तो मोहन की सोच से पर्यावरण दिवस से गंगा दशमी तक जी उठेंगे जलस्रोत…!

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तो मोहन की सोच से पर्यावरण दिवस से गंगा दशमी तक जी उठेंगे जलस्रोत…!

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि जल स्रोतों के संरक्षण और पुनर्जीवन के लिए अभियान चलाया जाएगा। नदी, कुंआ, तालाब, बावड़ी आदि को साफ स्वच्छ रखने के लिए जनभागीदारी से गतिविधियां होगी। अभियान जनप्रतिनिधियों के नेतृत्व में चलेगा और कलेक्टर समन्वय करने की जिम्मेदारी निभाएंगे। इस पुनीत कार्य की शुरुआत पांच जून पर्यावरण दिवस से होगी और गंगा दशमी तक यह काम चलेगा। अगर ईमानदारी से कलेक्टर समन्वय कर जिम्मेदारी निभाएंगे तो जलस्रोतों का संरक्षण होगा और उन्हें पुर्नजीवन मिल जाएगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पर्यावरण दिवस पर जन-जन के मन में यह कार्य करने के प्रति असीम उत्साह का भाव रहेगा तो गंगा दशमी तक यह कार्य कर वह पवित्र भाव के स्थायित्व के प्रति संकल्पित हो जाएंगे। क्योंकि जैसी कि सरकार की सोच है कि गंगा दशमी पर्व माँ गंगा का अवतरण दिवस है और माँ गंगा से ही भारतीय संस्कृति विश्व  में जानी जाती है। और मां गंगा के प्रति श्रद्धा और आस्था का भाव हर सनातनी और भारतीय के मन में समाया हुआ है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि अभियान की अवधि में हर जिले में जल के स्रोतों, जैसे नदी, कुंआ, तालाब, बावड़ी आदि को साफ स्वच्छ रखने और आवश्यकता होने पर उनके गहरीकरण के लिए गतिविधियां संचालन का काम समाज की भागीदारी से होगा। इससे जल स्रोतों के प्रति समाज की चेतना जागृत करने और जनसामान्य का जल स्रोतों से जीवंत संबंध विकसित होना सुनिश्चित है। शहरी औऱ ग्रामीण क्षेत्रों में इस अभियान का नेतृत्व जनप्रतिनिधि करेंगे और जिला कलेक्टर गतिविधियों का समन्वय करेंगे।
“जल ही जीवन है” केवल घोष वाक्य नहीं है, हम जलस्रोतों से ही जीवन पाते हैं। यह बात सौ फीसदी सच है। बिना जल के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने सभी सामाजिक, शासकीय, अशासकीय संस्थाओं, जनअभियान परिषद से जुड़े संगठनों से अभियान में शामिल होने का अनुरोध किया है। और जनसहभगिता से जल संरचनाओं का चयन करने का आह्वान किया है, ताकि जल स्रोतों के संरक्षण के लिए सघन जनजागृति पैदा हो सके। इससे भविष्य के लिए जल संरक्षण के संबंध में कार्य योजना बनाने में मदद मिलेगी। मोहन की मंशा है कि इस अवधि में होने वाले धार्मिक मान्यताओं के कार्यक्रम जैसे उज्जैन की क्षिप्रा परिक्रमा, चुनरी उत्सव, नर्मदा जी के किनारे होने वाले धार्मिक कार्यक्रम भी पूरी श्रद्धा के साथ आयोजित किए जाएं। इसके पीछे भी जलस्रोतों के संरक्षण और संवर्धन के भाव के प्रति जन-जन के मन में स्थायित्व का भाव जगाना ही है।
