसूचना जारी होने के पश्चात मतदाता सूची में दर्ज व्यक्तियों में से यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाएगी और यह जानकारी निर्वाचन अधिकारी को भी हो जाए तो भी उस व्यक्ति का नाम मतदाता सूची से काटा नहीं जा सकता।
अधिसूचना जारी होने के पश्चात उस मतदाता सूची के किसी मतदाता की नौकरी लग जाने या उच्च शिक्षा प्राप्त करने या किसी अन्य कारण से किसी अन्य शहर या राज्य में जाना पड़ जाए या स्थाई रूप से किसी अन्य स्थान पर शिफ्ट करना पड़ जाए तो भी उस दिनांक को उस मतदाता सूची में उस व्यक्ति का नाम तो दर्ज रहेगा किंतु भौतिक सत्यापन के समय वह व्यक्ति उस मकान में अनुपस्थित रहेगा। इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति ने अपना स्वयं का मकान निर्माण कर लिया है या किराए के मकान को बदलकर दूसरा मकान किराए पर किसी अन्य स्थान पर ले लिया है और वहां निवास करने चला जाता है तो ऐसी स्थिति में उस मतदाता का नाम मतदाता सूची से नहीं हटाया जा सकता और मतदाता सुची त्रुटिपूर्ण दिखेगी।
तीसरा यह है कि मतदान क्षेत्र में ऐसे व्यक्ति निवास कर रहे हैं जिनका नाम मतदाता सूची में नहीं है। यह किसी अन्य स्थान से आकर मकान किराए पर लेकर रहने आए हुए व्यक्ति या अन्य स्थान से आकर मकान क्रय कर उसमें निवास करने वाले व्यक्ति या किसी अन्य स्थान से किसी महिला के विवाहित होकर आने की स्थिति में उसका नाम मतदाता सूची में जुड़ सकता है मगर जहां से यह लोग आए हैं उस मतदाता सूची से नाम कट नहीं पाएगा।
उक्त तीन कारण से मतदाता सूची शत प्रतिशत शुद्ध रहना संभव ही नहीं है।फिर भी आजकल एएसडीआर (एबसेंटी/शिफ्टेड/डेड/रिपीट)लिस्ट तैयार की जाती है।
मतदाता सूची के अशुद्ध होने का एक और सबसे बड़ा कारण यह है कि जब मतदाता सूची की तैयारी करने के लिए बीएलओ की नियुक्ति के लिए जिला निर्वाचन अधिकारी अन्य सभी विभागों को पत्र भेजते हैं और उनके कर्मचारियों के नाम मांगे जाते हैं ताकि उनमें से बीएलओ की नियुक्ति की जा सके। इस समय सभी विभाग अपने यहां के सबसे योग्य और उत्कृष्ट कार्य करने वाले कर्मचारियों के नाम नहीं भेजते हैं। बल्कि कई बार तो यह स्थिति बनती है कि चतुर्थ श्रेणी से पदोन्नति पाकर तृतीय श्रेणी के कर्मचारी जिनको ठीक से लिखना भी नहीं आता वह भी बीएलओ बन जाते हैं।
यदि मतदाता सूची को लगभग शत-प्रतिशत शुद्ध बनाना है तो एक बार सिर्फ 15 दिन के लिए एक मतदान केंद्र पर दो से तीन बुद्धिमान और अच्छे कर्मचारियों को एक साथ लगाकर एक मतदान केंद्र की जिम्मेदारी दी जाए और उनसे यह अपेक्षा की जाए कि वह मतदाता सूची शुद्ध बना कर देंगे। जब तक यह प्रक्रिया नहीं अपनाई जाएगी तब तक शुद्धतम मतदाता सूची बनाया जाना संभव नहीं है।एक मतदाता सूची में लगभग 1200 मतदाता होते हैं और लगभग 300 से 400 मकान हो सकते हैं। यदि एक दिन में 20 मकान के भौतिक सत्यापन किया जाय तो मात्र 20 दिन में सभी मकान व मतदाता के भौतिक सत्यापन का कार्य पूरा हो सकता है।
इसके अतिरिक्त सभी राजनीतिक दलों को अपने बी एल ए भी नियुक्त करने चाहिए ताकि मतदाता सूची में कोई त्रुटि ना हो। इसके साथ ही बीएलओ , बीएलओ सुपरवाइजर और निर्वाचन में लगे सभी अधिकारियों को 20 दिन के लिए जी जान से जुट कर मतदाता सूची शुद्ध करने का कार्य करना चाहिए।
