स्मृति शेष – – – – मंदसौर नीमच उज्जैन इंदौर से गहरा जुड़ाव रहा डॉ वैदिक का

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स्मृति शेष – – – – मंदसौर नीमच उज्जैन इंदौर से गहरा जुड़ाव रहा डॉ वैदिक का

डॉ घनश्याम बटवाल की विनम्र श्रद्धांजलि 

मंगलवार सुबह आई ख़बर ने झटका दिया और अहसास करा दिया कि श्री वैदिक कितना बड़ा नाम है। यही नहीं उनका कितना बड़ा काम भी है।

मालवा अंचल इंदौर के श्री वैदिक ने अंतरराष्ट्रीय स्तर तक अपनी विद्वत्ता, प्रखरता, विचारों के साथ प्रतिष्ठित की। मंदसौर नीमच उज्जैन इंदौर से गहरा जुड़ाव रहा उनका। आना जाना होता रहा मिलना जुलना होता रहा।

उज्जैन में स्व. दिनकर सोनवलकर स्मृति समारोह में संवाद हुआ, उन्होंने रुचि लेकर मंदसौर नीमच की साहित्यिक और पत्रकारिता गतिविधियों की जानकारी ली। अपने एक आलेख की छाया प्रति भी उन्हें दी। श्री लालबहादुर श्रीवास्तव नीमच के श्री कमल नयन, मनासा के विजय बैरागी, उज्जैन के श्री प्रतीक सोनवलकर श्री विवेक चौरसिया आदि साथ थे।

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मंदसौर में अंतरराष्ट्रीय भागवताचार्य स्व. पंडित मदनलाल जोशी शास्त्री स्मृति पर्व समारोह में मुख्य वक्ता पधारे श्री वैदिक जी ने गरिमापूर्ण वक्तव्य दिया। भगवत्कृपा निवास पर साथ भोजन भी किया। सहजता और अपनापन उनका व्यक्तित्व में झलकता था।

नीमच में नई विधा समाचार पत्र की स्वर्ण जयंती समारोह के भी मुख्य वक्ता श्री वैदिक जी थे। उनका संबोधन विचारों के साथ देश की दशा दिशा के साथ भाषा भविष्य का विशिष्ट संकेतक भी था। यहां भी उनका सामीप्य मिला।

श्री नरेंद्र नाहटा, श्री विक्रम विद्यार्थी, श्री मनोज भाचावत, श्री महेश जैन आदि साथ थे।

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उनके जाने से हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रखर प्रवक्ता, हमारी भाषा के लिये आंदोलन करने जेल जाने आवाज़ उठाने वाले वरिष्ठ पत्रकार, संपादक, लेखक, विचारक आदरणीय श्री वेद प्रताप वैदिक का निधन बड़ी क्षति है।

आर्यसमाज से जुड़ाव होने से वैश्य समाज का प्रतिनिधि होने के बाद भी अपने नाम मे वैदिक जोड़ लिया और वैदिक उपनाम से जाने जाते रहे।

उत्तर – दक्षिण प्रान्तों और भाषाओं को जोड़ने वाले अग्रणी व्यक्तित्व श्री वैदिक जी का जाना एक मिशन का थम जाना जैसा है। आज उनकी अहमियत विशेष है, जब हिंदी को स्वीकार करने की चुनौती सामने आती रहती है।

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सभी राजनीतिक दलों के अग्रणी लोगों में उनका संपर्क रहा पर वे अपनी बात दृढ़तापूर्वक रखते थे। एक पत्रकार के नाते उनकी ऊंचाई इतनी थी कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान, श्री लंका, नेपाल सहित अन्य देशों के राजनयिक संबंधों और राष्ट्रीय हितों के लिये प्रभाव रखते थे।

उनकी स्मृतियों को नमन करते हुए भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। वे मातृभाषा और राष्ट्रभाषा हिंदी के समर्थन और स्थापन के लिये हमेशा याद किये जायेंगे।