‘‘भस्मासुर शिव प्रसंग निहितार्थ’’ विषय पर पूर्व अपर मुख्य सचिव (एसीएस) एवं अध्यात्मवेत्ता श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव के विशिष्ट व्याख्यान मंदसौर में हुआ

‘‘शिव ने जान का जोखिम नहीं वचन का जोखिम उठाया’’ ‘‘शिव की मृत्युंजयता को समाप्त करना चाहता था भस्मासुर

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‘भस्मासुर शिव प्रसंग निहितार्थ’’ विषय पर पूर्व अपर मुख्य सचिव (एसीएस) एवं अध्यात्मवेत्ता श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव के विशिष्ट व्याख्यान मंदसौर में हुआ

मंदसौर से डॉ घनश्याम बटवाल की रिपोर्ट

मन्दसौर। भस्मासुर शिव प्रसंग निहितार्थ विषय पर पूर्व अपर मुख्य सचिव (एसीएस ) एवं

अध्यात्मवेत्ता तथा स्वामी विवेकानंद राष्ट्रीय हिंदी पुरस्कार प्राप्त श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव ( आईएएस) के विशिष्ट व्याख्यान पूर्व प्राचार्य शिक्षाविद डॉ ज्ञानचंद खिमेसरा की अध्यक्षता, कलेक्टर दिलीप कुमार यादव के सानिध्य एवं नपाध्यक्ष श्रीमती रमादेवी गुर्जर की गरिमामय उपस्थिति में नगरपालिका सभागृह मंदसौर में जनपरिषद मंदसौर चैप्टर , अभा. साहित्य परिषद व म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन के संयुक्त तत्वावधान में सम्पन्न हुआ।

 

भस्मासुर शिव प्रसंग निहितार्थ विषय पर विशिष्ट व्याख्यान में पूर्व अपर मुख्य सचिव एवं अध्यात्मवेत्ता श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि शिव भस्मासुर की प्रचलित कथा भस्मासुर का तपस्याकरण, शिव का वरदान देना, भस्मासुर का वरदान का परीक्षण शिव पर ही करना, शिव का भागना, विष्णु का एकमात्र नारी अवतार मोहिनी का भस्मासुर को रिझाना, भस्मासुर की सौंदर्य के प्रति आसक्त हो जाना, मोहनी का शिव के समान तांडव नृत्य की अपेक्षा करना, प्रेमान्धतावश भस्मासुर का तांडव नृत्य कर अपने ही सिर पर हाथ रखना और स्वयं वरदान के प्रभाव से भस्म हो जाना कथा के प्रचलित अर्थों में से उस कथानक के वैकल्पिक निहितार्थ का चित्रण तर्कों के आधार पर प्रतिपादित किया। शिव भस्मासुर की इस कथा के फेकेस्टाइन कथा के तुलनात्मक स्वरूप को प्रस्तुत किया। बदसूरत फेकस्टार्थ कथा नायक भी भस्मासुर के समान अपने ही वरदान (पावर) प्रदान करने वाले का अन्त करता है लेकिन फेकेस्टाइन नायक मानवता की तलाश में मानवों द्वारा दुत्कारा जाने पर यह कदम उठाता है जबकि भस्मासुर वरदान प्राप्त कर सबसे पहले शिव का ही अंत करना चाहता है। यहां मानव और असुर का तुलनात्मक विश्लेषण बहुत तार्किक आधार पर किया गया। अगस्टीन नायक मानव दुर्व्यवहार से व्यथित होकर मानव हन्ता बना वहीं भस्मासुर ने असुरता से ग्रसित होते हुए अपने उपकार करने वाले को ही समाप्त करना चाहा। यहां सामान्य प्राणी मानवता के लिये शक्ति प्राप्त करता है तो असुर विनाश के लिये शक्ति चाहता है। भस्मासुर ने तपस्या के दौरान उपजी हताशा रूपी जहर को अपने अंदर पाला और जिस सीढ़ी से बुलंदी तक पहुंचा उसे ही हानि पहुंचाने की सोची और शिव को शिव के जरिये (वरदान) ही निपटाने का प्रयास किया।

श्री श्रीवास्तव ने स्पष्ट करते हुए उल्लेख किया कि वर्तमान परिदृश्यों में भी अधिकार , सुविधाएं प्राप्त करने के बाद उस माध्यम और आधार को ही समाप्त करने पर आमादा हो जाते हैं लोग । इस प्रसंग के माध्यम से यह समझा जा सकता है ।

 

यहां श्री श्रीवास्तव ने शिव के आत्मनिर्णय का भी सुंदर चित्रण किया ‘‘शिव ने भस्मासुर को वर दिया और वे ही भाग रहे थे’’ यहां शिव ने भस्मासुर से भागकर उसे एहसास कराया कि वो क्या गलत कर सकता है, कितना बुरा कर सकता है। यहां प्रयलंकर को भगाकर भस्मासुर आनंदित हुआ उसे पता नहीं चला कि शिव जिसे शक्ति से नवाजते है वही शक्ति उन्माद पैदा करती है। इसी कारण भस्मासुर की हरकत करने को विवश हुआ। यहां यह भी प्रतिपादित हुआ कि ‘‘शक्ति मिली तो भक्ति गायब जबकि शक्ति मिली तो भक्ति के कारण’’ यहां वर और फल का अर्थ समझाते हुए बताया कि ‘‘वर तपस्या अनुसार होते है पर फल तो कर्म के अनुसार ही तय होते होंगे’’। भस्मासुर ने तप किया पर फल को दुरूपयोग की सोच असुर कर्मों के कारण बनी। यहां शिव भी वर देने के बाद स्वयं भाग रहे थे तो जान बचाने के लिये नहीं बल्कि असुर मन की सोच उजागर करने के लिये भागे ‘‘शिव ने जान का जोखिम नहीं वचन का जोखिम उठाया’’

