नफ़रत की दीवार में महिलाएं ही सद्भावना का झरोखा

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आज महिला दिवस है। एक और दिन जब महिलाओं के अधिकार की बात होगी, उनके उत्थान के वादे होंगे और उन्हें बराबरी का दर्जा देने की कसमें खाई जाएंगी। सरकार से लगाकर सामाजिक संगठन तक महिलाओं के पक्ष में शब्दों की बाढ़ ले आएंगे, पर शाम तक सबकुछ तिरोहित हो जाएगा। एक दिन का महिला दिवस मना लिया जाएगा। इसलिए कि आज भले ही दुनिया और समाज ज्यादा जागरूक बन गया हो, लेकिन महिलाओं के अधिकारों और हक की लड़ाई अभी जारी है। कई मामलों में महिलाओं को आज भी समान सम्मान और अधिकार नहीं मिले। महिलाओं के इन्हीं अधिकार, सम्मान के लिए समाज को जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ मनाया जाता है।

एक आंकड़े की बात करें तो ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021 कहती है कि विश्वभर में 35,500 संसदीय सीटों में महिलाओं का अनुपात सिर्फ 21.6% ही है। इस रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि 156 देशों में से 81 देश ऐसे जहां उच्च राजनीतिक पदों पर कोई महिला नेता कभी नहीं रही। आश्चर्य की बात तो यह है कि अमेरिका, स्पेन, नीदरलैंड जैसे आधुनिक विचारधारा वाले देश इसमें शामिल है। इन देशों में लैंगिक भेदभाव न के बराबर माना जाता है। हमारे देश में भी सक्रिय राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी बहुत कम ही देखी जाती है। 2018 के आर्थिक सर्वे में सभी विधानसभाओं में मात्र 9% महिलाएं ही विधायक है। एक सवाल यह भी कि जब इस बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की थीम भी ‘एक स्थायी कल के लिए आज लैंगिक समानता’ रखी गई है तो क्या महिलाओं की दशा और उनके प्रति समाज की दिशा में बदलाव आएगा? या सिर्फ़ दिखावे की तरह ही महिला दिवस हर बार हम मनाते रहेंगे और समाज अपनी ढपली बजाते रहेगा!

समाज में आज भी महिलाओं की स्थिति संतोषजनक नहीं है, पर औपचारिकता के लिए फ़िर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है। महिलाओं के साथ हो रहें दोयम दर्जे के व्यवहार को एक ताजा घटनाक्रम से भी जोड़कर देख सकते हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच महिलाओं का विश्वकप क्रिकेट मैच हुआ था। इसमें जीत भारतीय महिला टीम की हुई, लेकिन कहीं कोई शोर-शराबा नजर नहीं आया। जबकि, पुरुष क्रिकेट टीम के जीतने पर जो हंगामा होता है, वो सभी देखते हैं। ये सिर्फ़ एक उदाहरण है, ऐसे अनगिनत उदाहरण मिल जाएंगे, जब महिलाओं को उपेक्षा के भाव से देखा जाता है। महिलाएं भले सदैव समाज में एक सम्मानित स्थान पाने के लिए जद्दोजहद करती हो, लेकिन वो महिलाएं ही हैं, जो युद्ध और नफ़रत के बीच शांति और प्रेम का परचम लहराने का प्रयास करती हैं।

भारत और पाकिस्तान की महिला क्रिकेट टीमों के बीच हुए मुकाबला के बाद पाकिस्तानी टीम की कप्तान बिस्मा मारूप की बेटी को भारत की महिला टीम की सदस्यों ने जिस तरह दुलार किया, वो एक नया संदेश है। इन पलों के वीडियो और फोटो अब सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रहें हैं। एक बात स्पष्ट है, कि भले सियासतदां दोनों मुल्कों में बीच कितनी भी दुश्मनी भांज लें, पर जब भी इंसानियत और मानवता की बात आती है, शत्रुता और वैमनस्यता उसके सामने टिक नहीं पाते। महिला क्रिकेट टीम की सदस्यों ने एक रास्ता तो दिखा ही दिया कि प्रेम, स्नेह और दुलार की कोई भाषा नहीं होती! ऐसा ही एक और उदाहरण, अभी रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है। इस बीच यूक्रेन की ‘पूर्व मिस ग्रैंड इंटरनेशनल’ ने रूस के खिलाफ बंदूक उठाई और फैसला किया कि वे अपने देश के लिए रूस के खिलाफ लड़ेंगी! लेकिन, उन महिलाओं के ख़िलाफ़ भी सोशल मीडिया पर काफ़ी अनाप-शनाप प्रचारित-प्रसारित किया जा रहा, जो अपने देश के अस्तित्व को बचाने के लिए उठ खड़ी हुई है। देखें तो यहां भी महिलाएं एक अलग प्रकार से ही समाज के निशाने पर हैं। गौर करने वाली बात है कि मिस यूक्रेन एक ब्यूटी क्वीन रही हैं, लेकिन वक्त आने पर उन्होंने अपने स्वभाव के ठीक उलट जाकर अपने देश की रक्षा करने के लिए बंदूक उठाई और यह गुण कहीं न कहीं एक महिला के भीतर ही मिल सकता है।

महिलाएं समाज का एक अहम हिस्सा हैं, लेकिन वक्त के साथ महिलाएं समाज और राष्ट्र के निर्माण का भी एक अहम हिस्सा बन चुकी हैं। घर-परिवार से सीमित रहने वाली महिलाएं अब चारदीवारी से बाहर निकलकर अन्य क्षेत्रों की और बढ़ी हैं। खेल जगत से लेकर मनोरंजन तक और राजनीति से लेकर सैन्य व रक्षा मंत्रालय तक में महिलाएं न केवल शामिल हैं। बल्कि, बड़ी भूमिकाओं में हैं। इन सबके बावजूद हमारे समाज में अभी भी कुछ खामियां हैं। इन्हें दूर किए बिना महिला दिवस की सार्थकता सिद्ध नहीं की जा सकती। शायद यही वज़ह है कि इस बार के अंतरराष्ट्रीय महिला की थीम ‘जेंडर इक्वालिटी टुडे फॉर ए सस्टेनेबल टुमारो’ रखी गई है। देखें तो समाज में लैंगिक असमानता बहुत बढ़ गई है। जिसका परिणाम यह हुआ है कि वैश्विक आर्थिक मंच की अंतरराष्ट्रीय लैंगिक रिपोर्ट 2021 में हम 156 देशों की लिस्ट में 140 वें पायदान पर पहुँच गए।

ऐसे में ‘बेटी पढ़ाओ और बेटी बचाओ’ के दौर में महिला समानता के दावों की पोल अपने आप खुलकर सामने आ रही है। रही- सही कसर कोरोना महामारी ने पूरी कर दी है। दुनिया में जब कोई विपत्ति या महामारी आती है, तब महिलाओं को इसकी क़ीमत चुकानी पड़ती है। यह बात कोरोना काल पर भी लागू होती है। इस दौरान विश्वभर में लाखों महिलाओं ने अपनी नौकरी खोई। सवाल उठता है कोरोना जैसी वैश्विक महामारी में महिलाओं को ही नौकरी से क्यों निकाला गया। जब महिलओं के लेकर बात समता समानता की होती है तो यह बात धरातल पर क्यों नहीं दिखाई देती। सवाल कई है, पर जवाब किसी के पास नहीं!

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सोनम लववंशी

पत्रकारिता में स्नातकोत्तर होने के साथ महिलाओं और सामाजिक मुद्दों की बेबाक लेखिका है। उन्होंने पत्रकारिता के कई संस्थानों में कार्य किया है।