वृद्धजन दिवस पर विशेष: वृद्धजन का सम्मान – ईश्वर का सम्मान

शिक्षाविद डॉ बी आर नलवाया, मंदसौर

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वृद्धजन दिवस पर विशेष: वृद्धजन का सम्मान – ईश्वर का सम्मान

प्रस्तुति डॉ घनश्याम बटवाल मंदसौर

वृद्धावस्था भी मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है ओर समाज में बहुसंख्यक लोगों के जीवन में यह आता है, यह एक यथार्थ है , इसे स्वीकार करना चाहिए।

यह ध्यान रहे कि जो आज युवा है वह कल उम्र के इस पड़ाव पर आयेगा ऐसे में यह समझना होगा कि वृद्ध जनों का सम्मान ईश्वर सम्मान का प्रतिरूप है । सम्मान करना हमारा परम पुनीत कर्तव्य वृद्धावस्था या बुढ़ापा यद्यपि जीवन का संध्याकाल है । मनुष्य में अजर-अमर अर्थात चीर यौवन की इच्छाएं अनादि काल से ही रही हैं। फिर भी शाश्वत यौवन की उसकी कल्पना अधूरी है। बुढ़ापे को रोकना आपके हाथों में नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में वृद्धावस्था आती ही है।

प्रश्न यह है, कि आखिर बुढ़ापा क्यों होता है? हम सब को पता है, कि हमारा शरीर हजारों-करोड़ों छोटी-छोटी नंगी आंखों से न दिखाई देने वाली कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। इन कोशिकाओं में हमेशा विभाजन होकर एक से दो, दो से चार….. नई नई कोशिकाएं बनती रहती हैं । पुरानी कोशिकाएं एक निश्चित आयु के बाद नष्ट हो जाती हैं, और उनका स्थान नई कोशिकाएं ले लेती हैं । जब तक नई कोशिकाओं के बनने और पुरानी कोशिकाओं के नष्ट होने की गति समान रहती हैं। तब तक शरीर ज्यों का त्यों बना रहता है, परंतु जब नई कोशिकाओं के बनने की रफ्तार कम हो जाती है।तब शरीर का ह्रास प्रारंभ हो जाता है । इस स्थिति में त्वचा ढीली होने लगती हैं और जोड़ सख्त होने लगते हैं । कुछ ही दिनों बाद शरीर की विभिन्न जैविक क्रियाएं जैसे पाचन, श्वसन, उत्सर्जन आदि में परिवर्तन आ जाता है और शरीर को अनेक प्रकार के रोग लग जाते हैं।

मनुष्य अनंत समय तक जीने की लालसा रखता है। यह तो सही है, परंतु वह यह जीवन बुढ़ापे के रोगों से बेहाल हो कर नहीं जीना चाहता है, बल्कि जब तक जिंदा रहे चुस्त और दुरुस्त रहकर जीवन का आनंद लेना चाहता है। इसके लिए मनुष्य की सेहत के प्रति बढ़ती जागरूकता और आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं का लाभ लेने से उसकी औसत आयु भी बढ़ी है। थिंक टैक नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी कहते हैं, “चिकित्सा और सामाजिक पहलू के साथ बुजुर्गों की देखभाल के बारे में सोचने का समय आ गया है ।” यदि देखा जाए तो अनेक देशों में लोगों की औसत आयु 70 वर्ष से अधिक है। भारत जैसे विकसित देश के नागरिकों की औसत आयु 60 वर्ष से अधिक 65 हो रही है।

जीवन प्रत्याशा में वृद्धि के कारण देश में वृद्धजन की संख्या बढ़ रही हैl देश में 2011 में 10.38 करोड़ वरिष्ठ नागरिक थे ,जिनके 2050 तक बढ़कर 30 करोड़ होने का अनुमान है। वही 2050 तक कुल जनसंख्या की 19.5% वृद्धि वृद्धजन में होगी, जो फिलहाल 10% थी । अनुमान है, कि 2050 तक हर चौथा भारतीय बुजुर्ग होगा। यह बात भारत के सरकारी थिंक टैक नीति आयोग ने कही है lइसी के कारण बुजुर्गों की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं lइन्हीं के एक विकराल समस्या एकाकीपन और मानवीयता का साथ का अभाव, अकेलेपन का दर्द क्या होता है ,यह वही जान सकता है ,जिसने इसे भोगा है ।बच्चे भी नौकरी के लिए पलायन कर जाते हैं। बुढ़ापे में जब सबसे ज्यादा परिवार की जरूरत होती हैं। 2011 – 24 तक 13 साल में बंगाल, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में देश की 26% बुजुर्ग आबादी बढी है।वही दूसरी और लाखों वद्बजन अपने बच्चों की ज्याति का शिकार हो रहे हैं। वृद्धजनों द्वारा दायर 35 लाख से अधिक मामलों में से करीब 7 लाख केस ऐसे हैं, जो अपना ही बच्चों द्वारा बेसाहारा छोड़ देने या सताए जाने पर गुजारा भत्ता या घरेलू हिंसा को लेकर दायर किए गए हैं। यह वे केस हैं, जिनमें बच्चे अपने माता-पिता को ढलती उम्र में 2 जून की रोटी और दवा के पैसे तक के लिए तरसाते हैं। वृद्धजन की स्थित यह पहले बच्चों ने सताया अब वे कोर्ट के धक्के खा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने वृद्धजन के केस दो-तीन महीने में निपटने के निर्देशन है फिर भी वही कई केस 5/ 10 वर्षों के बाद भी अटके पड़े हैं इनमें यूपी, महाराष्ट्र और कर्नाटक के वद्बजन परेशान है। देश की आबादी में बुजुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, और युवाओं की संख्या घट रही है। इस तरह बुजुर्ग की बढ़ती हुई संख्या का सम्मान करना भी हमारा परम पुनीत कर्तव्य होता है।