अभी स्थिति यह होती है कि जिन बीएलओ की ड्यूटी निर्वाचन कार्य में लगा दी जाती है उन बीएलओ के मूल विभाग के अधिकारी बीएलओ को निर्वाचन संबंधी कार्य के अतिरिक्त अपने मूल कार्यालय के कार्य करने के लिए भी दबाव बनाते हैं और यहां तक कि कई बार यह भी कहते हैं कि निर्वाचन कार्यालय जाने की जरूरत नहीं है। पहले यहां पर बैठकर मूल विभाग का कार्य करो। उसके बाद जो कोई बीएलओ उनके उस आदेश की अवहेलना कर जिला निर्वाचन अधिकारी के आदेश के पालन में कार्य करता है तो कई बार मूल विभाग उनके वेतन आहरण को भी रोक देता है और कई प्रकार से मानसिक प्रताड़ना भी देता है।
*मतदाता सूची में ऑटोमेशन की प्रक्रिया*
मतदाता सूची बनाने के क्रम में दो सबसे बड़े कार्य होते हैं पहला यह कि 18 वर्ष की आयु होते ही किसी नव मतदाता का नाम मतदाता सूची में जोड़ा जाए और किसी भी मतदाता की मृत्यु के उपरांत उसका नाम मतदाता सूची से तत्काल काट दिया जाए।
इसके लिए मेरे दो व्यक्तिगत सुझाव हैं, कि जन्म मृत्यु पंजीयन विभाग के डाटा को मतदाता सूची के डाटा से इस प्रकार सिंक्रोनाइज किया जाए कि जन्म लेने वाले बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र पंजीकरण से उसकी आयु जिस दिन 18 वर्ष की हो रही है उसी दिन मतदाता सूची में उसका नाम बिना किसी आवेदन के उस स्थान पर जोड़ दिया जाए जहां पर उसके माता-पिता का नाम जुड़ा हुआ है।
इसके साथ ही किसी भी मतदाता की मृत्यु होने पर उसकी मृत्यु का पंजीयन होते ही उस मतदाता का नाम मतदाता सूची से अपने आप कट जाए। आज के समय में जन्म मृत्यु पंजीयन अनिवार्य है और हर व्यक्ति यह दोनों कार्य कराता है।
इसके अतिरिक्त जो लोग लंबे समय के लिए विदेश जा रहे हैं उनका डाटा इमीग्रेशन डिपार्टमेंट के माध्यम से और वीजा के जारी होने के आधार पर देश से बाहर जाते ही उनका नाम मतदाता सूची से अलग सूची में जोड़ दिया जाए या मतदाता सूची में एक पार्ट ऐसे मतदाताओं का बना दिया जाए जो विदेश यात्रा पर गए हुए हैं। ऐसे मतदाताओं को मतदान के लिए अपना पासपोर्ट लेकर उपस्थित होना अनिवार्य किया जाए।
नागरिकता प्राप्त करने या नागरिकता छोड़ने पर नागरिकता रजिस्टर के आधार पर मतदाता सूची में नाम जुड़ना व कटना चाहिए।
इसके अतिरिक्त जब भी कोई मतदाता अपने ड्राइविंग लाइसेंस,बैंक पासबुक,आधार कार्ड या किसी अन्य सरकारी दस्तावेज में अपने पते का परिवर्तन कराए तो उस स्थिति में मतदाता सूची में भी उसका नाम अन्य स्थान पर स्वयं काटने एवं
जोड़ने की व्यवस्था की जाए।
एक बार मेरे सामने एक बीएलओ ने यह जानकारी प्रस्तुत किया था कि एक परिवार के चार सदस्य महानगर मुंबई शिफ्ट हो गए हैं और उनके परिवार के लोग उनके नाम मतदाता सूची से कटवाना नहीं चाहते हैं। जब उनसे यह बात की तो उनका कहना था कि क्या हम अपनी जड़ों से कट जाएं। हमारा नाम यहां मतदाता सूची में रहना चाहिए उनको यह गलतफहमी रहती है कि अगर उनका नाम मतदाता सूची से हट गया तो वह उस स्थान की जड़ों से कट जाएंगे।
इसके अलावा किसी भी व्यक्ति का सारा जोर इस बात पर रहता है कि उसका नाम मतदाता सूची में नए निवास स्थान पर जुड़ जाय मगर पूर्व के स्थान से नाम कटवाने में कोई प्रयास नहीं करते हैं।हालांकि अब सॉफ्टवेयर में यह व्यवस्था शुरू हो गई है कि कहीं से भी नाम को जोड़ने के पहले ही पुराने स्थान से नाम कटवाने के लिए आवेदन कर सकते हैं।





