बसंत पंचमी पर विशेष-ब्रह्मांड को सप्त स्वर और नव रस प्रदान करने वाली मां देवी सरस्वती

बसंत पंचमी पर विशेष-ब्रह्मांड को सप्त स्वर और नव रस प्रदान करने वाली मां देवी सरस्वती

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बसंत पंचमी पर विशेष-ब्रह्मांड को सप्त स्वर और नव रस प्रदान करने वाली मां देवी सरस्वती

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(शिक्षाविद रमेशचंद्र चंद्रे)

प्रस्तुति- डॉ घनश्याम बटवाल मंदसौर

हर पढ़ने लिखने वाले और संगीत साहित्य संस्कृति से जुड़े जनमानस के लिए बसंत पंचमी का विशेष महत्व रहा है और यह सदैव बना रहेगा ।ज्ञान और विज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की वंदना निश्चित ही पवित्रता और शुभ भावों का संचार करती है ।

 

पौराणिक कथा के अनुसार जब ब्रह्माजी ने ब्रह्मांड की रचना की तो उन्होंने मनुष्य एवं अन्य योनियों के जीव जंतु सहित पेड़ ,पौधे ,नदी पहाड़ ,हवा तथा समुद्र आदि का भी निर्माण किया किंतु इसके सृजन से वे संतुष्ट नहीं थे क्योंकि इन सब की रचना के बाद भी संपूर्ण ब्रह्मांड में एक प्रकार का सन्नाटा मौन एवं निशब्दता का वातावरण था तब ब्रह्माजी को यह अनुभव हुआ सृष्टि की रचना में कोई कमी अवश्य है और उन्होंने अपने कमंडल से जल छिड़ककर आदि शक्ति का आह्वान कियाऔर उसी समय एक ज्योति पुंज प्रकाशित हुआ तथा देखते ही देखते एक श्वेत वर्णा दिव्य नारी का स्वरूप प्रकट होने लगा जिसके हाथ में वीणा, पुस्तक,माला तथा जो श्वेत कमल पर विराजित थी।

जैसे ही उस देवी ने अपनी वीणा के तारों को झंकृत कर एक मधुर नाद किया तो संपूर्ण जगत पल्लवित होने लगा तथा नवीन संचार के साथ संपूर्ण वातावरण भी बदलने लगा! देखते देखते समस्त राग रागिनी एवं सोलह कलाओं सहित प्राणियों को वाणी प्राप्त हुई शब्दों का उद्घोष हुआ जलधारा में कल कल का कोलाहल व्याप्त हो गया वायु में मधुर सरसराहट होने लगी पेड़ पौधे झूमने लगे तथा संपूर्ण ब्रह्मांड में शब्द और रस का संचार होने लगा।

 

इसीलिए सरस्वती पुत्र महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘‘निराला’’ ने अपनी रचना में लिखा है कि-

नव गति नवलय ताल छंद नव

नवल कंठ नव जलद मंद्र रव

नव पर नव स्वर दे।

वीणावादिनी वर दे ।।

 

प्रकृति में अभूतपूर्व परिवर्तन देखकर ब्रह्मा जी ने इस देवी की चमत्कारिक शक्ति और तेज से प्रभावित होकर ब्रह्मा जी सहित समस्त देवी देवताओं ने इसे ब्रह्म ज्ञान, विद्या, वीणा ,संगीत साहित्य तथा ललित कलाओं की अधिष्ठात्री देवी के रूप में रूप में मान्यता प्रदान की तथा संसार को स्वर एवं रसमयी करने वाली देवी सरस्वती के नाम से संबोधित किया क्योंकि यह ब्रह्मा जी के कमंडल के जल छिड़कने तथा तो उनकी जिव्हां से इसकी उत्पत्ति होने के कारण मां सरस्वती को ब्रह्मा जी की पुत्री भी माना जाता है।

 

मां सरस्वती के संपूर्ण स्वरूप को महिमामंडित करते हुए कहा गया है कि सरस्वती का मुख जो आनंद और उल्लास का प्रतीक है तथा एक हाथ में वीणा है जो सप्त स्वरों एवं रसों का संचार करती है तथा ललित कला की प्रतीक है एवं पुस्तक जहां ज्ञान का प्रतीक मानी गई है वही उनके हाथों में माला ,ईश निष्ठा का बोध कराती है इसके साथ ही इनका वाहन राजहंस है जो नीर क्षीर विवेक का प्रतीक है वही मयूर सप्त रंगों की सुंदरता का प्रतीक माना गया है।

 

पुराणों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने सरस्वती से प्रसन्न होकर यह वरदान दिया था कि बसंत पंचमी के दिन सरस्वती माता की विशेष आराधना करने वालों को ज्ञान विद्या एवं कला में चरमोत्कर्ष प्राप्त होगा इस वरदान के कारण बसंत पंचमी को विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा आराधना की विशेष परंपरा आज तक जारी है सरस्वती के 108 नाम है किंतु कुछ प्रमुख नाम जो प्रचलित है जैसे वीणापाणि, वीणा वादिनी, हंस वाहिनी, मयूर वाहिनी, शारदा, वाग्देवी इत्यादि।

 

बसंत पंचमी के दिन विशेषकर विद्यार्थियों तथा शिक्षा एवं साहित्य के क्षेत्र से जुड़े अथवा वेद पाठी कर्मकांड करने वाले एवं किसी विषय में विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा रखने वालों को सरस्वती माता की पूर्ण विधि विधान से पूजा करना चाहिए।

 

बसंत पंचमी को वर्ष का शुभ और मंगल कार्यों के लिए महत्ता दी जाने का विधान है । इस दिवस को अबूझ मुहूर्त के रूप में भी मान्यता प्राप्त है ।

 

मां सरस्वती की वंदना के साथ आपके शुभ की कामना करते हैं ।

ॐ शुभमअस्तु ।