 

स्वेट मार्डेन का कथन है कि – “मनुष्य जब तक बूढ़ा नहीं होता तब तक उसके हृदय में मधुरता और उत्साह बना रहता है। जब तक उसके हृदय में महत्वाकांक्षाऐं बनी रहती है तब तक उसके मन में कार्य शक्ति का प्रवाह बहता रहता है”।

 

अमेरिका के कुछ हिस्सों में जहाँ जन्म और मृत्यु के कारणों से श्रमिकों और अधिकारियों की कमी है। नियोक्ताओं को शिक्षित और योग्य व्यक्ति मिल पाना कठिन हो गया है । ऐसे वक्त में जन्म हुआ “एबल” नाम के संगठन का, जो “एबिलिटी बेस्ड ऑन लॉन्ग एक्सपीरियंस” (लंबे अनुभव पर आधारित योग्यता) का संक्षिप्त रूप है। इस संगठन द्वारा दर्जनों कंपनियों में समर्पित अनुभवी, निष्ठावान और स्वस्थ सभी वृद्धों को रोजगार दिया गया है और उनके काम से संतुष्ट भी हैं, क्योंकि अमेरिका में यह सर्वविदित है कि वृद्धजन समाज पर बोझ नहीं है बल्कि समाज की संपत्ति है और जीवन का संचित अनुभव भी उनके पास है।

हमारे देश में भी वृद्धावस्था वह अवस्था है जब व्यक्ति अपने जीवन में अत्यंत सम्मान युक्त स्थान पा लेता है, न सिर्फ इसलिए कि वह आयु वृद्ध है अपितु कर्म की भट्टी में तप कर, अपने कर्तव्यों का सफल निर्वाह कर, वह अपने अनुभवों की पूंजी से समृद्ध होकर हमारे समक्ष विशाल वटवृक्ष की भाँति है, यदि चाहे वह अशिक्षित ही क्यों हो न हो? वह परिवार के लिए सदैव पूज्यनीय है।

राष्ट्रसन्त कमल मुनि कमलेश ने अपने प्रवचन में कहा – “जो ज्ञान शास्त्रों से और संतो से भी नहीं मिल पाता वह अनुभव का ज्ञान, जिंदगी में चढ़ाव-उतार की ठोकरे खाने के बाद बुजुर्गों के अनुभवों से प्राप्त होता है” । उन्होंने अपने प्रवचन में आगे भी बताया है – “वृद्ध की सेवा करने पर उनकी आत्मा से मिलने वाला आशीर्वाद हमारे जीवन के लिए वरदान बनता है। वें अनुभव का खजाना होते हैं, शास्त्रों में उन्हें वटवृक्ष के रूप में माना गया है। वृद्धजन को जो भार मानता है, इससे बढ़कर दुर्भाग्य कुछ नहीं हो सकता है”। उन्होंने आगे कहा कि – “माता-पिता ने अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर आपको इस योग्य बनाया, उनको अनदेखा किया तो उनकी आत्मा से निकलने वाली बद्दुआ खाक में मिला देगी”।

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दूसरी और कवि ध्रुव तारा ने अपनी मार्मिक अभिव्यक्ति में कहा है” कि हम माता-पिता को अनदेखा करते हैं, तो परमात्मा भी हमें अनदेखा कर देते हैं, उन्होंने वृद्बाश्रम की और इशारा करते हुए कहा है, कि जिन माता-पिता के कारण हमारा यह शरीर ओर प्राण है ,उन माता-पिता को अलग करना जैसे मंदिर के दरवाजे से भगवान को बाहर करने के समान है।

यहां यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि वृद्धजन के साथ अच्छा व्यवहार किया जाए। समय-समय पर उनके चाहे अनुसार उनको खाना दिया जाए और आगे यदि उनकी खाने के लिए कोई मांग होती है तो उसकी भी पूर्ति करना अपना परम पुनीत कर्तव्य होता है। माता-पिता की बीमारी पर ध्यान देकर उनकी दवाई-डॉक्टर की समुचित व्यवस्था की जाए। आपके वृद्धजन को अच्छे कमरे यहां तक जो भी अच्छी बेहतर व्यवस्था हो वहां रहने की व्यवस्था की जाए । कपड़ों के प्रति बुजुर्ग लापरवाह हो जाते हैं, उनके कपड़ों का ध्यान रखना चाहिए। समय-समय पर समाचार पत्र और पत्रिकाएं पढ़ने के लिए उपलब्ध करवाई जाना चाहिए। ऐसी कई महत्वपूर्ण बातें हैं, जिनको ध्यान में रखकर उनकी सारी सुविधाओं को उपलब्ध कराना चाहिए। उन्हें ऐसा महसूस नहीं होने देना कि वृद्ध मां बाप परिवार में बोझ बने हुए है। हमेशा परिवार के सभी सदस्य खुद भी खुश रहें और माता-पिता को भी खुश रखें। “वृद्धजन को संभाल कर रखें क्योंकि अनुभवी व्यक्ति दरखतों पर नहीं लगते हैं”।