तो क्या फिर चुनाव से पहले MP का किसान शिवराज सरकार के ख़िलाफ़ लामबंद होगा

किसान नेता राकेश टिकैत ने दिल्ली के बाद भोपाल को घेरने की क्यों भरी हुंकार

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पुष्पेंद्र वैद्य की खास रिपोर्ट

भोपाल। पाँच साल पहले मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों से ठीक पहले हुए जिस किसान आंदोलन ने देश दुनिया में हड़कंप मचा दिया था क्या इसी तरह एक बार फिर किसानों को लामबंद करने की तैयारी की जा रही है।

दिल्ली किसान आंदोलन का चेहरा रहे जानेमाने किसान नेता राकेश टिकैत ने मध्यप्रदेश में किसानों की महापंचायत लगाकर जो हुंकार भरी है वह शिवराज सरकार को बैचेन करने वाली हो सकती है। टिकैत ने ऐलान किया है कि दिल्ली के बाद अब भोपाल को घेरने के लिए किसान तैयार रहें।

किसान नेता राकेश टिकैत ने शुक्रवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कृषि मंत्री कमल पटेल के विधानसभा क्षेत्र से सटे खातेगांव में किसानों की महापंचायत लगाई। किसानों को एकजुट कर उनके हितों को लेकर बात की। सरकार से अपनी माँग मनवाने के लिए आंदोलन पर उतरने को कहा।

राकेश टिकैत दिल्ली के किसान आंदोलन के बाद अब इस आंदोलन का देशभर में विकेन्द्रीकरण करना चाहते हैं। ख़ासकर बीजेपी राज्य उनके निशाने पर ज्यादा नज़र आ रहे हैं।

टिकैत ने साफ़ शब्दों में किसानों को अपनी समस्याओं से निपटने के लिए भोपाल की घेराबंदी का जगज़ाहिर ऐलान कर दिया। उन्होंने किसानों को ललकारा और कहा कि वे अपनी बातों को मनवाने के लिए दिल्ली तक तो आ नही सकते ऐसे में उन्हें भोपाल में ही इकट्ठा होना पड़ेगा।

टिकैत का कहना है कि मध्यप्रदेश में किसानों को बिजली-पानी नही मिल रहा। दुनिया भर में गेंहू की माँग है। दाम ऊँचे मिल रहे है लेकिन यहाँ एमएसपी से भी कम दाम मिल रहा है।

सरकार एमएसपी पर नया क़ानून लाए। तेलंगाना की पॉलिसी की वकालत करते हुए टिकैत ने कहा कि १० हजार प्रति एकड़ की सालाना सब्सिडी जैसी पॉलिसी देश के बाक़ी प्रदेशों में भी लागू होना चाहिए।

ग़ौरतलब है कि साल २०१७ में विधानसभा चुनावों से ठीक एक साल पहले मंदसौर में ज़बर्दस्त किसान आंदोलन हुआ था। पुलिस फ़ायरिंग में पाँच किसानों की मौत हो गई थी। पूरा प्रदेश किसान आंदोलन की आग में लिपटा हुआ था। कांग्रेस ने इस आंदोलन के तुरंत बाद ऋण माफ़ी का ऐलान कर दिया था।

शिवराज सरकार को 2018 के चुनावों में जो हार मिली थी उसकी बडी वजह किसान आंदोलन और ऋण माफ़ी ही थी। दिल्ली में एक साल तक नए कृषि क़ानूनों को लेकर हुए आंदोलन के बाद मोदी सरकार को क़ानून वापस लेना पड़ा। इस आंदोलन का टिकैत मुखौटा रहे।

आंदोलन के बाद ही पंजाब में बीजेपी का सफ़ाया हो गया। तो क्या मध्यप्रदेश में किसान जागरण के नाम पर हुई यह सुगबुगाहट शिवराज सरकार को बैचेन करने वाली है। दूध से जली शिवराज सरकार को छाछ भी फूँक-फूँक कर पीना होगी। मध्यप्रदेश में किसान ही वह वर्ग है जो किसी को भी सत्ता से बेदख़ल कर नई सरकार बनाने की ताक़त रखता है।