तो न्याय की देवी की आंखों से पट्टी उतर गई है…

270

तो न्याय की देवी की आंखों से पट्टी उतर गई है…

आखिर आजादी के 77 साल बाद न्याय की देवी की आंखों से पट्टी उतार दी गई है। अब न्याय की देवी खुली आंखों से पीड़ितों को देख सकेंगी। अब हमें फील गुड करना चाहिए। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को इस बदलाव के लिए हमेशा याद किया जाएगा। अब देश में कानून ‘अंधा’ नहीं है। न्याय की देवी की आंखों से पट्टी उतरने के साथ ही हाथ में तलवार की जगह अब संविधान थाम लिया है। चंद्रचूड़ का मानना है कि तलवार हिंसा का प्रतीक है। जबकि, अदालतें हिंसा नहीं, बल्कि संवैधानिक कानूनों के तहत इंसाफ करती हैं। दूसरे हाथ में तराजू सही है कि जो समान रूप से सबको न्याय देती है।

कुछ समय पहले ही अंग्रेजों के कानून बदले गए हैं। अब भारतीय न्यायपालिका ने भी ब्रिटिश अवशेषों को पीछे छोड़ते हुए नया रंगरूप अपनाना शुरू कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने देश को संदेश दिया है कि अब ‘कानून अंधा’ नहीं है। दरअसल, ये सब कवायद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने की है। उनके निर्देशों पर न्याय की देवी में बदलाव कर दिया गया है। ऐसी ही स्टैच्यू सुप्रीम कोर्ट में जजों की लाइब्रेरी में लगाई गई है। जो पहले न्याय की देवी की मूर्ति होती थी। उसमें उनकी दोनों आंखों पर पट्टी बंधी होती थी। साथ ही एक हाथ में तराजू जबकि दूसरे में सजा देने की प्रतीक तलवार होती थी। चंद्रचूड़ का मानना था कि अंग्रेजी विरासत से अब आगे निकलना चाहिए। कानून कभी अंधा नहीं होता। वो सबको समान रूप से देखता है। इसलिए न्याय की देवी का स्वरूप बदला जाना चाहिए। साथ ही देवी के एक हाथ में तलवार नहीं, बल्कि संविधान होना चाहिए; जिससे समाज में ये संदेश जाए कि वो संविधान के अनुसार न्याय करती हैं। सीजेआई का मानना है कि तलवार हिंसा का प्रतीक है। जबकि, अदालतें हिंसा नहीं, बल्कि संवैधानिक कानूनों के तहत इंसाफ करती हैं। दूसरे हाथ में तराजू सही है कि जो समान रूप से सबको न्याय देती है। चंद्रचूड़ के निर्देशों पर न्याय की देवी की मूर्ति को नए सिरे से बनवाया गया। सबसे पहले एक बड़ी मूर्ति जजेज लाइब्रेरी में स्थापित की गई है। यहां न्याय की देवी की आंखें खुली हैं और कोई पट्टी नहीं है, जबकि बाएं हाथ में तलवार की जगह संविधान है दाएं हाथ में पहले की तरह तराजू ही है।

images 2024 10 17T000248.791

न्याय की देवी की वास्तव में यूनान की प्राचीन देवी हैं, जिन्हें न्याय का प्रतीक कहा जाता है। इनका नाम जस्टिया है। इनके नाम से जस्टिस शब्द बना था। इनके आंखों पर जो पट्टी बंधी रहती है, उसका भी गहरा मतलब है। आंखों पर पट्टी बंधे होने का मतलब है कि न्याय की देवी हमेशा निष्पक्ष होकर न्याय करेंगी। किसी को देखकर न्याय करना एक पक्ष में जा सकता है। इसलिए इन्होंने आंखों पर पट्टी बांधी थी। यूनान से ये मूर्ति ब्रिटिश पहुंची। 17वीं शताब्दी में पहली बार इसे एक अंग्रेज अफसर भारत लेकर आए थे। ये अंग्रेज अफसर एक न्यायालय अधिकारी थे। ब्रिटिश काल में 18वीं शताब्दी के दौरान न्याय की देवी की मूर्ति का सार्वजनिक इस्तेमाल किया गया। बाद में जब देश आजाद हुआ, तो हमने भी न्याय की देवी को स्वीकार किया।

यह पूरी कहानी इसलिए क्योंकि हर व्यक्ति को जस्टिया, जस्टिस, आंखों पर पट्टी और निष्पक्षता, तलवार और तराजू की कहानी पता होनी ही चाहिए। और इसमें बदलाव बहस का विषय भी हो सकता है। यह तर्क की कसौटी पर परखा जाता रहेगा कि खुली आंखें निष्पक्ष रहेंगीं या बंद आंखें निष्पक्ष थीं। तलवार की जगह संविधान की किताब का होना सराहा ही जाएगा। पर चंद्रचूड़ की कसौटी पर क्या देश के नागरिक खरा उतर पाएंगे। अपराध न हों और इतिहास बन जाए कि हमें बंद और खुली दोनों न्याय की देवी की जरूरत ही नहीं है। अपने ही देश और देशवासियों को लूटकर अपना घर भरने की सोच में कब बदलाव होगा ताकि देश के हर नागरिक को अन्याय का शिकार न होना पड़े। देश को रामराज्य की तरफ ले जाने के लिए किस-किस को अपनी आंखों से पट्टी उतारकर खुली आंखों से देखने की जरूरत है…उन सभी की आंखों से पट्टी आखिर कब उतरेगी और इसके लिए कौन चंद्रचूड़ बनकर इतिहास बनाएगा? फिलहाल इस सवाल का जवाब भविष्य के गर्भ में ही छिपा है.

..।