स्टेट मीडिया सेंटर : पत्रकारों के आपसी द्वन्द और असफलता का स्मारक

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स्टेट मीडिया सेंटर : पत्रकारों के आपसी द्वन्द और असफलता का स्मारक

रंजन श्रीवास्तव की खास रिपोर्ट

कल जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रस्तावित स्टेट मीडिया सेंटर की आधारशिला एक मेगा समारोह में रखी जिसमें प्रदेश भर से सैकड़ों पत्रकार निमंत्रित थे बहुत से पत्रकारों के लिए यह आयोजन पत्रकार भवन से जुड़े अपने स्मृतियों में जाने का एक और अवसर था I

वरिष्ठ पत्रकार अलीम बज़्मी जी का पत्रकार भवन के ऊपर लिखा गया शानदार लेख पढ़ा I उन्होंने जिन महान विभूतियों का जिक्र किया है जिन्होंने इस भवन को बनाने में अपना महान योगदान दिया तथा अपने त्याग और तपस्या से इस भवन को शहर के प्रमुख स्थान पर खड़ा किया उनमें से अधिकांश महापुरुष हमारे बीच में नहीं हैं I उनकी आत्मा को आज एक बार फिर कष्ट हुआ होगा वैसा ही जैसा उन्हें इस भवन को जमींदोज़ किये जाने के समय हुआ होगा, इसलिए नहीं कि पत्रकार भवन के स्थान पर अब अत्याधुनिक स्टेट मीडिया सेंटर बनेगा वरन इसलिए कि स्टेट मीडिया सेंटर की आधारशिला पत्रकारों के आपसी द्वन्द और खींचतान के ऊपर रखी गयी है और ये सेंटर अब सरकार के हाथों में होगा I पत्रकारों की इसमें भूमिका वैसी नहीं होगी जैसा कि पत्रकार भवन में हुआ करती थी I एक तरह से पत्रकार अब मालिक के बजाय किरायेदार कि भूमिका में आ गए हैं I

संस्थापकों में लज्जाशंकर हरदेनिया जी हमारे बीच हैं उन्हें भी गहन दुःख हुआ होगा कि जो भवन हमारे लिए ईंट और गारे से बने भवन से कहीं ज्यादा हमारी आत्मीयता तथा पारस्परिक सौहार्द और मजबूती का प्रतीक हुआ करता था उसकी कल अंतिम पूर्णाहुति हो गयी I

चूंकि यह आयोजन विधान सभा चुनाव के दो महीने पूर्व आयोजित किया गया और आयोजन सरकार ने किया था अतः अगर प्रदेश भर से आये पत्रकारों की उपस्थिति में मुख्य मंच पर सत्ता पक्ष के प्रदेश मीडिया इन चार्ज के स्थान पर हरदेनिया जी या किसी अन्य बुजुर्ग पत्रकार को मंचासीन किया जाता तो इस कार्यक्रम की पवित्रता का अच्छा सन्देश जाता I
23 वर्ष पूर्व भोपाल आने पर पत्रकार भवन में अक्सर जाना रहता था I हिंदुस्तान टाइम्स ऑफिस के पास होने के कारण टहलते टहलते भी उधर जाना हो ही जाता था I वरिष्ठ और कनिष्ठ पत्रकारों के बीच संवाद तथा सीखने और सिखाने का एक स्थल था पत्रकार भवन और वो भी शहर के बीचोबीच I बहुत सारे प्रेस कांफ्रेंस , मीट द प्रेस में भाग लेने का अवसर मिला I पत्रकारों की गोष्ठियां भी आयोजित होती थीं I

जबसे पत्रकार भवन पत्रकारों के आपसी द्वन्द का अखाड़ा बना तथा वहां गतिविधियां ठप हो गयीं ये सवाल मित्रों के बीच में बार बार उठा कि पत्रकार मित्रों के आपस में मिलने का ये स्थान क्यों उनसे छीन लिया गया और क्या अब इतनी अच्छी जगह मिल सकती है जहां ना सिर्फ पत्रकार मित्र वरन उनके परिवार के लोग भी आपस में मिल सकें तथा जहां वे सांस्कृतिक तथा पारिवारिक आयोजनों को कम खर्च में तथा उम्दा तरीके से आयोजित कर सकें ?

