कौन सहेजेगा पत्रकारिता के खो चुके नैतिक मूल्य!

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‘ना कलम बिकती है, न कलमकार बिकता है। लिख लिखकर थक जाती है, उंगलियां तब जाकर कहीं अख़बार बिकता है।’ कभी ये पत्रकारिता का सच था, पर आज पत्रकारिता का दौर बदल गया है। टीआरपी के चक्कर में अब खबरें बनाई और बेची जाने लगी है। एक समय था जब पत्रकार की कलम से अंग्रेजी हुकूमत भी डरती थी। बड़े राजनेताओं की कुर्सियों को हिलाने का दम-खम पत्रकारिता में हुआ करती थी। लेकिन, आधुनिकता के इस दौर में पत्रकारिता का स्वरूप ही बदल गया है। आज वही खबरें प्रमुखता से प्रकाशित की जाती है जो सत्ता का सुख भोग रहे राजनेताओं को सूट करती हो। भले ही उन खबरों का वास्तविक जीवन से कोई सरोकार ही न हो। अभिव्यक्ति के नाम पर फुहड़ता का नंगा नाच हर चौराहे गली मोहल्ले में दिखाई दे जाएगा। बात बात पर एजेंडा चलाकर देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम तक दिया जाना मानो अब आम बात हो गई है। यूं कहें कि वैश्विक पटल पर देश की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया जाने लगा है।
आज पूछा जाए कि सच्ची पत्रकारिता कहां है, तो सोचना पड़ सकता है। क्योंकि, आज ‘येलो जर्नलिज़्म’ का बोलबाला है। आए दिन पत्रकार जबरन उगाही और ब्लैकमेलिंग जैसे कार्यो में संलिप्त होकर पत्रकारिता की छवि को धूमिल कर रहे है। जो ये नहीं करते वे सत्ता पक्ष का ढोल बजाने और उनका स्तुतिगान करने से बाज नहीं आ रहे। जिनका पत्रकारिता से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं, वे भी पत्रकार का तमगा लगाकर घूम रहें हैं। देश मे सोशल मीडिया के बढ़ते चलन के बाद पत्रकारिता में नए प्रयोग किए जाने लगे। नागरिक पत्रकारिता का दौर काफी बढ़ गया है। जिन पत्रकारों की बातों को तव्वजों नहीं मिलती वे अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर ढिंढोरा पीटना शुरू कर देते है।
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में पत्रकार को चौथा स्तम्भ कहा गया है। जो सरकार और समाज के बीच एक पुल का कार्य करता है। लेकिन, आज यही मीडिया अपने कार्यों से विमुख होता दिख रहा है। खबरें भी अब मनोरंजन के रूप में परोसी जाने लगी। टीआरपी के खेल में भावनाओं का कहीं कोई मोल नहीं रह गया है। किसी की मौत को भी तमाशा बनाकर खबरों को परोसा जाने लगा है। ये सच है कि अब पत्रकारिता का क्षेत्र बहुत व्यापक हो गया है। जो पत्रकारिता आज़ादी के पहले मिशन थी वह अब व्यापार बन गई है। मीडिया और प्रेस के महत्व को लेकर महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘प्रेस एक महान शक्ति है, लेकिन जिस तरह पानी की एक अप्रकाशित धार पूरे देश को जलमग्न कर देती है और फसलों को तबाह कर देती है वैसे ही एक अनियंत्रित कलम कार्य करती है लेकिन नष्ट करने के लिए।’
आज देश में सांस्कृतिक, राजनैतिक, प्राकृतिक और भौगोलिक सभी मोर्चो पर अशांति व्याप्त है। कोरोना काल के बाद महंगाई चरम पर है। दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी है। रूस-यूक्रेन युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा है। कोरोना महामारी का खतरा भी अभी पूरी तरह से टला नहीं है कि देश में धर्म के नाम पर अराजकता फैलाई जा रही है। ऐसे में पत्रकारों को देश में साम्प्रदायिक सौहार्द बनाये रखना है। साथ ही देश के बाहरी दुश्मनों से भी देश को अवगत कराना है। इस संकट में पत्रकारों को सभी मोर्चो के लिए तैयार रहना है। आज जिन हालातों से देश रूबरू हो रहा है वैसी परिस्थितियां शायद पहले कभी नहीं थी आज सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ जाने से चंद पलो में ही देश में अशांति दंगे जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
देश के पत्रकारों का यही कर्तव्य है कि वह अपनी जिम्मेदारियों को समझें। अब समय आ गया है जब पत्रकारों को अपने गौरवशाली इतिहास के मायनो को पुनः समझना होगा। देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी का नैतिकता से निर्वहन करना होगा। प्रेस समाज का आईना होता है। प्रेस और मीडिया का यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि वह हमें समाज में घटित घटनाओं से अवगत कराये साथ ही यह भी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि खबरों से देश में अराजकता न फैले। वर्तमान दौर में जिस प्रकार के युद्ध आज वास्तविक परिदृश्य में लड़े जा रहे है, उन हालातों को आज हर पत्रकार को समझने की जरूरत है। आज युद्ध हथियारों से कही अधिक सूचना और संचार क्रांति के दम पर लड़े जा रहे है। ऐसे में पत्रकारों की भी ये नैतिक जिम्मेदारी बन जाती है कि वह देश में शांति बनाएं रखें।
देश में पत्रकारों के अधिकारों की बात करे तो वैसे तो पत्रकारों को कोई विशेष अधिकार नहीं दिए गए है। संविधान में भी प्रेस का कहीं कोई जिक्र नही किया गया है। अनुच्छेद-19; सभी व्यक्तियों को बोलने की, स्वतंत्र रूप से अपनी बात रखने की आजादी प्रदान करता है। यही अनुच्छेद पत्रकारों पर भी लागू होता है। वहीं हम अनुच्छेद-19 (ख) की बात करे तो यहां कुछ बंदिशों का जिक्र जरूर किया गया है। जिनके दायरे में सभी पत्रकार आते है। यूं तो पत्रकारों के लिए हमेशा से ही विशेष अधिकारों और कानून की बात होती रही है। लेकिन, अब तक इस पर कोई विशेष प्रावधान नही बन पाए है। कोरोना काल में पत्रकारों ने जिस जिम्मेदारी से अपने कार्य का निर्वहन किया है, उसने पत्रकारों के प्रति नज़रिया जरूर बदल दिया था। यही वजह है कि कोरोना काल जैसी वैश्विक महामारी में देश के प्रधानमंत्री ने देश के नाम संबोधन में डॉक्टरों, पुलिसकर्मियों, अस्पताल कर्मचारियों की ही तरह पत्रकारों को भी जरूरी सेवाओं में शामिल कर पत्रकारों की अहमियत बढ़ाई थी। अब देश के पत्रकारों का भी ये कर्तव्य बनता है, कि वे समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन पूरी ईमानदारी से करें।
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