कथा में सखा रूप में विष्णु का मोहनी स्वरूप धर शिव की सहायता का जिक्र मित्रों की अहमियत को दर्शाता हैं वही भस्मासुर को मोहनी सौंदर्य से प्रभावित करना इस बात को पुष्ट करता है कि तप से वर एवं वर से शक्ति से उपकार करने वाले को छला जा सकता है तो दुराभाव के प्रयासों को मोहनी सौंदर्य से भी छला जा सकता है। ‘‘भस्मासुर ने मोहनी सौंदर्य की ऊँचाईयां देखी खाईयां नहीं’’ और आसुरी सत्ता के विस्तार के लिये शिव की मृत्युजयता को समाप्त करना चाहता था भस्मासुर’’ पर सौंदर्य पिपासा के तांडव नृत्य से जिस हाथ से शिव को भस्म करना चाहता था स्वयं भस्म हुआ।

भस्मासुर को मिले वरदान का प्रयोग उसने मानवता के कल्याण के लिये नहीं अपितु शक्ति और वर देने वाले शिव को ही भस्म करने की चेष्टा की ।

 

व्याख्यान समारोह का अध्यक्षीय उद्बोधन शिक्षाविद डॉ खिमेसरा ने दिया । नगर पालिका परिषद अध्यक्ष श्रीमती रमादेवी गुर्जर , जिला कलेक्टर श्री दिलीप कुमार यादव ने अपने विचार व्यक्त किये ।

 

प्रारंभ में अतिथियों ने भगवान पशुपतिनाथ की प्रतिकृति मूर्ति पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन किया।

 

आरंभ में आयोजक संस्था जनपरिषद मंदसौर चैप्टर अध्यक्ष डॉ. घनश्याम बटवाल, सचिव नरेन्द्र त्रिवेदी, अ.भा. साहित्य परिषद अध्यक्ष नरेन्द्र भावसार, सचिव नंदकिशोर राठौर एवं म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष वेदप्रकाश मिश्रा, सचिव जयेश नागर ने साहित्य मनीषी एवं पूर्व वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव शाल, श्रीफल एवं पुष्पहारों से सम्मान किया।

 

अतिथियों का स्वागत वाल्मीकि समाज प्रमुख श्री राजाराम तंवर

शिवकरण प्रधान , गुरुचरण बग्गा सुभाष गुप्ता वरदीचंद कुमावत आर एस चूंडावत गिरिजाशंकर रुनवाल , चंदा डांगी विजय अग्निहोत्री गिरिराज दास सक्सेना , अजिजुल्लाह ख़ालिद रविन्द्र पांडेय , अशोक त्रिपाठी पार्षद सुनीता भावसार वीरेन्द्र भट्ट रमा माथुर अरूण शर्मा, रूप नारायण जोशी राजेश दुबे आदि एवं अन्य सामाजिक संस्थाओं ने श्री श्रीवास्तव का स्वागत सम्मान किया।

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इस अवसर पर श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव को वरिष्ठ पत्रकार विक्रम विद्यार्थी ने अनासक्त कर्मयोगी , सरल गीता , ओर जो अबतक याद रहा पुस्तकें भेंट की , डॉ घनश्याम बटवाल द्वारा संपादित साहित्य संग्रह ” यथार्थ ” पुरातत्व विद्वान श्री कैलाश चंद्र पांडेय ने दशपुर संस्कृति पुस्तकें भेंट की तथा लेखक एव साहित्यकार भगवतीप्रसाद गेहलोत के लघुकथा संग्रह ” गिलोल ” का विमोचन किया गया।

सामाजिक कार्यकर्ता एव सक्षम संस्था प्रांतीय सचिव डॉ रविन्द्र पांडेय ने सदन में पशुपतिनाथ महादेव केंद्रित पशुपति ग्रंथ पुनः प्रकाशन की मांग रखी । ध्वनि मत से इसकी अनुमोदना हुई । मंच पर उपस्थित पशुपतिनाथ मंदिर प्रबंध समिति अध्यक्ष एवं कलेक्टर श्री दिलीप कुमार यादव से शीघ्र पशुपति ग्रंथ प्रकाशन की अपेक्षा की गई ।

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कार्यक्रम में स्वागत संबोधन , अतिथि परिचय ओर संचालन डॉ. घनश्याम बटवाल ने किया व आभार वेद मिश्रा ने माना।

इस विशिष्ट व्याख्यान समारोह में विभिन्न वर्गों के गणमान्य प्रबुद्धजनों की बड़ी उपस्थिति रही ।