व्यंग्य संग्रह – कीचड़ उछालना

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समीक्षा ——-
व्यंग्य संग्रह – – कीचड़ उछालना
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( डॉ . घनश्याम बटवाल , मंदसौर )

प्राचीन काल से ही तत्कालीन समाज जीवन की व्याप्त विसंगतियों , अव्यवस्थाओं पर भिन्न पात्रों की तीक्ष्ण दृष्टि रही । ध्यान करेंगे तो इससे न महाभारत अछूता रहा न रामचरितमानस और न ही बाकी रहा कालांतर का कोई समय ।

तब भी और अब भी चाल – चरित्र और चेहरे का आकलन बराबर आज भी जारी है । क्या उचित है क्या अनुचित , किस क्रिया और कृत्य से क्या प्रभाव होना है , नकारात्मक या सकारात्मक यह बताने और जताने की भूमिका में , कह सकते हैं ,
कवि , लेखक , व्यंग्यकार , शिक्षाविद , पत्रकार हो सकते हैं ।
हां , कालखंड के अंतराल में अंतर अवश्य आया है । अब समाज जीवन , श्रेष्ठिवर्ग , राजनेताओं और लक्षित वर्गों में धैर्य और सहजता की
” अभूतपूर्व ” कमी पाई जारही है ।
अर्थात कोई किसी से कम नहीं तो कोई किसी को बर्दाश्त नहीं ?

परिवेश तो इतना असहिष्णु होता जारहा है कि व्यंग्य तो क्या
हल्का – फुल्का मज़ाक भी असहनीय है । मामूली मामलों में गांठ बांध लेते हैं
खेर ।

बहरहाल , व्यंग्य विधा की भूमिका ज़रूरी लगती है समक्ष रखना । आचार्य कुंतक रचित ” वक्रोक्ति – जिवितम ” ग्रंथ में वक्रोक्ति या व्यंग्य को काव्य की आत्मा निरूपित किया है ।
इस विधा में शब्द प्रवंचना श्लेष वक्रोक्ति का प्रकार माना है ।
यूं तो व्यंग्य एक निबंध ही है पर वर्णन और प्रस्तुति ने इसे स्वतंत्र विधा में प्रतिष्ठित कर दिया है ।

वैचारिकता के साथ व्यंग्यात्मकता समाहित करते हुए व्यंजना प्रधान शैली में अपने मन की या सबके मन की बात शब्द स्वरूप में प्रस्तुत होती है । भावार्थ यही कि समाज , लक्षित वर्ग और पाठक वृन्द यथार्थ स्थितियों से परिचित हो सके और तदनुसार उसकी सोच भी उभर सके ।

व्यंग्य वह सशक्त माध्यम है जिसके द्वारा व्याप्त विसंगतियों , कमजोरियों , कुरीतियों , अंधविश्वासों , कथनी – करनी में अंतर , सही ग़लत का भान कराना जैसे बहु हितैषी कार्य मारक क्षमता और सटीक शब्द प्रहार से सामने आता है । व्यंग्य भी साथ हास्य का पुट लिए हुए ।
कटाक्ष भी है पर मीठी छुरी के मानिंद हास्य की चाशनी में लिपटा । जो भीतर तक मार करता है । लक्षित तिलमिला कर रह जाता पर अभिव्यक्त वा प्रतिक्रिया तक व्यक्त नहीं कर पाता । कराह उठता है पर आह तक नहीं निकलती । यहीं व्यंग्य अपना कार्य पूरा कर जाता है ।

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इस पैमाने पर प्रस्तुत हास्य व्यंग्य संग्रह ” कीचड़ उछालना ” खरा प्रतीत होता है ।
शिक्षाविद , लेखक व्यंग्यकार श्री भगवती प्रसाद गेहलोत द्वारा लिखित इस संग्रह में चालीस भिन्न विषयों पर सटीक टिप्पणी करते हुए मारक शब्द प्रहार किये गए हैं । जो भीतर तक चोंट करते हैं ।
वोट का महत्व से लेकर टॉयलेट चिंतन तक इसमें समाहित है । स्कूल बेचना है , तो , एक्सपायरी डेट का जीवन भी , चुनावी धमाका है तो कीचड़ उछालना भी , अरे ! ओ मास्टर है तो चप्पल जूते की महिमा न्यारी भी पढ़ सकते हैं ।
ज्वलंत मुद्दा – पत्नी प्रतिनिधि , पीठासीन की पूंछ , नेता बनना और बनाना है वहीं कोयले की दलाली में काले हाथ शामिल है ।
फिर रेल चल रही अलबत्ता , गोभी की करामात आदि बरबस ध्यान खींचते हैं । छोटे छोटे व्यंग्यबाण समाज में प्रचलित विद्रूपताओं पर करारा प्रहार करते हैं ।
हमारे आसपास के दैनन्दिन जीवन में जो घट रहा है और जो समाज जीवन को प्रभावित कर रहा है उन बिंदुओं को प्रासंगिकता के साथ सुरुचिपूर्ण शब्दों में संजोया है व्यंग्यकार श्री गेहलोत ने ।