जलस्रोतों पर नजर जालें तो प्रदेश में 212 से अधिक नदियां हैं। हमारी पेयजल की आपूर्ति करने में नदियां, बावड़ियां, कुएं व तालाब महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। धरती पर बढ़ते तापमान के बीच जल की महत्ता सबकी समझ में आ गई है। ऐसे में जल संरचनाओं के अतिक्रमणों को मुक्त कराने की महत्ता का पता भी सबको चल गया है। जिला प्रशासन अगर इन्हें अतिक्रमण मुक्त कराने में सफल रहा तो बहुत बड़ा काम संपन्न हो जाएगा। मोहन की यह मंशा भी काबिले तारीफ है कि अभियान के दौरान नदियों और तालाबों से गाद या खाद के रूप में निकलने वाली मिट्टी, किसानों को खेतों में उपयोग के लिए उपलब्ध कराई जाएगी। प्रारंभिक रूप से यह अभियान 5 से 15 जून तक चलाया जाएगा। इसके बाद अभियान की अवधि बढ़ाई जा सकती है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव की उम्मीद के मुताबिक इस वर्ष पर्यावरण दिवस से गंगा दशमी तक सबकी सहभगिता के साथ पेयजल स्रोतों के संरक्षण के लिए प्रभावी कार्य होंगे जो निश्चित तौर पर हर व्यक्ति को गौरवान्वित होने का अवसर प्रदान करेंगे।
नमामि गंगे परियोजना के नाम से आरंभ हो रहे जलस्रोतों के संरक्षण और पुनर्जीवन के विशेष अभियान के लिए ग्रामीण क्षेत्र में पंचायत एवं ग्रामीण विकास तथा नगरीय क्षेत्र में नगरीय विकास एवं आवास, नोडल विभाग होंगे। जल संरचनाओं के चयन और उन्नयन कार्य में जीआईएस तकनीक का उपयोग किया जाएगा। इन स्थलों की मोबाइल एप के माध्यम से जीयो -टैगिंग की जाएगी। सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से जल संरचनाओं के आसपास स्वच्छता बनाए रखने, जल संरचनाओं के किनारों पर अतिक्रमण रोकने के लिए फेंसिंग के रूप में वृक्षारोपण करने जैसी गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जाएगा और जल संरचनाओं के किनारों पर बफर जोन तैयार कर उन्हें हरित क्षेत्र या पार्क के रूप में विकसित किया जाएगा। जल संरचनाओं में मिलने वाले गंदे पानी के नाले-नालियों को स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत डायवर्जन उपरांत शोधित कर जल संरचनाओं में छोड़ा जाएगा। यह सभी कार्य सोचने में और सुनने में जितने आसान नजर आ रहे हैं, उतने आसान नहीं है। वास्तव में अभियान के पूर्ण होने पर पहली बार जो भी मुट्ठी में आएगा, वह हीरे की तरह चमक बिखेरेगा।
यह सरकार की समाज को अनुपम भेंट है कि अमृत 2.0 योजना के तहत जल संरचनाओं के उन्नयन का कार्य सर्वोच्च प्राथमिकता से कराने की सोच पर अमल होगा। इसके तहत नदी, झील, तालाब, कुओं, बावड़ी आदि के पुनर्जीवीकरण, संरक्षण व संरचनाओं के उन्नयन का कार्य स्थानीय सामाजिक, प्रशासकीय संस्थाओं के साथ मिलकर जनभागीदारी से कराए जाएंगे। साथ ही जल संरचनाओं का उपयोग जल प्रदाय अथवा पर्यटन, भू-जल संरक्षण, मत्स्य पालन अथवा सिंघाड़े के उत्पादन के लिए भी किया जाएगा। यह खास उपलब्धि रहेगी कि रिहायशी इलाकों में बंद पड़े रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की साफ-सफाई कर उनके पुन: उपयोग के लिए जागरूकता अभियान भी चलाया जाएगा। सोच सही है, पर बात यह भी सही है कि निकायों ने अगर ध्यान दिया होता तो यह नौबत ही नहीं आती। देर सही, पर मोहन की मंशा से यह नेक कार्य संपन्न हो और इसमें सततता बनी रहे…तो मोहन की सोच से पर्यावरण दिवस से गंगा दशमी तक जलस्रोत जी उठेंगे…।