इन सवालों के उत्तर खोजते खोजते भोपाल में पत्रकारों के जाने कितने क्लब और एसोसिएशन गठित हो गए पर अपने स्वयं के किसी भवन के अभाव में उनकी गतिविधियां नगण्य ही रही हैं I किसी भी सरकार और राजनीतिक दल के लिए इससे अच्छा क्या हो सकता है कि पत्रकार कभी एकजुट ना रहें I

शायद ही कोई ऐसी जगह हो जहाँ पत्रकारों के बीच विवाद ना हो I इंदौर प्रेस क्लब का मामला कोर्ट कचहरी तक गया पर वहां के पत्रकारों को साधुवाद कि उन्होंने व्यक्तिगत मतभेदों के बावजूद भी प्रेस क्लब के भवन पर कोई आंच नहीं आने दी I अगर इंदौर में पत्रकार जगत भावनात्मक रूप से मजबूत स्थिति में है तो उसमें योगदान प्रेस क्लब के भवन का भी है I दिल्ली, चंडीगढ़, लखनऊ और अन्य कई शहरों में भी प्रेस क्लब अच्छे तरीके से संचालित हैं जहां पत्रकार नियमित रूप से मिलते हैं तथा कई आयोजनों में भाग लेते हैं I इसमें सरकार तथा प्रशासन का कोई दखल नहीं है I

प्रयागराज ( पहले का इलाहाबाद) में इलाहाबाद न्यूज़ रिपोर्टर्स क्लब है I वहां भी कोर्ट कचहरी तक मामले गए पर क्लब आज भी अच्छी तरह संचालित है बिना किसी सरकार और प्रशासन के दखल के I

प्रयागराज के वरिष्ठ पत्रकार श्री सुनील शुक्ल जो प्रसार भारती में मुख्य पदों पर रहे हैं और पूरे भारतवर्ष का भ्रमण किया है, ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि भोपाल में पत्रकार भवन जैसा महत्वपूर्ण भवन और उसके स्थान कि तुलना पूरे भारतवर्ष में सिर्फ मुंबई के प्रेस क्लब से की जा सकती थी I

पर अब यह अतीत हैI जिन कारणों से स्टेट मीडिया सेंटर का गठन हो रहा है उसके लिए सरकार को कैसे दोष दिया जाए ? सबसे बड़े दोषी तो हम लोग हैं क्योंकि हम लोगों ने अपने विवाद को इस स्तर तक पहुंचा दिया कि सरकार और प्रशासन को इसमें दखल करने का मौका मिल गया I पहले शिवराज सरकार में स्टेट मीडिया सेंटर की गठन की भूमिका तैयार हुयी फिर कमल नाथ सरकार में पत्रकार भवन पर बुलडोज़र चला और अब फिर से शिवराज सरकार में शिवराज सिंह चौहान द्वारा सेंटर की आधारशिला रखी गयी जो अगले 2 वर्षों में तैयार होगा I

पत्रकारों का एक वर्ग खुश भी है कि चलो किसी न किसी तरह उन्हें एक जगह मिलने जा रही है जहां एक बार फिर से वो मिल सकते हैं, विचारों का आदान प्रदान हो सकता है , सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियां आयोजित की जा सकती हैं पर अभी भी बहुत से प्रश्न अनुत्तरित हैं कि इस सेंटर के सञ्चालन में पत्रकारों की भूमिका क्या रहेगी ? अगर होगी तो कौन पत्रकार होंगे उस भूमिका में ? कहीं ‘सरकारी पत्रकारों’ को ही तो प्रबंधन में नहीं रखा जायेगा ?सरकार का कितना और किस प्रकार का दखल रहेगा पत्रकारों के प्रोफेशनल वर्क में जो इस सेंटर से किया जायेगा ? कहीं पत्रकारों के नाम पर यह एक सरकारी सेंटर तो बन कर नहीं रह जायेगा ? कहीं इस सेंटर पर कॉर्पोरेट सेक्टर की छाया तो नहीं पड़ जाएगी कि हर सुविधा अत्यंत महंगे स्तर पर पहुंचा दी जाएगी? कहीं बिल्डर लॉबी का बैक डोर एंट्री तो नहीं हो जायेगा इस प्रोजेक्ट में?

इस अवसर पर बोलते हुए मुख्यमंत्री ने पत्रकारिता और पत्रकारों के कार्यों की तारीफ की तथा कहा कि पत्रकार और पत्रकारिता लोकतंत्र के प्राण हैं I देखना है उनके शब्दों का सम्मान सरकार और प्रशासन कैसे करता है या करता भी या नहीं? क्योंकि अभी जो माहौल चल रहा है उसमे पत्रकारिता में अभिव्यक्ति की आज़ादी तो दिख नहीं रही हैI देश में पहले ये भावना नहीं होती थी कि सच छपने पर पत्रकार और पत्रकारिता को क्रश (crush) कर दिया जाए I

हो सकता है यह सेंटर नए और युवा पत्रकारों के लिए एक महत्वपूर्ण प्लेटफार्म का कार्य करे और पत्रकारों की बहुत सी रचनात्मक गतिविधियों का साक्षी बने पर जो भी हो और स्टेट मीडिया सेंटर कितना भी भव्य क्यों न बने इसे हमेशा भोपाल के पत्रकारों के द्वन्द और असफलता का स्मारक ही माना जायेगा जिसकी कल्पना पत्रकार भवन के संस्थापकों ने जिन्होंने अपने मेहनत और पसीने से इस भवन के एक एक ईंट को जोड़कर आने वाली पीढ़ी को सौंपा, कभी अपने बुरे से बुरे सपने में भी नहीं की रही होगीI