संसद के विशेष सत्र को लेकर राष्ट्रीय राजधानी में कयासबाजी का दौर चरम पर 

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संसद के विशेष सत्र को लेकर राष्ट्रीय राजधानी में कयासबाजी का दौर चरम पर 

 

गोपेंद्र नाथ भट्ट की खास रिपोर्ट 

 

नई दिल्ली।नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा 18 से 22 सितंबर तक संसद का पाँच दिवसीय विशेष सत्र बुलाए जाने पर राष्ट्रीय राजधानी में कयासबाजी का दौर चरम सीमा पर है। ये पाँच दिनों का सत्र 9-10 सितंबर को दिल्ली में होने जा रही जी-20 शिखर सम्मेलन के ठीक बाद आयोजित हो रहा है।

 

राजनीतिक पण्डितों का कहना है कि 17वीं लोकसभा का 13वां सत्र और राज्यसभा का 261वां सत्र आमन्त्रित करने के पीछे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का हिडन ऐजेंडा क्या है? इसे लेकर तरह तरह की चर्चाओं का बाज़ार गर्म है।कांग्रेस सहित कई राजनीतिक दलों ने अपने-अपने मत व्यक्त किए हैं। इस मध्य कई दलों के नेताओं ने संसद के विशेष सत्र बुलाए जाने की टाइमिंग पर सवाल उठाते हुए तीखी प्रतिक्रिया भी दी हैं।

 

संसद के विशेष सत्र का मुख्य एजेंडा क्या रहेगा? इस पर अधिकारिक रुप से अभी कोई खुलासा नही हुआ है लेकिन अगले दो तीन दिनों में स्थिति साफ हो जाने की बात कही गई है। इधर वन नेशन वन इलेक्शन (एक देश-एक चुनाव) की संभावना तलाशने के लिए मोदी सरकार द्वारा पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति गठन करने को लेकर देश में एक बड़ी बहस शुरू हो गई हैं। कहा जा रहा है कि संसद के विशेष सत्र में ‘एक देश एक चुनाव’ बिल को पेश किया जा सकता है। हालाँकि यह बात प्री म्रेच्यौर लगती है। संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने भी विभिन्न राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाओं का जवाब देते हुए कहा है कि अभी तो समिति ही बनी है, इसमें इतना घबराने की क्या ज़रूरत है।उन्होंने कहा कि, ”अभी कमिटी रिपोर्ट तैयार करेगी। इसके बाद इस पर बहस होगी फिर रिपोर्ट संसद में आएगी और उस पर चर्चा होगी। संसद में प्रबुद्ध और समझदार लोग भी हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा और पुराना लोकतंत्र है।भारत के लोकतंत्र में नए-नए विषय आएंगे तो चर्चा होगी ही।यह कोई कल से तो लागू नहीं हो जाएगा।

भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनाव 1952,1957 और 1967 तक एक साथ होते थे। इस लिए यह कोई नया विषय नही है फिर भी इस पर चर्चा तो होनी ही चाहिए।

 

पिछले कुछ सालों में प्रधानमंत्री मोदी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के विचार पर ज़ोर देते आए हैं।अब पूर्व राष्ट्रपति कोविंद को ये टास्क सौंपने का फ़ैसला आगामी चुनावों के मद्देनज़र इस विचार पर सरकार की गंभीरता को दिखाता है।साल 2017 में राष्ट्रपति बनने के बाद कोविंद ने भी मोदी के विचारों से सहमति दिखाते हुए एक साथ लोकसभा-विधानसभा चुनाव कराए जाने का समर्थन किया था । साल 2018 में संसद को संबोधित करते हुए कोविंद ने कहा, “बारी-बारी होने वाले चुनावों न सिर्फ़ मानव संसाधन पर बोझ बढ़ता है बल्कि आचार संहिता लागू होने से विकास की प्रक्रिया भी बाधित होती है।”

 