सिलसिलेवार , शब्द विन्यास , मौलिक और अर्थपूर्ण रचनायें प्रभाव छोड़ती हैं , पढ़ने के बाद आप विरत नहीं रह सकते । कम शब्दों में अधिक मारक प्रहार और यथार्थ परक कटाक्ष हमें सोचने – समझने और मनन को विवश करते हैं ।

फ़िर , संग्रह में समाविष्ट चालीस व्यंग्य मेंसे इसका शीर्षक “कीचड़ उछालना”
ही लेखक ने तय किया है , इसके भी मायने हैं , हम – आप देख ही रहे हैं “एक – दूजे से करते हैं प्यार हम ” के
स्थान पर एक – दूजे पर कीचड़ उछालने में जुटे हैं , भाई लोग ?
राजनीति में तो कीचड़ उछालना
” प्रिय ” शग़ल हो गया है । भले ही कीचड़ के छींटे स्वयं पर ही क्यों न आये ? सुर्खियों में तो बने ही रहेंगे ।
इन दिनों तो कीचड़ उछालने का क्रम पूरे परवान पर है , हिन्दी भाषी राज्यों के विधानसभा चुनाव जो होने हैं ।

कीचड़ उछालना शीर्षक वर्तमान परिदृश्य में उम्दा जान पड़ता है ।

इस व्यंग्य संग्रह के लेखक श्री गेहलोत लेखन , सृजन , चिंतन से कई दशकों से जुड़े हैं । पहले भी संग्रह प्रकाशित हुए हैं । जिस प्रकार नित नई घटनाऐं
जन्म लेती हैं , आकार लेती हैं तत्काल प्रभाव डालती हैं तभी सृजन और व्यंग्य भी यथाशक्ति अपनी आहुति देता है । यही काम निरन्तर लेखक कर रहे हैं ।
व्यंग्य भी प्रकारांतर में चौकसी ही तो है । जो आप – हम व्यक्त नहीं कर सकते उन्हीं की अभिव्यक्ति ही तो है व्यंग्य ।
व्यंग्य संग्रह कीचड़ उछालना की निश्चित हर रचना अपने आसपास की ही पायेंगे ।
कोई 100 पृष्ठों में मुद्रित ग्लॉसी कवर पर समाज के विभिन्न वर्गों को प्रतिबिंबित करते रेखांकन में कीचड़ उछालने की क्रीड़ा और असहाय से खड़े लोग भी दिख पड़ रहे हैं ।
छपाई – सफ़ाई और फोंट्स आसानी से पढ़े जाने वाले हैं । कीमत मात्र 200 रुपये ही रखी गई है ।
नई दिल्ली के अनुराधा प्रकाशन जो स्वयं साहित्य – अध्यात्म एवं जीवन मूल्यों को समर्पित संस्थान है , के माध्यम से यह व्यंग्य संग्रह प्रकाशित हुआ है ।
व्यंग्य विषयों को लंबा नहीं रखते हुए कसावट से रचा गया है जो एकबार ही में पढ़ा जासकता है ।
फ़िर भी ख़ालीपन का एहसास होता है , उपयुक्त होता यदि व्यंग्य के साथ परिभाषित करते रेखांकन से सज्जा होती । निश्चित ही प्रभावोत्पादकता बढ़ती , पर इससे व्यंग्य का असर कम नहीं हुआ है ।
बधाई और सम्मान श्री भगवती प्रसाद गेहलोत को , यह संग्रह हमारे समाज का प्रतिबिंब और प्रतिनिधि बन दस्तक देगा और अपनत्व प्राप्त करेगा

विश्वास है दायित्वपूर्ण शब्द सृजन ,
श्रेष्ठ शिल्प के साथ निरन्तर प्रवाहमान रहेगा ।
शिक्षाविद , लेखक व्यंग्यकार श्री गेहलोत राष्ट्रीय पत्र – पत्रिकाओं , समाचार पत्रों में विभिन्न विषयों पर आलेखों , कविताओं , कहानी , संस्मरणों , लघु कथाओं के साथ स्थान पाते रहे हैं । हिंदी के अलावा संस्कृत और मालवी भाषाओं में भी लेखन कार्य किया है ।
जिले व प्रादेशिक स्तर पर सम्मानित होने के साथ शैक्षणिक पत्रिकाओं का संपादन करते रहे हैं । शासकीय सेवा में रहे अपने जीवन के 70 बसंत देख चुके श्री गेहलोत लेखन – सृजन में निरंतर सक्रिय हैं ।

सुदीर्घ जीवन की कामना के साथ
इस ” कीचड़ उछालना ” संग्रह पर
सरल सी पंक्तियां – – –

“सीधी सरल भाषा में है,मारक प्रहार
कम शब्दों में करते हैं , भीतरवार ।

मन को देते झंकार ,
पर बना रहता है , व्यवहार ।।

यही तो है वह प्रहार ,
जीसे कहते हैं , व्यंग्य की बहार ।।
आपका आभार ।

इति नमस्कारंते – – – – !

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समीक्षक – डॉ.घनश्याम बटवाल , मंदसौर
पुस्तक – व्यंग्य संग्रह – –
” कीचड़ उछालना ”
लेखक – श्री भगवती प्रसाद गेहलोत
पिपलियामंडी जिला मंदसौर (म. प्र. )
प्रकाशक – अनुराधा प्रकाशन
नई दिल्ली