Special Heritage : एक तरफ जलती चिता तो दूसरी तरफ ढोल-नगाड़े, नाचना-गाना, पटाखे और रंगोली!

295

Special Heritage : एक तरफ जलती चिता तो दूसरी तरफ ढोल-नगाड़े, नाचना-गाना, पटाखे और रंगोली!

वह श्मशान घाट पर यम चतुर्दशी, मनाते हैं!

Ratlam : श्मशान, कब्रिस्तान, मुक्तिधाम, अंतिम स्थान, मृत्युस्थल, मोक्षधाम, अंत्येष्टि स्थल, दाहस्थल, शवागार यह ऐसे शब्द हैं जिनका नाम सुनते ही छोटे बच्चे और विशेषकर महिलाएं सिहर उठती हैं। सन 2006 में रतलाम के 5 दोस्तों के मन में आया कि जब हम अपने परिवार के साथ दीपावली पर्व मनाकर खुशियां बांटते हैं, मिठाई खाते हैं, खिलाते हैं, पटाखे छोड़ते हैं, रंगोली बनाते हैं और हम हमारे पूर्वजों को भूल जाते हैं जो जिन्दगी भर हमारे साथ रहे। अमूमन शहर के पांच दोस्तों ने एक योजना बनाई कि क्यों ना हम अपने पुर्वजों के साथ भी दीपावली मनाएं और पहुँच गए रतलाम के त्रिवेणी स्थित मुक्तिधाम पर और वहां पर दीप जलाकर पटाखे फोड़े और अपने पूर्वजों को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

धीरे-धीरे प्रतिवर्ष उनके कारवां में एक-एक करके बहुत से युवा, महिलाओं और बच्चों का समावेश हुआ और उन्होंने श्मशान घाट पर दीपदान करने के आयोजन को विस्तार दिया। 20 सालों में यह आयोजन प्रदेशभर में चर्चित हो गया।

WhatsApp Image 2024 11 02 at 13.31.17

हां दोस्तों हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के रतलाम शहर की जहां एक संस्था ‘प्रेरणा’ ने रुप-चतुर्दशी को एक अनोखी परम्परा आज से 20 वर्ष पहले शुरू की थी। जिसके अंतर्गत पूर्वजों की याद में शमशान में दीवाली मनाई जाती है।

इस त्यौहार को शमशान में मनाने के लिए बड़ी संख्या में महिलाएं, बच्चे और पुरुष पहुंचते हैं जिसमें कई सामाजिक संगठनों की यह पहल रहती है कि अपने पूर्वजों की याद में त्रिवेणी मुक्तिधाम पहुंचकर यहां बकायदा दीप-अर्पण करते हैं। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद दीपोत्सव के त्योहार पर मिलता है। यहां हजारों दीपों से मुक्तिधाम को सजाया जाता हैं, रंगोली बनाई जाती है और इसके बाद मुक्तिधाम में जमकर आतिशबाजी भी की जाती है और नाचते हुए गाते हुए खुशियां बांटते हैं।

WhatsApp Image 2024 11 02 at 13.31.17 1

बता दें कि मुक्तिधाम में दीवाली मनाने की यह परंपरा ज्यादा पुरानी नहीं है। प्रेरणा संस्था के संस्थापक गोपाल सोनी बताते हैं कि 2006 में उनकी संस्था के 5 लोगों ने मिलकर शमशान में दीपदान करने का कार्यक्रम आयोजित किया था। जिसके बाद धीरे-धीरे लोग इस दीपदान कार्यक्रम से जुड़ते गए और अब बड़े स्तर पर मुक्तिधाम में दिवाली मनाने का आयोजन किया जाता है।

समाजसेवी और भाजपा नेता गोपाल सोनी बताते हैं कि मेरे साथी जितेंद्र कसेरा, चेतन शर्मा, मधुसूदन कसेरा, राजेश विजयवर्गीय त्यौहार के दिन मुक्तिधाम में पसरे सन्नाटे और अंधकार को देखकर पहली बार 31 दीपक लगाकर इस कार्यक्रम की शुरुआत की थी। धीरे-धीरे इस आयोजन में कई परिवार और जुड़ते गए और अब महिलाएं और बच्चे भी बिना भय के मुक्तिधाम में आकर दीपावली मनाते हैं।

WhatsApp Image 2024 11 02 at 13.31.27

शमशान घाट में परिवार के साथ पहुंचते हैं लोग महिलाएं और बच्चे बिना भय के मनाते हैं दीवाली आमतौर पर मुक्तिधाम में महिलाओं और बच्चों का आना वर्जित रहता है। शमशान में आने पर बच्चे और महिलाएं डरते भी हैं। शमशान का नाम आते ही गमगीन माहौल और रोते बिलखते परिजनों का दृश्य दिखाई देता है लेकिन रूप चौदस के मौके पर इसी मुक्तिधाम में खुशियां और उत्साह के साथ महिलाएं और छोटे बच्चे भी दीपदान कर आतिशबाजी करते नजर आते हैं। यहां आने वाले बच्चे और महिलाएं बताते हैं कि उन्हें यहां आकर अपने पूर्वजों के लिए दीपदान करने और उन्हें याद करने में आनंद आता है। शहर के त्रिवेणी मुक्तिधाम में रूप-चतुर्दशी के दिन दोपहर से ही लोगों का यहां पर उमड़ना शुरू हो जाता है। जहां पर एक तरफ दुनिया छोड़कर चले गए लोगों की चिताएं चलती हुईं नजर आती हैं वहीं, शाम के समय पूर्वजों को याद करने के लिए लोग यहां दीवाली का उत्सव मनाते हैं, पटाखे छोड़ते हैं, ढोल-नगाड़े बजाकर खुशियां मनाते हैं।

इस दौरान अक्षय संधवी, विनोद राठौर, राजेश रांका, लविश अग्रवाल, महेश सोलंकी, राजेश चौहान, बद्रीलाल परिहार, बादल वर्मा, जयवंत कोठारी, संदीप यादव, सतीश भारतीय, ठाकुर रणजीत सिंह, राकेश मीणा, कमलेश टाक, क्षितिज सोनी, राजेन्द्र सोनी, महेश अग्रवाल, तपन शर्मा, अमर सिंह मुनिया, श्रीमती वीणा सोनी, रेखा बहादुर सिंह, आशा उपाध्याय, राखी उपाध्याय, कुसुम भट्ट आदि मुख्य रूप से मौजूद रहे।