सजन रे झूठ मत बोलो …

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सजन रे झूठ मत बोलो …

 

जिनके गीतों में जीवन के सब रंग समाए हैं। हर गीत सच से सामना कराता है। सभी गीत जीवन का खोखलापन और मर्म उड़ेल कर सामने रख देते हैं। कहा जाए तो एक गीत ही जीवन दर्शन को हलक से नीचे उतारने के लिए काफी है। यह गीत है-

सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है, न हाथी है ना घोड़ा है, वहाँ पैदल ही जाना है…

तुम्हारे महल चौबारे, यहीं रह जाएंगे सारे

अकड़ किस बात की प्यारे

अकड़ किस बात की प्यारे, ये सर फिर भी झुकाना हैं…

भला कीजे भला होगा, बुरा कीजे बुरा होगा

बही लिख लिख के क्या होगा

बही लिख लिख के क्या होगा, यहीं सब कुछ चुकाना है

लड़कपन खेल में खोया, जवानी नींद भर सोया, बुढ़ापा देख कर रोया

बुढ़ापा देख कर रोया, वो ही किस्सा पुराना है…..

यह गीत जिंदगी की हकीकत को सामने रख देता है। यह गीत मनोरंजन से ज्यादा सीख देने का काम करता है। यह बात और है कि कोई गौर करे या न करे। पर गीतकार शैलेंद्र तो अपना फर्ज पूरा कर ही महज 43 साल में इस दुनिया से विदा हो गए। कवि-पत्रकार शैलेन्द्र को आज याद करने का विशेष दिन है, उनका जन्म 30 अगस्त को ही हुआ था। शैलेंद्र का जन्म 30 अगस्त 1923 को रावलपिंडी, पंजाब में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। शैलेन्द्र एक लोकप्रिय भारतीय हिन्दी-उर्दू कवि, गीतकार और फ़िल्म निर्माता थे। फिल्म निर्माता राज कपूर, गायक मुकेश और संगीतकार शंकर-जयकिशन के साथ अपने सम्बन्ध के लिए प्रसिद्ध, उन्होंने 1950 और 1960 के दशक में कई सफल हिन्दी फिल्मों के लिए गीत लिखे।

आवारा हूँ (श्री 420),रमैया वस्तावैया (श्री 420), मुड मुड के ना देख मुड मुड के (श्री 420), मेरा जूता है जापानी (श्री 420), आज फिर जीने की (गाईड),गाता रहे मेरा दिल (गाईड), पिया तोसे नैना लागे रे (गाईड),क्या से क्या हो गया (गाईड),हर दिल जो प्यार करेगा (संगम), दोस्त दोस्त ना रहा (संगम), सब कुछ सीखा हमने (अनाडी), किसी की मुस्कराहटों पे (अनाडी), सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है (तीसरी कसम), दुनिया बनाने वाले (तीसरी कसम) जैसे गीत शैलेंद्र की सुंदर और जीवन दर्शन समेटे रचनाओं के गवाह हैं।

तो शैलेन्द्र (30 अगस्त 1923-14 दिसंबर 1966) एक लोकप्रिय भारतीय हिंदी-उर्दू कवि, गीतकार और फिल्म निर्माता थे। फिल्म निर्माता राज कपूर, गायक मुकेश और संगीतकार शंकर-जयकिशन के साथ अपने जुड़ाव के लिए प्रसिद्ध, उन्होंने 1950 और 1960 के दशक में कई सफल हिंदी फिल्म गीतों के लिए गीत लिखे। उनके पूर्वज बिहार के आरा जिले के थे। उन्होंने छोटी उम्र में ही अपनी माँ और बहन को खो दिया था। बिहार के आरा के अख्तियारपुर में उनके गाँव में ज़्यादातर खेतिहर मज़दूर रहते थे और शैलेंद्र के पिता एक सैन्य अस्पताल में काम की तलाश में रावलपिंडी चले गए थे। शैलेन्द्र ने कई भोजपुरी फिल्मों के लिए गीत भी लिखे। अविजित घोष ने अपनी पुस्तक सिनेमा भोजपुरी में उल्लेख किया है कि शैलेन्द्र ने गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो (पहली भोजपुरी फिल्म), गंगा, मितवा और विधान नाच नचावे के लिए गीत लिखे। 1961 में शैलेन्द्र ने बसु भट्टाचार्य द्वारा निर्देशित और राज कपूर और वहीदा रहमान अभिनीत फिल्म तीसरी कसम (1966) के निर्माण में भारी निवेश किया। इस फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता । हालाँकि, यह फिल्म व्यावसायिक रूप से असफल रही। फिल्म निर्माण से जुड़े तनाव और वित्तीय घाटे के कारण चिंता के कारण गिरते स्वास्थ्य के साथ-साथ शराब की लत ने अंततः 14 दिसंबर 1966 को शैलेंद्र को हम सबसे छीन लिया…।