अब जब मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल ख़त्म होने की ओर है, तब उसके शीर्ष नेतृत्व के बीच एक राय है कि अब वो इस मुद्दे को ज़्यादा लंबा नहीं खींच सकते और सालों तक इस पर बहस के बाद निर्णायक रूप से आगे बढ़ने की ज़रूरत है।पार्टी के नेताओं का मानना है कि मोदी की अगुवाई में सत्तारूढ़ बीजेपी हमेशा समर्थन जुटाने के लिए बड़े मुद्दों टिकट बँटवारे पर ध्यान देती है।ऐसे में ये मुद्दा बीजेपी के लिए राजनीतिक तौर पर भी फिट बैठेगा और इससे विपक्ष भी चित हो जाएगा।मिज़ोरम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और राजस्थान में इसी साल नवंबर-दिसंबर के बीच विधानसभा चुनाव होने हैं।इसके बाद अगले साल मई-जून में लोकसभा चुनाव होने हैं।हालांकि, सरकार के हालिया क़दम ने लोकसभा चुनाव और उसके साथ या बाद में होने वाले कुछ विधानसभा चुनावों को आगे बढ़ाने की संभावना को भी खोल दिया है।आंध्र प्रदेश, ओडिशा, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में लोकसभा चुनावों के साथ ही विधानसभा चुनाव होने हैं।

 

अचानक से बुलाये गए इस सत्र के बारे में यह कयास लगाए जा रहे हैं कि संसद का विशेष सत्र संभवतः संसद को पुरानी से नई इमारत में शिफ़्ट करने के इरादे से बुलाया गया है।कुछ लोगों का ये मानना है कि दौरान सरकार कोई महत्वपूर्ण बिल को भी पास करवा सकती है,लेकिन फ़िलहाल ये सब केवल अटकलें हैं।

हालाँकि संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा है कि संसद के विशेष सत्र में पाँच बैठकें होंगी।उन्होंने कहा कि अमृतकाल के बीच आयोजित होने वाले इस विशेष सत्र के दौरान संसद में सार्थक चर्चा को लेकर वह आशान्वित हैं।”फ़िलहाल ये चर्चा किस विषय पर होगी उस पर कोई स्पष्टता नहीं है।

केन्द्र सरकार ने अभी तक विशेष सत्र के एजेंडा पर चुप्पी साधी हुई है लेकिन यह भी बताया जा रहा है कि ये सत्र जी-20 शिखर सम्मेलन और आज़ादी के 75 साल से जुड़े जश्न को लेकर हो सकता है। शायद ये विशेष सत्र शुरू तो संसद की पुरानी बिल्डिंग में होंवे और नई इमारत में भी इसका समापन होवें , जिसका उद्घाटन इसी साल मई महीने में हुआ है। इस सम्भावना से भी इंकार नही किया जा सकता है। सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि चंद्रयान-3 और अमृत काल के लिए भारत के लक्ष्यों पर इस सत्र के दौरान व्यापक चर्चा होगी।

 

इसके अलावा, संसद का यह विशेष सत्र आगामी पी-20 शिखर सम्मेलन (जी20 देशों के संसदीय अध्यक्षों की बैठक) के लिए भी रूप रेखा तैयार करेगा.

ये बैठक अक्टूबर में नई दिल्ली में आयोजित होने वाली है. 30 से अधिक देशों के स्पीकर ने इस सम्मेलन में शामिल होने की पहले ही पुष्टि कर दी है।

 

मोदी सरकार ने इससे पहले भी कई बार संसद का विशेष सत्र बुलाए हैं।30 जून 2017 को गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स यानी जीएसटी को लागू करने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया था।इससे पहले 26 नवंबर 2015 को बीआर आंबेडकर को श्रद्धांजलि देने के लिए सरकार ने विशेष सत्र बुलाया था।उस साल देश आंबेडकर की 125वीं जयंती मना रहा था।इसी साल से 26 नवंबर को संविधान दिवस घोषित किया गया था।इससे पहले साल 2002 में तत्कालीन बीजेपी की अगुआई वाली एनडीए सरकार ने 26 मार्च को दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में आतंकवाद निरोधक विधेयक पारित कर दिया था। ऐसे अन्य कई मसलों पर संसद के विशेष सत्र पहले भी बुलायें जा चुके है।