
विश्व आत्महत्या निषेध दिवस पर विशेष:आत्महत्या करने से खुद को रोकें – यह समाधान नहीं है

*डॉ हिमांशु यजुर्वेदी*
मनोचिकित्सक, क्राइम एनालिस्ट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
(प्रस्तुति – डॉ घनश्याम बटवाल मंदसौर)
सम्पूर्ण विश्व में मानसिक स्वास्थ्य और उससे जुड़ी आत्महत्या की घटनाएं एक बड़ी चिंता का विषय है और यह अनेक लोगों के जीवन को प्रभावित करती है। तनाव और दबाव में बिखर जाते लोग अपना जीवन ही दाव पर लगा देते हैं और पीछे रह जाती है त्रासदी, जी हां आत्महत्या ऐसा ही आत्मघाती मसला बन रहा है ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO) के अनुसार प्रति वर्ष लगभग साढ़े सात लाख से अधिक लोग आत्महत्या के कारण मर रहे हैं और सिर्फ भारत में वर्ष 24 – 25 में यह आंकड़ा 1 लाख 70 हजार के करीब है। इसमें भी 15 से 29 वर्ष के युवाओं में आत्महत्या मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण बन रहा है। यह देश और समाज के लिए चिंता की बात है । आंकड़े बताते हैं कि
वैश्विक आत्महत्याओं में से 73 प्रतिशत निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं जो जैविक, मनोवैज्ञानिक और पर्यावरणीय कारकों से प्रभावित होते हैं।
हर साल लगभग साढ़े सात लाख से अधिक लोग आत्महत्या करते हैं और इससे भी ज़्यादा लोग आत्महत्या का प्रयास करते हैं। हर आत्महत्या एक त्रासदी है जो परिवारों, समुदायों और समाज ही नहीं पूरे देश को प्रभावित करती है और पीछे छूट गए लोगों पर दीर्घकालिक प्रभाव डालती है। आत्महत्या जीवन भर होती रहती है, किसी व्यक्ति के द्वारा किसी भी कारण के चलते अपने जीवन को समाप्त लिए जाने बाद भी उसके परिवार और उससे जुड़े लोगों को भी यह एक बड़ा मानसिक अभिशाप झेलना होता है और जाने अनजाने वो भी जीवन पर्यंत इस त्रासदी में लिप्त हो जाते है और उनका इससे बाहर निकलना आसान नहीं होता है।
आत्महत्या एक गंभीर जन स्वास्थ्य समस्या है जिसके लिए जन स्वास्थ्य प्रतिक्रिया की आवश्यकता है। समय पर, साक्ष्य-आधारित और अक्सर कम लागत वाले हस्तक्षेपों से आत्महत्याओं को रोका जा सकता है। राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी प्रतिक्रियाओं के लिए, एक व्यापक बहुक्षेत्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति की आवश्यकता है। जो आम जनमानस तक सीधे संदेश को पहुंचाने का कार्य करे और लोगों को आत्महत्या को अंतिम विकल्प बनने से रोके, क्योंकि यह कोई समाधान का रास्ता नहीं है।
सामाजिक पारिवारिक चेतना को भी जिम्मेदारी लेने की आवश्यकता प्रतीत होती है वरना यह गंभीर समस्या में तब्दील हो रही है ।
*जोखिम में कौन है?*
ऐसे लोग जो वित्तीय संकट से जूझ रहे होते है, किसी मानसिक अवसाद से संघर्ष कर रहे होते है, अत्यधिक शराब का सेवन, पूर्व में आत्महत्या के प्रयास कर चुके लोग हालाँकि, कई आत्महत्याएँ संकट के क्षणों में आवेगपूर्ण ढंग से होती हैं, जब जीवन के तनावों, जैसे कि वित्तीय समस्याओं, रिश्तों में विवाद, या पुराने दर्द और बीमारी से निपटने की क्षमता कम हो जाती है।
इसके अलावा, संघर्ष, आपदा, हिंसा, दुर्व्यवहार या हानि का अनुभव और अलगाव की भावना आत्मघाती व्यवहार से गहराई से जुड़ी हुई है। भेदभाव का सामना करने वाले कमजोर समूहों, जैसे शरणार्थी और प्रवासी, समलैंगिक, उभयलिंगी, ट्रांसजेंडर, इंटरसेक्स (एलजीबीटीआई) व्यक्तिऔर कैदियों में भी आत्महत्या की दर अधिक है।
*किसी के व्यवहार में आने वाले बदलाव को पहचाने…!!!*
जो व्यक्ति किसी भी मानसिक अवसाद को स्थिति से गुजर रहा होगा वो अचानक खुद में ही खोया रहेगा।
अपनी व्यक्तिगत परेशानियों को किसी के साथ सांझा करने से बचेगा । अकेले रहना पसंद करेगा और किसी से बात करना उसको अच्छा नहीं लगेगा।
उसके व्यवहार में रूखापन शुरू हो जाएगा, किसी भी विषय पर जरूरत से ज्यादा सोच विचार करना, नकारात्मक बातों की अधिकता, बार बार जीवन को खत्म करने जैसी बातों की और विचारों का बढ़ना जैसी बातों का जीवन शैली में समाहित होना।
*आत्महत्या को रोकने के लिए क्या करे ?*
खुद के मन में किसी भी तरह के नकारात्मक विचारों को आने से रोके, सफल लोगो की जीवनी को पढ़ें, मन को प्रसन्नता देने वाला संगीत सुने, नए लोगों से मिलिए, बिना वजह भी मन को खुश करने की आदत डालिए, किसी भी बात को मन में रखते हुए उसको अपने करीबियों के साथ सांझा करे, समस्या पर अपनी ऊर्जा खर्च करने के बजाए समाधान खोजने पर ध्यान केंद्रित करे, इसके अतिरिक्त किसी मनोचिकित्सक या मनोरोग विशेषज्ञ से उचित परामर्श ले।
ध्यान रखे कि दुनिया में ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका की समाधान नहीं, जीवन अनमोल है इसको आत्महत्या करके खत्म ना करे बल्कि संघर्ष का सामना करते हुए सफलता के आयाम रचे।
आगे बढ़ें , बाहर निकल दुनिया देखें
बेहतर अवसर आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं , शुभकामनाएं ।





