सच हो रहे हैं श्री अरविंद के पांच स्वप्न…भारत विश्व गुरु की निर्णायक भूमिका में…

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सच हो रहे हैं श्री अरविंद के पांच स्वप्न…भारत विश्व गुरु की निर्णायक भूमिका में…

अब यह विश्वास दृढ़ होता जा रहा है कि भारत विश्व गुरु बनेगा। 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ था और गुलामी की जंजीर से मुक्त होकर भारत ने विकास की नई राह पर कदम रखा था। अब विकसित भारत की बात सामने है। महर्षि अरविंद ने आजादी के दिन वह पांच स्वप्न अपने संदेश में समाहित किए थे जो भारत को विश्व गुरु बनाने की क्षमता रखते हैं। आज यानी 15 अगस्त 2024 को भारत अपना 78 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। राष्ट्र की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने प्रधानमंत्री पद के तीसरे कार्यकाल का पहला स्वतंत्रता दिवस संबोधन देंगे, तो मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव पहली बार आजादी के समारोह को संबोधित करेंगे। यह सभी संबोधन राष्ट्र की संवैधानिक व्यवस्था के हिस्से हैं। 21वीं सदी के भारत ने अब उन ऊंचाइयों की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं जो उसे विश्व गुरु बनने की राह पर आगे बढ़ाते हैं। ऐसे में श्री अरविंद की सोच को स्वीकार कर एक नए भारत की तस्वीर में रंग भरा जा सकता हैं।
महर्षि अरविंद का पहला सपना था एक क्रांतिकारी आंदोलन जो स्वाधीन और एकीभूत भारत को जन्म दे। महर्षि अरविंद ने अपने संदेश में कहा था कि भारत भारत आज स्वतंत्र हो गया है पर उसने एकता प्राप्त नहीं की। पर महर्षि अरविंद विभाजन को पत्थर की लकीर नहीं मानते थे। बल्कि उन्होंने विभाजन को एक काम चलाऊ अस्थाई उपाय से बढ़कर कुछ नहीं माना। महर्षि अरविंद की सोच एकत्व के अलग आयामों पर भी केंद्रित थी। पर उनका मानना था कि विभाजन अवश्य हटाना चाहिए और एकता स्थापित होनी चाहिए। आज हम यह सपना देख सकते हैं कि भारत अपनी अखंड स्थिति को प्राप्त करने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। बांग्लादेश और पाकिस्तान में मची उथल-पुथल इसका प्रमाण है कि कल का अखंड भारत जन्म ले सकता है। तभी एकता का महर्षि अरविंद का पहला सपना पूरा होगा। जिसे वह भारत के भविष्य की महानता के लिए आवश्यक मानते थे।
महर्षि अरविंद का दूसरा स्वप्न था कि एशिया की जातियों का पुनरुत्थान तथा स्वातंत्र्य और मानव सभ्यता की उन्नति के कार्य में एशिया का जो महान स्थान पहले था उसी स्थान पर उसका लौट जाना। एशिया के संदर्भ में महर्षि की बात सच साबित हुई है।
श्री अरविंद का तीसरा स्वप्न था एक विश्व संघ जो समस्त मानव जाति के लिए एक सुंदरतर, उज्जवलतर और महत्तर जीवन का बाहरी आधार निर्मित करे। मानव संसार का यह एकीकरण संपन्न हो चुका है। उन्होंने वर्तमान भारत की कल्पना करते हुए वह सभी संकेत दिए थे जिस राह पर हम अब आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने लिखा था कि एक बाहरी आधार ही पर्याप्त नहीं है अंतर्राष्ट्रीय भाव और दृष्टिकोण भी अवश्य विकसित होना चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय पद्धति तथा संस्थाएं भी अवश्य प्रादुर्भूत होनी चाहिए। हालांकि उन्होंने अनुमान लगाया था कि एकत्व की एक नई भावना मनुष्य जाति पर आधिपत्य जमा लेगी। संभव है कि युद्ध के रास्ते श्री अरविंद की सोच अनुरूप शांति कि वह मंजिल हासिल हो सके जिसमें कोई भी व्यक्ति दो या अधिक देशों का नागरिक भी बन सकेगा और संस्कृतियों भी आपस में घुल मिल जाएंगी।
श्री अरविंद का चौथा सपना था, संसार को भारत का आध्यात्मिक दान पहले से ही प्रारंभ हो चुका है। भारत की आध्यात्मिकता यूरोप और अमेरिका में नित्य बढ़ती हुई मात्रा में प्रवेश कर रही है। यह आंदोलन बढ़ेगा, वर्तमान काल की विपदाओं के बीच अधिकाधिक लोगों की आंखें आशा के साथ भारत की ओर मुड़ रही हैं और न केवल उसकी शिक्षाओं का अपितु उसकी आंतरात्मिक और आध्यात्मिक साधना का भी उत्तरोत्तर आश्रय लिया जा रहा है। भारत आज इस मुकाम पर है जिसमें श्री अरविंद का सपना अक्षरशः सच साबित हो रहा है। योग, ध्यान और कृष्ण भक्ति का प्रचार-प्रसार आंतरात्मिक और आध्यात्मिक साधना के उत्तरोत्तर आश्रय के प्रमाण हैं।
श्री अरविंद का अंतिम स्वप्न था क्रम विकास में अगला कदम जो मनुष्य को एक उच्चतर और विशालतर चेतना में उठा ले जाएगा और उन समस्याओं का हल करना प्रारंभ कर देगा जिन समस्याओं ने मनुष्य को तभी से हैरान और परेशान कर रखा है जब से कि उसने वैयक्तिक पूर्णता और पूर्ण समाज के विषय में सोचना विचारना शुरू किया था। श्री अरविंद का मानना था की इसका प्रारंभ भारतवर्ष ही कर सकता है और यद्यपि इसका क्षेत्र सार्वभौम होगा तथापि केंद्रीय आंदोलन भारत ही करेगा। पूरी दुनिया को योग के जरिए इस दिशा में आगे बढ़ने का मार्ग भारत ने दिखा दिया है। हालांकि मंजिल अभी बहुत दूर है, पर मंजिल तक पहुंचना संभव है।
महर्षि अरविंद ने अंत में लिखा था कि यह है वे भाव और भावनाएं जिनको मैं भारतीय स्वाधीनता की इस तिथि के साथ सम्बद्ध करता हूं। क्या ये आशाएं ठीक सिद्ध होंगी, या कहां तक सिद्ध होंगी, यह बात नए और स्वाधीन भारत पर निर्भर करती है।
श्री अरविंद के यह स्वप्न सच साबित हो रहे हैं। भले ही सभी स्वप्न सच साबित होने में थोड़ा समय और लें, पर विकसित भारत की सोच चरितार्थ होने तक श्री अरविंद के पांचों स्वप्न अक्षरश: सच साबित होंगे, इसमें कोई संशय नहींं है। भारत की एकता की दिशा में यह 78वां स्वतंत्रता दिवस समारोह खास है। हो सकता है कि लाल किले की प्राचीर इस दिशा में संकेत देकर संशय को दूर करने का काम भी कर दे…जिसमें भारत की एकता और विश्व गुरु बनने में श्री अरविंद के सपने सच होते नजर आएं…।